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चीन ने हालिया श्वेत पत्र में तिब्बत का नाम ही मिटा दिया

April 22, 2025

‘एक झूठ को हज़ार बार दोहराया जाए तो भी वह झूठ ही रहता है’- चीन के हालिया श्वेत पत्र में तिब्बत के इतिहास को मिटा दिया गया है, असहमति को दबा दिया गया है और दमन को ‘मानवाधिकार’ कहा गया है।
–
जापान फॉरवर्ड में सावांग ग्याल्पो आर्य

चीन ने तिब्बत पर अपना नवीनतम श्वेत पत्र- ‘नए युग में ज़िज़ांग में मानवाधिकार’ २८ मार्च को जारी किया। चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) इस तिथि को ‘दासता से मुक्ति दिवस’ कहती है। असल में यह १९५९ में तिब्बत की वैध सरकार को सीसीपी द्वारा भंग करने की वर्षगांठ है।

७० वर्षों के नियंत्रण के बाद भी तिब्बत पर चीनी कब्जे की वैधता एक अनसुलझा अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बना हुआ है। यह स्थिति इस तथ्य से उजागर होती है कि यह तिब्बत पर चीन का १८वां श्वेत-पत्र है। यह किसी भी दूसरे देश द्वारा अपने दावे वाले क्षेत्रों के बारे में जारी किए गए श्वेत-पत्र से कहीं अधिक है। श्वेत पत्र जारी करने से सिर्फ़ एक कमज़ोर शासन की छवि उभरती है जो दुष्प्रचार और गलत सूचना का सहारा लेता है।

श्वेत पत्र से साबित होता है कि सीसीपी अपने लोगों और अंतरराष्ट्रीय समुदाय दोनों पर अपने सरासर झूठ को थोपने के लिए किस हद तक जा सकती है। यह चीनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी को साम्राज्यवादी ताकतों और सामंती ताकतों से तिब्बत के मुक्तिदाता के रूप में गलत तरीके से चित्रित करता है। बीजिंग ने अपने द्वारा किए गए नरसंहार को वैध बनाने के लिए मानवाधिकारों की अवधारणा पर हमला किया है और उसे विकृत किया है। उसने अपनी इस अवधारणा को तिब्बत और अन्य कब्जा किए क्षेत्रों में जारी रखा है। लेकिन वास्तविकता और ऐतिहासिक तथ्यों को विकृत कर और गलत सूचना फैलाने की हद तक नीचे गिरकर चीन महत्वाकांक्षी महाशक्ति नहीं बन सकता है।

भाषा के माध्यम से तिब्बत का खात्मा

पिछले श्वेत-पत्रों के विपरीत इस बार चीन ने ‘तिब्बत’ शब्द का उपयोग करने से जान-बूझकर बचने का प्रयास किया है। इसके बजाय उसने तिब्बत के लिए अपना खुद का किया नामकरण ‘जिज़ांग’ शब्द का उपयोग किया है। यह जान-बूझकर नीतिगत बदलाव को दर्शाता है। यू-सांग, अमदो और खाम प्रांतों से मिलकर बने  ऐतिहासिक तिब्बत के अस्तित्व को मिटाकर पहले चीन ने इसे तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र नाम दिया था। अब इसका नाम बदलकर बीजिंग ने ‘जिज़ांग स्वायत्त क्षेत्र’ कर दिया है।

सीसीटीवी स्क्रीनशॉट में तिब्बत नाम का उपयोग किए बिना श्वेत-पत्र की घोषणा
२८ मार्च, २०२५ को जारी नवीनतम श्वेत-पत्र में आठ अध्याय और एक उपसंहार टिप्पणी शामिल है। यह मानवाधिकारों और लोगों के लोकतांत्रिक, आर्थिक और सामाजिक अधिकारों, संस्कृति, धार्मिक स्वतंत्रता और पर्यावरण की प्रभावी सुरक्षा के विषयों पर केंद्रित है। हालांकि, इसमें कई तथ्य छिपे हैं।

इसकी तुलना तिब्बत पर १९९२ में जारी पहले श्वेत-पत्र से करें। उसका शीर्षक था, ‘तिब्बत का स्वामित्व और मानवाधिकार की स्थिति।’ भले ही इसमें कितनी भी झूठी बातें हों, कम से कम इसमें तिब्बत के बारे में तो बात की गई थीं।

अधिकारों का दिखावा

२०२५ श्वेत पत्र इस कथन के साथ शुरू होता है:

अपने मानवाधिकारों का पूरी तरह से उपभोग करना व्यक्ति की आम मानवीय आकांक्षा होती है। यह चीन के सभी नस्लीय समूहों के लोगों का भी लक्ष्य है, जिसमें ज़िज़ांग स्वायत्त क्षेत्र के लोग भी शामिल हैं।

काश यह सच होता

हां, यह कथन संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा, यहां तक कि चीनी संविधान को भी प्रतिध्वनित करता है, जिस पर चीन ने भी हस्ताक्षर कर रखा है। लेकिन क्या चीनी शासन वही करता है जो वह उपदेश दे रहा है?

असलियत यह है कि चीन जिन अधिकारों को सुरक्षित रखने का दावा करता है, उन्हीं अधिकारों की मांग करते हुए १५८ तिब्बतियों ने अब तक आत्मदाह कर लिया है। चीनी लोगों के लिए इन्हीं अधिकारों की मांग करते हुए नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित लियू शियाबाओ २०१० में मर गए। तिब्बती लोगों को अभी भी दलाई लामा की एक तस्वीर रखने या तिब्बती भाषा, संस्कृति और धर्म के महत्व के बारे में बात करने के लिए प्रताड़ित किया जाता है या गायब कर दिया जाता है। चीनी शासन परम पावन दलाई लामा और तिब्बतियों को अलगाववादी और चीन विरोधी कहकर अपमानित करता है। वह चीनी लोगों को गलत जानकारी देने की भी कोशिश करता है।

चीन ने २००८ के तिब्बती प्रस्ताव, जिसमें तिब्बती लोगों के लिए वास्तविक स्वायत्तता पर ज्ञापन दिया गया था, को अपने नागरिकों से छिपाया है। चीन के साथ सह-अस्तित्व के लिए शांतिपूर्ण ‘मध्यम मार्ग’ दृष्टिकोण को भी चीनी सरकार द्वारा सेंसर किया गया है, जो सरकार के पारदर्शिता और बहुलवाद के दावे को झुठलाता है।


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