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आईसीटी ने एक बयान में कहा कि ‘स्कूली बच्चों को धार्मिक गतिविधियों से प्रतिबंधित करके चीनी अधिकारी धर्म की स्वतंत्रता के बुनियादी सिद्धांतों का उल्लंघन कर रहे हैं, जिसे कि मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा में स्वीकार किया गया है और जिसे चीन ने भी स्वीकार किया है। इसके साथ ही चीन बाल अधिकार सम्मेलन नियमों का भी उल्लंघन कर रहा है, जिसे उसने 1992 में स्वीकार किया था।‘
‘सीधी सी बात है कि राज्य बच्चों को धार्मिक गतिविधियों में भाग लेने से प्रतिबंधित नहीं कर सकता है।‘
कोलोराडो स्थित एक तिब्बती कानूनी विद्वान डोल्मा क्याब ने आरएफए की तिब्बती सेवा को बताया कि शीतकालीन अवकाश के दौरान धार्मिक गतिविधियों पर प्रतिबंध का उद्देश्य तिब्बती बच्चों को नए विचारों के संपर्क में आने से रोकना है।
उन्होंने एक साक्षात्कार में कहा कि, ‘तिब्बती स्कूली बच्चों को मंदिरों में जाने और सर्दियों की छुट्टी के दौरान बाहरी गतिविधियों में संलग्न रहने पर चीनी प्रतिबंध कोई नई बात नहीं है। यह झिंझियांग में कई साल पहले शुरू हुआ था और फिर इस प्रतिबंध को तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र में 2018 में लागू किया गया।
डोल्मा क्याब ने कहा कि, ‘स्थानीय सरकार और तिब्बती शिक्षा विभाग ने अलग- अलग विचारों के संपर्क में आ जाने के डर से छात्रों पर इस तरह के प्रतिबंधों को थोपा गया है जो छात्रों के प्रभावशाली दिमाग को प्रभावित करेगा और खतरे में डाल सकता हैं।‘
आईसीटी के अनुसार, निर्देश में अभिभावकों से बच्चों को ‘चार निषिद्ध’- नदियों में बर्फ पर स्केटिंग, इंटरनेट कैफे और अन्य मनोरंजन स्थलों में प्रवेश करने, चाकू या अन्य घातक अस्त्र रखने और अकेले बाहर जाने- से बचाने का अनुरोध किया गया है।
ल्हासा में इस जाड़े में भी पिछली 2018 और 2019 की गर्मियों और सर्दियों की छुट्टियों के दौरान घोषित प्रतिबंध जारी है। इसी तरह तिब्बत में कई और जगहों से इस तरह के प्रतिबंधों की रिपोर्ट है।
आरएफए ने अपनी पहले की रिपोर्ट में बताया था कि मई 2018 में तिब्बत के चमडो शहर में चीनी अधिकारियों ने तिब्बती छात्रों और उनके माता-पिता को आदेश दिया था कि वे पवित्र बौद्ध मास सागा दावा के के दौरान धार्मिक समारोहों और त्योहारों से बचें। उन्होंने चेतावनी दी थी कि अगर उन्हें प्रतिबंध की अनदेखी करते हुए पाया गया तो किसी भी तरह का दंड दिया जाएगा।