(दिल्ली में छठे अंतरराष्ट्रीय रंगज़ेन (स्वतंत्रता) सम्मेलन में पूर्व सेना प्रमुख ने चीन को निशाने पर लेते हुए कहा कि दुनिया भर में तिब्बतियों को अपनी मातृभूमि पर लौटने का वैध अधिकार है)
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नई दिल्ली। चीन से स्वतंत्र होने के लिए तिब्बत की मुक्ति साधना को रेखांकित करते हुए भारत के पूर्व सेना प्रमुख जनरल मनोज मुकुंद नरवणे (सेवानिवृत्त) ने बुधवार को कहा कि दुनिया भर में तिब्बतियों को अपनी मातृभूमि पर लौटने और अपनी संस्कृति और परंपराओं के साथ जीने का वैध अधिकार है। वह दिल्ली में इंडिया इंटरनेशनल सेंटर (आईआईसी) में छठे अंतरराष्ट्रीय रंगज़ेन (स्वतंत्रता) सम्मेलन में बोल रहे थे। इस अवसर पर निर्वासित तिब्बती संसद के प्रतिनिधि गेशे लहरम्पा बावा लोबसांग पेंडे और प्रसिद्ध उग्यूर स्वतंत्रता सेनानी उमित हमित शामिल थे।
जनरल नरवणे ने कहा,तिब्बत में ६० लाख तिब्बती रहते हैं जबकि १,४०,००० निर्वासन में रह रहे हैं। इनमें से १,००,००० भारत में हैं। उन्होंने कहा कि यह संख्या शक्ति का असाधारण अज्ञात भंडार है,जिसका दोहन करने की जरूरत है।
उन्होंने कहा,‘यह वास्तव में ऐतिहासिक तथ्य है कि तिब्बत भारत का पड़ोसी रहा है और है। दोनों देशों के बीच सीमा खुली और शांतिपूर्ण थी। इससे न केवल व्यापार और लोगों की मुक्त आवाजाही की सुविधा मिलती थी, बल्कि मानव सभ्यता के बेहतरीन विचारों का प्रवाह भी होता था।‘
पूर्व सेना प्रमुख ने कहा कि सैद्धांतिक पंचशील समझौते की एक धारा एक-दूसरे के आतंरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करने को लेकर थी। इस धारा के परिणामस्वरूप तिब्बत पर चीनी आक्रमण के समय कुछ न बोलने की अस्पष्ट नीति बन गई थी।बता दें कि पंचशील समझौता १९५४ में भारत और चीन द्वारा हस्ताक्षरित सह-अस्तित्व के पांच सिद्धांतों पर आधारित एक संधि थी। उन्होंने कहा कि चीन ने दशकों से तिब्बत पर पूरी तरह से कब्ज़ा कर रखा है और क्षेत्रीय और प्रशासनिक परिवर्तन किए हैं जो तिब्बतियों की पहचान और संस्कृति को बदल देनेवाले हैं।
जनरल नरवणे ने आगे कहा कि चीन द्वारा जारी ताजा श्वेत-पत्र में दावा किया गया है कि तिब्बत प्राचीन काल सेयानी सातवीं शताब्दी से चीन का हिस्सा रहा है, जो अपने आप में ‘गलत है और इतिहास को फिर से लिखने का प्रयास’ है।
उन्होंने तिब्बती मुद्दे की मदद करने के लिए‘ऊर्ध्वाधर एकीकरण‘ और ‘क्षैतिज विस्तार‘ के दो तरफा दृष्टिकोण को अपनाने का सुझाव दिया। ‘ऊर्ध्वाधर एकीकरण‘ दृष्टिकोण को समझाते हुए उन्होंने कहा कि इसमें विचारकों और थिंक टैंकों को शामिल करके संयुक्त राष्ट्र सहित कई प्लेटफार्मों के माध्यम से विश्व स्तर पर तिब्बत मुद्दे को उठाया जाना चाहिए।
उन्होंने ‘क्षैतिज विस्तार‘ को समझाते हुए कहा कि इसके तहत आंदोलन की गति को बनाए रखने के लिए दुनिया भर के लोगों को एकजुट किया जाएगा। इस दृष्टिकोण को दुनिया भर में सामूहिक आवाज़ बनाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि रंगज़ेन आंदोलन गतिशील और प्रभावशाली बना रहे।
व्याख्यान के दौरान उन्होंने कई बार चीन को आड़े हाथों लिया। उन्होंने चीन के दृष्टिकोण की तुलना भारत से करते हुए कहा, ‘भले ही चीन की ताकत बढ़ गई है, लेकिन इसी ताकत में उसकी कमजोरियां छिपी हुई हैं। चीन दबाव और भय को आधार बनाकर काम करता है जबकि भारत सहयोग और विश्वास बनाने के साथ काम करता है।‘
उन्होंने कहा कि चीन की बदमगजी तिब्बत, ताइवान, झिंझियांग और यहां तक कि मंगोलिया तकपर चल रही है। चीन की ग्रे जोन कार्रवाइयों को पहचानना भी जरूरी है। इसके तहत चीन अपनी साइबर ताकतऔर सूचना प्रसारित करने की क्षमताओं का लाभ उठाकर अपने अनकूल के ऐतिहासिक संदर्भों को प्रसारित करता है, नक्शे में हेरफेर करता है और अपनी कपटपूर्ण चालों को कानूनी जामा पहनाता है। इसे कई बार सक्रिय रूप से किया जाता है तो कई बार गुपचुप तरीके का सहारा लिया जाता है।
इसलिए उन्होंने कहा कि अब ‘हिन्द- प्रशांत संरचना का एक नया आकार विकसित करने की जरूरत‘ है।
चीन द्वारा विवादित क्षेत्रों में गांवों को बसाने के बारे में बोलते हुए जनरल नरवणे ने कहा कि विवादित क्षेत्रों में ‘ज़ियाओकांग‘ (मध्यम रूप से समृद्ध) गांवों का निर्माण, भूमि-सीमा कानून की घोषणा और क्षेत्र के देशों का जबरदस्ती शोषणइस बात को रेखांकित करता है कि इस मुद्दे को लेकर गहन जांच और मजबूत प्रतिक्रिया की तात्कालिक आवश्यकता आन पड़ी है।
उन्होंने सुझाव दिया कि चीन की इन कार्रवाइयों का ‘प्रभावी ढंग से मुकाबला करने’ के लिए राजनयिक, कानूनी और अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों को शामिल करते हुए एक समन्वित दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि चीन के आधिपत्य को नियंत्रित करने के लिए हांगकांग और ताइवान के वित्तीय केंद्रों सहित दक्षिण एशियाई देशों को ध्यान में रखते हुए एक नई हिन्द-प्रशांत संरचना को आकार देने की आवश्यकता है।
उन्होंने आगे कहा कि प्रमुख शक्तियां आज चीन का मुकाबला करने के लिए इच्छुक दिखाई देती हैं।जबकि अमेरिका-चीन के बीच प्रतिस्पर्धा हर गुजरते दिन के साथ तेज होती जा रही है। भारत आज वैश्विक मंच पर एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी के तौर पर उभरा है और चीन द्वारा एकतरफा रूप से ‘यथास्थिति’ को बदलने के प्रयासों का दृढ़ता से विरोध करने की स्थिति में है। उन्होंने कहा कि गलवान घटना के बादभारत ने सीमा पर बुनियादी ढांचे को विकसित करने के प्रयासों को तेज कर दिया है और चीन के किसी भी नापाक मंसूबों को विफल करने के लिए अपनी सेना को नए सिरे से तैयार कर लिया है।
जनरल नरवणे ने कहा कि२००८ में बीजिंग ओलंपिक से पहले हुए विरोध-प्रदर्शनों ने तिब्बत में समृद्धि और स्वतंत्रता की झूठी छवि पेश करने के चीनी दुष्प्रचार को उजागर कर दिया। इससे तिब्बतियों का साहस और दृढ़ संकल्प उजागर हुआ जो तिब्बत के लोगों की छिपी हुई शक्ति का संकेत है।‘
उन्होंने कहा कि विकास का चीनी मॉडल का प्रचार बेनकाब हो गया है और उसके दमन की असलियत सामने आ गई है। इन विरोध-प्रदर्शनों ने दुनिया को बताया कि तिब्बत दशकों के चीनी दमन के बावजूद तिब्बत मुद्दा जीवित है। पूर्व सेना प्रमुख ने तिब्बत को पारिस्थितिक बफर भी कहा क्योंकि यह पारिस्थितिक सुरक्षा से संबंधित है।