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तिब्बत राष्ट्रीय जनक्रांति दिवस की 52 वीं वर्षगांठ के अवसर पर परमपावन दलाई लामा का बयान।

March 10, 2011

कम्युनिस्ट चीन के दमन के खिलाफ तिब्बत की राजधानी ल्हासा में 1959 में हुए

तिब्बती जनता के शांति पूर्ण जनक्रांति की आज 52 वीं वर्षगांठ और साल 2008 में

समूचे तिब्बत में शुरु हुए अहिंसक प्रदर्शानों की तीसरी वर्षगांठ है। इस अवसर पर मैं

उन बहादुर पुरुषों एंव महिलाओं को श्रद्धांजलि देना चाहता हूं और उनके लिए प्रार्थना

करना चाहता हूं जिन्होंने तिब्बत के हित के लिए अपनी जान दे दी । मैं उन लोगों

के प्रति भी अपनी हमदर्दी प्रकट करता हूं जो लगातार दमन का सामना कर रहे है

और सभी प्रणियों के कल्याण के लिए प्रार्थना करता हूं।
पिछले 60 साल से भी ज्यादा समय से आजादी से वंचित रहने और भय के

वातावरण में जीने के बावजूद तिब्बती अपने विशिष्ट तिब्बती पहचान और सांस्कृतिक

मूल्यों को बनाए हुए है। इसके फलस्वरुप लगातार आने वाली उन नई पीढियों ने

तिब्बत के आंदोलन को आगे बढाने की साहसिक जिम्मेदारी ली है, जिन्हें आजाद

तिब्बत में रहने का अवसर नहीं मिला है। यह प्रशंसनीय है क्योंकि उन्होंने

तिब्बतियों के लचीलेपन की ताकत को प्रदर्शित किया है।
यह पृथ्वी समूचे मानवता की है और चीन जनवादी गणराज्य ( पीआरसी ) उसके

1.3 अरब जनता का है जिन्हें अपने देश और काफी हद तक दुनिया में क्या हो रहा

है, इसके बारे में साच जानने का हक है । यदि लोगों को पूरी तरह से जानकारी दी

जाए तो वे सहीं एंव गलत का निर्धारण करने में सक्षम होते है। सूचनाओं पर

नियंत्रण एंव प्रतिबंध लगाने से बुनियादी मानवीय मर्यादा का उल्लंघन होता है ।

उदाहरण के लिए चीनी नेता यह समझते है कि कम्युनिस्ट विचारधारा और उसकी

नीतियां सही है । यदि ऐसा है तो उन्हें अपनी इन नीतियों को आत्मविशवास के

साथ सार्वजनिक करना चाहिए औऱ उसकी समीक्षा के लिए तैयार रहना चाहिए।
दुनिया की सबसे ज्यादा जनसांख्या वाला देश चीन, एक उभरता हुआ वैशिवक ताकत

है और उसने जो आर्थिक तरक्की की है में उसकी तारीफ करता हूं। उसके अंदर

मानव प्रगति और विश्व शांति में योगदान करने की भारी क्षमता भी है। लेकिन इसके

लिए चीन को अंतरराष्ट्रीय समुदाय का सम्मान औऱ भरोसा हासिल करना होगा। ऐसे

सम्मान को हासिल करने के लिए चीन के नेताओं को ज्यादा पारदर्शिता लानी होगी,

और अपनी हासिल करने के लिए चीन के नेताओं को ज्यादा पारदार्शिता लानी होगी ,

और अपनी कथनी एंव करनी में अंतर खत्म करना होगा। इसे सुनिशिचत करने के

लिए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और प्रेस की आजादी जरुरी है। सरकार में पारदर्शिता

से भ्रष्टाचार रोकने में मदद मिल सकती है । चीन में राजनितिक सुधारों और ज्यादा

खुलापन की मांग करने वाले बुद्धिजीवियों की संख्या बढती जा रही है। प्रधानमंत्री वेन

जियाबाओं ने भी इन चिंताओं का समर्थन किया है । ये महत्वपूर्ण संकेत है और मैं

इसका स्वागत करता हूं।
चीन जनवादी गणराज्य एक देश है जिसमें कई राष्ट्रीयताएं है और यह भाषाओं एंव

संस्कृतियों की विविधिता से समृद्ध है। हर राष्ट्रीयता की भाषा एंव संस्कृति का

संरक्षण चीन की नीति है और यह बात वहां के संविधान में साफ तौर पर कही गई

है। तिब्बती एकमात्र ऐसी भाषा है जिसने बुद्ध के समूचे उपदेशों को संरक्षित किया है

, जिनमें तर्क और ज्ञानमीमांसा के पाठ भी शामिल है जो हमने भारत के नालंदा

विश्वविधालय से हासिल किए थे। यह ज्ञान की एक ऐसी व्यवस्था है जो ऐसे कारण

औऱ तर्क से संचालित होती है जिसमें सभी प्राणियों के लिए शांति औऱ खुशहाली में

योगदान करने की क्षमता होती है। इसलिए ऐसी संस्कृति के संरक्षण औऱ विकास की

जगह उसका दमन करने की नीति दीर्घालिक तौर पर मानवता के साझे विरासत के

विनाश में ही योगदान करेगी।
चीन सरकार बार- बार यह कहती रही है कि तिब्बत में स्थिरता एंव विकास ही

उसके दीर्घकालिक कल्याण का आधार है। लेकिन चीनी प्रशासन ने अब भी समूचे

तिब्बत में बडी संख्या में सुरक्षा बल तैनात किए है, जिससे तिब्बती लोगों पर

प्रतिबंध बढते जा रहे है। तिब्बती जनता लगातार डर औऱ चिंता के माहौल में जी

रही है। इससे भी बडी बात यह है कि हाल में तिब्बती जनता की बुनियादी

आकांक्षाओं को प्रकट करने वाले कई तिब्बती बुद्धिजीवियों , पर्यावरणविदों औऱ

हस्तियों को सजा दी गई है। उन्हें राज्य सत्ता को उखाड फेंकने के आरोप में जेल में

डाल दिया गया , जबकि वे वास्तव में तिब्बती पहचान औऱ सांस्कृतिक विरासत के

पक्ष में आवाज उठा रहे थे। इस तरह के दमनकारी कदम स्थिरता औऱ सौहार्द  की

जडें काटते है । इसी प्रकार चीन में लोगों के अधिकारों का समर्थन करने वाले

वकीलों , आजाद ख्याल के लेखकों और मानवाधिकार कार्यकार्ताओं को गिरफ्तार

किया गया है। मैं चीनी नेताओं से प्रबल आग्रह करता हूं कि वे इन घटनाओं की

समीक्षा करें औऱ इन कैदियों को तत्काल रिहा किया जाए।
चीन सरकार का दावा है कि दलाई लामा की व्यक्तिगत सुविधाओं और दर्जे के अलावा

तिब्बत में और कोई समस्या नही है। सचाई यह है कि तिब्बती जनता के लगातार

जारी दमन ने मौजूदा सरकारी नीतियों के खिलाफ व्यापक और गहरे असंतोष को

जन्म दिया है। हर तरह के लोग बार -बार अपने असंतोष को प्रकट कर रहे है।

तिब्बत में समस्या है, इससे पता चलता है कि चीनी प्रशासन तिब्बतियों को भरोसा

हासिल करने या उनकी निष्ठा हासिल करने में विफल रहा है। इसकी जगह तिब्बती

जनता को लगातार संदेह और निगरानी के बीच जीना पड रहा है। तिब्बत जाने वाले

चीनी और विदेशी यात्री इस कठोर सचाई की पुष्टि करते है।
इसलिए जैसा कि हम 1970 और 1980 के दशक में निर्वासित तिब्बती प्रतिनिधियों

का तथ्यान्वेषी दल भेजने में सक्षम हुए थे, अब हम फिर इसी तरह से प्रतिनिधियों

के दौरे का प्रस्ताव रखते है। इसके साथ ही, हम सांसदों सहित अन्य स्वतंत्र

अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के प्रतिनिधियों को भी वहां भेजने को प्रोत्साहित करेंगे । यदि

उन्हें ऐसा देखने को मिलता है कि तिब्बत में रहने वाले तिब्बती खुश है तो हम इसे

स्वीकार करने को तैयार रहेंगे।
1950 के दशक के शुरुआती वर्षों में माओं के नेतृत्व में जो यथार्थवाद की भावना

बनी थी उससे तिब्बत के साथ 17 बिंदुओं वाला समझौता हो सका । इसके बाद

1980 के दशक के शुरुआती वर्षों में हू योबांग के समय में एक बार फिर इसी तरह

के यथार्थवाद की भावना देखी गई । यदि इसके बाद भी ऐसी यथार्थवाद की भावना

बनी रहती तो कई अन्य समस्याओं के साथ तिब्बत समस्या का भी आसानी से

समाधान हो जाता । दुर्भाग्य से रुढिवादी विचारों ने ऐसी नीतियों का रास्ता रोक दिया

। इसका परिणाम यह है कि छह दशकों से ज्यादा समय बीत जाने पर भी यह

समस्या अडियल बनी हुई है। तिब्बत का पठार एशिया की प्रमुख नदियों का स्रोत है।

दो ध्रवों के अलावा यह हिमनदियों का सबसे बडा जमावडा है जिससे इसे तीसरा ध्रुव

भी माना जाता है। तिब्बत में पर्यावरण के नष्ट होने से एशिया के बडे हिस्से पर

इसका हानिकारक प्रभाव होगा, खासकर चीन और भारतीय उपमहाद्वीप पर । वहां की

केंद्रीय और स्थानीय सरकारों तथा चीनी जनता को पर्यावरण विनाश को समझना

चाहिए औऱ ऐसे टिकाउ उपाय करना चाहिए जिससे इसे रोका जा सके । मैं चीन से

निवेदन करता हूं कि वह उन लोगों के अस्तित्व का ध्यान रखे जो तिब्बत के पठार

पर होने वाले पर्य़ावराणीय बदलावों से प्रभावित होते है।
तिब्बत मसले को हल करने के अपने प्रयास के तहत हमने परस्पर फायदेमंद

मध्यम मार्ग नीति कि लगातार आगे बढाया है, जिसके तहत चीन जनवादी गणराज्य

के भीतर ही तिब्बती जनता के लिए वास्तविक स्वायत्तता की मांग की गई है। चीन

सरकार के यूनाइटेड फ्रंट वर्क डिपार्टमेंट के अधिकारियों से अपनी बातचीत में हमने

तिब्बती जनता की उम्मीदों और आकांक्षाओं को साफ तौर से विस्तृत रुप से पेश

किया है। लेकिन हमारे वाजिब प्रस्तावों पर कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं मिलने

की वजह से हमारे अंदर यह जिज्ञासा बनी हुई है कि क्या इन बातों को पूरी तरह से

या सही रुप से उच्च नेतृत्व तक पहुंचाया गया है।
प्राचीन काल से ही तिब्बती और चीनी जनता पडोसियों के रुप में रहती आई है। यदि

हमारे अनसुलझे मतभेदों की वजह से इस युगों पुरानी दोस्ती पर असर पडता है तो

यह एक गलती होगी। विदेशों में रहने वाले तिब्बती और चीनी लोगों के बीच अच्छे

संबंधों को बढावा देने के लिए विशोष प्रयास किए जा रहे है औऱ मुझे इस बात की

खुशी है कि इससे हमारे बीच बेहतर समझ औऱ दोस्ती बढाने में मदद मिली है।

तिब्बत के भीतर रहने वाले तिब्बती लोगों को भी हमारे चीनी भाइयों एंव बहनों के

साथ अच्छे संबंध विकसित करने चाहिए ।
हाल के हफ्तों में उत्तर अफ्रीका और कई अन्य जगहों पर लोकतंत्र और आजादी के

लिए उल्लेखनीय अहिंसक संघर्ष देखे गए है। मेरा आहिंसा और जनशाक्ति में अटूट

विश्वास है और इन घटानाओं ने एक बार फिर यह दिखाया है कि प्रतिबद्ध अहिंसक

कार्यां से वास्तव में सकारात्मक बदलाव लाया जा सकता है। हम सबको यह उम्मीद

है कि इन प्रेरणादायी बदलावों से उन देशों की जनता को वास्तविक आजादी ,

खुशहाली और समृद्धि हासिल होगी।
मेरे दिल में बचपन से ही एक आकांक्षा रही है कि तिब्बत के राजनीतिक एंव

सामाजिक ढांचे में सुधार हो औऱ उन कुछ सालों में जब मैं तिब्बत में प्रभावी तौर

पर सत्तता में रहा, कुछ बुनियादी बदलाव करने में सक्षम हुआ। हालांकि , मैं इसे और आगे बढाने में सक्षम नहीं हो पाया , लेकिन निर्वासन में आने के बाद भी मैंने ऐसा करने का हर संभव प्रयास किया । आज , निर्वासित तिब्बतियों के चार्टर (राजपत्र) के ढांचे के भीतर राजनीतिक नेतृत्व कालोन ट्रिपा और जन प्रतिनिधियों का चुनाव सीधे जनता द्वारा होता है। हम निर्वासन में लोकतंत्र को लागू करने में सक्षम रहे है जो एक खुले समाज के मानक के अनुसार है।
1960 के दशक से ही मैं लगातार इस बात पर जोर देता रहा हूं कि तिब्बतियों को एक ऐसे नेता की जरुरत है जिनका तिब्बती जनता के द्वारा स्वतंत्र रुप से चुनाव हो और जिसे मैं सत्ता सुपुर्द कर सकूं । अब निशिचत तौर पर ऐसा समय आ गया है कि हम इसे प्रभाव में ला सकें । चौदहवीं निर्वासित तिब्बती संसद के 14 मार्च से शुरु हो रहे ग्यारहवें सत्र में मैं औपचारिक रुप से यह प्रस्ताव रखूंगा कि निर्वासित तिब्बतियों के चार्टर (राजपत्र) में ऐसे जरुरी बदलाव किए जाएं जिसमें मेरी औपचारिक सत्ता निर्वाचित नेता को सौंपने की बात हो।
जबसे मैंने अपने इस इरादे को साफ तौर पर जाहिर किया है, मुझसे तिब्बत औऱ बाहर के लोगों ने लगातार और प्रबल अनुरोध किया कि मै तिब्बती जनता को राजनीतिक नेतृत्व प्रदान करता रहूं। लेकिन सत्ता सौंपने की मेरी इच्छा को कहीं से भी यह नहीं समझना चाहिए कि मैं जिम्मेदारी से भाग रहा हूं। यह दीर्घकालिक तौर पर तिब्बतियों के लिए फायदेमंद होगा। यह इसलिए भी नहीं है कि मैं हताश हूं। तिब्बतियों ने मुझ पर ऐसा भरोसा और विश्वास किया है जिसकी वजह से अन्य तिब्बतियों की तरह मैं भी तिब्बत के हित के लिए अपनी भूमिका निभाने के लिए प्रतिबद्ध हूं। मुझे विश्वास है कि धीरे -धीरे लोग मेरे इरादे समझेंगे , मेरे निर्णय का समर्थन करेंगे और इस प्रकार इसे लागू होने देंगे ।
मै इस अवसर पर उन विभिन्न देशों के नेताओं , सांसदों , बुद्धिजीवियों और तिब्बत समर्थक समूहों की दयालुता को याद करना चाहूंगा जिन्होंने न्याय को संजोए रखा और तिब्बती जनता को अटल रुप से अपना समर्थन दे रहे है। खासतौर से हम हमेशा ही भारत की जनता , यहां की सरकार और राज्य सरकारों की दयालुता और लगातार समर्थन को याद रखेंगे जिन्होंने तिब्बतियों , उनकी संस्कृति एंव धर्म के संरक्षण और उसको बढावा देने मे उदारता से मदद की है और निर्वासित तिब्बती जनता का कल्याण सुनिशिचत किया है । इन सभी का मैं हृदय से आभार प्रकट करता हूं। सभी प्राणियों के कल्याण और खुशहाली की कामना के साथ ।
दलाई लामा ,
10 मार्च ,2011


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