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आइए ‘ संवाद की शताब्दी ‘ मनाएं : दलाई लामा

November 20, 2010

[शनिवार, 20 नवम्बर, 2010 | स्रोत : JANSATTA]

ऩई दिल्ली , 19 नवंबर । तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा ने दुनिया में हथियारों के बढते भंडारों पर चिंता प्रकाट की और कहा कि 20 वीं शताब्दी सक्तरंजित शताब्दी की प्रतिक थी , लेकिन हम सभी को मिलकर 21 शताब्दी को संवाद की शताब्दी बनाने के भरसक प्रयास करने चाहिए । इंस्टीट्यूट आफ सोशल साइंसेज में विश्व शांति के प्रति मानवीय दृष्टिकोण विषय पर व्याख्यान देते हुए उन्होंने कहा कि शस्त्रीकरण से हिंसा को बढावा मिलता है , जो मानव सभ्यता के लिए घातक है । उन्होंने इस बात पर बल दिया कि सभी देशों को यह अहसास करना होगा कि पडोसी के विनाश से खुद उनके विनाश का मार्ग प्रशस्त होता है । इसलिए , हिंसा को त्याग कर उन्हें विश्वास पर आधारित मैत्री का रास्ता अपनाना चाहिए । उन्होंने कहा कि तिब्बत समस्या एक मानवीय समस्या है और इसे हम हिंसा से नही बल्कि संवाद के जरिए हल करना चाहते है । इस अवसर पर उन्होंने समाजवादी नेता जार्ज फर्नाडीज के एक चित्र का भी अनावरण किया । उन्होंने कहा कि शस्त्रीकरण के उन्मूलन के लिए हमें कदम दर कदम आगे बढना चाहिए । पहले परमाणु शस्त्रों ता उन्मूलन करना होगा । और उसके बाद अन्य अनुवर्ती कदम उठाने होंगे । यह लंबा लक्ष्य जरुर है , लेकिन इस मसले के बारे में जागरुकता लाकर इसे हासिल करना नामुमकिन नही है । यदि मानवता के हित में निशस्त्रीकरण का मार्ग अख्तियार कर हथियारों पर होने वाला अरबों डालर का सालना खर्च बचा लिया तो गरीबी उन्मूलन और विकास कार्यों तो तेजी से अंजाम दिया जा सकता है । यही मानवीय नजरिया है । इससे विश्व शांति की भावना मजबूत बनाई जा सकती है । एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि आर्थिक विकास की दृष्टि से चीन , भारत से बडी शक्ति है , लेकिन लोकतंत्र , स्वतंत्र न्यायपालिका , स्वतंत्र मीडिया औऱ विविधता में एकता की दृष्टि से भारत , चीन से कहीं अधिक शक्तिशाली है ।


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