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जिनेवा। चौथे जेनेवा फोरम ने ०१ नवंबर को सम्मेलन के पहले दिन पंचेन लामा पर ‘तिब्बत के चोरी हो गए बच्चे – ग्यारहवें पंचेन लामा गेधुन चोएक्यी न्यिमा (तिब्बत्स स्टोलेन चाइल्ड-११वें पंचेन लामा गेधुन चोएक्यी न्यिमा)’ शीर्षक से एक विशेष पैनल चर्चा आयोजित की। चर्चा में पैनलिस्टों में केंद्रीय तिब्बती प्रशासन के सिक्योंग पेनपा त्सेरिंग; इंटरनेशनल कंपेन फॉर तिब्बत (आईसीटी) के जर्मनी चैप्टर के कार्यकारी निदेशक काई मुलर; ताशी ल्हुनपो मठ के मठाधीश वें ज़ीक्याब रिनपोछे (तेनज़िन थुटेन रबग्याल) और सीटीए के सूचना और अंतरराष्ट्रीय संबंध विभाग (डीआईआईआर) के सचिव कर्मा चोयिंग शामिल थे। पैनल का संचालन डीआईआईआर के मानवाधिकार डेस्क के प्रमुख डूक्तेन-की ने किया।
पैनल चर्चा सचिव कर्मा चोयिंग द्वारा दी गई एक परिचयात्मक टिप्पणी के साथ शुरू हुई। इसमें उन्होंने ११वें पंचेन लामा के बारे में संक्षिप्त विवरण दिया और पंचेन लामा गेधुन चोएक्यी न्यिमा की रिहाई को सुनिश्चित करने के लिए केंद्रीय तिब्बती प्रशासन के प्रयासों का संक्षिप्त विवरण दिया। उन्होंने कहा कि ११वें पंचेन लामा गेधुन चोएक्यी न्यिमा को परम पावन दलाई लामा द्वारा १०वें पंचेन लामा के पुनर्जन्म के रूप में मान्यता दी गई थी। तीन दिन बाद, गेधुन चोएक्यी न्यिमा का चीनी सरकार द्वारा अपहरण कर लिया गया था और आज तक उन्हें और उनके परिवार को अज्ञातवास हिरासत में रखा गया है। यह न केवल अंतरराष्ट्रीय मानदंडों और मानकों का उल्लंघन है बल्कि चीन के अपने कानूनों और विनियमों का भी उल्लंघन है। हालांकि, संयुक्त राष्ट्र और अन्य अधिकार समूहों द्वारा बार-बार आह्वान के बावजूद, चीन ने पंचेन लामा गेधुन चोएक्यी न्यिमा और उनके परिवार की कुशलता या ठिकाने के बारे में पूछे गए प्रश्नों का पर्याप्त या संतोषजनक जवाब देने से लगातार इनकार किया है।
उन्होंने कहा कि पंचेन लामा का मामला अभी भी है और संयुक्त राष्ट्र के अनसुलझे मामलों में से एक है।
आईसीटी-जर्मनी के कार्यकारी निदेशक काई मुलर ने अपने संबोधन में ११वें पंचेन लामा गेधुन चोएक्यी न्यिमा के लापता होने के मामले पर कानूनी परिप्रेक्ष्य में बात की। उन्होंने कहा कि, ‘तिब्बत के पंचेन लामा गेधुन चोएक्यी न्यिमा मई १९९६ में गायब हो गए और तब से कभी नहीं देखे गए। वह २६ साल पहले की बात है जो बहुत लंबा समय हो गया है।’
उन्होंने कहा कि जबरन गायब कर दिए गए सभी व्यक्तियों की सुरक्षा को लेकर १९९२ की घोषणा के अनुच्छेद-१७ में जो कहा गया है, उसे मैं उद्धृत करता हूं, ‘जब तक जबरन गायब कर दिए व्यक्ति की कुशलता और ठिकाने के बारे में जानकारियों को जबरन अपहरण करनेवाला छुपाकर रखता है और गायब व्यक्ति या व्यक्तियों की सूचना और उनके बारे में तथ्य अस्पष्ट रहते हैं, तब तक वह व्यक्ति को गायब करने को गंभीर अपराध माना जाएगा। जबरन गायब होने के अपराध को सभी व्यक्तियों को जबरन गायब होने से बचाने की घोषणा में परिभाषित किया गया है, जिसे मैंने अभी उद्धृत किया है और जिसकी पुष्टि गायब कर दिए जाने के खिलाफ २००६ में आयोजित सम्मेलन में भी की गई है, इसलिए यह तब तक अपराध की श्रेणी में माना जाएगा, जब तक कि गायब व्यक्ति की कुशलता और ठिकाने के बारे में पता नहीं चल जाता है। तदनुसार, १९९५ में गेधुन चोएक्यी न्यिमा का गायब होना पीड़ित और गायब करनेवालों का अपराध है।’
उन्होंने स्पष्ट किया कि, ‘एक ओर यहां, पीड़ित गेधुन चोएक्यी न्यिमा और उनका परिवार हैं और अपराधी वे हैं जिन्होंने उस समय गायब करने का आदेश दिया और उसे अंजाम दिया। आज जो गेधुन चोकेयी न्यिमा के ठिकाने को छिपाने में साथ देते आए हैं और आज भी साथ दे रहे हैं या उनके ठिकाने को गुप्त रख रहे हैं, वे भी उस अपराध में सहभागी हैं। ये अपराधी वही चीनी अधिकारी हैं जो उस समय गायब करने में थे और समय के साथ जो आज उनके प्रतिनिधि के तौर पर अधिकारी के पद पर आसीन हैं। यह तथ्य अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सामने यह तथ्य बहुत स्पष्ट होना चाहिए।’
काई मुलर ने चीनी सरकार से गेधुन चोएक्यी न्यिमा की रिहाई की मांग के लिए अंतरराष्ट्रीय अधिकार समूहों द्वारा पारित विभिन्न घोषणाओं और प्रस्तावों को भी उद्धृत किया। उन्होंने समझाया कि पंचेन लामा का गायब होना अधिकारों के उल्लंघन का एक व्यक्तिगत मामला नहीं है, बल्कि तिब्बती लोगों के सांस्कृतिक अधिकारों के रूप में सामूहिक अधिकारों का उल्लंघन भी है। उन्होंने रेखांकित किया कि धर्म तिब्बती संस्कृति का एक अभिन्न अंग है और अधिकार के रूप में धार्मिक भिक्षुओं की नियुक्ति धर्म और विश्वास की स्वतंत्रता का एक मान्यता प्राप्त सिद्धांत है। यह सिद्धांत किसी धर्म समूह द्वारा अपनी धार्मिक संस्था और अंततः किसी की संस्कृति को आत्मनिर्णय करने के लिए है।
पैनल के अगले वक्ता बाइलाकुप्पे स्थित ताशी ल्हुनपो मठ के महंत ज़ीक्याब रिनपोछे थे। तिब्बत में ताशी ल्हुनपो मठ पंचेन लामा परंपरा की पारंपरिक पीठ है। ज़ीक्याब रिनपोछे ने समझाया कि पंचेन लामा परंपरा का महत्व न केवल तिब्बत और हिमालय में स्थित बौद्ध समुदायों के लिए है, बल्कि पूरी दुनिया के लिए भी है। उन्होंने दलाई लामा द्वारा पंचेन लामा के चयन की परंपरा और दलाई लामा के चयन में निभाई गई पंचेन लामा की भूमिका की ऐतिहासिक परंपरा के बारे में भी बताया। दोनों धार्मिक हस्तियां सदियों से एक-दूसरे के गुरु और शिष्य के रूप में रही हैं और पंचेन लामा दलाई लामाओं की सेवा में हमेशा उनके साथ रहे हैं। इस ऐतिहासिक संबंध ने एक-दूसरे के पुनर्जन्म को पहचानने की ऐतिहासिक भूमिका को जन्म दिया है जिसके कारण तिब्बती लोककथाओं में लोकप्रिय कविता ‘आकाश में सूर्य-चंद्रमा तथा धरती पर दलाई लामा-पंचेन लामा’ लोकप्रिय हुई।
रिनपोछे ने इतिहास के माध्यम से पंचेन लामा परंपरा पर संक्षिप्त पृष्ठभूमि बताई, जो अमिताभ बुद्ध की सांसारिक अभिव्यक्ति हैं। उन्होंने विशेष रूप से १०वें पंचेन लामा गेधुन चोएक्यी ग्यालत्सेन के प्रयासों और योगदान पर जोर दिया, जैसा कि चीनी सरकार को उनकी १४,००० शब्दों वाले दस्तावेज में उदाहरण दिया गया है। इसके लिए चीनी सरकार द्वारा उनकी गंभीर आलोचना की गई थी, उन्हें कैद किया गया और दंडित किया गया था।
रिनपोछे ने ११वें पंचेन लामा के गायब होने को तिब्बती इतिहास के सबसे काले समयों में से एक बताते हुए रिनपोछे ने पंचेन लामा की रिहाई के लिए तिब्बत में ताशी ल्हुनपो मठ के भिक्षुओं के निरंतर प्रयासों और गतिविधियों के बारे में बताया। इस कारण से चीनी अधिकारियों ने उन भिक्षुओं को निष्कासित किया, गिरफ्तार किया और दंडित भी किया।
उन्होंने आगे सामान्य रूप से तिब्बती लोगों और विशेष रूप से पंचेन लामा के भक्तों की गहरी पीड़ा व्यक्त की और संयुक्त राष्ट्र और वैश्विक नेताओं से चीन से पंचेन लामा को जबरन गायब होने से मुक्त करने का आग्रह करने की अपील की।
केंद्रीय तिब्बती प्रशासन के सिक्योंग पेनपा त्सेरिंग ने अपने मुख्य भाषण में अगले दलाई लामा के चयन के संदर्भ में चीनी सरकार द्वारा पंचेन लामा के अपहरण के ऐतिहासिक महत्व के बारे में बताया।
उन्होंने कहा, ‘सवाल उठता है कि चीन सरकार ने छह साल के बच्चे का अपहरण क्यों किया?कैसे एक छह साल का बच्चा चीन सरकार के लिए खतरा बन गया?चीन ने परम पावन दलाई लामा द्वारा मान्यता प्राप्त वास्तविक पंचेन लामा के स्थान पर दूसरे छह वर्षीय बच्चे को पंचेन लामा के पद पर क्यों स्थापित किया। क्या पूरी प्रक्रिया एक उच्च लामा के चयन की उचित रस्मों से गुजरी?’ उन्होंने कहा कि आने वाले वर्षों में इन सवालों के बहुत सारे परिणाम होंगे।
उन्होंने स्पष्ट किया, ‘चीनी सरकार द्वारा ११वें पंचेन लामा का अपहरण करने का असली कारण यह सुनिश्चित करना है कि वे अगले दलाई लामा का चयन करने में शामिल होंगे। यह उन कई मुद्दों में से एक है जिसे कई वर्षों से उठाया गया है कि वर्तमान दलाई लामा की उम्र बढ़ रही है। अमेरिका में प्रत्येक सरकार ने ऐसे प्रस्ताव पारित किए हैं जो १५वें दलाई लामा की मान्यता के महत्व पर बल देते हैं। उन्होंने समझाया कि अगले दलाई लामा के चयन के मुद्दे पर पंचेन लामा की बड़ी प्रासंगिकता है।’
सिक्योंग ने पिछले पंचेन लामा के योगदान के बारे में भी बात की, विशेष रूप से तिब्बती भाषा को पुनर्जीवित करने के उनके प्रयासों और १९८९ में उनकी रहस्यमय मौत पर छाए संदेह के बादल को लेकर उन्होंने बात कीं। उन्होंने चीनी सरकार द्वारा चली गई इस चाल पर विस्तार से बताया कि किस तरह से चीन ने पंचेन रिनपोछे की दिखावटी चयन प्रक्रिया के दौरान यह सुनिश्चित कर लिया कि उसके चहेते उम्मीदवार का ही चयन हो जाए। कुंबुम मठ के महंत अर्जिया रिनपोछे, जो बाद में निर्वासन में भाग गए थे, ने चयन प्रक्रिया के बारे में एक किताब लिखी है। उन्होंने समझाया है कि चीनी अधिकारियों ने अपने उम्मीदवार के नाम के नीचे कुछ संकेतक बना दिया था, ताकि उसके उम्मीदवार का नाम अलग तरह का रहे और आसानी से पहचाना जा सके। सिक्योंग ने कहा, यह सब चाल इसलिए चली गई थी कि परम पावन दलाई लामा द्वारा चिह्नित किए गए असली पंचेन लामा का चयन नहीं हो पाए।
सिक्योंग ने स्वर्ण कलश समारोह की वैधता पर भी सवाल उठाया। उन्होंने समझाया कि चीनी सरकार द्वारा अपने उम्मीदवार का चयन कराने का एकमात्र कारण यह सुनिश्चित करना है कि वह समय आने पर चीन की पसंद के अगले दलाई लामा का चयन करने में मदद कर सकें।
असली पंचेन लामा के ठिकाने पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि हमें नहीं पता कि वह कहां हैं। हम यह भी नहीं जानते कि वह जीवित है या नहीं। उन्होंने कहा, ‘यहां तक कि अगर वह जीवित है, तो उन्हें उस तरह की शिक्षा प्रदान नहीं की गई होगी, जो एक पंचेन लामा को मिलनी चाहिए, जिससे वास्तविक पंचेन लामा पूरी तरह से संवेदनशील प्राणियों की सेवा करने के लिए कर्तव्यों का पालन करने में सक्षम हो जाते हैं।’
सिक्योंग ने विस्तार से बताया कि, ‘अगर कल अंतरराष्ट्रीय समुदाय के दबाव के कारण भले ही चीनी सरकार यह कहती है कि पंचेन लामा यहां हैं, लेकिन वह पंचेन लामा अपने धार्मिक कर्तव्यों का पालन करने में अक्षम होंगे, क्योंकि उन्हें उस तरह से शिक्षित नहीं किया गया है। इसलिए, लामाओं के पुनर्जन्म में हस्तक्षेप करना चीनी सरकार का राजनीतिक निर्णय है। यही मुख्य कारण है कि उन्होंने आदेश संख्या-५ पारित किया है जो लामाओं के पुनर्जन्म के चयन के संबंध में है।’
उन्होंने अपनी भावना व्यक्त करते हुए कहा, ‘एक नास्तिक सरकार जो धर्म में विश्वास नहीं करती है, जिसे मृत्यु के बाद जीवन के बारे में कोई जानकारी नहीं है, उसे पुनर्जन्म प्रक्रिया में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। क्योंकि पुनर्जन्म की प्रक्रिया में विश्वास करने के लिए व्यक्ति को मृत्यु के बाद के जीवन के दर्शन में विश्वास करना पड़ता है।’
उन्होंने कहा, अंतरराष्ट्रीय समुदाय की प्रतिक्रिया यह जानने के लिए भी पर्याप्त नहीं थी कि पंचेन लामा कहां हैं। यहां तक कि यह पता लगाने के लिए कि वह जीवित है या नहीं, विश्व समुदाय कोई रुचि नहीं दिखा रहा है।’