प्रो0 श्यामनाथ मिश्र / पत्रकार एवं अध्यक्ष, राजनीति विज्ञान विभाग
राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, खेतड़ी (राजस्थान)
चन्द्रयान-3 की सफलता से तिब्बती समुदाय में खुशी की लहर सम्पूर्ण विश्व, विशेषकर भारत के लिये उत्साहवर्धक है। तिब्बती धर्मगुरु परमपावन दलाईलामा, जो कि तिब्बत के राजप्रमुख भी रहे हैं, ने भारतीय प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी को इसके लिये हार्दिक बधाई दी है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के वैज्ञानिक अभिनंदन के पात्र हैं। चन्द्रयान-3 में प्रयुक्त लैंडर विक्रम और चन्द्रमा की सतह से जानकारी जुटाने में सक्षम रोवर प्रज्ञान की सफलता से सम्पूर्ण विश्व का कल्याण होगा। चन्द्रयान-3 से प्राप्त आँकड़े भावी अनुसंधान कार्य में अत्यन्त मददगार सिद्ध होंगे। चन्द्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर अपना यान भेजने वाला भारत विश्व का पहला देश है। यही क्षेत्र सर्वाधिक ठण्ड तथा कई खतरों से भरपूर है। चन्द्रमा की सतह पर उतरने में चन्द्रयान-2 की आंशिक विफलता से स्पष्ट था कि अगला अभियान जरूर सफल होगा। चन्द्रयान-2 जहाँ विफल हुआ था, वह जगह ‘‘तिरंगा’’ है तथा चन्द्रयान-3 जहाँ सफलतापूर्वक उतरा है वह ‘‘शिवशक्ति’’ है। चन्द्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर स्थित ये दोनों स्थान संपूर्ण विश्व को ऊर्जा देते रहेंगे। प्रज्ञान ने चन्द्रमा की सतह पर अपने भ्रमण मार्ग में हर जगह अशोक स्तम्भ अंकित कर दिये हैं। बौद्ध दर्शन में सम्राट अशोक का योगदान अविस्मरणीय है। उनके ही स्तम्भ से चार सिंहों वाले प्रतीक को हमने अपना राष्ट्रीय प्रतीक बनाया है।
चन्द्रयान-3 की सफलता पर तिब्बत की निर्वासित सरकार, जो कि तिब्बती जनता द्वारा वयस्क मताधिकार के माध्यम से लोकतांत्रिक प्रक्रिया द्वारा निर्वाचित है, ने भी हार्दिक प्रसन्नता प्रकट की है और बधाई दी है। गत 23 अगस्त, 2023 को सायं 6 बजकर 4 मिनट पर चन्द्रयान-3 ने चन्द्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरकर अपना अनुसंधान कार्य आरम्भ कर दिया था।
वास्तव में तिब्बती समुदाय भारतीय सुख-दुःख में सदैव साथ है। अभी 15 अगस्त, 2023 को तिब्बत के राजप्रमुख अर्थात् सिक्योंग पेम्पा छेरिंग ने भारतीय तिरंगा फहराकर भारतीयों को बधाई दी। सभी भारतीय राष्ट्रीय पर्व तिब्बतियों द्वारा पूरे हर्षोउल्लास से मनाये जाते हैं। भारतीय राष्ट्रीय ध्वज फहराते हुए पेम्पा छेरिंग ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को याद किया। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि तिब्बतियों के संघर्ष के परिणामस्वरूप तिब्बत में भी शोषण का अंधकार नष्ट होगा तथा मुक्ति का सूर्योदय होगा।
इन तथ्यों से साफ है कि भारत एवं तिब्बत की हजारों वर्ष की विश्वसनीय मैत्री भवि ष्य में भी जारी रहेगी। दलाई लामा और भारत स्थित निर्वासित तिब्बत सरकार का स्पष्ट मत है कि भारत में शरण लेकर तिब्बती अपनी परंपराओं एवं पहचान को सुरक्षित रखे हुए हैं। इनके विकास हेतु उपयुक्त वातावरण यहाँ मिला है। इसी प्रकार भारतीय मानते हैं कि सन् 1959 से भारत में रह रहे दलाई लामा प्राचीन भारतीय संस्कृति, विशेषकर नालंदा परंपरा का विश्वस्तर पर गुणगान कर रहे हैं। इसी परंपरा ने भारत को विश्वगुरु बनाया था। भारतीय एवं तिब्बती आष्वस्त हैं कि प्राचीन भारतीय ज्ञान-विज्ञान के बल पर भारत पुनः विश्वगुरु बनेगा। उस ज्ञान-विज्ञान की आवष्यकता सम्पूर्ण विश्व को है। दलाईलामा के प्रवचनों में इस तथ्य पर सदैव जोर दिया जाता है। उनके अनुसार प्राचीन भारतीय ज्ञान-विज्ञान की परंपरा में मानवीय मूल्यों पर बल है। शांति, अहिंसा, करुणा, मैत्री तथा सद्भाव मानवीय मूल्य हैं। इनकी आवष्यकता सर्वत्र और सदैव है।
दलाई लामा मानते हैं कि मानवीय मूल्य चीन सरकार के लिये और अधिक आवष्यक हैं। दुर्भाग्यवष धर्मविरोधी साम्यवादी चीन सरकार पूर्णतः साम्राज्यवादी-विस्तारवादी-उपनिवेषवादी है। वह स्वतंत्र देश तिब्बत पर सन् 1959 में अवैध नियंत्रण कर चुकी है। मंगोलिया, थाईलैंड, हांगकांग, इस्ट तुर्किस्तान तथा भारत सहित कई अन्य देश उसकी विस्तारवादी नीति से परेषान हैं। तिब्बती संघर्ष को साथ देने पर चीन सरकार विभिन्न देषों को धमकाती रहती है। सबसे बुरी स्थिति तिब्बत में रहने वाले तिब्बतियों की है। तिब्बत में मीडिया पूर्णतः सरकारी नियंत्रण में है। तिब्बतियों के मानवाधिकार हनन की घटनायें बढ़ती जा रही हैं। वहाँ के पर्यावरण एवं प्राकृतिक संसाधन की बर्बादी जारी है। तिब्बत की खराब आंतरिक स्थिति की प्रामाणिक जानकारी जुटा पाना काफी कठिन है। चीन सरकार द्वारा नियंत्रित मीडिया तिब्बत में जारी चीनी अत्याचार को छिपाने का कार्य करती है।
तिब्बत में चीनी अत्याचार को रोकने हेतु चीन सरकार पर दबाव बढ़ाना होगा। विश्वजनमत इसी पक्ष में है। दलाईलामा ने तिब्बत के सवाल को अंतरराष्ट्रीय सवाल बना दिया है। निर्वासित तिब्बत सरकार विश्वस्तर पर तिब्बत समस्या के शीघ्र समाधान हेतु सफलतापूर्वक सहयोग एवं समर्थन जुटा रही है। विश्व के सारे देश चीन की चालबाजी समझ चुके हैं। वे उसकी विस्तारवादी नीति पर लगाम लगाने के लिये संगठित हो रहे हैं। संयुक्त राष्ट्रसंघ सहित विभिन्न अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं में चीन के अलोकतांत्रिक तथा मानवताविरोधी कुकृत्यों की आलोचना हो रही है।
अभी उपयुक्त समय है कि चीन को तिब्बत समस्या शीघ्र निपटाने हेतु बाध्य किया जाये। वह दलाईलामा तथा तिब्बत सरकार के प्रतिनिधिमण्डल के साथ बंद वार्ता पुनः आरम्भ करे। नोबेल पुरस्कारप्राप्त दलाईलामा को विघटनकारी-आतंककारी समझना-कहना वह बंद करे। दलाईलामा एक बौद्ध धर्मगुरु हैं। वे शांति-अंहिसा के पक्षधर हैं। उनके हृदय में क्रूर उपनिवेषवादी चीन सरकार के लिये भी करुणा है। उनकी प्रेरणा से तिब्बती संघर्ष पूर्णतः शांतिपूर्ण और अहिंसक है। चीनी संविधान और राष्ट्रीयता संबंधी कानूनों के अनुसार ‘‘तिब्बत को वास्तविक स्वायत्तता’’ की इनकी मांग मान लेने से चीन को भी लाभ होगा। यह विश्वषांति के लिये भी ठीक होगा।