भारत तिब्बत समन्वय केन्द्र

भारत व तिब्बत हजारों वर्षों से शांतिपूर्ण पड़ोसियों की भांति रहते आए हैं। किसी भारतीय नागरिक को कैलाश मानसरोवर की यात्रा करने और किसी तिब्बती नागरिक को बोधगया की यात्रा करने के लिए इतिहास में पहले कभी भी वीजा की जरूरत नही पड़ती थी। सातवीं शताब्दी में तिब्बत में गुरू पद्म संभव द्वारा बौधर्म के प्रसार के बाद से तो तिब्बत भारत को अपना गुरू आर्यभूमि मानने लगा। शताब्दियों से हिमालय भारत का रक्षक बना रहा है और भारत के पारिस्थितिकी तंत्र का यह केंद्रीय नियंत्रक भी है। १९४९ में तिब्बत पर चीनी कब्जे के बाद भारत कीसीमाएं साम्यवादी चीन से सीधे संपर्क में आ गई और शताब्दियों पुराना शांतिपूर्ण सहअस्तित्व बिखर गया। हिमालय आज संवेदनशील बन गया है और उसके सुरक्षा की जरूरत आ पड़ी है। एक ऐसी शांतिपूर्ण सीमा जिसकी सुरक्षा कुछ प्रतीकात्मक सीमा पुलिसबलों के द्वारा ही की जाती थी अचानक उस पर भारी सैन्य बल की तैनाती करनी पड़ी और उस पर फिलहाल हर दिन भारत का लगभग ५ करोड़ रूपए खर्च करने पड़ते हैं। सरदार पटेल, बाबा साहब अम्बेडकर, आचार्य कृपलानी, जयप्रकाश नारायण, राममनोहर लोहिया, अटल बिहारी वाजपेयी जैसे कई महान भारतीय नेताओं ने संसद व संसद के बाहर इस बारे में अपनी चिंता जाहिर की है।

हिमालय बचाओ आंदोलन, भारत-तिब्बत मैत्री संघ, हिमालय कमिटी फॉर एक्शन ऑन टिबेट, फ्रेन्ड्स ऑफ टिबेट, स्टुडेंट्स फोर फ्री टिबेट, इंडियन वूमेन फॉर टिबेट, भारत-तिब्बत सहयोग मंच, अंतरराष्ट्रीय भारत-तिब्बत सहयोग समिति, भारत-तिब्बत मैत्री संघ, स्टुडेंट फॉर फ्री टिबेट, ड्स ऑफ टिबेट एंड टिबेटन्स, तिब्बत संघर्ष समिति, टिबेट स्टडी ग्रुप और कमिटी फॉर द सालिडिरिटी विद द टिबेट लिबरेशन मूवमेंट जैसी कई भारतीय स्वयंसेवी संस्थाएं तिब्बती लोगों के वैधानिक अधिकारों की बहाली और भारत की सुरक्षा के मुद्दे पर सव्रिफयता से कार्य कर रही हैं।

वर्ष २००२ में ९ व १० फरवरी को हरियाणा के रेवाड़ी में संपन्न अखिल भारतीय तिब्बत समर्थक समूह की बैठक में इस बात पर सहमति हुई थी कि इस बारे में चल रहे सभी प्रयासों को समन्वित किया जाए और एक बेहतर नेटवर्किंग प्रणाली का निर्माण किया जाए। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए एक कोर ग्रुप फॉर टिबटेन कॉज का नामांकन किया गया जो भारत-तिब्बत समन्वय केंद्र ;आई टी सी ओ के द्वारा विभिन्न तिब्बत समर्थक समूहों के साथ मजबूत समन्वय बनाएगा।

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