Deccanchronicle.com
कम्युनिस्ट चीन अक्सर लोगों, स्थानों और यहां तक कि राष्ट्रों के नाम भी बदल देता है। नया मामला तिब्बत का है, जिसे अब ज़िज़ांग नाम दिया गया है।
धरती के दो सबसे शक्तिशाली देशों के नेताओं के बीच लंबे समय से प्रतीक्षित बैठक आखिरकार १५ नवंबर को सैन फ्रांसिस्को के बाहरी इलाके में एक फार्महाउस में हुई। प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति जो बिडेन ने कहा कि चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग प्रभावी ‘तानाशाह’ है। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि बैठक से जो कुछ भी अच्छा हो सकता था, वह हुआ। जब उनसे पूछा गया कि क्या उनका अब भी मानना है (जून २०२३ की बात है) कि श्री शी तानाशाह है, श्री बिडेन ने उत्तर दिया, ‘देखिए, ऐसा ही हैं। वह इस अर्थ में तानाशाह हैं कि वह एक ऐसे देश को चलाते हैं जो कम्युनिस्ट विचारधारा पर चलने वाला देश है। उस देश देश की शासन प्रणाली ऐसी है जो हमारी सरकार से बिल्कुल भिन्न स्वरूप पर आधारित है।‘अपने राष्ट्रपति की बात सुनकर अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने मुस्कुराते हुए कहा, ‘उन्होंने इसे फिर साबित किया है।‘चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता माओ निंग ने इस पर प्रतिक्रिया देने में देर नहीं की। उन्होंने अगले ही दिन १६ नवंबर गुरुवार को नियमित प्रेस ब्रीफिंग में संवाददाताओं से कहा, यह बयान गलत और बेहद गैर-जिम्मेदाराना राजनीतिक जुमलेबाजी है। लेकिन रात्रि में हुए स्वागत भोज में श्री शी का भाषण बिल्कुल निर्विवाद रहा। उन्होंने बेल्ट एंड रोड पहल के साथ-साथ वैश्विक विकास पहल (जीडीआई), वैश्विक सुरक्षा पहल (जीएसआई) और वैश्विक सभ्यता पहल (जीसीआई) पर बात की। साथ ही उन्होंने प्रस्ताव दिया कि चीन ‘हर समय अमेरिका सहित सभी देशों के लिए खुला है। चीन अमेरिका द्वारा प्रस्तावित बहुपक्षीय सहयोग पहल में भाग लेने के लिए भी तैयार है।
‘उन्होंने अमेरिका की अपनी पहली यात्रा को याद करते हुए कहा, ‘मैं आयोवा में ड्वोरचक्स में रुका था। मुझे अभी भी उसका पता याद है – २९११ बोनी ड्राइव। मैंने वहां के लोगों के साथ जो दिन बिताए वे अविस्मरणीय हैं। मेरे लिए वे अमेरिका का प्रतिनिधित्व करते हैं। हमारे दो देशों के लोग बड़े दयालु, मिलनसार, मेहनती और जमीन से जुड़े हुए हैं।‘ये विकट प्रतीत होने वाले मतभेदों से निपटने के अलग तरह के उपाय हैं।लेकिन क्या महाबलीपुरम याद है? उस समय २०१९ में मोदी-शी मुलाकात की सभी ने तारीफ की थी। लेकिन सात महीने बाद ही क्या हुआ था? पीपुल्स लिबरेशन आर्मी पूर्वी लद्दाख में घुस गई थी।
हालांकि, कैलिफ़ोर्निया मुलाकात की समाप्ति पर एक नए टकराव की शुरुआत हो सकती है (ताइवान या दक्षिण चीन सागर में?)। लेकिन किसी को भी वर्तमान में चीन में कठिन जीवन की वास्तविकताओं को नहीं भूलना चाहिए, विशेष रूप से जिसे बीजिंग ‘अल्पसंख्यक क्षेत्र’ कहता है। मतलब तिब्बत और झिंझियांग।
१० नवंबर को सिन्हुआ ने बताया कि राष्ट्रीय सूचना कार्यालय परिषद (स्टेट काउंसिल इंफॉर्मेशन ऑफिस) ने ज़िज़ांग स्वायत्त क्षेत्र के शासन को लेकर श्वेत-पत्र जारी किया था।
यह ज़िज़ांग क्या है?
एक असली साम्राज्यवादी शक्ति का चरित्र दिखाते हुए कम्युनिस्ट चीन अक्सर लोगों, स्थानों और यहाँ तक कि राष्ट्रों के नाम भी बदल देता है। प्रस्तुत मामला तिब्बत का है, जिसे अब ‘ज़िज़ांग’ कहा जा रहा है।
श्वेत-पत्र का शीर्षक है- ‘नए युग में ज़िज़ांग के शासन पर सीपीसी नीतियां: दृष्टिकोण और उपलब्धियां’। इसका मुख्य उद्देश्य कब्जे वाले तिब्बत के नए नाम को आधिकारिक बनाना है। यह तिब्बत पर शासन करने के लिए सीपीसी के दिशा-निर्देशों को उजागर करता है। इससे पता चलता है कि बीजिंग ने ‘क्षेत्र में विभिन्न उपक्रमों में सर्वांगीण प्रगति और ऐतिहासिक सफलता’ हासिल की है।
बेशक, यह सम्राट शी की प्रशंसा करते हुए कहता है, ‘२०१२ में आयोजित १८वीं सीपीसी राष्ट्रीय कांग्रेस के बाद से अब तक की अवधि में ज़िज़ांग (तिब्बत) ने अभूतपूर्व विकास और बड़े बदलाव का अनुभव किया है, जिससे लोगों को अधिक ठोस लाभ मिला है।‘श्वेत-पत्र में आंकड़े देकर समझाया गया है कि, ‘२०२२ में जिजांग का सकल घरेलू उत्पाद २१३.२६ अरब युआन (लगभग २९.३ अरब डॉलर) तक पहुंच गया, जो २०१२ के बाद से ८.६ प्रतिशत की औसत वार्षिक वृद्धि दर को उजागर करता है। इस अवधि के दौरान क्षेत्र में रेलवे नेटवर्क की लंबाई लगभग दोगुनी हो गई और ५जी नेटवर्क वहां की सभी काउंटियों और मुख्य टाउनशिप में छा गया है। इस क्षेत्र में गरीबी का भी पूर्ण रूप से खात्मा हो गया है।
‘श्वेत-पत्र की समाप्ति से पहले इसमें कहा गया है कि ‘ज़िज़ांग के लोगों ने देश के बाकी हिस्सों के साथ चीनी राष्ट्र के खड़े होने और समृद्ध बनने से लेकर ताकत में बढ़ने तक जबरदस्त परिवर्तन को देखा है और अब संपूर्ण रूप से एक आधुनिक समाजवादी देश के निर्माण की नई यात्रा शुरू कर रहा है।‘श्वेत-पत्र में सिवाय ‘तिब्बती’ विशेषण आने पर या ‘तिब्बत एयरलाइंस’ जैसे किसी संगठन या संस्था का नाम आने के अलावा कहीं भी ‘तिब्बत’ शब्द का जिक्र नहीं किया गया है। धर्मशाला स्थित निर्वासित तिब्बती सरकार के केंद्रीय तिब्बती प्रशासन (सीटीए) ने श्वेत-पत्र को दृढ़ता से खारिज कर दिया और कहा कि यह श्वेत-पत्र ‘अस्वीकार्य है और गलत व्याख्या, गलत धारणाओं और झूठ’ से भरा पड़ा है।
इसमें आगे बताया गया है कि तिब्बत पर यह १९वां श्वेत- पत्र ‘ज़िज़ांग’ या ‘ज़िज़ांग स्वायत्त क्षेत्र’ का प्रयोग करके क्षेत्र की विशिष्ट राजनीतिक पहचान को लगातार कम कर रहा है।
सीटीए के प्रवक्ता तेनज़िन लेक्शे ने इसे ‘तिब्बती लोगों का अपमान बताते हुए कहा कि ३२ पन्नों का यह दस्तावेज़ लोगों की आकांक्षाओं के बारे में बात करता है, लेकिन इसमें तिब्बती लोग गायब हैं, उनका जिक्र नहीं है। इसलिए हमें आश्चर्य है कि वे किस तरह की आकांक्षाओं के बारे में बात कर रहे हैं , वे किसकी आकांक्षाओं के बारे में बात कर रहे हैं।‘
दिल्ली के लिए भी चिंता की बात है कि चीन ने तिब्बती स्वायत्त क्षेत्र के पार्टी सचिव वांग जुन्झेंग को काठमांडू और फिर कोलंबो की पांच दिवसीय यात्रा पर भेजकर भारत के पड़ोसियों के साथ ‘ज़िज़ांग’ नाम को आधिकारिक बना दिया है। ‘तिब्बती’ प्रतिनिधिमंडल (बिना किसी तिब्बती व्यक्ति के) का काठमांडू के त्रिभुवन अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर नेपाली नेशनल असेंबली की उपाध्यक्ष उर्मिला आर्यल ने स्वागत किया।
चीनी विदेश मंत्रालय की एक विज्ञप्ति में कहा गया है कि श्री वांग की यात्रा ‘दो देशों के बीच उच्चस्तरीय आदान-प्रदान की अच्छी गति’ बनाए रखने के लिए हुई है।
अपने प्रवास के दौरान श्री वांग ने नेपाली प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’ से भी मुलाकात की। श्री दहल के विदेशी मामलों के संबंध सलाहकार रूपक सपकोटा ने कहा, चूंकि हम तिब्बत के साथ एक लंबी सीमा साझा करते हैं, यात्रा के दौरान हमारे अधिकारी और सीपीसी प्रतिनिधिमंडल द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने के साथ-साथ हमारे प्रधानमंत्री की चीन यात्रा के दौरान हस्ताक्षरित समझौतों को लागू करने पर भी चर्चा करेंगे।‘‘ज़िज़ांग’ प्रतिनिधियों ने उपराष्ट्रपति रामसहाय प्रसाद यादव से भी शिष्टाचार भेंट की। बाद में उन्होंने उप प्रधानमंत्री और गृह मंत्री नारायण काजी श्रेष्ठ, संघीय मामलों और सामान्य प्रशासन मंत्री अनीता देवी साह के साथ-साथ नेशनल असेंबली के अध्यक्ष गणेश प्रसाद तिमिल्सिना से भी मुलाकात की।
‘ज़िज़ांग’ प्रतिनिधियों ने पोखरा में संयुक्त परियोजनाओं का भी दौरा किया। हालांकि यह स्पष्ट था कि इस दौरे का उद्देश्य केवल और केवल ‘ज़िज़ांग’के नाम पर स्वीकृति प्राप्त करना था। इतना ही नहीं, एक दिन बाद (१४ नवंबर को) वांग जुन्झेंग को श्रीलंका के विदेश मंत्री अली साबरी के साथ कोलंबो में देखा गया। साबरी ने अपने एक्स हैंडल पर लिखा, ‘विदेश मंत्रालय में चीन के जिजांग स्वायत्त क्षेत्रीय समिति में सीपीसी के सचिव वांग जुन्झेंग से मिलकर खुशी हुई। हमने अन्य क्षेत्रों के अलावा संभावित द्विपक्षीय सहयोग पर चर्चा की। ‘इसका मतलब यह है कि अधिक से अधिक देश अब तिब्बत के लिए ‘ज़िज़ांग’ नाम का उपयोग कर रहे हैं।
किस्सा कोताह यह है कि ‘मानव जाति के लिए साझा भविष्य वाले समुदाय के निर्माण के बारे में श्री शी के मीठे वचनों के बावजूद, तिब्बत जैसे प्राचीन राष्ट्रों के लिए बीजिंग की योजनाओं में कोई जगह नहीं है।‘यह मानवता या भारत के लिए अच्छा संकेत नहीं है, जिसकी तिब्बत के साथ लंबी सीमा है। शायद राष्ट्रपति बिडेन चीनी ‘तानाशाह’ के बारे में सही बोल रहे थे।