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क्या नए दलाई लामा तिब्बत में आ पायेगे ।

January 7, 2011

दलाई लामा तिब्बत देश के सर्वेच्च धार्मिक नेता होते है। दलाई शब्द वास्तव में मंगोलिया की भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है समुद्र जबकि लामा तिब्बती भाषा का शब्द है जिसका अर्थ गुरु या शिक्षक होता है।
दोनों को मिलाकर इसका सामान्य अर्थ ज्ञान का समुद्र किया जा सकता है । मूलत तीसरे दलाई लामा का नाम सोनम ग्यारसो था और ग्यारसो का तिब्बती भाषा में अर्थ समुद्र होता है । चीनी भाषा में लामा को बुओं फू कहा जाता है , जिसका अभिप्राय जीवित गौतम बुद्ध से लिया जाता है । बौद्ध धर्म ऐसा नहीं मानता । यह केवल इतना ही मानता है कि कुछ व्यक्ति जिनमें दलाई लामा भी एक है , अपने पुनर्जन्म का चुनाव कर सकते है । ऐसे व्यक्तियों को तुल्कू अर्थात् अवतार कहते है।
दलाई लामा को किस तरह खोजा जाता है, उसके पूर्व बौद्ध धर्म किस तरह तिब्बत में स्थापित हुआ, यह जान लेना आवश्यक है। बौद्ध धर्म के संस्थापक सिद्धार्थ ऐतिहासिक व्यक्ति थे, जो बाद मं गौतम बुद्ध या शाक्य मुनि के नाम से प्रसिद्ध हुए । ढाई हजार से अधिक वर्ष पूर्व उनका जन्म हुआ था । उनकी शिक्षाएं जिन्हें बौद्ध मत कहा गया , चौथी शताब्दी में तिब्बत में पहुंचीं । यहां के बान धर्म का स्थान ग्रहण करने में बौद्ध धर्म को कई शताब्दियां लगीं, लेकिन वह इतनी गहराई से देश में प्रस्थापित हो गया कि यहां की पूरी संस्कृति बौद्ध धर्म के सिद्धान्तों से भरपूर हो गई । तिब्बत के लोग यधापि स्वभाव से आक्रामक और युद्धप्रिय है, लेकिन धर्म में उनकी बढती रुचि ने उन्हें अन्य समाजों से अधिक उदार बना दिया है । तिब्बत का बहुत बडा साम्राज्य था , जिसमे मध्य एशिया , उत्तर भारत का कुछ भाग और नेपाल तथा भूटान भी शामिल थे । सन् 763 में तिब्बत की सेनाओं ने चीन की राजधानी पर भी कब्जा कर लिया था औऱ वहां से कर तथा अन्य सुविधाएं प्राप्त होती थी , लेकिन जैसे -जैसे बौद्ध धर्म में उनकी रुचि बढी , उनके अन्य देशों से संबंध राजनैतिक न रहकर आध्यत्मिक होते चले गए । मंचू सम्राटों ने जो बौद्ध थे, दलाई लामा को विस्तारशील बौद्ध धर्म का सम्राट कहा था । सन् 1351 में प्रथम दलाई लामा का जन्म हुआ था और वे सब अवलोकितेश्वर यो चेनरेजिंग के अवतार माने जाते है।
करुणा के बोधिसत्व , जिनके हाथों में श्वेत कमल शोभायमाना है। चेनरेजिंग को उस ब्राहा्ण बालक से जोडा जाता है, जो बुद्ध शाक्यमुनि के काल में विधमान था और पहिले दलाई लामा उसकी परम्परा में 74 वें व्यक्ति थे।
दलाई लामा की खोज कुछ चिन्हों की सहायता से की जाती है। पूर्व दलाई लामा कुछ ऐसे संकेत देते है , जिनके आधार पर खोज की जाती है । रीजेन्ट जो बडे लामा होते है , वह भी कुछ संकेतों को देखते व अनुभव करते है जैसे कोई अक्षर जिससे उस दिशा या गांव में दलाई लामा के जन्म लेने को जाना जाता है।
कभी -कभी कोई मठ का दृश्य उभारता है , तो मठ के बने चित्र के आधार पर उस स्थान को खोज लिया जाता है।
फिर खोज दल को उस संकेत के तिब्बती अक्षरों के आधार पर खोजने हेतु भेजा जाता है । यह खोजदल गांव में ठहरता है तथा अपने आने का उद्देश्य किसी को नही बताता , फिर उस घर की खोज की जाती है जहां दलाई लामा के जन्म लेने की संभावना है । घर खोज खेलते हुए उसके व्यवहार का अध्ययन किया जाता है ।
बच्चा यादि उन्हें पहचानकर कुछ शब्द बोलता है जो उनके द्वारा पूर्व धारणा को स्थापित करते है तो वह खोज दल आधिकृत प्रतिनिधिमंडल लेकर पुन गांव में वापस आता है । यह प्रतिनिधिमंडल पूर्व दलाई लामा के उपयोग की ढेर -सी वस्तुंए लाता है , जो वह उपयोग करते भी थे औऱ नहीं भी ।
वह वस्तुएं शिशु के सामने रखी जाती है , जिससे शिशु यह कहकर उठाता है कि , यह मेरी है और बाकी छोड देता है । मोटे तौर पर यह विश्वास कर लिया जाता है कि उन्हें दलाई लामा का नया अवतार मिल गया है, लेकिन अन्तिम रुप से निर्णय अन्य परीक्षाओं के बाद ही होता है। अंतिम निर्णय होते ही ल्हासा स्थित रीजेन्ट को भेज दिया जाता है ।
स्वाकृति के समाचार प्राप्त होने तक सम्बंधित बालक को घर पर ही रहना होता है । इसके बाद परिवार के सदस्य उस बालक को मठ में पहंचा देते है, जहां तख्तारोहण समारोह आयोजित किया जाता । इसके बाद बौद्ध शिक्षा , तर्क में प्रशिक्षण तथा अन्य ज्ञान देने के बाद कठिन परीक्षाओं के उपरांत ही तिब्बत को सर्वेच्च धार्मिक नेता दलाई लामा प्राप्त होता है । विस्तारवादी चीन द्वारा तिब्बत पर कब्जा कर लेने के बाद दलाई लामा वहां से भागकर भारत में आ गए, जिस पर माओ ने दुख प्रकट करते हुए कहा था कि तिब्बत जीत लेने के बाद भी भी हम हार गए । माओ के शब्दों मे इन गूढ अर्थें को समझना होगा।
दलाई लामा तिब्बत एंव तिब्बत राष्ट्रीयता के मूर्तिमान प्रतीक है और वे जब तक सुरक्षित है, तब तक तिब्बत स्वतंत्र है, ऐसा आम तिब्बती विश्वास करता है। तिब्बत की संसद या मंत्रिमंडल जानते है कि जब तक दलाई लामा सुरक्षित एंव स्वतंत्र है , तब तक तिब्बतियों के मन भी स्वतंत्र है। दलाई लामा तिब्बत के सूक्ष्म चेतन शारीरित प्रतीक है । चीन की सरकार यह जानती है , इसलिए वह दोहरी नीति लेकर चल रही है । प्रथम तो दलाई लामा के देह छोडने की प्रतीक्षा , उसके बाद चीन सरकार चीन में किसी भी बालक को दलाई लामा का अवतार घोषित कर सकती है । वह चीन सरकार के कब्जे में रहेगा तो वही सब बोलने को मजबूर होगा , जो कम्युनिस्ट सरकार उससे कहलवाएगी ।
पंचेन लामा के मामले में वह ऐसा कर चुकी है । चीन सरकार ने पंचेन लामा का अवतार अपनी मर्जी से घोषित किया । चीन सरकार ऐसे अवतार में विश्वास नही करती है , लेकिन उसने यह किया । जिस बालक को दलाई लामा ने धर्म की परम्परा के अनुसार पंचेन लामा ने धर्म की परम्परा के अनुसार पंचेन लामा का अवतार घोषित किया, उसे चीन सरकार ने पिछले अनेक वर्षे से कैद करके रखा है। वह वहां है, किस स्थिति में है किसी को पता नही है, पंचिन लामा को चीन ने कैद कर रखा है , उसे बौद्ध धर्म या बौद्ध वचन तो वह सिखला नहीं रहा होगा , बल्कि उसे माओ तथा माक्रर्स पढाया जा रहा होगा । दलाई लामा ने पंचेन लामा के सही अवतार को जान लिया था किन्तु दलाई लामा के सही अवतार का निर्णय कौन करेगा ? इस निर्णय में पंचेन लामा की महत्वपूर्ण भूमिका होती है, लेकिन वह चीन मं कैद है । शायद पूरी स्थिति का आकलन करते हुए वर्तमान दलाई लामा ने यह भविष्यवाणी कर दी है कि वे चीन अधिकृत तिब्बत मे जन्म नहीं लेंगे । चीन ने एक मार्ग खोज निकाला है, जो बहुत खतरानक है ।
यदि किसी तरीके से तिब्बत के लोग बुद्ध वचनों पर आस्था त्यागकर साम्यवादी बन जाएं, ईसाई हो जाए या फिर इस्लाम को स्वीकार कर लें तो अपने आप ही तिब्बत मे दलाई लामा अप्रासंगिक हो जायेंगे । इसी के चलते चीन लगातार तिब्बतियों के धर्म , भाषा , संस्कृति पर लगातार प्रहार कर रहा है, ताकि दलाई लामा की जो छवि तिब्बतियों के हदय पर अंकित है, वह समाप्त की जा सके।
प्रशन पुन यही खडा हो रहा है कि अगला दलाई लामा कौन होगा ? तथा वह कहां जन्म लेगा ?  उस अवतार को कौन पहचानेगा य़ जब तक तिब्बतियों के हदय में बौद्ध धर्म जीवित है, आस्था विधमान है , उसके विश्वास को कोई नहीं उखाड सकता । जब तक दलाई लामा स्वतंत्र है तिब्बत स्वतंत्र है, उनकी आशांए स्वतंत्र है, उसे कोई भी विस्तारवादी या तानाशाही समाप्त नही कर सकती है। तिब्बत अपनी अस्मिता की लडाई बडी शलीनता के साथ अहिंसक तरीके से बौद्ध धर्म के अनुसार लड रहा है । देखना होगा चीन अपनी इस नीति को कब त्याग कर तिब्बत की प्रभुसत्ता का सम्मान करेगा । पूरे विश्व को इसकी प्रतीक्षा है।


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