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तिब्बती संस्कृति, धर्म और पहचान को फलने- फूलने के लिए निर्वासन वरदान साबित हुआ- चोत्रुल दुचेन पर परम पावन दलाई लामा

February 19, 2019

तिब्बत.नेट, 19 फरवरी, 2019

धर्मशाला। प्रथम तिब्बती महीने के पंद्रहवें दिन तिब्बती बौद्धों द्वारा मनाए जाने वाले चार प्रमुख बौद्ध त्यो्हारों में से एक चोत्रुल दुचेन के अवसर पर परमपावन दलाई लामा ने जातक कथाओं से प्रवचन दिया। इन प्रवचनों में आठ मन की मनोदशाओं और प्रशिक्षण का और नालंदा के 17 गुरुओं के बारे में था।

तिब्बती चंद्र वर्ष के पहले पंद्रह दिन तक यह त्योहार मनाया जाता है। इन 15 दिनों में योग्यता और भविष्य के शिष्यों की भक्ति बढ़ाने के लिए बुद्ध ने अलग-अलग चमत्कार दिखाए।

हर साल चोत्रुल दुचेन के अवसर परपरम पावन दलाई लामा जातक कथाओं पर आधारित उपदेश देते हैं। परंपरा की शुरुआत जे त्सोंकगखापा से हुई, जिन्होंने 1409 में मोन्लडम चेनमो नाम से पवित्र प्रार्थना उत्सव की स्थापना की। यह त्योहार ल्हासा में 550 वर्षों से मनाया जा रहा है और आज भी जारी है।

आज के प्रवचन में श्रोता के तौर पर केंद्रीय तिब्बती प्रशासन के अधिकारी और कर्मचारी, स्वायत्त निकायों के प्रमुख, निर्वासित तिब्बती संसद के अध्यक्ष, कालोन, तिब्बती संसद के सदस्य, सचिव और अन्य अधिकारी शामिल थे।

धर्म और संस्कृति विभाग के कालोन कर्मा गेलक युथोक ने परमपावन दलाई लामा को इस अवसर पर मंडाला का पवित्र प्रसाद प्रदान किया।

प्रवचन में उपस्थित केंद्रीय तिब्बती प्रशासन के अधिकारियों और तिब्बतियों को उपदेश देते हुए परमपावन ने गर्व और विश्वास व्यक्त किया कि तिब्बती लोग प्रतिकूल परिस्थितियों में रहने के बावजूद तिब्बती लोग अपने मुद्दे और धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण के प्रति दृढता से प्रतिबद्ध बने हुए हैं।

परम पावन ने कहा कि ‘तिब्बत में रह रहे तिब्बतियों और निर्वासन में रह रहे तिब्बतियों की अटूट भावना और प्रतिबद्ध प्रयासों से यह सुनिश्चित हो गया है कि तिब्बत का मुद्दा भुलाया नहीं जा सकता।‘

उन्होंने कहा कि ‘निर्वासन में स्वतंत्र रूप से रहने वाले तिब्बती, तिब्बत में अपने भाइयों और बहनों के लिए आशा की एक किरण की तरह हैं। और इसी तरह, तिब्बत में रह रहे तिब्बती हमारी प्रेरणा के स्रोत बने हुए हैं।‘

परम पावन ने अतीत का सिंहावलोकन करते हुए कहा कि उन्होंने तिब्बती निर्वासन के छह दशकों को ‘प्रछन्न आशीर्वाद’ के रूप में देखा है। इस दौरान एक अनूठी संस्कृति, विरासत और धार्मिक परंपरा के लोगों के रूप में तिब्बती पहचान को फिर से मज़बूत करने का अवसर मिला है।

तिब्बती आध्यात्मिक नेता ने मंगलवार को कहा ‘आज हमारी संस्कृति और धर्म ने दुनिया के सभी कोणों से प्रशंसा और सम्मान प्राप्त किया है। और अन्य धार्मिक परंपराओं के विपरीत तिब्बती बौद्ध परंपरा आत्मविश्वास से आधुनिक वैज्ञानिकों के साथ जुड़ सकने में सक्षम है।‘

परम पावन ने कहा कि, ‘यह महान धर्म राजाओं, बहुश्रुत विद्वानों और तिब्बत के आचार्यों के दूरदर्शी और व्या्वहारिक नेतृत्व का फल है कि‍ आज साठ लाख तिब्बती पहले से कहीं अधिक एकजुट हैं।‘

परम पावन ने विनम्रता पूर्वक कहा कि संस्कृति और धर्म के संभावित उपदेशों का पालन करते हुए तिब्बती मानवता की भलाई के लिए एक अद्वितीय स्थिति में हैं। ‘हमें निर्वासन के समय में अपने प्रयासों और सार्थक और सार्थक बनाना चाहिए।‘

उन्होंने इस उम्मीद के साथ अपने प्रवचन का समापन किया कि तिब्बत का एकमात्र मुद्दा जल्द ही हल होगा और सभी पूर्व और वर्तमान नेताओं और इसी के साथ उन्हेंने केंद्रीय तिब्बती प्रशासन के सदस्यों के योगदान और समर्पण की प्रशंसा की।

दो घंटे के अपने प्रवचन में परम पावन ने बताया कि कैसे तिब्बती बौद्ध धर्म नालंदा परंपरा का सबसे योग्य उत्तराधिकारी के समान है और तिब्बती भाषा में बौद्ध पिटकों की सबसे सटीक व्याख्या प्रस्तुत करता है।

“तिब्बती बौद्ध साहित्य में न केवल सबसे बड़ी संख्या में ग्रंथ हैं बल्कि यह सबसे अच्छा अनुवाद और सबसे व्यापक बौद्ध सिद्धांत को भी प्रस्तुत करता है। तिब्बती अनुवाद जिसमें काग्युर और तेंग्युर शामिल हैं, दुनिया में कहीं भी भारतीय बौद्ध ग्रंथों का सबसे बड़ा निकाय है।‘

उन्होंने कहा कि उस समय भारतीय मॉडल के आधार पर तिब्बती लिपि को परिष्कृत किया गया था। तिब्बत में बौद्ध धर्म की स्थापना के लिए तिब्बती धर्म राजा त्रिसॉन्ग डेट्सन  ने नालंदा विश्वविद्यालय से शांतरक्षि‍त को  आमंत्रित किया था। यही कारण है कि हमने नालंदा परंपरा को अपनाया है, जिसमें कारण और तर्क का उपयोग करके दर्शन का गहन अध्ययन किया जाता है।‘

उन्होंने कहा कि, ‘कठोर अध्ययन की परंपरा, तर्क का उपयोग करने के अभ्यास ने तिब्बती विद्वानों को आधुनिक वैज्ञानिकों के साथ दोतरफा बातचीत में सफलतापूर्वक शामिल होने में सक्षम बनाया है। यदि हम इन परंपराओं को जीवित रखना चाहते हैं तो हमें उन्हें अपनी विद्वता के साथ जोड़ना होगा।‘

परम पावन ने मन के प्रशिक्षण के लिए आठ श्लोकों का उपदेश भी दिया। (तिब.  རྐང་) और नालंदा के 17 गुरुओं का गुणगान भी किया।

परम पावन ने कहा कि उन्हें ताड़क रिनपोछे और बाद में क्यब्ज़े  त्रिचांग रिनपोछे से पहली शिक्षा प्राप्त की जो परम पावन के पूर्व वरिष्ठ शिक्षक थे।

प्रशिक्षण के लिए आठ छंदों के पाठ में पहले सात छंदों में मन का प्रशिक्षण दिया गया है। इसमें बुद्धत्व प्राप्त करने के लिए अभ्यास की विधि पहलू, जैसे कि करुणा, परोपकारिता, बुद्धत्व को प्राप्त करने की आकांक्षा, इस मार्ग के ज्ञान पहलू के साथ जुड़े हुए व्यवहार आदि‍ शामिल है।


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