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बालीपारा (असम)। दिवंगत हवलदार श्री नरेन चंद्र दास- ५ असम राइफल्स रेजिमेंट के उन सात सैनिकों में से अंतिम जीवित सदस्य थे, जो उन लोगों में से कई के लिए ऐतिहासिक संदर्भ छोड़ गए हैं, जो बौद्ध धर्म में आस्था रखते हैं, परम पावन दलाई लामा में विश्वास करते हैं और भारत और तिब्बत के बीच विशेष बंधन की आकांक्षा रखते हैं। श्री दास का २८ दिसंबर, २०२१ को बालीपारा से दो किलोमीटर और तेजपुर से २५ किलोमीटर दूर उनके गृह गांव उदमारी में निधन हो गया।
१४ मार्च १९५९ का दिन तिब्बत के इतिहास के सबसे काले दिनों में से एक था, जब परम पावन दलाई लामा को अपने देश- तिब्बत से भागने के लिए मजबूर होना पड़ा था। वह विश्रांत और थके हुए थे, लेकिन उनका यह विश्वास अडिग था कि गुरु होने के नाते भारत अपने शिष्य को शरण देगा। परम पावन दलाई लामा याद करते हुए कहते हैं कि ३१ मार्च १९५९ को नेफा (वर्तमान अरुणाचल प्रदेश की सीमा पर) पहुंचने के बाद जब उन्होंने असम राइफल के भारतीय अधिकारियों और सैनिकों को देखा तो उनमें व्याप्त भय और संदेह के बादल छंट गए और उनमें आशा, अस्तित्व और तिब्बती पहचान के प्रति आश्वासन का नवीन संचार हो गया था, जो बौद्ध आस्था और अभ्यास के मूल्यों में निहित है।
यहां श्री नरेन चंद्र दास का संदर्भ इसलिए आया कि उन्होंने ५ असम राइफल्स रेजिमेंट के छह अन्य सैनिकों के साथ परम पावन दलाई लामा को भारत-तिब्बत सीमा से अरुणाचल प्रदेश के लुमला तक पहुंचाया था। निधन से पहले श्री दास को गुवाहाटी के साथ-साथ धर्मशाला में विशेष रूप से २०१८ में ‘थैंक यू इंडिया’ कार्यक्रम के दौरान कई कार्यक्रमों में भी आमंत्रित किया गया था।
माननीय सिक्योंग श्री पेन्पा त्सेरिंग के हस्ताक्षर से जारी शोक-पत्र के साथ बालीपारा के उनके गांव उदमारी में एक संक्षिप्त कार्यक्रम का आयोजन किया गया। हालांकि इसे जनवरी, २०२२ के पहले सप्ताह में आयोजित करने की योजना थी, लेकिन कोविड -१९ मामलों की अचानक वृद्धि के कारण इसे आज तक के लिए स्थगित कर दिया गया था।
कोर ग्रुप फॉर तिब्बतन कॉज- इंडिया (सीजीटीसी- आई) के असम और मेघालय के क्षेत्रीय संयोजक श्री सौम्यदीप दत्ता के साथ ‘फ्री तिब्बत- ए वॉयस फ्रॉम असम’ के स्वयंसेवकों ने इस कार्यक्रम की व्यवस्था की। इस कार्यक्रम में बालीपारा के जिला परिषद सदस्य और सामाजिक कार्यकर्ता श्री मृणाल सैकिया, उदमारी के ग्राम प्रधान श्री जादाब दास, उदमारी के ग्राम सचिव श्री पंकज बोरा, श्री अंकुर दास उपस्थित हुए। इनके अलावा मीडिया समूह से- प्राग न्यूज और प्रेस क्लब, बालीपारा के प्रमुख दीपज्योति कोच सैकिया, प्रेस क्लब, बालीपारा की सचिव और असोमिया प्रतिदिन की सुश्री निराला डेका, प्रतिदिन टाइम्स के श्री मिलन दास और नियोमिया बार्ता के श्री परंजल पी. बोरा उपस्थित रहे।
इस अवसर पर श्री दत्ता ने अपने संबोधन में तीन बिंदुओं को लेकर अभियान चलाने की अपनी दिली इच्छा को प्रकट किया – पहला, इस मुद्दे पर समुदाय के बीच जागरूकता बढ़ाई जानी चाहिए कि सीमा कोई भारत और चीन के बीच नहीं है, बल्कि भारत की सीमा केवल तिब्बत के साथ लगती है। दूसरा, स्वर्गीय श्री नरेन चंद्र दास की विरासत और सेवा को न केवल उदमारी, बालीपारा में बल्कि पूरे असम में प्रचारित किया जाए। और तीसरा, स्थानीय समुदायों और फ्री तिब्बत- ए वॉयस फ्रॉम असम के समर्थकों के समर्थन से उनके सम्मान में एक स्तूप का निर्माण किया जाए जो पर्यटकों को आकर्षित करेगी। साथ ही न केवल परम पावन दलाई लामा के प्रति उनकी सेवाओं बल्कि तिब्बत के साथ भारत के गहरे संबंधों के लिए उनकी सेवाओं के बारे में लोगों को शिक्षित करेगी।
श्री मृणाल सैकिया ने इस अवसर पर फिर से भरोसा दिलाया कि स्थानीय समुदाय और प्रशासन स्वर्गीय श्री दास की सेवाओं को भविष्य में समाज की स्मृति के इतिहास में यादगार बनाए रखने के लिए जो भी संभव होगा, करेंगे।
स्वर्गीय श्री नरेन चंद्र दास के ज्येष्ठ पुत्र श्री राजेंद्र दास को संबोधित शोक-पत्र स्वर्गीय श्री नरेन चंद्र दास के अन्य बेटे-बेटियों- श्री दीपक दास, श्री रूपक दास और सुश्री रीना भुइयां ने ग्रहण किया। स्वर्गीय दास के सबसे बड़े बेटे लखनऊ में एसएसबी में तैनात हैं।
१२१ घरों का एक छोटा सा गांव होने के नाते कोई भी कार्यक्रम में ज्यादा लोगों के आने की उम्मीद नहीं कर सकता था, लेकिन स्वर्गीय श्री नरेन चंद्र दास के परिवार के १५ सदस्यों सहित समुदाय के ५० से अधिक सदस्यों ने कार्यक्रम में हिस्सा लिया और दर्जनों स्थानीय मीडिया के प्रतिनिधियों ने इस कार्यक्रम को कवर किया। यह स्वर्गीय श्री दास की सेवा के प्रति सराहना को दर्शाता है।