10 मार्च 2015, tibet.net
हम यहां उन बहादुर पुरूषों-महिलाओं को याद करने के लिए जुटे हैं जिन्होंने 56 साल पहले तिब्बत के हित के लिए अपनी जानें दी थीं। हम यहां खुद को यह याद दिलाने के लिए जमा हुए हैं कि तिब्बती जनता के लिए अहिंसक संघर्ष को महान दृढ़ता, साहस और संकल्प के साथ आगे बढ़ाना है।
मेरे तिब्बती साथियो, मैं आपको बताना चाहता हूं कि तिब्बत के हालात विकट बने हुए हैं, लेकिन तिब्बती जनता की स्थायी जीवटता मजबूत है और लगातार मजबूत होती जा रही है। वर्ष 2008 से ही, जब शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन शुरू हुए थे और उसके बाद से समूचे पठार में आत्मदाह विरोध प्रदर्शन जारी हैं, तिब्बत एक तरह के कैदखाने में बदल चुका है। तिब्बतियों की आवाजाही पर पाबंदियां काफी बढ़ चुकी हैं। बड़े शहरों में कई जगह बनी जांच चौकियों पर निगरानी कैमरों के द्वारा चौबीसों घंटे निगरानी की जाती है, तिब्बतियों को अपने आइकार्ड दिखाने होते हैं जिनमें दूसरी पीढ़ी के अत्याधुनिक चिप लगे होते हैं। एक तिब्बती ने इस अपमान का विवरण देते हुए बताया: ”आपका पहचान पत्र आपके परछाईं की तरह है। इसके बिना आप कहीं भी आ-जा नहीं सकते। “ बढ़े हुए प्रतिबंधों से हालात इस कदर बिगड़ चुके हैं कि चीनी पर्यटकों की भी इस तरह की टिप्पणी आ रही है कि तिब्बत की दशा तो एक ‘युद्ध क्षेत्र‘ जैसी हो चुकी है।
तिब्बतियों के लिए खास चिंता की बात 2014 में चीन राज्य परिषद की वह घोषणा है जिसके मुताबिक शिगास्ते और छामदो का भी सुरक्षा दर्जा बढ़ाकर इन शहरों के बराबर कर दिया गया। वैसे तो आधुनिकीकरण के रूप में हुए आर्थिक विकास का तिब्बतियों ने स्वागत किया है, लेकिन शहरीकरण का एक चेहरा यह भी है कि इससे उन्हें आर्थिक हाशियाकरण, सामाजिक अलगाव और पर्यावरण विनाश का सामना करना पड़ा है। ल्हासा इसका प्रमुख उदाहरण है। शहर में तेजी से शहरीकरण का विस्तार हुआ है जिसने समूचे चीन से चीनी प्रवासी श्रमिकों को आकर्षित किया है। जनसंख्या के इस बदलाव से तिब्बती संस्कृति का हृदयस्थल एक और ”चाइनाटाउन“ में बदल चुका है, जहां तिब्बती छोटे-छोटे अलग-थलग बस्तियों में रहते हैं जो लगातार विस्तृत होते शहरी चीन से घिरे हुए हैं। हमें आशंका है कि शिगासे और छामदो में ऐसे ही नकारात्मक बदलाव होंगे, जहां तिब्बती लोगों के अपनी संस्कृति और पहचान को बचाने की क्षमता में असीमित कमी आएगी। साथ ही, तिब्बतियों को इतनी ही आशंका इस बात की भी है कि चीनी बाशिंदों की बाढ़ इतनी ज्यादा हो जाएगी कि वे ग्रामीण और घुमंतू तिब्बतियों पर हावी हो जाएंगे।
ये कुछ ऐसी चुनौतियां हैं जिनका हम तिब्बत में सामना कर रहे हैं। हालांकि, मेरा मानना है कि हमारे पास इन पर विजय पाने के लिए दृढ़ता, संकल्प और सामूहिक इच्छा है। तिब्बत में रहने वाले तिब्बती एक के बाद एक सरकार प्रायोजित त्रासदी का सामना कर रहे हैं। 1950 के दशक का द ग्रेट लीप फाॅरवर्ड और 1960 के दशक में सांस्कृतिक क्रांति जैसी आपदाएं भी तिब्बती जनता की चिरस्थायी जीवटता को टस से मस नहीं कर पाईं। वर्ष 1989 में ल्हासा में थोपे गए सैनिक कानून से लेकर ‘सख्त प्रहार अभियान‘, मतभेद का गला घोंटने और पश्चिमी चीन के विकास कार्यक्रम जैसे अभियान भी तिब्बती जनता के साहस को दमित नहीं कर पाए हैं। वर्ष 1959 की जनक्रांति के समय से ही, जिसे आज हम सम्मान दे रहे हैं, दशकों तक शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन के द्वारा, जिनमें 2008 में समूचे तिब्बत में हुए प्रदर्शन और 100 से ज्यादा आत्मदाह भी शामिल हैं, तिब्बती लोग एकजुट जनता के रूप में जीवन जी रहे हैं और न्याय के लिए उनकी लड़ाई मजबूत बनी हुई है।
तिब्बत में कलाकार गाते हैं, पेटिंग करते हैं और लिखते हैं, सब कुछ साहस की भावना के साथ और तिब्बत आंदोलन के प्रति जिम्मेदारी की ऊंची भावना के साथ। तिब्बत के भीतर एक नई आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और बौद्धिक पुनर्जागरण तिब्बती गौरव एवं एकता को सुदृढ़ बना रहा है। यर छा गून बू (कैटरपिलर फंगस) जमा करने वाले विनम्र लोगों से लेकर अथक मेहनत करने वाले ट्रक ड्राइवर, किसान और नोमैड, भिक्षु और भिक्षुणियों तक सभी हमेशा तिब्बती गरिमा और एक साझी पहचान के साथ जीने की साझी आकांक्षा प्रकट करते हैं। तिब्बत की साझी आकांक्षाओं से जुड़े विचारों और सपनों के ये टुकड़े मिलकर तिब्बत के सभी लोगों के उज्ज्वल भविष्य में बदल जाएंगे।
आज चीन से यह शब्दाडंबर सामने आ रहा है कि तिब्बती अपनी मर्जी के मालिक बन चुके हैं। इस शब्दाडंबर को सच बनाने के लिए हम चीनी नेतृत्व से यह आग्रह करते हैं कि वह तिब्बतियों को तिब्बत पर शासन करने दे। चीन जब तथाकथित तिब्बत स्वायत्तशासी क्षेत्र (टीएआर) की 50वीं वर्षगांठ मनाने की तैयारी कर रहा है, बीजिंग के कट्टरपंथियों को यह बात ध्यान रखनी होगी कि दमन से केवल असंतोष पैदा होता है। हमने राष्ट्रपति शी जिनपिंग की इन टिप्पणियों पर गौर किया है कि तिब्बती संस्कृति और भाषा का संरक्षण किया जाना चाहिए, जबकि आमदो के स्थानीय प्रशासन का 20 मुद्धों पर आधारित आंतरिक निर्देश इन दोनों को दमित करता है।
कशाग की तरफ से हम इस मध्यम मार्ग नीति के प्रति पूरी तरह से प्रतिबद्ध हैं कि चीन से हमें अलग नहीं होना है बल्कि हमें तिब्बती जनता के लिए वास्तविक स्वायत्तता चाहिए। तिब्बती जनता के लिए वास्तविक स्वायत्तता को संभव बनाने के लिए कशाग के सलाहकार निकाय कार्य दल ने जनवरी के पहले हफ्ते में एक बैठक आयोजित की थी ताकि तिब्बत में चल रहे राजनीतिक घटनाक्रम पर गहराई से चर्चा हो सके, खासकर चीनी नेतृत्व के साथ भविष्य में हो सकने वाली वार्ता और व्यापक अंतरराष्ट्रीय घटनाक्रमों पर। तिब्बती नेतृत्व का दृढ़ता से यह मानना है कि तिब्बत समस्या को परमपावन दलाई लामा और चीनी नेतृत्व के प्रतिनिधियों के बीच संवाद से ही हल किया जा सकता है। परमपावन दलाई लामा के दूत अपने चीनी समकक्षों से किसी भी समय, कहीं पर भी बातचीत करने के लिए तैयार हैं।
इस संबंध में, हम हाल में अमेरिका के विदेश मंत्रालय द्वारा जारी इस बयान के प्रति गहराई से कृतज्ञता व्यक्त करते हैं जिससे परमपावन दलाई लामा के दूतों और चीनी नेतृत्व के बीच बातचीत को प्रोत्साहन मिलता है: ”हमारा यह मानना है कि चीन जनवादी गणतंत्र के सभी लोगों को संवाद के फलों का फायदा मिलेगा और हम चीन सरकार से यह आग्रह करते हैं कि वह अवसर का फायदा उठाते हुए दलाई लामा के साथ और संपर्क बढ़ाए।“
हम राष्ट्रपति बराक ओबामा द्वारा वाशिंगटन डी.सी. में सालाना ब्रेकफास्ट प्रेयर के दौरान की गई टिप्पणियों का भी स्वागत करते हैं, जिसमें उन्होंने परमपावन दलाई लामा को अपना ”अच्छा मित्र“, ”करुणा के पालन का क्या मतलब होता है उसका एक ताकतवर उदाहरण“ और एक ऐसा व्यक्ति बताया है जो ”हम सबको स्वाधीनता और सभी प्राणियों की गरिमा के बारे में बोलने को प्रेरित करता है।“
मैं यह बताने में गर्व का अनुभव कर रहा हूं कि भारत के भीतर, हम तिब्बत के महत्व के बारे में जागरूता बढ़ती देख रहे हैं और तिब्बत के मसले पर चर्चा करने के लिए ज्यादा मंच प्रदान किए गए हैं। इसको भी स्वीकार किया गया है कि केंद्रीय तिब्बती प्रशासन एक वास्तविक लोकतांत्रिक राजनीतिक इकाई और प्रभावी इकाई, दोनों ही है। हमारे लोकतंत्र की गौरवशाली बात उसमें जनभागीदारी है और हम लोकतांत्रिक प्रक्रिया में तिब्बती जनता के गहरे जुड़ाव को प्रोत्साहित करते हैं।
इस साल तिब्बती जनता और दुनिया भर के हमारे मित्र परमपावन दलाई लामा का 80वां जन्म दिन मनाएंगे। इस ऐतिहासिक अवसर पर हम परमपावन दलाई लामा के दीर्घायु होने और उनका स्वास्थ्य निरन्तर अच्छा रहने के लिए प्रार्थना करते हैं। तिब्बती जनता की विशिष्टता, अहिंसा और वे मूल्य रहे हैं जिसे हमारी पिछली पीढ़ी ने अपनाया था: विनम्रता, ईमानदारी और लचीलापन, जिसे कि हमारी युवा पीढ़ी को भी अपनाना चाहिए। यह हमारी राजनीतिक पूंजी और राजनीतिक संसाधन है।
इन सबसे भी ऊपर, कशाग की पहली प्राथमिकता शिक्षा है। इस प्रयास के तहत कशाग सभी तरह के तिब्बतियों को इस बात के लिए प्रोत्साहित करता है कि वे अपने बच्चों की शिक्षा में गहराई से शामिल रहें।
मैं इस अवसर पर बर्लिन से लेकर ब्रसल्स तक, कैनबरा से लेकर केप टाउन तक और टोक्यो से लेकर ताइपेई तक सभी तिब्बत समर्थक संगठनों को धन्यवाद देना चाहता हूं, उनके नेक प्रयासों और न्याय एवं तिब्बतियों की स्वाधीनता को समर्थन देने के लिए। दुनिया भर में चरमपंथ और हिंसक टकरावों के बीच तिब्बत संयम और अहिंसा का ऐसा उदाहरण है जिसको आपका लगातार समर्थन मायने रखता है। हम भारत की जनता और भारत सरकार के प्रति भी उनकी उदारता और आतिथ्य के लिए अपनी गहरी कृतज्ञता व्यक्त करते हैं।
मेरे साथी तिब्बतियो, एक बार फिर, गहन उम्मीद और कृतज्ञता के साथ साठ लाख तिब्बती जनता की तरफ से मैं परमपावन महान 14वें दलाई लामा के दीर्घायु होने के लिए हृदय से प्रार्थना करता हूं।
आज हम, उन बहादुर पुरूषों एवं महिलाओं के प्रति भी अपना गहरा सम्मान और आदर प्रकट करना चाहते हैं जिन्होंने तिब्बत आंदोलन के लिए अपने जीवन का बलिदान कर दिया। हमारी यही कामना है कि इस चिरस्थायी जीवटता के साथ ही सभी तिब्बती अपने पूर्वजों और माताओं, बहनों एवं भाइयों और उन सभी लोगों के आंदोलन में स्थायी रूप से लगे रहें जिन्होंने तिब्बतियों की पीड़ा को खत्म करने और तिब्बत में स्वाधीनता की बहाली के लिए अपने जीवन का समर्पण कर दिया।
परमपावन दलाई लामा जिंदाबाद और बोद ग्यालो।
सिक्योंग डाॅ. लोबसांग सांगे
10 मार्च, 2015
Link of the statement: http://tibet.net/2015/03/10/statement-of-sikyong-dr-lobsang-sangay-on-the-56th-anniversary-of-the-tibetan-national-uprising-day/