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निर्वासन में तिब्बती लोगों के लिए भारत सरकार व जनता का समर्थन एवं सहयोग सबसे सर्वश्रेष्ठ रहा है – केंद्रीय तिब्बती प्रशासन के राष्ट्रपति

December 26, 2019

कोलकाता, पश्चिम बंगाल। सीटीए के राष्ट्रपति डॉ लोबसांग सांग्ये ने कहा कि किसी भी देश या सरकार ने तिब्बतियों के लिए जितना किया उससे कहीं अधिक भारत ने किया है। राष्ट्रपति सांगेय 26 दिसंबर को कोलकाता में आयोजित ऑल इंडिया कंवेशन ऑन तिब्बत की 60वीं वर्षगांठ पर आयोजित समारोह में बोल रहे थे।

लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित निर्वासित तिब्बती नेता ने कहा कि तिब्बत के अंदर की स्थिति अभी भी विकट है और आत्मदाह की घटनाएं किसी भी तरह से रुक नहीं रही है।
उन्होंने कहा, ‘पिछले चार वर्षों में स्वतंत्रता सूचकांक में तिब्बत को सीरिया के बाद पूरी दुनिया में दूसरे सबसे कम आजाद क्षेत्र के रूप में सूचीबद्ध किया गया है। बीजिंग गए पत्रकारों का दावा है कि उत्तर कोरिया की तुलना में तिब्बत की यात्रा करना उनके लिए अधिक कठिन है। यह मुख्य कारण है कि तिब्बत के अंदर की स्थिति को अपेक्षित कवरेज नहीं मिलता है। परिणामस्वरूप, आत्मदाह की घटनाएं वहां बढ़ रही हैं।‘
पीएम मोदी के मेक इन इंडिया पहल पर टिप्पणी करते हुए राष्ट्रपति सांगेय ने कहा कि वास्तविक ‘मेक इन इंडिया’ तिब्बत मुक्ति साधना में है।
‘मेक इन इंडिया का मूल तिब्बती आंदोलन है क्योंकि हम जिस धर्म को मानते हैं वह बौद्ध धर्म है और तिब्बती उसकी लिपि है। तिब्बती नेता भारत में पैदा हुए, शिक्षित और प्रशिक्षित हुए। तिब्बतियों द्वारा पालन की जाने वाली अहिंसा की अवधारणा भारत से निकली है और जिस संस्कृति का हम अनुसरण करते हैं वह भारत की संस्कृति से बहुत गहरे रूप में प्रभावित है। परमपावन दलाई लामा भारत के सबसे लंबे समय के अतिथि हैं। उन्होंने कहा कि हम चेला हैं और भारत हमारा गुरु हैं।‘
राष्ट्रपति ने याद दिलाया कि अगर मेक इन इंडिया को सफल बनाना है तो पहले तिब्बती आंदोलन को सफल बनाना होगा। उन्होंने चेतावनी दी कि इस संबंध में चीन सरकार पर भरोसा नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि संभव है कि वह अपने सभी पड़ोसी देशों पर आक्रमण कर सकता है और कब्जा कर सकता है जैसा कि उसने तिब्बत के साथ किया था।

राष्ट्रपति डॉ लोबसांग सांगेय ने भारत और चीन के बीच 1954 में हस्ताक्षरित प्रसिद्ध पंचशील समझौते के प्रकरणों को याद दिलाकर सभा को समझाया कि चीन पर भरोसा क्यों नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि तथाकथित व्यापार मार्ग समझौता एक तरह से इस बात की चेतावनी थी कि कयामत आनेवाली है।

राष्ट्रपति सांगेय ने कहा कि ‘ऐसा हुआ कि पंचशील समझौते के रूप में 1959 में तिब्बत पर कब्जे और 1962 के भारत-चीन युद्ध की भविष्यवाणी कर दी गई थी। क्योंकि पंचशील पर 1954 में हस्ताक्षर किए गए थे और चीन चाहता था कि यह 5 साल तक चले, तिब्बत पर कब्जा करने में उसे पांच साल तैयारी करने की जरूरत थी। हालांकि बातचीत में समझौते को अंततः आठ साल के लिए प्रभावी बनाया गया और 8 साल बाद 1962 में चीन ने भारत पर हमला कर दिया था।

तिब्बत और भारत के बीच इम्तहान और अशांति के बावजूद उनके बीच के ऐतिहासिक बंधन बरकरार रहा और भारत ने तिब्बती मुद्दे को समर्थन देने में अन्य सभी देशों को पीछे छोड़ दिया।

राष्ट्रपति सांगेय ने अपने मुख्य संबोधन में जयप्रकाश नारायण, राम मनोहर लोहिया, दीनदयाल उपाध्याय, अटल बिहारी वाजपेयी, जॉर्ज फर्नांडीस, जेबी कृपलानी, और डॉ आम्बेडकर जैसे भारतीय नेताओं को श्रद्धांजलि अर्पित की जिन्होंने तिब्बत मुद्दे का समर्थन किया था।

उन्होंने कहा कि जब तक तिब्बत का मुद्दा हल नहीं होता, भारत और इसके पड़ोसी देशों के लिए परेशानी और चुनौतियां बनी रहेंगी।

राष्ट्रपति सांगेय ने आगे जोड़ा कि तिब्बत का मामला दुनिया की अंतरात्मा की आवाज के लिए लिटमस टेस्ट है। उन्होंने कहा कि तिब्बत सच्चाई की ताकत रखता है।

सीटीए के राष्ट्रपति डॉ लोबसांग सांगेय ने कहा कि सत्य की यह ज्योति नष्ट नहीं होगी और तब तक जलती रहेगी जब तक कि तिब्बत के साथ न्याय नहीं हो जाता।‘


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