
थेकचेन चोलिंग, धर्मशाला, हिमाचल प्रदेश, भारत, २४ मई २०२४। आज २४ मई की सुबह परम पावन दलाई लामा ने एमोरी विश्वविद्यालय और उससे संबद्ध संस्थानों से आए लगभग २०० शिक्षकों और छात्रों से मुलाकात की। ये लोग ‘चिंतनशील साधना के प्रभाव की खोज’ विषय परआयोजित सम्मेलन में भाग लेने के लिए धर्मशाला आए हुए हैं। एमोरी कम्पैशन सेंटर के कार्यकारी निदेशक गेशे लोबसांग तेनजिन नेगी ने इस कार्यक्रम का परिचय दिया।
उन्होंने परम पावन से मुखातिब होते हुए अपने परिचयात्मक उद्बोधन की शुरुआत की, ‘परम पावन, एमोरी विश्वविद्यालय और दलाई लामा ट्रस्ट के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित इस सम्मेलन में हमें आमंत्रित करने के लिए मैं यहां उपस्थित सभी लोगों की ओर से आपके प्रति आभार व्यक्त करना चाहता हूं।‘
हमारे बीच एमोरी विश्वविद्यालय के संकाय सदस्य, कर्मचारी और छात्र; एमोरी-तिब्बत साइंस इनिशिएटिव (ईटीएसआई) के छात्र, शिक्षक और कर्मचारी; सामाजिक, भावनात्मक और नैतिक शिक्षा (एसईई लर्निंग)कार्यक्रमों का पालन करने वाले तिब्बती शिक्षक और छात्र के साथ ही अन्य पर्यवेक्षक और प्रतिभागी भी उपस्थित हैं।‘
हमारे बीच पहली बार यह हो रहा है कि आधुनिक विज्ञान का व्यवस्थित रूप से अध्ययन करने वाले तिब्बती मठवासी विद्वान अपनी साधना के क्षेत्र में चिंतन और अपने शोध के आधार पर मिले अनुभवों के परिणाम प्रस्तुत कर रहे हैं। यह एक ऐतिहासिक घटना है। यह लगभग २० साल पहले तिब्बती मठवासी शिक्षा केंद्रों में विज्ञान को स्थान दिलाने के आपके दूरदर्शी निर्णय का फल है। विज्ञान अब तिब्बती मठवासी शिक्षा का अभिन्न अंग बन गया है। इस शिक्षा के परिणामस्वरूप, भिक्षु और भिक्षुणियां वैज्ञानिक सोच के साथ आगे आ रही हैं।‘
एमोरी विश्वविद्यालय के डीन डॉ़ बारबरा क्राउथमर को कार्यक्रम का संचालन सौंपने से पहले मैं टेम्पलटन फाउंडेशन के उपाध्यक्ष डेविड नासर और टेम्पलटन फाउंडेशन के कार्यकारी निदेशक जॉन कनिंघम का परिचय देना चाहूंगा। हम उनकी यहां पर उपस्थित होने और पिछले दस वर्षों से ईटीएसआई कार्यक्रम के लिए फाउंडेशन को समर्थन प्रदान करने को लेकर उनके आभारी हैं।‘ डॉ. नेगी ने बताया कि तिब्बती संस्कृति, बौद्ध दर्शन और बौद्ध मन के विज्ञान का अध्ययन करने वाले एमोरी के छात्र; ईटीएसआई के छात्र और तिब्बती स्कूली बच्चों में से प्रत्येक से एक-एक बच्चे परम पावन से प्रश्न पूछेंगे।

एमोरी विश्वविद्यालय की ओर से डॉ. बारबरा क्राउथैमर ने परम पावन को उनकी दूरदर्शिता और करुणा के लिए धन्यवाद दिया। इस पर परम पावन ने उत्तर दिया, ‘आज मेरे पास कहने के लिए कुछ खास नहीं है। बौद्ध धर्म के अध्ययन से हमें मनोविज्ञान, मन और भावनाओं के कामकाज के बारे में बहुत सारी जानकारियां मिलती हैं। जब लोग धर्म के बारे में बात करते हैं, तो वे आम तौर पर आस्था की बात करते हैं। धर्म में दिए गए तथ्यों की जांच करने के तरीकों की बात नहीं करते। हालांकि नालंदा परंपरा आलोचनात्मक, विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण अपनाने पर जोर देती है और जब मन के अध्ययन की बात आती है तो इसके विद्वान इस मुद्दे पर गहरा अध्ययन करते हैं।‘
जब भारतीय आचार्य शांतरक्षित आठवीं शताब्दी में तिब्बत पहुंचे तो उन्होंने पहचाना कि तिब्बतियों में गहन विचार करने की क्षमता है। यह हमारे प्रति उनकी करुणा का एक पैमाना था। ‘मैं धर्मनिरपेक्ष नैतिकता के बारे में बात करना पसंद करता हूं। इसमें जो चीज महत्वपूर्ण है, वह यह है कि उन्हें कोई भी व्यक्ति चाहे वे धार्मिक हों या नहीं, अपना सकता है। इसमें अहम मुद्दा यह पता लगाना है कि मन की शांति कैसे प्राप्त की जाए। बौद्धों को यह भी समझना होगा कि अनुष्ठानों का आयोजन करना महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि अहम यह है कि क्या इससे हम दूसरों को और खुद को मन की शांति प्रदान कर सकते हैं। और ऐसा करने का तरीका मन का उपयोग करना है।‘
वैसे तो मठवासी पाठ्यक्रम में हम चार बौद्ध दार्शनिक स्कूलों के बारे में पढ़ते हैं। लेकिन जब हम दूसरे लोगों के साथ बातचीत करते हैं तो यह बात करना अधिक व्यावहारिक है कि हमारा मन और हमारी भावनाएं कैसे काम करती हैं। यह जनहित की बात है। अगर हम दूसरे लोगों की मदद करना चाहते हैं तो हमें इस बात पर चर्चा करनी चाहिए कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से कैसे विश्राम किया जा सकता है और किस तरीके से मन की शांति प्राप्त की जा सकती है।‘

एमोरी विश्वविद्यालय के एक छात्र ने परम पावन से पूछा कि आज की दुनिया में उम्मीद को कैसे कायम रखा जाए। परम पावन ने उत्तर दिया, ‘अक्सर हमारे मन में कई तरह की अपेक्षाएं होती हैं, लेकिन हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि मन में आई अपेक्षाएं बुरी और अच्छी दोनों ही तरह की हो सकती हैं। हमें अपनी समस्याओं का समाधान करने के लिए अपनी बुद्धि का उपयोग करना होगा।
हमें यह परखना होगा कि वास्तव में क्या हो रहा है। कभी-कभी हम समाधान की तलाश में धर्म की ओर रुख कर सकते हैं, लेकिन ध्यान रहे कि अपनी बुद्धि और तर्क करने की क्षमता का उपयोग करना अधिक कारगर साबित होता है।
उन्होंने आगे कहा, ‘जब हम मठों में औपचारिक शास्त्रार्थ करते हैं तो परंपरा के अनुसार चुनौती देने वालों के लिए अपने दावों के समर्थन में शास्त्रों से उद्धरण प्रस्तुत करना होता है। शास्त्रों से उनकी बात साबित हो जाने पर बचाव पक्ष के विद्वान अपना सम्मान प्रकट करने के लिए अपनी टोपियां उतार देते हैं। लेकिन फिर जवाब देते हैं कि जो उद्धृत किया गया है वह तार्किक रूप से उचित नहीं है। इसकी बजाय, वे घोषणा करते हैं कि आलोचनात्मक क्षमताओं का उपयोग करना महत्वपूर्ण है।‘
उन्होंने कहा,’किसी भी स्थिति की वास्तविकता का आकलन करने के लिए वैज्ञानिक दृष्टिकोण एक उत्कृष्ट उपकरण है। नालंदा परंपरा भी हमें सिखाती है कि शास्त्रों का सहारा लिए बिना कैसे विश्लेषण और जांच-परख की जाए।‘
ईटीएसआई कार्यक्रम के एक भिक्षु ने पूछा कि विज्ञान का अध्ययन करने वाले भिक्षु समाज में किस प्रकार योगदान दे सकते हैं। परम पावन ने उत्तर दिया:- ‘अध्ययन का उद्देश्य दूसरों की बेहतर सेवा करने में सक्षम होना है। जैसा कि मैंने पहले ही कहा है, हमें अपनी बुद्धि का उपयोग कारण और तर्क के साथ करना चाहिए। बेशक हम पुस्तकों को पढ़ने से मन के बारे में बहुत कुछ सीखते हैं, लेकिन हमें यह समझना चाहिए कि अगर हम अपने मन की वैज्ञानिक तरीके से जांच-परख करेंगे तो हम और अधिक विस्तार और गहनता से सीखेंगे।‘
यह देखते हुए कि परम पावन धर्मनिरपेक्ष नैतिकता की सराहना को प्रोत्साहित करने के लिए उत्सुक हैं और उनका सार करुणा है, तिब्बती चिल्ड्रन विलेज (टीसीवी) की एक छात्रा ने पूछा कि करुणा की प्रकृति क्या है।
परम पावन ने उससे कहा, ‘विभिन्न परंपराएं हमें अधिक विचारशील और शिष्ट बनना सिखाती हैं। लेकिन करुणा दूसरों के प्रति संवेदनशील चिंता के संदर्भ में होती है। धर्मनिरपेक्ष नैतिकता हमें समाज का मार्गदर्शन करने का साधन प्रदान करती है, लेकिन व्यक्तिगत स्तर पर हर कोई सौहार्दपूर्ण व्यवहार की सराहना करता है।‘
इस अवसर पर ईटीएसआई द्वारा प्रकाशित दो विज्ञान पुस्तकें परम पावन को भेंट की गईं। आगंतुक प्रतिभागी गण अपने-अपने समूहों में परम पावन के चारों ओर एकत्रित हुए और तस्वीरें खिंचवाईं।
