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थेकछेन छोलिंग, धर्मशाला, हिमाचल प्रदेश, भारत। आज २६ अक्तूबर, २०२१ की सुबह परम पावन दलाई लामा द्वारा अपना आसन ग्रहण करने के बाद बोल्डर के कोलोराडो विश्वविद्यालय के कुलपति फिलिप पी. डिस्टेफ़ानो ने स्कूलों में करुणा और गरिमा के बारे में बात करने के लिए उनका स्वागत किया। भविष्य में करुणा और गरिमा की महत्ता का आकलन करते हुए उन्होंने कहा कि ये गुण कितने महत्वपूर्ण हैं। २०१६ में जब परम पावन अंतिम बार बोल्डर में थे, उसी समय क्राउन इंस्टीट्यूट की नींव डाली जा रही थी। आज, यह अंतःविषय संस्थान कल्याण, कनेक्शन और समुदाय पर केंद्रित है। कुलपति ने अपने संबोधन को समापन करते हुए कहा, ‘चाहे आप एक शिक्षक, माता-पिता या व्यक्तिगत पर्यवेक्षक हों, मुझे आशा है कि आप आज रात यहां व्यक्त किए गए ज्ञान से प्रेरित होंगे।’
रेनी क्राउन वेलनेस इंस्टीट्यूट की निदेशक और यूनिवर्सिटी ऑफ कोलोराडो, बोल्डर में मनोविज्ञान एवं न्यूरोसाइंस विभाग की प्रोफेसर सोना डिमिडजियन ने कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुए घोषणा की कि परम पावन की शिक्षाओं ने दुनिया भर के लोगों को शिक्षा में करुणा के लाभों के बारे में जिज्ञासा पैदा करने के लिए प्रेरित किया है। इस बीच, वैज्ञानिकों के साथ उनकी बातचीत ने नए शोध को प्रेरित किया है, जिसने करुणा प्रशिक्षण के सकारात्मक प्रभावों का प्रदर्शन किया है।
उन्होंने कहा कि वह और उसके सहयोगी एक ऐसा कार्यक्रम बनाना चाहते थे, जो उनके सभी शिक्षण और सुरक्षित, समावेशी और न्यायपूर्ण स्कूलों के निर्माण की नींव के रूप में करुणा की उनकी साधना को और गहराई प्रदान कर सके। उन्होंने करुणा को शिक्षा की मुख्यधारा में लाने के प्रयास में करुणा की साधना में ‘अपने आप में और स्कूलों में करुणा और गरिमा की प्रतिष्ठा (कल्टीवेटिंग कंपैशन एंड डिग्निटी इन आवरसेल्व्स एंड आवर स्कूल्स)’ शीर्षक से एक साल के लंबे कार्यक्रम को तैयार करने के लिए प्रशिक्षकों और विशेषज्ञों के साथ मिलकर काम किया। उन्होंने परम पावन को शिक्षा में करुणा के महत्व के बारे में बोलने के लिए आमंत्रित किया।
परम पावन ने अपने संबोधन की शुरुआत ‘धन्यवाद’ ज्ञापित करने के साथ की। उन्होंने कहा ‘आपने मुझे आंतरिक मूल्यों के बारे में बात करने का अवसर देकर मुझे बहुत बड़ा सम्मान दिया है। यह काफी सरल है; मुझे लगता है कि सभी संवेदनशील प्राणी, यानि कि हमारे ग्रह पर सभी जीवित चीजें शांति में रहना चाहते हैं। इनमें फूल और पेड़ भी शामिल हैं, जिन्हें हम मानते हैं कि इनमें कोई चेतना नहीं होती है। यह शायद एक रूसी व्यक्ति थे, जिन्होंने मुझसे कहा था कि यदि आप हर दिन एक पौधे से डांट कर बातें करते हैं और दूसरे पौधे से आराम से बात करते हैं, तो वे अलग तरह से विकसित होते हैं। सीधे शब्दों में कहें, अगर हम पौधों की देखभाल करते हैं तो वे अच्छी तरह से विकसित होते हैं। अगर हम उनकी उपेक्षा करते हैं तो वे मर जाते हैं।
उन्होंने कहा, ‘हमारे ग्रह पर सभी स्तनधारी जीव जीवित रहना चाहते हैं और शांति से रहना उनके अस्तित्व के लिए महत्वपूर्ण है। वास्तविकता यह है कि जैसे ही हम पैदा होते हैं, हमारी माताएं हमारा ख्याल रखती हैं और हमारे साथ करुणा का व्यवहार करती हैं। अगर ऐसा नहीं होता तो हम मर जाते। धीरे-धीरे जैसे-जैसे हम बड़े होते हैं, हम अपने परिवार के सदस्यों के साथ करुणापूर्ण संबंध विकसित करते हैं, जो बाद में समुदाय के अन्य सदस्यों तक विस्तारित हो जाते हैं।’
‘अतीत में, क्रोध और घृणा से बहुत अधिक हिंसा और हत्याएं हुई हैं। कुछ लोग सोच सकते हैं कि क्रोध किसी स्थिति में ऊर्जा लाता है, लेकिन यह केवल अल्पावधि के लिए ही उचित तथ्य है। आज के समय में मनुष्य शांति चाहता है, क्योंकि शांति ही जीवन का आधार है। एक अधिक शांतिपूर्ण विश्व का विकास करने के लिए हमें अपने भीतर भी झांकना होगा। जब हमारा मन शांत होता है और संकट में होता है, उस समय भले ही हाथ में कोई हथियार हो लेकिन हम उसका उपयोग करने के लिए इच्छुक नहीं होंगे।’
‘अंततः मन की शांति की नींव प्रेममयी करुणा है। हर दिन जैसे ही मैं जागता हूं, मैं करुणा का ध्यान करता हूं और यह मुझे शांति और धैर्य प्रदान करता है। यह केवल अशांति से मुक्त होने की बात नहीं है, बल्कि प्रेम और करुणा से प्रेरित होने की बात है। मन की शांति केवल एक धार्मिक विषय नहीं है; यह मानवता के अस्तित्व को भी रेखांकित करता है। जो हमें परेशान करते हैं, वे भी इंसान हैं और हमारी करुणा के पात्र हैं।’
‘हालांकि ऐसा लग सकता है कि क्रोध ऊर्जा लाता है। लेकिन जब हम इसे और करीब से देखेंगे तो पाएंगे कि हमें आंतरिक शक्ति आंतरिक शांति से प्राप्त होती है। क्रोध जो ऊर्जा लाता है वह न केवल अल्पकालिक होता है, बल्कि यह आत्म-विनाशकारी भी हो सकता है।’
‘मेरे अपना अनुभव कहता है कि करुणा की साधना बहुत मददगार है। हर कोई शांतिपूर्ण जीवन जीना चाहता है और उस इच्छा को पूरा करने के लिए करुणा एक महत्वपूर्ण कारक है। चाहे आप अपनी भलाई या दूसरों की भलाई को बढ़ावा देने के लिए चिंतित हों, मूल रूप से इसमें परोपकार की भावना शामिल होती है। इसी तरह, चाहे आप अपने तत्कालिक या दीर्घकालिक कल्याण के लिए काम कर रहे हों, यदि आप वास्तव में परोपकारी मन- करुणामयी हृदय- को विकसित कर लेते हैं तो अल्पावधि में आप अपने भीतर शांति ही शांति महसूस करेंगे। इसका दीर्घकालिक लाभ शारीरिक सेहतमंदी और अच्छे स्वास्थ्य में दिखता है।’
‘बात चाहे व्यक्तिगत कल्याण की हो या समाज की भलाई की, हम मानते हैं कि जब कोई सक्रिय रूप से अपने दिल-दिमाग में करुणा को धारण करता है तो यह उनके आसपास के वातावरण को बदल देता है। यही कारण है कि हम कह सकते हैं कि परोपकार की भावना-करुणामयी हृदय- कल्याण का स्रोत है।’
‘अपने स्वयं के जीवन में, अक्सर सुबह-सुबह मैं अपने सामने बुद्ध की ऐसी प्रतिमा की कल्पना करता हूं जो मुझे कहती रहती हैं:
संसार में जो भी पीड़ित जन हैं वे अपनी खुशी पाने की इच्छा के कारण पीड़ित हैं। संसार में जो भी खुश हैं, वे दूसरों को खुश देखने की इच्छा के कारण हैं। ८/१२९
जो दूसरों के दुखों को दूर करने में अपने सुख का बलिदान नहीं कर सकते हैं, उनके लिए बुद्धत्व निश्चित रूप से असंभव है- उन्हें सुख-दुख के चक्र में भी सुख नहीं प्राप्त हो सकता है। ८/१३१
इस प्रकार सुख से सुख की ओर बढ़ते हुए चिंतनशील व्यक्ति निराश हो सकता है? वह जाग्रत मन है जो घोड़े पर चढ़ने के बाद सारी थकान और श्रम को खत्म कर देता है। 7/३०
‘यदि आपके हृदय में करुणा का वास हैं, तो अल्पावधि में मन की शांति और अधिक लचीला प्रतिरक्षा प्रणाली विकसित हो जाएगी। दूसरी ओर, यदि आपका मन उत्तेजित और अशांत है तो आप अपने भोजन का आनंद भी नहीं ले पाएंगे। और अगर आप वास्तव में गुस्से में हैं तो आप उस प्लेट को भी तोड़ सकते हैं, जिसमें आपको भोजन परोसा गया है।’
उपरोक्त पंक्तियां भारतीय गुरु शांतिदेव की एक पुस्तक से ली गई हैं। मैं हर दिन इनका पाठ करता हूं। इसके साथ मैं निम्नलिखित छंदों का भी पाठ करता हूं :
‘अधिक क्यों कहें? अपने फायदे के लिए व्यग्र होने वाले मूर्ख और दूसरों के फायदे के लिए काम करने वाले साधु के बीच इस अंतर को ध्यान से देखें।’ ८/१३०
परम पावन ने टिप्पणी की कि जानवर भी करुणा पसंद करते हैं। यदि आप कुत्ते के प्रति दयालु हैं, तो वह अपनी पूंछ हिलाता है। यदि आप इसे डांटते हैं, तो उसकी पूंछ झुक जाती है। उन्होंने कहा कि जब हम युवा होते हैं तो प्रेम-करुणा महत्वपूर्ण होती है, लेकिन जैसे-जैसे हम बड़े होते हैं, हम इस पर कम ध्यान देते हैं। यह गलत बात है। आखिरकार, शिक्षा का उद्देश्य हमारे मन की शांति में योगदान देना होना चाहिए। इसलिए हमें सौहार्दता पर अधिक ध्यान देना चाहिए।
हम ऐसे सामाजिक प्राणी हैं जिन्हें साथ रहना चाहते हैं। यही हकीकत है। हम सभी सात अरब मनुष्यों को भाई और बहन के रूप में रहना चाहिए। यदि हम केवल राजनीति, धन और हथियारों के बारे में सोचते हैं तो हम कभी भी अपनी किसी भी समस्या का समाधान नहीं कर पाएंगे।
परम पावन ने निष्कर्ष के तौर पर कहा, ‘इसलिए मैं अपने दैनिक जीवन में सौहार्दता को बढ़ावा देने के लिए समर्पित हूं। इस पर हमें ध्यान देना है।’
सोना डिमिडजियन ने कई शिक्षकों और प्रशिक्षकों को चिह्नित किया, जो प्रश्न पूछना चाहते थे। सबसे पहले परम पावन ने मन में आगे अच्छी भावनाओं को रखने की आवश्यकता पर बल दिया। उदाहरण के लिए उन्होंने इंगित किया कि धैर्य और सहनशीलता करुणा से उत्पन्न होती है, लेकिन केवल तभी प्रासंगिक और प्रभावी होती है जब हम कठिनाइयों का सामना कर रहे होते हैं। जब चीजें ठीक चल रही हों तो हमें धैर्य रखने की जरूरत नहीं है। यह ठीक उसी तरह है जैसे हम दवा तभी लेते हैं, जब बीमार होते हैं।
उन्होंने कहा कि दूसरों की पीड़ा को पहचानने का गुण है जो हमें दयालु होने के लिए प्रेरित करता है। सैन्य बल और हथियारों की तैनाती से दुख को दूर नहीं किया जा सकता है। हमें एक करुणामय मन विकसित करना होगा। यही आंतरिक शांति का स्रोत है जो अधिक शांतिपूर्ण विश्व के निर्माण की ओर ले जाएगा।
परम पावन ने कहा कि अपने पाठों को सीखने के लिए उत्सुक होने के अलावा, सरल मनुष्य के रूप में विद्यार्थी करुणामय व्यवहार चाहते हैं। जब उनके शिक्षक जिम्मेदारी और चिंता की भावना के साथ उनकी व्यापक संभावनाओं के लिए दयालुता का व्यवहार करते हैं, तो छात्रों की प्रतिक्रिया सकारात्मक होती है। हालांकि, अगर छात्रों को लगता है कि शिक्षक को उनकी कोई चिंता नहीं है और वे केवल अपना वेतन पाने के लिए काम कर रहे है, तो छात्र जल्दी ही कक्षा से ऊब जाते हैं और वे उसे छोड़ने का भी मन बना लेते हैं।
परम पावन ने कहा, ‘अपनी पढ़ाई के दौरान मेरे शिक्षक ने मेरे साथ अपने बच्चे की तरह व्यवहार किया था, उन्होंने मुझ पर बहुत दया रखी। परिणामस्वरूप, मैं उनके साथ अधिक से अधिक समय बिताना चाहता था। ऐसी सौहार्दता हमें खुश और सुरक्षित महसूस कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।’
‘अगर मैं कहूं कि दलाई लामा बहुत लोकप्रिय हैं, तो यह इसलिए नहीं है कि मैं लोकप्रिय बनना चाहता हूं। बल्कि इसलिए कि लोग हमेशा मेरे चेहरे पर मुस्कान देखते हैं। और ऐसा इसलिए है क्योंकि मैं सौहार्दता को आत्मसात करता हूं।’
परम पावन ने दोहराया कि यदि शिक्षक न केवल पाठ्यक्रम के अनुसार पढ़ाएं, बल्कि वास्तव में अपने छात्रों के कल्याण के बारे में भी चिंतित रहें तो उनके बीच घनिष्ठ संबंध विकसित होंगे। जब एक शिक्षक वास्तव में मानवता की भलाई के लिए समर्पित होता है तो वह स्वाभाविक रूप से अपने छात्रों के साथ सम्मान के साथ व्यवहार करेगा।
जहां तक न्याय और करुणा का संबंध है, अतीत में आंतरिक मूल्यों के बारे में बहुत कम बात की जाती थी। इसके बजाय, लोग संदेह और बल प्रयोग पर निर्भर थे। लेकिन दुनिया बदल गई है और अब सौहार्द की बहुत बड़ी भूमिका है। अभिवृत्तियां अधिक यथार्थवादी और अधिक परिपक्व होती हैं। मन की शांति प्राप्त करने के महत्व की स्पष्ट समझ है। इस बारे में भी अधिक जागरुकता आ गई है कि करुणामय होना मानव का मूल स्वभाव है। अधिक करुणामय प्रेरणा का पोषण करने से अधिक सत्य और ईमानदारी प्राप्त होती है।
पूरे स्कूल को और अधिक करुणामय बनाने के बारे में बात करते हुए परम पावन ने दोहराया कि चूंकि शिक्षा भौतिकवादी लक्ष्यों की ओर उन्मुख है, इसलिए इसके पाठ्यक्रम में सौहार्द को भी महत्व देने और शामिल करने की आवश्यकता है। करुणा से मन की शांति मिलती है और ऐसी आंतरिक शांति शिक्षकों और छात्रों के बीच स्वास्थ्य और कल्याण को बढ़ावा देती है। उन्होंने अपना यह दृढ़ विश्वास घोषित किया कि शिक्षा के लिए एक नया दृष्टिकोण अपनाना संभव है, जो सौहार्दता में निहित है।
उन्होंने कहा कि करुणा साहस और दृढ़ संकल्प का आधार है। इन गुणों की आवश्यकता है क्योंकि दुख को तुरंत दूर नहीं किया जा सकता है। हमें यथार्थवादी होना होगा। हमें इसके कारणों की तलाश करनी चाहिए और उन्हें जड़ से उखाड़ फेंकना चाहिए। यह कुछ ऐसा है जो हम मनुष्य कर सकते हैं क्योंकि हमारे पास बुद्धि और आत्मविश्वास है।
परम पावन ने दोहराया कि बच्चों को करुणा के बारे में सिखाने के लिए सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि मानवीय बुद्धि को सौहार्दता के साथ संयोजित किया जाए।
सोना डिमिडजियन ने बातचीत में योगदान के लिए परम पावन को धन्यवाद दिया और करुणा संस्थान के कार्यकारी निदेशक स्टीफन बटलर से समापन संबोधन प्रस्तुत करने के लिए कहा। उन्होंने परम पावन को इस अंतर्दृष्टि के लिए धन्यवाद दिया कि करुणा के मौलिक मानवीय गुण में हमारे जीवन और दुनिया को बदलने की शक्ति है। उन्होंने इच्छा व्यक्त की कि परम पावन के पास एक लंबा और स्थिर जीवन है और हम सभी करुणा को एक दयालु और अधिक देखभाल करने वाली मानवता के बीज, पोषण और फल के रूप में स्थापित करने के लिए पूरी कोशिश कर सकते हैं।
अंत में परम पावन ने उत्तर दिया कि यदि मनुष्य को अधिक सुखी होना है तो शिक्षा को सौहार्दता के साथ जोड़ा जाना चाहिए। इसका उद्देश्य लोगों के लिए स्वस्थ, अधिक शांतिपूर्ण दिमाग विकसित करना है। भय क्रोध को जन्म देता है और क्रोध मन की शांति को नष्ट कर देता है। हम जितने अधिक दयालु होंगे, उतने ही कम भयभीत होंगे और हमारी आंतरिक शक्ति और आत्मविश्वास उतना ही अधिक होगा। बात एक खुशमिजाज व्यक्ति, आत्मविश्वासी और साहसी बनने की है।
परम पावन ने टिप्पणी की कि ‘आप में से जिन्होंने आज की चर्चा में भाग लिया है या इसे सुना है, वे लोग महसूस करें कि हमने जो कुछ भी कहा है वह उचित था, कृपया इसके बारे में सोचें, इससे परिचित हों और इसे अपने परिवार और दोस्तों के बीच प्रचारित करें।’
‘शुक्रिया। फिर मिलेंगे।’