
धर्मशाला। आज ०१ अक्तूबर सुबह जब परम पावन दलाई लामा मुख्य तिब्बती मंदिर, सुगलागखांग जाने के लिए तैयार होकर अपने आवास के द्वार पर पहुंचे, तो ताइवान के अनुयायियों के प्रतिनिधिमंडल ने आगे बढ़कर उनका स्वागत किया। जब प्रतिनिधिमंडल ने सोंगखापा की स्तुति में ‘मिग-से-मा’ प्रार्थना का जाप किया और भिक्षुओं ने आगे बढ़कर हार्न बजाया, तब परम पावन मंदिर की ओर चल पड़े। इस दौरान ताइवान के भिक्षु गलियारे के दोनों ओर पंक्तिबद्ध खड़े रहे।
लिफ्ट से मंदिर की पहली मंजिल पर पहुंचकर परम पावन ने प्रांगण में खड़ी भीड़ पर दृष्टिपात किया और मुस्कुराते हुए हाथ हिलाकर उनका अभिवादन किया। इसके बाद कालचक्र मंदिर की परिक्रमा करते हुए उन्होंने मंदिर के अंदर बैठी भिक्षुणियों का हाथ हिलाकर अभिवादन किया और खिड़कियों से मालाओं को उनके सामने फेंककर आशीर्वाद दिया।
मंदिर में परम पावन ने गंडेन त्रि रिनपोछे और जंगसे चोजे रिनपोछे का अभिवादन स्वीकार किया। परम पावन जब अपने आसन पर विराजमान हो गए तब पीठासीन लामा चांगक्या रिनपोछे ने उन्हें रेशमी दुपट्टा भेंट किया। सभा में चाय और खीर के प्रसाद परोसे गए। चांगक्या रिनपोछे के दाईं ओर ताइवान के मठाधीश तेनज़िन खेसुन और उनके बाईं ओर नामग्याल मठ के लोबपोन लोबसंग धारग्ये बैठे।
०१ अक्तूबर का यह समारोह ‘आध्यात्मिक गुरु को अर्पण- लामा-चोपा’ के नाम रहा। एक निश्चित समय पर वज्र गुरु को सोग-अर्पण प्रस्तुत किया गया। मूर्तियों आदि लेकर लोगों का एक जुलूस प्रांगण से मंदिर से होकर गुजरा। चांगक्या रिनपोछे ने परम पावन को ज्ञान शरीर, वाणी और मन के प्रतीक रूप एक मंडल अर्पित किया। इसके बाद गंडेन त्रि रिनपोछे ने भी इसी प्रकार की भेंट चढ़ाई।
परम पावन की दीर्घायु के लिए लिंग रिनपोछे और त्रिजांग रिनपोछे नामक उनके दो शिक्षकों द्वारा रचित प्रार्थना का पाठ किया गया। इसके बाद अनुयायियों के प्रतिनिधिमंडल के सदस्य परम पावन के पास उनकी पूजा करने और उनका आशीर्वाद लेने के लिए पहुंचे। इस पंक्ति के अंत में चीनी नैन-नक्श के एक बुजुर्ग सज्जन ने परम पावन को अपना सम्मान पेश किया। सफेद बालों और सफेद दाढ़ी वाले ये सज्जन दीर्घायु के प्रतीत हो रहे थे। उन्होंने एक हाथ में आड़ू और दूसरे हाथ में नक्काशीदार घोड़े के सिर वाली एक छड़ी ले रखी थी।
ताइवान में तिब्बती बौद्ध धर्म के अंतरराष्ट्रीय संघ (आईएटीबीटी) के सदस्यों और इस प्रवचन-सत्र में भाग लेने वाले १२२० से अधिक लोगों के साथ ही परम पावन दलाई लामा के प्रति अटूट भक्ति बनाए रखने वाले शिष्यों की ओर से आईएटीबीटी के अध्यक्ष हू माओ हुआ मिंग ने भावुक अनुरोध किया। उन्होंने ‘बोधिसत्वों के सैंतीस साधनाओं’ से श्रद्धांजलि का एक श्लोक पढ़ने के साथ शुरुआत की।
मैं अपने तीन द्वारों से निरंतर श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं,
मेरे सर्वोच्च शिक्षक और रक्षक चेनरेज़िग को,
जो सभी घटनाओं को आते-जाते हुए देखते हुए,
जीवों की भलाई के लिए एकनिष्ठ प्रयास करते हैं।
परम पावन दलाई लामा ‘देवताओं और मनुष्यों के मार्गदर्शक, सर्वज्ञ और महान द्रष्टा, सौ युगों तक दृढ़ रहने वाले बुद्ध के सिद्धांतों के मानस्तंभ हैं। हम उनके दीर्घ जीवन के लिए आदरपूर्वक यह शुभ प्रार्थना करते हैं कि वे युगों-युगों तक अचल-अमर रहें और उनके प्रेम और करुणा के प्रकाश से सभी जीवों को हमेशा के लिए खुशी मिले और कल्याण होता रहे।
‘छह सौ साल से भी अधिक समय पहले जब आदरणीय गुरु जे त्सोंगखापा दुनिया में आए तो उन्होंने मौलिक अनुशासन की शिक्षाओं के अलावा सम्यक मार्ग के तीन चरणों की साधना को स्पष्ट किया। इसी तरह, दलाई लामा के विभिन्न अवतारों की करुणा के कारण न केवल तिब्बती लोगों को लाभ हुआ है बल्कि बुद्ध की शिक्षाओं को संरक्षित करने, बनाए रखने और फैलाने के लिए अतुलनीय क्रियाकलाप हुए हैं।’
‘इस समय, जब मानव मन शांत नहीं है और राष्ट्रों के बीच संघर्ष चल रहे हैं, परम पावन दलाई लामा ने ‘प्रेम और करुणा’ और ‘परस्पर निर्भरता और अहिंसक आचरण के दृष्टिकोण’ पर विशिष्ट शिक्षाएँ दी हैं। इससे न केवल उनके अनुयायियों की समझ बढ़ी है बल्कि उन लोगों में भी खुशी और प्रशंसा पैदा हुई है, जो आस्था नहीं रखते।’
‘परम पावन ने साठ से अधिक वर्षों तक अथक रूप से जो शिक्षाएं दी हैं, उनके कारण हम समर्पित चीनी शिष्यों ने तिब्बती बौद्ध धर्म के साथ एक विशेष संबंध विकसित किया है। इससे धर्म और आंतरिक शांति के बारे में हमारी समझ बढ़ी है और हमने जीवन के मूल्य को पहचाना है।
उन्होंने आगे कहा, ‘परम पावन ने तीन बार ताइवान का दौरा किया है। सबसे पहले १९९७ में वे ताइवान गए और अपने शिष्यों को उपदेश दिए और उनका सशक्तीकरण किया। इस दौरान उन्होंने विभिन्न संवादों में भाग लिया और प्रवचन दिए। बाद में उन्होंने प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित लोगों को सांत्वना दी, उन्हें उपदेश सुनाए और उनके प्रति सहानुभूति व्यक्त की। उनकी करुणा अतुलनीय है।
उन्होंने कहा, ‘दलाई लामा’ की उपाधि केवल एक पदवी भर नहीं है, बल्कि प्रेम और शांति का प्रतीक है। परम पावन, आप न केवल तिब्बती लोगों के महत्वपूर्ण स्तंभ हैं, बल्कि बुद्ध की शिक्षाओं को बनाए रखने वालों के सिरमौर भी हैं। पूरी दुनिया के लिए आप करुणा और ज्ञान की प्रतिमूर्ति हैं। आपकी गतिविधियां न केवल तिब्बती लोगों के लिए बल्कि बौद्ध धर्म और पूरी मानवता के लिए अपरिहार्य हैं।
‘परम पावन ने ०२ जनवरी २०१६ को दक्षिण भारत में ताशी ल्हुंपो मठ में दिए अपने प्रवचन में कहा, ‘जब हम पहली बार भारत में शरणार्थी के रूप में आए तो हम नीचे धरती और ऊपर आसमान के अलावा किसी को नहीं जानते थे। लेकिन, क्योंकि हम एक साथ काम करने में सक्षम थे, इसलिए हमने अच्छे परिणाम प्राप्त किए हैं।’ इन शब्दों ने हमें गहराई से छुआ।
सभी प्राणियों के कल्याण की कामना करने वाले दूरदर्शी द्रष्टा महान बोधिसत्व परम पावन के नेतृत्व के बिना बुद्ध की अनमोल शिक्षाओं का दुनिया भर में इतने व्यापक रूप से फैलना बिल्कुल असंभव होता। जितना अधिक हम इस पर चिंतन करते हैं उतना ही अधिक हम महसूस करते हैं कि परम पावन की दयालुता विचार और शब्द से परे है। यहां, सभी चीनी शिष्यों की ओर से मैं ईमानदारी से प्रार्थना करता हूं कि परम पावन का जीवन युगों-युगों तक दृढ़ रहे और धर्म का चक्र हमेशा घूमता रहे। मैं यह भी ईमानदारी से अनुरोध करता हूं कि भगवान बुद्ध की शिक्षाओं और सभी प्राणियों के कल्याण के लिए दलाई लामाओं की पुनर्जन्म की परंपरा निर्बाध रूप से जारी रहे, जैसा कि अतीत से लेकर वर्तमान तक चली आ रही है। यह जरूरी है कि भविष्य के संवेदनशील प्राणी सीधे गुरु अवलोकितेश्वर से मिल सकें, उनकी शिक्षाएं और आशीर्वाद प्राप्त कर सकें। कृपया, कृपया, कृपया हमारी इस विनती को स्वीकार करें।’
परम पावन ने इसके बाद सभा को संक्षिप्त रूप से संबोधित किया।
‘आज आप ताइवान के लोगों ने मेरे दीर्घायु होने के लिए यह अनुष्ठान किया है। मैं प्रार्थना करता हूं कि जहां बौद्ध धर्म का ह्रास हुआ है, वहां यह फिर से फले-फूले और जहां यह अभी तक नहीं फैला है, वहां इसका प्रचार-प्रसार हो। चीन और अन्य जगहों पर बौद्ध धर्म के बारे में लोगों की रुचि बढ़ रही है। मैंने तिब्बत, चीन और मंगोलिया में बौद्ध धर्म को फलते-फूलते देखने के लिए कड़ी मेहनत की है।’
‘हम तिब्बतियों ने बुद्ध की संपूर्ण शिक्षा को संरक्षित किया है, लेकिन हम अभी भी अनुष्ठान करने में बहुत अधिक प्रयास करते हैं। जो लोग अभ्यास और ध्यान करते हैं, वे अपेक्षाकृत दुर्लभ हैं। एक बच्चे के रूप में, मुझे भी अध्ययन या अभ्यास में बहुत रुचि नहीं थी, लेकिन जैसे-जैसे मैं बड़ा हुआ, मुझे तीन प्रशिक्षणों को बनाए रखने के व्यावहारिक लाभों की सराहना करने लगा। और इसी कारण से, मैंने अभ्यास किया है और उन मित्रों के साथ शिक्षा को साझा किया है जो इसमें रुचि रखते थे।
“मैंने अपने सपनों में देखा है कि मैं एक सौ दस साल से अधिक जीवित रह सकता हूं।’
‘हम तिब्बत, चीन और मंगोलिया के लोग जहां भी हों, सभी इंसान होने के नाते एक जैसे हैं। जैसा कि मैंने कहा, बौद्ध धर्म अब दुनिया के अन्य भागों में फैल गया है। जब मैं वैज्ञानिकों से मिलता हूं तो मैं एक वैज्ञानिक होता हूँ। जब मैं धार्मिक लोगों से मिलता हूँ, तो मैं भी धार्मिक होता हूं। मैं प्रार्थना करता हूं कि बौद्ध धर्म न केवल जीवित रहे, बल्कि फले-फूले। बस इतना ही। ताशी देलेक।’
चांगक्या रिनपोछे ने परम पावन को दीर्घायु होने के अनुरोध को स्वीकार करने के एवज में धन्यवाद देने के लिए एक मंडल और सम्यक ज्ञान, शरीर, वाणी और मन के प्रतिरूप चित्र भेंट किए।
जैसे ही ताइवान के शिष्य सिंहासन के पास पहुंचे, ‘आध्यात्मिक गुरु को लामा-चोपा अर्पण’ से एक प्रमुख श्लोक का पाठ किया गया।
आप गुरु हैं; आप देवता हैं; आप आकाश गामी और धर्म के रक्षक हैं।
अब से लेकर आत्मज्ञान तक, मैं आपके अलावा किसी और की शरण नहीं लूंगा।
इस जीवन में, मध्यवर्ती अवस्था में और सभी भावी जीवनों में, मुझे अपनी करुणा की डोरी से थामे रहो।
मुझे चक्रीय अस्तित्व और शांति के भय से मुक्त करो, सभी सिद्धियां प्रदान करो,
मेरे निरंतर मित्र बनो और किसी तरह के हस्तक्षेप से मेरी रक्षा करो।
इसके बाद ‘आध्यात्मिक गुरु को अर्पण’ में बताए गए आत्मज्ञान के मार्ग के पाठ की समीक्षा की गई। परंपरा के अनुसार, समारोह का समापन ‘प्रेयर ऑफ द वर्ड्स ऑफ ट्रूथ (सत्य के शब्दों की प्रार्थना)’ के पाठ के साथ हुआ, जो इस प्रकार है:
इस तरह, रक्षक चेनरेज़िग ने बुद्धों और बोधिसत्वों के समक्ष
बर्फ की भूमि को पूरी तरह से अपनाने के लिए विशाल प्रार्थनाएं कीं;
इन प्रार्थनाओं के अच्छे परिणाम अब शीघ्र ही प्रकट हों।
शून्यता और सापेक्ष रूपों की गहन अन्योन्याश्रयता से,
और तीन रत्नों और उनके सत्य वचनों में महान करुणा की शक्ति से,
और कर्मों और उनके फलों के अचूक नियम की शक्ति से,
यह सत्यपूर्ण प्रार्थना निर्बाध और शीघ्र पूरी हो।