धर्मशाला। ताइवान फाउंडेशन फॉर डेमोक्रेसी के एक प्रतिनिधिमंडल ने ३० अक्तूबर २०२३ को अपने अध्यक्ष के नेतृत्व में निर्वासित तिब्बती संसद का दौरा किया और स्पीकर खेंपो सोनम तेनफेल, डिप्टी स्पीकर डोल्मा छेरिंग तेखांग और स्थायी समिति के सदस्यों से मुलाकात की। प्रतिनिधिमंडल में ताइवान फाउंडेशन फॉर डेमोक्रेसी के अध्यक्ष हुआंग यू-लिन, ओवरसीज कंपेट्रियट कल्चर एंड एजुकेशन फाउंडेशन के सलाहकार वू कुओ पेन और ताइवान फाउंडेशन फॉर डेमोक्रेसी के उप निदेशक वू पिंग-छुंग शामिल थे। उनके साथ ताइवान स्थित तिब्बत कार्यालय के प्रतिनिधि केलसांग ग्यालछेन भी थे।
प्रतिनिधिमंडल का स्वागत करते हुए अध्यक्ष ने चीनी सरकार की नीतियों में पारदर्शिता की कमी के बारे में वैश्विक मंच पर जागरुकता फैलाने के लिए ताइवानी, तिब्बती, उग्यूर और इनर मंगोलियाई लोगों के साथ मिलकर काम करने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने प्रतिनिधिमंडल को कई तिब्बती संसदीय प्रतिनिधिमंडलों, भारत और विदेशों में ताइवानी दूतावासों की बैठकें और दौरे के अलावा निर्वासित तिब्बती संसद में ताइवानी प्रतिनिधियों की मेजबानी के बारे में जानकारी दी।
तिब्बत के अंदर की चिंताजनक स्थिति पर प्रकाश डालते हुए अध्यक्ष ने चीन के कब्जे वाले तिब्बत में हो रहे अत्याचारों पर वैश्विक ध्यान आकर्षित किया। इसमें उन्होंने तिब्बत में सांस्कृतिक संहार, मनमाने ढंग से हिरासत में लिए जाने, हिरासत में होने वाली मौतों और अन्य घटनाओं पर वैश्विक ध्यान आकर्षित करने को जरूरी बताया। उन्होंने बताया कि वहां तिब्बती कैसे शांतिपूर्ण प्रतिरोध करते हुए दमन को सह रहे हैं। स्पीकर ने वाशिंगटन डीसी में तिब्बत पर आठवें विश्व सांसदों के सम्मेलन (डब्ल्यूपीसीटी) के समापन के बाद कुछ ताइवानियों के साथ बातचीत को याद किया और दोनों लोकतंत्रों के बीच मजबूत समन्वय की आवश्यकता को दोहराया।
डिप्टी स्पीकर डोल्मा छेरिंग तेखांग ने बहुत खुशी के साथ प्रतिनिधियों का स्वागत किया और निर्वासित तिब्बती लोकतंत्र की अब तक की विकास-यात्रा का ब्यौरा अतिथियों के समक्ष रखा। उन्होंने तिब्बती पीपुल्स डेप्युटीज़ (सीटीपीडी) के संविधान के १९६० में लागू होने से लेकर अब तक तिब्बती राजनीति के लोकतंत्रीकरण की विकास-यात्रा पर प्रकाश डाला जो परम पावन दलाई लामा का उपहार है। तिब्बती पीपुल्स डेप्युटीज़ (सीटीपीडी) को ही बाद में संशोधित कर निर्वासित तिब्बती संसद बना दिया गया।
डिप्टी स्पीकर ने कई वैश्विक शिखर सम्मेलनों में तिब्बती सांसदों की भागीदारी के बारे में भी बात की। इसके साथ ही निर्वासित तिब्बती संसद को ई-संसद बनाने के दृष्टिकोण और अन्य आगामी परियोजनाओं और सम्मेलनों पर प्रकाश डाला। उन्होंने इसके लिए तिब्बती, ताइवानी, उग्यूर, मंगोलियाई और हांगकांग के लेागों के बीच समन्वित प्रयास और सहयोग की जरूरत को दोहराया।
ताइवान फाउंडेशन फॉर डेमोक्रेसी के अध्यक्ष हुआंग यू-लिन ने परम पावन दलाई लामा की दूरदर्शी दृष्टि की प्रशंसा की। लिन ने विशेष गुणों और विशेषताओं के साथ तिब्बती राजनीति को लोकतांत्रिक बनाने की परम पावन दलाई लामा की दूरदर्शी दृष्टि की प्रशंसा की, जिसमें तिब्बत के तीनों पारंपरिक प्रांतों, धार्मिक पंथों आदि के प्रतिनिधियों को लेकर इसकी बहुत ही अनूठी रचना की गई है।
सुबह परम पावन दलाई लामा से मुलाकात करने के बाद अत्यधिक प्रसन्न्ता का अनुभव करते हुए लिन ने भारतीय संसद और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की कांग्रेस के कामकाज में परस्पर विरोधाभास को लेकर परम पावन दलाई लामा द्वारा की गई टिप्पणियों के बारे में बात की। परम पावन ने इसका उल्लेख अपनी जीवनी ‘माई लैंड एंड माई पीपुल’ में किया गया है। इसने परम पावन को न्यायपूर्ण समाज के लिए लोकतांत्रिक मूल्यों को अपनाने के लिए बहुत प्रेरित किया। उन्होंने आगे कहा कि स्पीकर और डिप्टी स्पीकर सक्रिय लोकतंत्र को सक्षम बनाने में महती जिम्मेदारी निभाते हैं और कहा कि उनकी बातचीत और शैक्षिक यात्रा प्रेरणादायक रही। ताइवान फाउंडेशन फॉर डेमोक्रेसी के अध्यक्ष ने तिब्बतियों और ताइवान के बीच समन्वय को मजबूत करने पर जोर दिया, जिनकी किस्मत एक जैसी है और कहा कि उन्हें अपने समान उद्देश्यों के लिए मिलकर काम करना चाहिए। ओवरसीज कंपेट्रियट कल्चर एंड एजुकेशन फाउंडेशन के सलाहकार वू कुओ पेन ने भी अपने बहुमूल्य सुझाव दिए और छोटी आबादी और सीमित संसाधनों के बावजूद महत्वपूर्ण योगदान में निर्वासित तिब्बतियों की सफलता की सराहना की। पेन तिब्बती धार्मिक और पर्यावरणीय पहलुओं में अपना योगदान देना चाहते हैं। मेहमानों को औपचारिक तौर पर खटक (स्कार्फ) भेंट करने और स्मृति चिह्नों के आदान-प्रदान के बाद संसद भवन के भ्रमण पर ले जाया गया।