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तिब्बती राष्ट्रीय जनक्रांति दिवस की 57वीं वर्षगांठ पर सिक्योंग का बयान

March 10, 2016

tibet.net, 10 मार्च 2016

तिब्बत पर चीन जनवादी गणतंत्र के आक्रमण और कब्जे के खिलाफ वर्ष 1959 में हुई तिब्बती जनता की शांतिपूर्ण जनक्रांति की आज 57वीं वर्षगांठ है। इस अवसर पर कशाग के मेरे साथी और मैं उन सभी बहादुर मर्दों और औरतों को श्रद्धांजलि देते हैं और उनके लिए प्रार्थना करते हैं, जिन्होंने तिब्बत के हित के लिए अपनी जान दे दी। हम उन लोगों के प्रति भी अपनी एकजुटता प्रदर्शित करते हैं जो चीनी शासन के तहत अब भी लगातार दमन का शिकार हो रहे हैं।

तिब्बत पर चीन के नियंत्रण के दशकों बीत जाने के बाद भी और कठिन परिस्थितियों में रहने को मजबूर होने के बावजूद तिब्बती जनता अपनी पहचान और जीवटता को कायम रखने में सक्षम रही है। अपने बड़ों के बलिदानों से प्रभावित नई पीढ़ी ने तिब्बत आंदोलन को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी ली है। तिब्बत के भीतर के हमारे हमवतनों के साहस और दृढ़निश्चय की गहरी तारीफ करनी होगी।

चीन सरकार बार-बार यह दावा करती रही है कि नए तिब्बत के विकास के साथ ही वहां खुशी और संपन्नता आ गई है। लेकिन सच्चाई इसके विपरीत है। तिब्बती बाशिंदो वाले सभी इलाके बुनियादी आज़ादी से वंचित हैं और लोगों को लगातार कठोर नियंत्रण और निगरानी में रहना पड़ रहा है। तिब्बती जनता की यात्रा और आवाजाही पर थोपी गई मौजूदा ग्रिड प्रणाली से यह तथ्य बिल्कुल साफ हो जाता है। मानवाधिकार संगठनों की रिपोर्ट में बताया जाता है कि समूचे तिब्बत के गांव-गांव तक गहन निगरानी कार्यक्रम का विस्तार किया गया है। पहले किए गए 142 आत्मदाह के अलावा हाल में तिब्बत के भीतर और बाहर दो युवाओं द्वारा किए गए आत्मदाह से भी यह साफ हो जाता है कि तिब्बत में आज़ादी का अभाव है। कशाग उन सभी की आकांक्षाओं को पूरा करने की कोशिश करेगी और साथ ही, आत्मदाह की घटनाओं के लिए पूरी तरह से तिब्बत की दमनकारी नीतियों को जिम्मेदार ठहराती है।

मैं आपको यह बताना चाहता हूं कि तिब्बत के भीतर के हालात बहुत ही विकट हैं। कोई भी व्यक्ति जो धार्मिक आज़ादी और पर्यावरण अधिकारों की बात करता है, उसके ऊपर अक्सर राजनीति से प्रेरित विभिन्न धाराएं लगा दी जाती हैं और कठोर सजा दी जाती है। महज परमपावन दलाई लामा की तस्वीर रखना भी गिरफ्तारी और कैद की वजह बन सकता है। बौद्ध संस्कृति के संग्रहालयों की सख्त निगरानी की जाती है और अगर भिक्षु एवं भिक्षुणी अपने आध्यात्मिक गुरु की निंदा न करें तो उन्हें मठों से बाहर कर दिया जाता है। फ्रीडम हाउस रिपोर्ट 2016 में तिब्बत को सीरिया के बाद दुनिया का दूसरा सबसे कम आज़ाद स्थान बताया गया है। इसी तरह ईयू-चीन संबंधों पर दिसंबर 2015 में जारी यूरोपीय संघ की रिपोर्ट में साफतौर से तिब्बत में धार्मिक आज़ादी के अभाव और यात्रा पर लगे प्रतिबंधों पर चिंता जताई गई है। इस तरह तिब्बती जनता भय और असुरक्षा के माहौल में जी रही है।

चीनी प्रशासन तिब्बती जनता सहित सभी राष्ट्रीय अल्पसंख्यकों से जिस तरह का व्यवहार कर रहा है उससे अलगाव और असंतोष बढ़ा है। रेबकोंग, क्विंघई प्रांत में एक चीनी के स्वामित्व वाले और उसके द्वारा संचालित होटल के कार्य का जबर्दस्त विरोध और प्रदर्शन हुआ, जब उसने तिब्बती भाषा बोलने वाले कर्मचारियों पर रोक लगा दी। 22 दिसंबर, 2015 को तिब्बत मूल के एक वरिष्ठ कम्युनिस्ट पार्टी नेता ने एक बैठक के दौरान, व्यापक हो चुके भेदभाव पर गहरी चिंता जताई। इस दौरान उन्होंने कुछ ऐसे उदाहरण दिए जिनमें नस्लीय आधार पर लोगों के साथ भेदभाव किया गया या उन्हें कुछ सेवाओं से वंचित रखा गया। उन्होंने कहा कि इस समस्या का भारी अवांछित सामाजिक प्रभाव हुआ है और इसकी नस्लीय इलाकों में तीखी जन प्रतिक्रिया हुई है। इसी तरह चीन की सरकारी नीति और खासकर कुछ नेताओं की टिप्पणियों में एक समूचे नस्लीय समूह को ‘अलगाववादी‘ बताया जा रहा है। ऐसी टिप्पणियों पर चीन में भी तीखी प्रतिक्रिया हुई है और कई विद्वानों और बुद्धिजीवियों ने इस पर सख्ती और कड़ी प्रतिक्रिया दिखाते हुए कलम चलाया है।

वैश्विक पर्यावरणविद और वैज्ञानिकों ने तिब्बती पठार के महत्व का भी संज्ञान लिया है क्योंकि इसमें दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा बर्फ भंडार है और यह कई पड़ोसी देशों तक बहने वाली दस प्रमुख नदियों का स्रोत भी है। लेकिन इस बात पर भी जोर देना चाहिए कि प्राकृतिक संसाधनों के लगातार दोहन, वनों की कटाई, नदियों पर गहनता से बांध बनाने, हिमनदियों के पीछे खिसकने आदि से निस्संदेह रूप से तिब्बत के पर्यावरण को अपूरणीय क्षति हुई है, जिससे कि समूचे एशिया महाद्वीप के पर्यावरण पर असर पड़ रहा है।

तिब्बत के पर्यावरण को बचाने की आवश्यकता को समझते हुए, हमने बार-बार लगातार इस मसले को विभिन्न अंतरराष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन सम्मेलनों में उठाया है। पिछले साल केंद्रीय तिब्बती प्रशासन ने पेरिस में आयोजित सीओपी-21 के भागीदारों के समक्ष दस बिंदुओं की कार्रवाई वाले दस्तावेज के साथ ही तमाम तथ्य और आंकड़े पेश किए थे, जिनमें यह तर्क दिया गया था कि आखिर क्यों तिब्बत पठार दुनिया के लिए मायने रखता है और साफतौर पर संयुक्त राष्ट्र, चीन सरकार तथा अंतरराष्ट्रीय समुदाय से यह आग्रह किया गया था कि वे इसे बचाने के लिए तत्काल कोई कदम उठाएं।

केंद्रीय तिब्बती प्रशासन के कशाग का दृढ़ता से यह मानना है कि तिब्बत के लंबे समय से लंबित मसले को परमपावन दलाई लामा के दूतों और चीन सरकार के प्रतिनिधियों के बीच वार्ता से ही हल किया जा सकता है। हम मध्य मार्ग नीति के प्रति पूरी तरह से प्रतिबद्ध हैं, जिसमें साफतौर से यह कहा गया है कि चीन के भीतर ही तिब्बती जनता को वास्तविक स्वायत्तता दी जाए। कशाग को उम्मीद है कि बीजिंग के नेता मध्य मार्ग नीति के तर्क को समझेंगे, बजाय इसे गलत स्वरूप में पेश करने के और परमपावन दलाई लामा के दूतों से वार्ता शुरू करने की दिशा में कदम बढ़ाएंगे।

इस विषय पर अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ 25 सितंबर, 2015 को रोज गार्डेन में आयोजित एक संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में कहा था: ”हम चीनी प्रशासन को लगतार इस बात के लिए प्रोत्साहित करेंगे कि तिब्बती जनता के धार्मिक एवं सांस्कृतिक पहचान का संरक्षण किया जाए और दलाई लामा के प्रतिनिधियों से वार्ता की जाए।“ तिब्बती जनता के लिए अमेरिकी सरकार की चिंता और समर्थन तिब्बत मसलों के विशेष समन्वयक और विदेश विभाग में नागरिक सुरक्षा, लोकतंत्र एवं मानवाधिकार विभाग की अवर-मंत्री सुश्री सारा सेवाल के वर्ष 2014 एवं 2016 में धर्मशाला दौरे से प्रदर्शित होती है। अमेरिकी सरकार ने जिस तरह से समर्थन और एकजुटता दिखाई है उसके लिए कशाग गहराई से धन्यवाद देता है क्योंकि इससे तिब्बती जनता को उम्मीद और प्रोत्साहन मिलता है।

चीन का दावा है कि तिब्बती आध्यात्मिक गुरु के पुनर्जन्म की पहचान करने का अधिकार उसके पास है। यह बिल्कुल सफेद झूठ है क्योंकि इस दावे के लिए इतिहास को तोड़ा-मरोड़ा गया है। करुणा के बुद्ध, तिब्बत के रक्षक और उद्धारक, के मानव रूप में अवतार, के पुनर्जन्म को तय करने का अधिकार और सत्ता पूरी तरह से परमपावन दलाई लामा के पास होती है। अन्य किसी के पास यह अधिकार नहीं है। पुनर्जन्म की पहचान के बारे में परमपावन दलाई लामा ने साफतौर से 24 सितंबर, 2011 के अपने बयान में सलाह और निर्देश दिए हैं, जिसमें कहा गया हैः ”जब मैं करीब नब्बे साल का हो जाऊंगा, तो तिब्बती बौद्ध परंपरा के सर्वोच्च लामाओं, तिब्बती जनता और तिब्बती बौद्ध धर्म से जुड़े अन्य संबंधित लोगों से परामर्श लूंगा और इस बात का पुनर्मूल्यांकन करूंगा कि दलाई लामा की संस्था को जारी रखा जाए या नहीं। इसके आधार पर ही मैं कोई निर्णय लूंगा। यदि यह तय होता है कि दलाई लामा के पुनर्जन्म को जारी रखना चाहिए और पंद्रहवें दलाई लामा के पहचान की जरूरत है, तो ऐसा करने की जिम्मेदारी पूरी तरह से दलाई लामा के गांदेन फोड्रांग मठ के संबंधित अधिकारियों की होगी। उन्हें तिब्बती बौद्ध परंपरा के प्रमुखों और उन भरोसेमंद धर्म रक्षा की शपथ लेने वाले लोगों से परामर्श करना होगा, जो दलाई लामा की वंशावली से अविभाज्य रूप से जुड़े हुए हैं। उन्हें इन संबंधित लोगों से सलाह और निर्देश लेना चाहिए और उसके बाद अतीत की परंपरा के मुताबिक उत्तराधिकारी की तलाश और पहचान करनी चाहिए। मैं इसके बारे मेें साफ निर्देश देकर जाऊंगा। यह बात दिमाग में रहे कि पुनर्जन्म की पहचान के ऐसे वैधानिक तरीकों के अलावा अन्य किसी भी उम्मीदवार को पहचान या स्वीकार्यता नहीं दी जा सकती है, जिसका चीन या किसी के भी द्वारा राजनीतिक उद्देश्यों से चुनाव किया जाता है।“

हमें यह देखकर बहुत खुशी हुई है कि तिब्बत के भीतर एवं बाहर रहने वाले तिब्बती और दुनिया भर के मित्रों एवं समर्थकों ने परमपावन दलाई लामा का 80वां जन्मदिन गहरे सम्मान, श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया है। इनमें से हाल में आयोजित दिल्ली के विशाल समारोह में भारत के पूर्व प्रधानमंत्री डाॅ. मनमोहन सिंह, पूर्व उप प्रधानमंत्री श्री लालकृष्ण आडवाणी, पूर्व मंत्री डाॅ. कर्ण सिंह, डाॅ. पी. चिदंबरम और भारत की कई अन्य गणमान्य हस्तियां मौजूद थीं। इस समारोह में डाॅ. मनमोहन सिंह ने बहुत आदर के साथ परमपावन दलाई लामा को पूरी दुनिया के लिए ईश्वर का उपहार बताया।

यहां परमपावन महान चैदहवें दलाई लामा के अनगिनत कार्यों या उपलब्धियों का लेखा-जोखा हम पेश नहीं करेंगे क्योंकि इसके बारे में पूरी दुनिया जानती है। ऐसे वक्त में जब बौद्ध धर्म कठिन दौर से गुजर रहा है, इसके सच्चे अनुयायी और बौद्ध धर्म का पालन करने वाले लोगों को इस बात के लिए गर्व होना चाहिए कि उन्हें पिछले कई वर्षों से परमपावन दलाई लामा द्वारा सफलतापूर्वक दिए जा रहे मार्ग के 18 महान चरण (लामरिम) उपदेशों को ग्रहण करने का कीमती अवसर मिल रहा है। ऐसा अद्भुत कार्य तिब्बती इतिहास में भी कभी नहीं हुआ था और इसे स्वर्णाक्षरों में अंकित होना चाहिए। हमें यह शुभ समाचार बताने में खुशी हो रही है कि अमेरिका से अपना चिकित्सीय उपचार सफलतापूर्वक पूरा करने के बाद अगले कुछ दिनों में परमपावन धर्मशाला लौट आएंगे।

परमपावन दलाई लामा द्वारा राजनीतिक एवं प्रशासनिक सत्ता जनता द्वारा चुने गए नेतृत्व को सौंपने के बाद मेरे नेतृत्व में जिस 14वें कशाग का गठन किया गया, उसकी अवधि अब समाप्ति की ओर है। इस दौरान किए जाने वाले कई कार्यों में तिब्बत के बारे में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जागरूकता एवं समर्थन के लिए गंभीरता से प्रयास, तिब्बती बच्चों की शिक्षा में सुधार और तिब्बती बस्तियों को टिकाऊ बनाना शामिल है। तिब्बती बौद्ध भिक्षुणियों को गेशेमा डिग्री देना एक ऐतिहासिक निर्णय है। नेपाल में भूकंप से प्रभावित लोगों की मदद करने के हमारे आह्वान पर जबर्दस्त प्रतिक्रिया मिली, जो सराहना और आभार के लायक है। कशाग परमपावन दलाई लामा को इस बात के लिए गहराई से धन्यवाद देता है और कृतज्ञता व्यक्त करता है कि उन्होंने लगातार अपने बुद्धिमत्तापूर्ण शब्दों और अच्छे सलाह से सराबोर किया है। हम तिब्बत के भीतर और बाहर रहने वाले तिब्बती जनता का भी पूरे हृदय से धन्यवाद देना चाहेंगे कि उन्होंने कई तरह से हमें समर्थन दिया है।

निर्वासन में रहने वाली तिब्बती जनता लोकतंत्र के महान रास्ते पर चल रही है और इस तरह उसने चुनाव प्रक्रिया में गहरी रुचि तथा सक्रिय भागीदारी दिखाई है। जल्दी ही सिक्योंग और निर्वासित तिब्बती संसद के चुनाव के अंतिम दौर का आयोजन किया जाएगा। इसलिए तिब्बती मतदाताओं को प्रोत्साहित किया जा रहा है कि वे चुनाव के दिन सक्रियता दिखाते हुए अपने उन लोकतांत्रिक अधिकारों का लाभ उठाएं जो उन्हें निर्वासित तिब्बतियों के लिए चार्टर से मिले हैं।

इस अवसर पर कशाग उन विभिन्न देशों के नेतृत्व की दयालुता को भी याद करना चाहता है जिनमें न्यायाधीश, सांसद, बुद्धिजीवी, विद्वान, मानवाधिकार संगठन और तिब्बत समर्थक समूह शामिल रहे हैं और जिन्होंने तिब्बती जनता का अडिग रूप से समर्थन किया है। खासकर, हम भारत की जनता और सरकार तथा राज्य सरकारों की दयालुता और लगातार सहयोग को हमेशा याद रखेंगे जो हमारे धर्म एवं संस्कृति को संरक्षित रखने तथा उसे बढ़ावा देने और निर्वासन में रह रही तिब्बती जनता के कल्याण में उदारता से मदद कर रहे हैं। हम इन सबके प्रति हृदय से कृतज्ञता व्यक्त करना चाहते हैं।

अंत में, हम अपने सबसे प्रतिष्ठित गुरु परमपावन महान चैदहवें दलाई लामा के स्वास्थ्य और दीर्घायु होने के लिए पूरी निष्ठा से प्रार्थना करते हैं। ईश्वर उनकी सभी इच्छाओं की पूर्ति करे। तिब्बत मसले का तत्काल कोई हल निकले और इन सबके साथ ही वह दिन आए जब तिब्बत के भीतर और बाहर रहने वाले तिब्बती सहजता से एकसाथ हो जाएं।

सिक्योंग

केंद्रीय तिब्बती प्रशासन
10 मार्च, 2016


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