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चीनी बिजली संयंत्र के लिए तिब्‍बति‍यों को जबरन विस्‍थापित किया गया

May 17, 2022

उत्तर-पश्चिमी चीन के किंघई प्रांत स्थित तिब्बती लेखक गेंदुन ल्हुंद्रुप का गांव

एक मठ और आसपास के गांव में रहने वाले तिब्बतियों को ‘मुआवजा दिए बिना‘ स्थानांतरित करने का आदेश दिया गया है।

 

rfa.org / सांग्याल कुंचोक : तिब्बती सूत्रों ने खबर दी है कि चीनी सरकार द्वारा बनाए जा रहे कि जलविद्युत परियोजना के लिए उत्तर-पश्चिमी चीन के किंघई प्रांत के एक तिब्बती गांव के निवासियों को जबरन अपने घरों से विस्‍थापित किया जा रहा है। पास के मठ में रहने वाले भिक्षुओं को भी मठ छोड़कर जाने के लिए कहा गया है।

इस सप्ताह क्षेत्र के एक तिब्बती निवासी ने आरएफए को बताया कि त्सोल्हो (चीनी- हैनान) तिब्‍बती स्‍वायत्‍त प्रिफेक्‍चर स्थित अत्सोक गोन डेचेन चोईखोर लिंग मठ के भिक्षुओं ने इस सरकारी आदेश को वापस लेने के लिए चीनी अधिकारियों के पास याचिका दायर की है।

आरएफए के सूत्र ने सुरक्षा कारणों से नाम न छापने की शर्त पर कहा, ‘लेकिन चीनी स्थानीय पर्यवेक्षक और अन्य अधिकारी तिब्बतियों के बीच जा रहे हैं और उन्हें मुआवजे की परवाह किए बिना स्थानांतरित करने की चेतावनी दे रहे हैं।‘ सूत्र ने कहा, ‘मठ के भिक्षुओं को भी बैठकों में बुलाया जा रहा है और स्थानांतरण के लिए सहमत होने का आदेश दिया गया है।‘ आरएफए के सूत्र ने कहा कि दिसंबर २०२१ में परियोजना की व्यवहार्यता की जांच के बाद चीनी सरकार द्वारा माचू नामक कंपनी को बिजली संयंत्र के निर्माण का काम और उसकी देखरेख के लिए अधिकृत किया गया था।

डेचेन चोखोर लिंग मठ की स्थापना १८८९ में हुई थी और वर्तमान में यहां १५७ भिक्षु निवास करते है। सूत्रों के अनुसार, हालांकि २०२१ के बाद से मठ में १८ वर्ष से कम आयु के भिक्षुओं को रहने या अध्ययन करने की सरकार की ओर से मनाही है। 

बार-बार गतिरोध

तिब्बती क्षेत्रों में चीनी विकास परियोजनाओं को लेकर तिब्बतियों ने लगातार गतिरोध पैदा किया है। तिब्‍बती लोग चीनी फर्मों और स्थानीय अधिकारियों पर भूमि को अनुचित रूप से अधि‍ग्रहि‍त करने और स्थानीय लोगों के जीवन यापन को दूभर बनाने का आरोप लगाते रहे हैं।

कई परियोजनाओं में वि‍रोध को कुचलने के लिए हिंसक दमन का सहारा लिया जाता है और परियोजना मालिकों द्वारा लोगों को हिरासत में डाल दि‍या जाता है। स्थानीय आबादी पर सरकार की आज्ञाओं का पालन करने के लिए तीव्र दबाव डाला जाता है।

भारत के धर्मशाला स्थित एक गैर सरकारी संगठन ‘तिब्बतन सेंटर फॉर ह्यूमन राइट्स एंड डेमोक्रेसी’ ने बताया है कि तिब्बत में चीन के विकास अभियान ने इस क्षेत्र को बीजिंग के साथ आर्थिक और सांस्कृतिक एकीकरण के करीब ला दिया है।

इस तरह की परियोजनाएँ स्वयं तिब्बतियों को किसी तरह का लाभ पहुंचाने में विफल रही हैं। ग्रामीण तिब्बती अक्सर पारंपरिक चराई वाली भूमि से और शहरी क्षेत्रों में चले जाते हैं, लेकिन यहां की सबसे अच्छी नौकरियां हान मूल के चीनी नागरिकों को दी जाती हैं।


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