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तिब्बतियों का जबरदस्ती विस्थापन बंद करे चीनः HRW

June 28, 2013

आईबीएन खबर, 27 जून 2013

tibbetenबीजिंग।पश्चिमी मानवाधिकार संगठन ह्यूमन राइट्स वॉच एचआरडब्ल्यू ने तिब्बती लोगों को जबरदस्ती दूसरी जगह विस्थापित करने के मामलों पर गहरी चिंता व्यक्त की है। एचआरडब्ल्यू द्वारा जारी की गई रिपोर्ट में बताया गया है कि तिब्बतियों को जबरन दूसरी जगह बसाकर चीन सरकार न सिर्फ उनके जीवन के साथ खिलवाड़ कर रही है बल्कि उन्हें पर्याप्त मुआवजा, अच्छा घर और नौकरियां भी उपलब्ध नहीं करा पा रहीं।

एचआरडब्ल्यू के अनुसार पिछले सात सालों में बीस लाख तिब्बतियों को उनके मूल स्थान से विस्थापित कर दूसरी जगहों पर बसाया गया। एचआरडब्ल्यू की चीन इकाई की निदेशक सोफी रिचर्डसन ने इस बारे में कहा कि माओ त्से तुंग के बाद के समय में जिस पैमाने और गति से तिब्बत की ग्रामीण आबादी के जीवन को ढालने का प्रयास किया जा रहा है वह वाकई चौंकाने वाला है। रिचर्डसन ने कहा कि जो नीतियां तिब्बतियों के जीवन पर असर डाल रही है। उन्हें बनाने में उनकी कोई भूमिका नहीं है और हद तो तब हो जाती है जब वे उसे चुनौती भी नहीं दे पाते।

एचआरडब्ल्यू की रिपोर्ट में बताया गया कि साल 2006 से अब तक तिब्बत के बीस लाख लोगों को विस्थापित किया गया। इसके अलावा छिंघाई प्रांत से भी सैकड़ों हजारों खानाबदोश जातियों को भी विस्थापित किया गया। रिपोर्ट के अनुसार चीन सरकार की इस नीति का लक्ष्य जहां तिब्बतियों और दूसरे समुदायों का आर्थिक उत्थान करने का है। वहीं अलगाववादी भावनाओं को कुचलकर तिब्बत की ग्रामीण आबादी के ऊपर राजनीतिक नियंत्रण में इजाफा करने का भी है।

इस रिपोर्ट पर टिप्पणी लेने के लिए तिब्बत स्वायत्तशासी क्षेत्र की सरकार को मिलाई गई फोन कॉलों का कोई जवाब नहीं दिया गया। गौरतलब है कि तिब्बत पर साल 1950 से ही चीन का नियंत्रण कायम है। तिब्बत के धार्मिक नेता दलाई लामा साल 1959 में वहां चीनी बलों की सशस्त्र कार्रवाई के बाद पलायन कर भारत आ गए थे। चीन दलाई लामा को एक खतरनाक अलगाववादी करार देता आया है। चीन की नीतियों के प्रति विरोध व्यक्त करते हुए साल 2009 से अब तक 117 तिब्बती आत्मदाह कर चुके हैं जिसमें से 90 लोगों की मौत हुई है।


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