सरकारी स्कूल में भेजे जाने के बाद १७ वर्षीय किशोर सदमे में आ गया था।
२८. ०५. २०२४
तिब्बत के अंदर की आंखो देखी जानकारी रखने वाले तीन सूत्रों ने रेडियो फ्री एशिया को बताया कि १७ वर्षीय तिब्बती बौद्ध भिक्षु को मठ छोड़ने और सरकारी स्कूल में नामांकन कराने के लिए मजबूर किए जाने के बाद उसने आत्महत्या कर ली। अधिकारियों ने स्कूल भेजकर उससे कहा था कि वह अब भिक्षुवाला कषाय चीवर धारण नहीं कर सकता है।
सुरक्षा कारणों से नाम उजागर न करने की शर्त पर सूत्रों ने बताया कि अप्रैल के मध्य में किंघई प्रांत के द्रक्कर काउंटी में कुंजांग लोंगयांग नामक भिक्षु की मौत हो गई।
भिक्षु की मौत ऐसे समय में हुई है जब युवा तिब्बती भिक्षुगण बौद्ध धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं का पालन करने पर लगाए जा रहे कठोर प्रतिबंधों के कारण भारी दबाव का सामना कर रहे हैं।
इन प्रतिबंधों में २०१८ का एक आदेश भी शामिल है, जिसके अनुसार तिब्बती क्षेत्र के मठों से १८ वर्ष से कम उम्र के भिक्षुओं को बाहर कर दिया जाना है। चीनी अधिकारियों ने कहा है कि किशोर भिक्षु अपने बारे में सोचने और निर्णय करने के मामले में बहुत अपरिपक्व हैं इसलिए उन्हें समाज की सेवा करनी चाहिए।
चीनी अधिकारी लंबे समय से तिब्बती सांस्कृतिक और राष्ट्रीय पहचान का पारंपरिक रूप से केंद्र रहे तिब्बती बौद्ध मठों के आकार और प्रभाव को सीमित करने की कोशिश कर रहे हैं।
सूत्रों में से एक ने आरएफए को बताया, ‘यहां तक कि सर्दियों और गर्मियों की छुट्टियों के दौरान भी किशोर भिक्षुओं को स्कूल से अपने मठों में लौटने या यात्राओं पर जाने की अनुमति नहीं है।’
सूत्र ने कहा, ‘सरकारी अधिकारी अपने खुफिया तंत्र के एजेंटों को यह निगरानी करने के लिए मठों में भेजते हैं कि क्या ये तिब्बती मठ किशोर आयु के भिक्षुओं को वापस बुला रहे हैं? तिब्बती मठों को यह धमकी भी दी जाती है कि अगर वे बच्चों को वापस बुलाते हैं तो उन्हें गंभीर परिणाम भुगतने होंगे।’
स्कूल में अवसादग्रस्त
तीनों सूत्रों ने आरएफए को बताया कि चीनी सरकार के अधिकारियों द्वारा तीन साल पहले १८ वर्ष से कम आयु के किशोरों को मठों से हटाने का नियम लागू करने के बाद लोंगयांग को ड्राकर काउंटी के युलुंग मठ से निष्कासित कर दिया गया था।
इसके बाद, लोंगयांग को एक स्थानीय स्कूल में भर्ती कराया गया, जहां उन्हें बताया गया कि वह भिक्षु की पोशाक यानि कषाय चीवर नहीं पहन सकते हैं। उन्हें कक्षा में उपस्थित रहने के दौरान सामान्य कपड़े पहनने होंगे।
स्रोत ने बताया कि स्कूल में वह गंभीर रूप से अवसादग्रस्त हो गए। उन्होंने खाना-पीना बंद कर दिया और कई दिनों तक बीमार पड़े रहे।
स्रोत ने बताया कि ‘ऐसा कई बार हुआ और हर बार स्कूल के अधिकारियों ने उनके परिवार को उन्हें घर ले जाने के लिए बुलाया।’
शुरू में, स्कूल प्रशासकों ने कुछ सहूलियतें दी और उनके लिए नियमों में कुछ अपवाद रखे। तीनों सूत्रों ने बताया कि लोंगयांग को पूरे वर्ष स्कूल में उपस्थित रहने की आवश्यकता नहीं थी। उन्हें सरकारी अधिकारियों द्वारा संचालित परीक्षाओं और निरीक्षणों के लिए स्कूल में रहने के दौरान अपना चीवर धारण करने की अनुमति दी गई थी।
पह ये सारी सहूलियतें और नियमों में छूट कुछ महीने पहले समाप्त कर दिए गए। अब स्कूल के अधिकारियों ने फिर से आदेश दिया कि लोंगयांग और अन्य किशोर भिक्षुओं को चीवर छोड़कर स्थायी रूप से स्कूल में रहना होगा। सूत्रों ने बताया कि इससे लोंगयांग को बहुत परेशानी हुई।
अन्य सूत्रों में से एक ने कहा, ‘लोंगयांग इस बात पर अड़ गए थे कि वह अपना भिक्षु वेष नहीं छोड़ेंगे। उन्होंने कहा था कि अगर उन्होंने हमेशा के लिए चीवर धारण करना छोड़ने के लिए और सामान्य वस्त्र पहनकर स्कूल जाने को मजबूर किया गया तो वह आत्महत्या कर लेंगे।’ उनके द्वारा यह घोषणा किए जाने के कुछ ही दिन बाद वह फिर अवसाद में आ गए और इसके तुरंत बाद अप्रैल में लोंगयांग को फिर से स्कूल से घर भेज दिया गया था। सूत्रों ने कहा कि उसी समय उन्होंने आत्महत्या कर ली।