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पचपनवें तिब्बती जनक्रंति दिवस का पैगाम

April 13, 2014

प्रो0 श्यामनाथ मिश्र

Shyamnath jiतिब्बती जनक्रांति दिवस अर्थात् 10 मार्च को हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कई प्रकार के आयोजन किए गए। वर्ष 2014 में 55वाॅं तिब्बती जनक्रांति दिवस था। इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रमों में तिब्बत समर्थक संगठनों एवं लोगों ने चीन सरकार द्वारा तिब्बतियों पर किए जा रहे अत्याचार की कठोर शब्दों में निंदा करते हुए तिब्बत समस्या के समाधान हेतु अपने संघर्ष को ज्यादा प्रभावी बनाने का संकल्प लिया। तिब्बत में जारी अत्याचार के कारण ही गत दो वर्षों में 129 तिब्बतियों ने आत्मदाह कर चुके है। अपने ही हाथों अपने ही पूरे शरीर में आग लगाकर जलते-तड़पते शहीद हो चुके है।

चीन सरकार के अमानवीय व्यवहार से तंग आकर तथा विरोध करने के सारे उपाय बेकार हो जाने पर तिब्बती आत्मदाह कर रहे हैं। तिब्बती आंदोलनकारी चाहते हैं कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चीन सरकार की अमानवीय साम्राज्यवादी नीति को समाप्त करने के ठोस प्रयास किए जायें। तिब्बती जनक्रांति दिवस को भी यह मांग प्रमुखता से सामने आई।

तिब्बत के अंदर और अन्य देशों में भी पीडि़त तिब्बती आंदोलनकारी आत्मदाह करने लगे हैं। ऐसी घटनायें विचलित करने वाली हैं। परम पावन दलाई लामा जी तथा तिब्बत की निर्वासित सरकार के प्रधानमंत्री (सिक्योंग) डाॅ. लोबसंग संग्ये बहुत ही दुखी हृदय से लगातार अपील कर रहे हैं कि तिब्बती आंदोलनकारी आत्मदाह नहीं करें। उनके अनुसार भगवान बुद्ध के बताए मार्ग पर चलनेवाले तिब्बती आंदोलनकारी शांति-अहिंसा के मुल्यों से जुड़े रहें। बौद्ध दर्शन में अपने प्रति की गई हिंसा भी गलत है। लेकिन इन करूणापूर्ण अपीलों के बावजूद आंदोलनकारी तिब्बतियों द्वारा आत्मदाह उनकी बेचैनी तथा तिब्बत की बदहाली का ही प्रमाण है।

भारत क्योकि तिब्बत का पड़ोसी है, इसलिए तिब्बत समस्या के समाधान में भारत को महत्वपूर्ण भूमिका निभानी है। परमपावन दलाई लामा जी भारत को तिबबत का गुरू मानते हैं, क्योकि बौद्ध दर्शन भारत से ही तिब्बत पहुंचा था। इस प्रकार तिब्बती मामले में पड़ोसी के साथ ही भारत को गुरू की भी भूमिका निभानी है। अभी भारत में सोलहवीं लोकसभा के लिए आमचुनाव होने हैं। इस समय तिब्बत के प्रश्न को जोरदार तरीके से उठाना होगा। तिब्बत में मानवाधिकारों एवं अंतर्राष्ट्रीय कानूनों की चीन सरकार द्वारा बर्बरतापूर्वक उपेक्षा की जा रही है। ऐसे में भारतीय राजनेताओं और राजनीतिक दलों को तिब्बत के पक्ष में और भी निर्णायक तरीके से सामने आना होगा। तिब्बती जनक्रांति दिवस के अवसर पर इस तथ्य को बार-बार रेखांकित किया गया।

कई अंतर्राष्ट्रीय संस्थायें तिब्बत के पक्ष में चीन सरकार पर अपने दबाव बढ़ा रही हैं। उनकी नज़र में चीन सरकार बेनकाब हो चुकी है। तिब्बत में उसके द्वारा किए जा रहे तथाकथित विकास एवं संपन्नता की कलई खुल चुकी है। विकास और संपन्नता के नाम पर चीन सरकार तिब्बत में तिब्बतियों को ही साजिशपूर्वक अल्पसंख्यक बना रही है। चीनी मूल के लोगों की संख्या काफी बढ़ा दी गई है और तिब्बती जीवन के सभी महत्वपूर्ण क्षेत्रों में एवं पदों पर उनका ही वर्चस्व कायम हो चुका है। यह तिब्बतियों की दोहरी गुलामी है। चीन सरकार के बाद चीन के लोगों की भी गुलामी अपने घर में ही गुलाम बने रहना अत्यन्त अलोकतांत्रिक, कष्टप्रद तथा पाशविक स्थिति है। चीन सरकार के चंगुल से तिब्बत को मुफत कराकर ही इस स्थिति से छुटकारा पाया जा सकता है। यह है तिब्बत की पूर्ण आजादी का मार्ग। तिब्बत समर्थक संगठन तिब्बत की पूर्ण आजादी के पक्ष में ही हैं।

अन्य मार्ग है तिब्बत की वास्तविक स्वयत्तता का। परमपावन दलाई लामा जी तथा तिब्बत की निर्वासित सरकार के शब्दों में यह मध्यम मार्ग है। चीन सरकार की संप्रभुता का आदर करते हुए चीनी संविधान एवं कानून के अनुरूप तिब्बत की वास्तविक स्वायत्तता। इससे तिब्बत में धर्म, संस्कृति, प्राकृतिक संसाधन, भाषा, पर्यावरण, दर्शन तथा लोकतांत्रिक मुल्यों की सुरक्षा हो सकेगी। तिब्बती जनक्रांति दिवस को तिब्बत की वास्तविक स्वायत्तता की मांग फिर से की गई।

चीन सरकार को चाहिए कि वह इस मांग पर गंभीरतापूर्वक विचार करे। इस मांग को मान लेने से चीन की अपनी छवि में काफी सुधार होगा। इससे विश्वशांति, विशेषकर एशिया में शांति का वातावरण मजबूत होगा। तिब्बत को वास्तविक स्वायत्तता देकर चीन सरकार अपने ही संविधान एवं कानून का सम्मान करेगी।
इस समय तिब्बत समर्थक संगठन स्वयं को पहले की अपेक्षा ज्यादा मुख्यवस्थित, सशक्त एवं प्रभावी बनाने में लगे हैं। आपसी तालमेल बढ़ाकर तथा एकजुट होकर संघर्ष करने की नीति ने उनमें नई जान डाल दी है। आए दिन समाचार माध्यमों में इस विषय की व्यापक चर्चा हो रही है। तिब्बत को स्वतंत्रता या स्वायत्तता। यह प्रश्न मीडिया में प्रमुखता से छाने लगा है। तिब्बती जनक्रांति दिवस के समारोहों में मीडियाकर्मियों की भारी उपस्थिति ने साबित कर दिया है कि चीन सरकार द्वारा तिब्बत के संबंध में मनगढ़ंत अफवाहों से सबका विश्वास उठ चुका है। स्वतंत्र निष्पक्ष एवं निर्भीक समाचार माध्यमों के प्रतिनिधिमंडल तथा ऐसे ही अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के विशेषज्ञदल तिब्बत में भेजने की मांग उठने लगी है। इनकी रिपोर्टें तिब्बत की वास्तविक स्थिति से परिचित करायेंगी। परिणामतः चीन सरकार पर चैतरफा दबाव बढ़ेगा और तब तिब्बत को वास्तविक स्वायत्तता जरूर मिलेगी अन्यथा वास्तविक स्वायत्तता मिलने में देरी से तिब्बत की पूर्ण आजादी की मांग मजबूत होगी पचपनवें तिब्बत जनक्रांति दिवस का एक संदेश यह भी है।

प्रो0 श्यामनाथ मिश्र, तिब्बत देश सम्पादक /पत्रकार एवं अध्यक्ष, राजनीति विज्ञान विभाग, खेतड़ी (राजस्थान)


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