tibet.net / धर्मशाला। १७वीं निर्वासित तिब्बती संसद की डिप्टी स्पीकर डोल्मा त्सेरिंग ने कल ०८ नवंबर को सेना के सेवानिवृत्त मेजर जनरल जी.डी. बख्शी की पुस्तक का विमोचन किया और तिब्बती प्रदर्शन कला संस्थान (टीपा) में भारत-तिब्बत सहयोग मंच द्वारा तिब्बत पर आयोजित वार्ता में भाग लिया।
डिप्टी स्पीकर ने ‘भारत-तिब्बत-चीन; २०२१ के नए परिप्रेक्ष्य में’ के मुख्य भाषण में कहा कि चीन द्वारा तिब्बत पर आक्रमण भारत और चीन के बीच सीमा विवाद का मूल कारण है। इससे पहले स्वतंत्र तिब्बत इन दोनों देशों के बीच एक बफर राज्य के रूप में अवस्थित था। डिप्टी स्पीकर ने कहा कि ‘तिब्बत इस पूरे परिदृश्य का केंद्र है, तिब्बत की गंभीर स्थिति को सुलझाए बिना यह विवाद हल नहीं हो सकता है।’
तिब्बत की वर्तमान गंभीर स्थिति पर प्रकाश डालते हुए, डिप्टी स्पीकर ने उल्लेख किया कि तिब्बत का २००० से अधिक वर्षों का लिखित इतिहास है और चीन के कब्जे से पहले यह एक स्वतंत्र राष्ट्र था। उन्होंने कहा, ‘चूंकि संयुक्त राष्ट्र में तिब्बत का कोई प्रतिनिधित्व नहीं था, दुनिया ने तिब्बत पर कब्जे को एकमात्र दर्शक की तरह देखा और चीन को तिब्बत पर कब्जा करने, आक्रमण करने और नष्ट करने दिया।’ उन्होंने पूछा कि क्या हम तिब्बत में रह रहे तिब्बतियों के जीवन में सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं। मुक्त दुनिया में रहने वाले तिब्बती उनके प्रवक्ता हैं। उन्होंने तिब्बतियों से वैश्विक मंच पर चीन पर दबाव बनाने के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय से अधिक समर्थन हासिल करने के लिए भी अपील की।
तिब्बत में १५५ तिब्बतियों के आत्मदाह पर सहानुभूति व्यक्त करते हुए डिप्टी स्पीकर ने बिना किसी बुनियादी मानवाधिकार के तिब्बत के अंदर तिब्बतियों की विकट स्थिति का चित्रण किया और कहा, ‘यह (आत्मदाह) चीन के प्रति किसी तरह की घृणा पाले बिना परम पावन दलाई लामा को वापस तिब्बत में देखने के लिए तरस रहे तिब्बतियों की आकांक्षाओं की अभिव्यक्ति है और तिब्बत के पवित्र बौद्ध दृष्टिकोण से बलिदान का सर्वोच्च रूप है। वे हृदय में करुणा के साथ अपने शरीर को ज्वाला में अर्पित कर रहे हैं।’ उन्होंने आगे कहा कि चीनी सरकार ने मूल समस्या का समाधान करने की जगह परम पावन दलाई लामा पर दोष मढ़कर हमेशा एक आसान रास्ता निकाला है। इसके अलावा, चीनी सरकार वास्तविक मुद्दे को सुलझाए बिना अपनी अत्याचारी नीतियों को मजबूत करना जारी रखे हुए है और यहां तक कि परम पावन की तस्वीर रखने को भी आपराधिक कृत्य बना दिया है।
तिब्बत विश्व की प्रमुख नदियों का स्रोत है। इसके संदर्भ में डिप्टी स्पीकर ने पर्यावरण के दृष्टिकोण से तिब्बती पठार के महत्व को समझाया और कहा कि चीन ने जल संसाधन को हथियार बनाकर दुनिया को नियंत्रित करने के उद्देश्य से तिब्बत की नदियों पर सर्वाधिक संख्या में बांध बनाए हैं। उन्होंने जलवायु सम्मेलन कॉप-२६ में चीन की अनुपस्थिति और चीन में उत्पन्न होने वाले कोविड-१९ के प्रसार की आलोचना की। उन्होंने आगे कहा कि चीन माउंट एवरेस्ट पर ५जी टावर लगा रहा है जबकि दुनिया कोविड-१९ की वजह से हो रही कठिनाइयों से जूझ रही है। परम पावन दलाई लामा पर निराधार आलोचनाओं का लेबल लगाने और साथ ही परम पावन के पुनर्जन्म प्रक्रिया में हस्तक्षेप करने और उनकी संस्था को हथियाने के लिए चीनी सरकार तरह तरह का पाखंड कर रही है। तिब्बत पर कब्जे के ६० वर्षों के बाद भी चीन तिब्बतियों का दिल जीतने में विफल रहा है, क्योंकि परम पावन हर तिब्बती के अखंड ह्रदय सम्राट हैं।
श्री संजय पराशर ने तिब्बतियों के साहस की सराहना की और चीन की विस्तारवादी नीति और चीन से उत्पन्न कोविड-१९ से हुई तबाही को उजागर करने की आवश्यकता पर जोर दिया। इस अवसर पर मेजर जनरल जी.डी. बख्शी ने बताया कि कैसे उन्हें तिब्बतियों और तिब्बत के मुद्दे से परिचित कराया गया और उन्होंने सराहना की कि कैसे तिब्बतियों ने चीन की कम्युनिस्ट सरकार के खिलाफ लड़ाई लड़ी। तिब्बत से बहने वाली नदियों के महत्व पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने दावा किया कि अगर भविष्य में कोई युद्ध होता है तो वह पानी को लेकर होगा।
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि पूर्व मेजर जनरल जी.डी. बख्शी, विशिष्ट अतिथि श्री संजय पराशर, निर्वासित तिब्बती संसद की डिप्टी स्पीकर डोल्मा त्सेरिंग, सांसद दावा त्सेरिंग, गैर सरकारी संगठनों के प्रमुख और आम जनता उपस्थित रहे। डिप्टी स्पीकर डोल्मा त्सेरिंग ने सेवानिवृत्त मेजर जनरल जी.डी. बख्शी को ग्रीन तारा की एक थंगका पेंटिंग भेंट की, जबकि भारत-तिब्बत मैत्री संघ के पूर्व अध्यक्ष श्री अजय सिंह मनकोटिया ने श्री संजय पराशर को बुद्ध की थंगका पेंटिंग भेंट की। डिप्टी स्पीकर को मेजर जनरल जी.डी. बख्शी द्वारा लिखित पुस्तकें भेंट की गईं और बदले में डिप्टी स्पीकर ने तिब्बती संसद द्वारा प्रकाशित पुस्तकें मेजर जनरल जी.डी. बख्शी और श्री संजय पराशर को भेंट कीं।