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कुमाऊं विश्वविद्यालय, नैनीताल में ‘तिब्बत में मानवाधिकारों के उल्लंघन’ पर संगोष्ठी

December 13, 2022

 

१२ दिसंबर २०२२, नई दिल्ली। परम पावन १४वें दलाई लामा को नोबेल शांति पुरस्कार प्रदान करने की ३३वीं वर्षगांठ के अवसर पर १० दिसंबर, २०२२ अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस को तिब्बत जागरूकता संगोष्ठी के रूप के साथ मनाई गई। संगोष्ठी का आयोजन भारत- तिब्‍बत मैत्री संघ (आईटीएफएस), नैनीताल द्वारा इसके संयोजक श्री नवीन पनेरू के नेतृत्व में डॉ. राजेंद्र प्रसाद लॉ इंस्टीट्यूट, कुमाऊं विश्वविद्यालय, नैनीताल में किया गया था। इसमें संस्थान के प्राध्यापकों और छात्रों ने भी भाग लिया। इस कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के ७० से अधिक छात्रों और २० कर्मचारियों ने भाग लिया।

आईटीएफएस,नैनीताल के संयोजक श्री नवीन पनेरू ने परिचयात्मक टिप्पणी प्रस्तुत की और भारत के लोगों से यह याद रखने का आह्वान करते हुए तिब्बत के मुद्दों के बारे में जानकारी दी कि भारत से लगती ४०००वर्ग किलोमीटर की सीमा जो आज चीन के साथ है, १९५०से पहले एक स्वतंत्र देश- तिब्बत के साथ लगती थी। ५० के दशक में चीन ने तिब्बत पर कब्जा कर लिया और उसे अपने नक्शे में मिला लिया। इसके बाद से वह लगातार तिब्बत के अस्तित्व को मिटाने की हरसंभव कोशिश कर रहा है। अब चीन की नजर अरुणाचल, सिक्किम और भूटान पर है। उन्होंने आगे कहा कि तिब्बत की भाषा, संस्कृति और धर्म की उत्पत्ति भारत की प्राचीन आध्यात्मिक भूमि से हुई है, इसलिए भारत और तिब्बत के बीच गुरु-शिष्य का संबंध है। तिब्बत और कैलाश-मानसरोवर का प्राचीन काल से भारत के साथ पौराणिक और आध्यात्मिक संबंध रहा है। उन्होंने कहा कि लोगों को तिब्बत और कैलाश- मानसरोवर के मुक्ति अभियान से जुड़ना होगा। उन्होंने हिमालय के सामरिक और राजनीतिक महत्व की ओर देश का ध्यान आकर्षित करने की आवश्यकता पर जोर दिया।

आईटीसीओ की कार्यवाहक समन्वयकताशी देकी ने सबसे पहले कशाग के वक्‍तव्‍य को पढ़कर सुनाया। इसमें कहा गया था कि मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा को अपनाने और लागू करने के बाद से पूरी दुनिया १० दिसंबर को मानवाधिकार दिवस मनाती है। हालांकि, तिब्बतियों के ‘मानवाधिकारों’ को कुचल दिया गया और वर्ष १९५९ में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा हमारे देश ‘तिब्बत’ पर जबरन कब्जा कर लिया गया। उन्होंने आगे कहा,‘तिब्बत के लोग ७० से अधिक वर्षों से प्रतिरोध कर रहे हैं और उन्होंने कभी भी हिंसक अतिवाद का सहारा नहीं लिया। इसके बजाय, केंद्रीय तिब्बती प्रशासनपरम पावन १४वें दलाई लामा के मार्गदर्शन में ‘मध्यम मार्ग दृष्टिकोण’ के आधार पर अभियान चलाता है। ‘मध्यम मार्ग दृष्टिकोण’ में तिब्बती लोगों के लिए वास्तविक स्वायत्तता का प्रस्ताव है जो पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के ढांचे के भीतर केवल स्वशासन (क्षेत्रीय प्रशासन) और हमारी भाषा, संस्कृति, धर्म, शिक्षा, पर्यावरण संरक्षण और अन्य बुनियादी जरूरतों के संरक्षण की बात करता है। ‘मध्यम मार्ग दृष्टिकोण’ तिब्बत के अंदर गंभीर समस्याओं, जिसका समाधान अब अत्यावश्यक हो चुका है, सबसे व्यवहार्य और यथार्थवादी समाधान है।

उन्होंने तिब्बत के अंदर वर्तमान स्थिति के बारे पर अपनी जानकारी को प्रस्‍तुत किया। तिब्बती पहचान के विनाश करने के साथ इसका चीनीकरण कर एकल हान राष्ट्रीय पहचान की भावना को मजबूत करने की चीनी वर्चस्‍ववादी नीति को उजागर करते हुएउन्होंने समझाया कि चीनी अधिकारियों के खिलाफ किसी भी अभिव्यक्ति (शांतिपूर्ण प्रदर्शन) को वहां अलगाववाद माना जाता है और मृत्‍युदंड जैसी कठोर सजा तक दी जाती है। इसने तिब्बत के अंदर तिब्बतियों  को शांतिपूर्ण विरोध करते हुए आत्मदाह करने पर मजबूर किया है। इन परिस्थितियों ने तिब्बत के अंदर न्याय की अपील करने के लिए प्रेरित किया है। तिब्बत में चीनी आबादी के लगातार प्रवाह ने तिब्बत की संस्कृति और तिब्बती खानाबदोशों और किसानों के रहवास को नष्ट कर दिया है, जिसने तिब्बतियों को अपने ही देश में अल्पसंख्यक बना दिया है। खनन, वनों की कटाई और बांधों के निर्माण के माध्यम से लिथियम जैसे प्राकृतिक संसाधनों के अत्यधिक दोहन ने न केवल तिब्बत के अंदर बल्कि पूरी दुनिया के तिब्बतियों के जीवन को खतरे में डाल दिया है। उन्होंने दुनिया भर में तिब्बत और तिब्बती भाइयों और बहनों के साथ एकजुटता से खड़े होने के लिए भारत सरकार और भारत के लोगों के प्रति आभार व्यक्त किया।

सीटीए के संग्रह से ‘तिब्बत में मानवाधिकारों के उल्लंघन’ पर दो वीडियो वृत्तचित्र प्रस्तुत किए गए औरजनता की बेहतर समझ और भागीदारी के लिए खुली चर्चा आयोजित की गई।

संगोष्ठी में उपस्थित अतिथियों एवं वक्ताओं का आभार व्यक्त करते हुए विभागाध्यक्ष डॉ. दीपकी जोशी ने कहा कि आज विश्व में सबसे अधिक मानवाधिकारों का हनन तिब्बत में हो रहा है। उन्होंने कहा कि इस पर किसी भी सभ्य समाज को चुप नहीं रहना चाहिए। बहुत कम लोगों को इस बात का एहसास होता है कि अपने स्वाभिमान और शान की बलि देकर जीना कितना मुश्किल होता है। उन्होंने सभी से भारत-तिब्बत मैत्री संघ में शामिल होने का आह्वान किया और इस संबंध में आईटीएफएस द्वारा किए जा रहे कार्यों के लिए आभार व्यक्त किया।

इस मौके पर डॉ. सुरेश चंद्र पाण्डेय, डॉ. उज्मा, डॉ. वी.के. रंजन, श्री सागर पाटनी, श्री जी.सी. पाण्डेय, श्री के.पी. पाण्डेय, श्री नीरज जोशी, श्री देवेन्द्र आर्य एवं श्री देवेन्द्र शाह के अलावा अनेक विद्यार्थी भी उपस्थित थे।


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