निर्वासित तिब्बतियों का चार्टर

निर्वासित तिब्बतियों का चार्टर सीटीए के कार्यों को नियंत्रित करने वाला सर्वोच्च कानून है। यह संविधान पुनर्रचना समिति द्वारा तैयार किया गया था और अनुमोदन के लिए निर्वासित तिब्बती संसद को भेजा गया था। संसद ने 14 जून 1991 को चार्टर को स्वीकार कर लिया था।

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार सार्वभौम घोषणा की भावना के अनुरूप, चार्टर सभी तिब्बतियों को कानून के समक्ष समान मानता है और लिंग, धर्म, नस्ल, भाषा और सामाजिक मूल के आधार पर भेदभाव के बिना अधिकारों और स्वतंत्रता की गारंटी देता है। यह प्रशासन के तीनों अंगों- न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका के बीच शक्ति के स्पष्ट विभाजन का प्रावधान करता है।

चार्टर के अस्तित्व में आने से पहले, केंद्रीय तिब्बती प्रशासन मोटे तौर पर परम पावन दलाई लामा द्वारा 10 मार्च 1963 को प्रख्यापित ‘भविष्य के तिब्बत के लिए लोकतांत्रिक संविधान’ के मसौदे के अनुरूप काम करता था।

वर्षों से, चार्टर को नियमित आधार पर संशोधित किया जाता रहा है। परम पावन दलाई लामा द्वारा राजनीतिक नेतृत्व के हस्तांतरण के बाद, तीन निकायों अर्थात- कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका के बीच शक्तियों को विभाजित करने के लिए चार्टर को फिर से संशोधित किया गया था।

14 मार्च 2011 को चार्टर में संशोधन किया गया, जिसके तहत परम पावन ने लोकप्रिय निर्वाचित नेतृत्व-सिक्योंग- को पूर्ण राजनीतिक अधिकार सौंप दिया।

यह हिन्दी अनुवाद जिस अंग्रेजी संस्करण से किया गया है, उसे निर्वासित तिब्बती संसद के 10वें सत्र के दौरान आधिकारिक रूप से स्वीकृत किया गया था।

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