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परम पावन दलाई लामा ने तिब्बती नववर्ष ‘लोसार’ पर तिब्बतियों को शुभकामनाएं दीं

February 10, 2024


tibet.net
धर्मशाला। तिब्बत के सर्वोच्च आध्यात्मिक धर्मगुरु परम पावन दलाई लामा ने पारंपरिक तिब्बती नववर्ष ‘लोसर २१५१- वुड-ड्रैगन वर्ष’ के अवसर पर तिब्बत में रहनेवाले तिब्बतियों और निर्वासित तिब्बतियों को अपनी हार्दिक शुभकामनाएं दीं।

परम पावन दलाई लामा का तिब्बतियों को लोसार पर संदेश :

मैं तिब्बत के अंदर और निर्वासन में रहने वाले अपने सभी तिब्बती भाई-बहनों को इस लोसार पर नववर्ष की शुभकामनाएं देता हूं और ताशी देलेक कहना चाहता हूं!
निर्वासन में अनेक कठिनाइयों से गुजरने के बावजूद और दमनकारी कम्युनिस्ट चीनी शासन के तहत तिब्बत के अंदर के हमारे लोग मेरे नेता रहते सुरक्षित रहे हैं। निर्वासन में अनेक कठिनाइयों से गुजरने के बावजूद और तिब्बत के अंदर दमनकारी कम्युनिस्ट चीनी शासन के तहत रहने के बावजूद हमारे लोगों की आस्था और आकांक्षा मेरे नेता रहते कम नहीं हुई हैं।
हालांकि कम्युनिस्ट चीनी शासकों की ‘(तथाकथित) शांतिपूर्ण मुक्ति’ इच्छा रही है कि हम तिब्बती अपने धार्मिक विश्वास को भूल जाएं। लेकिन हमने अपने विश्वासों और अपनी संस्कृति को और भी मजबूती से पकड़ रखा है- यह बहुत अच्छी बात रही है। आज न केवल तिब्बतियों, बल्कि कुछ चीनियों के बीच भी बौद्ध धर्म में नए सिरे से रुचि बढ़ी है। आज जब हम बारीकी से विचार करते हैं तो पता चलता है कि दुनिया के कई हिस्सों में तिब्बती आध्यात्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं को तार्किक, तर्कसंगत और व्यावहारिक लाभ के तौर पर लिया जाता है क्योंकि तिब्बती आध्यात्मिक और सांस्कृतिक परंपरा हमें अपने दिमाग को सकारात्मक तरीके से बदलने और आंतरिक शांति लाने में सक्षम बनाती हैं।
आजकल पश्चिमी देशों में बड़ी संख्या में लोग तिब्बती संस्कृति और अध्यात्म में रुचि ले रहे हैं। मैं उन पश्चिमी वैज्ञानिकों की बढ़ती संख्या से भी अवगत हूं जो हमारी संस्कृति में पाए जाने वाले सुहृदय बनाने के तरीकों की प्रशंसा करते हैं, हालांकि वे किसी धर्म में आस्थाा और विश्वा स नहीं रखते हैं।
कम्युनिस्ट चीनियों ने हमारी आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत को व्यवस्थित रूप से ख़त्म करने का प्रयास किया है। हालांकि, यह स्पष्ट हो गया है कि आज दुनिया में हमारी सांस्कृतिक परंपराओं को नष्ट करने के बजाय उनमें नए सिरे से रुचि पैदा हो रही है।
दयालुता की हमारी यह परंपरा, जिनमें कीड़ों और अन्य छोटे प्राणियों के प्रति भी दयालु होने की बात सिखाई जाती है, हमारे यहां पीढ़ियों से चली आ रही है। दुनिया भर के लोग पहले तिब्बती बौद्ध धर्म पर बहुत कम ध्यान देते थे, लेकिन अब सदाशयता और नैतिकता की हमारी संस्कृति में रुचि ले रहे हैं। इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि हम तिब्बती अपनी संस्कृति और सभ्यता को दुनिया के अनमोल खजानों में से एक मानकर उसकी देखभाल करें।
जहां तक मेरी बात है, मेरा जन्म उत्तर-पूर्वी तिब्बत के सिलिंग में हुआ था। जब मैं छोटा था तो ल्हासा चला गया। सुहृदय विकसित करने की तिब्बती प्रथा हमारी तिब्बती बौद्ध परंपरा के मूल में निहित है, जिसमें बुद्ध के उपदेशों की उत्कृाष्टह गुणवत्ता वाली बौद्ध शिक्षाएं शामिल हैं और उसे हमने संरक्षित किया है। थाईलैंड और बर्मा जैसे बौद्ध देश उत्कृष्ट बौद्ध प्रथाओं को संरक्षित करते हैं। लेकिन केवल तिब्बती और मंगोलियाई ही धर्म के गहन अध्ययन में संलग्न हैं। हालांकि मंगोलिया में भी इसमें बहुत गिरावट आई है।
तिब्बत की सभ्य संस्कृति सार्वभौमिक खजाने की तरह है। आपको इसे कायम रखना चाहिए। मेरा मानना है कि‍ दुनिया भर में लोग प्रेरणा के लिए तेजी से हमारी संस्कृति और धर्म की ओर देख रहे हैं। ऐसा इसलिए नहीं कि इसमें प्रार्थनाएं और प्रसाद चढ़ाना, साष्टांग प्रणाम करना आदि अनुष्ठान शामिल हैं। बल्कि इसलिए कि यह मन को विकसित करने से संबंधित है। यह बताता है कि प्रेम और करुणा की भावना को कैसे बढ़ाया जाए। मुझे लगता है कि यह बहुत महत्वपूर्ण है कि हम दुनिया भर के लोगों के लिए उदाहरण स्थापित करने के लिए इन तरीकों को स्वयं लागू करें।
तिब्बतियों को आम तौर पर दयालु लोगों के रूप में पहचाना जाता है। लेकिन हमारा जन्म अलग तरीके से नहीं हुआ है, हम अन्य इंसानों की तरह ही हैं। हालांकि, हमें बचपन से ही दयालु हृदय रखने और सूक्ष्मह प्राणियों के प्रति‍ भी दया और करुणा जैसी अच्छीत आदतों का पालन करने का संस्कांर दिया गया है। हमें इसे जारी रखना चाहिए और दुनिया भर के लोगों तक अपनी करुणा बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए, चाहे वे धर्म में विश्वास करते हों या नहीं।
मैं आपसे इसे ध्यान में रखने और इसके लिए प्रयास करने का आग्रह करता हूं।
बौद्ध परंपराओं के भीतर तिब्बती बौद्ध धर्म ही बौद्ध मनोविज्ञान की सबसे गहरी समझ प्रस्तुत करता है। सेरा और डेपुंग जैसे तिब्बत के महान मठ विश्वविद्यालयों में अध्ययन किए गए शास्त्रीहय ग्रंथ मन और भावनाओं के कामकाज की गहन समझ प्रस्तुत करते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि इस समझ में व्यावहारिक तरीकों से मानसिक समस्याओं से निपटने के तरीके शामिल हैं, इसलिए यह इतना मूल्यवान है। हमने न केवल स्पष्टीकरण के शब्दों को बल्कि अध्ययन और साधना के संयोजन के माध्यम से उन्हें लागू करने के तरीकों को भी संरक्षित किया है।
हम तिब्बतियों ने अध्ययन और चिंतन का संयुक्त अभ्यास करके सौहार्द को विकसित करने की परंपरा को संरक्षित किया हुआ है। यह परंपरा अब दुनिया भर की रुचि आकर्षित कर रही है। इसलिए, हम तिब्बतियों को साहस और दृढ़ संकल्प के साथ इसे बनाए रखने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास करना चाहिए।
मैं तिब्बत के अंदर अपने तिब्बती अनुयायियों की अटूट आस्था और भक्ति के लिए उनकी विशेष रूप से सराहना करना चाहता हूं। मुझे यह महत्वपूर्ण बात लगती है कि तिब्बतियों की नई पीढ़ी को उन अच्छे रीति-रिवाजों की गहरी समझ होनी चाहिए, जिन्हें हमने एक हजार वर्षों से अधिक समय से कायम रखा है। उन्हेंत यह समझ सिर्फ इसलिए नहीं हों कि वे हमारे रीति-रिवाज हैं, बल्कि इसलिए भी होने चाहिए कि वे तर्क के अनुरूप हैं। मुझे लगता है कि आज की दुनिया में यह आवश्यक है कि नई पीढ़ी उन परंपराओं पर नए सिरे से विचार करे, जिन्हें हमने पश्चिमी वैज्ञानिक रुचि के आलोक में संरक्षित किया है। उन्हें यह समझने की आवश्यकता है कि पश्चिम में धर्म में कोई विशेष आस्था न रखने वाले लोग भी हमारी परंपराओं में रुचि क्यों लेते हैं। उन्हें तिब्बत के सदियों पुराने पोषित खजाने के मूल्य को पहचानने की योग्याता हासिल करने की आवश्यकता है ताकि उस पोषित खजाने को अच्छी तरह से संरक्षित किया जा सके।
हम सभी विश्व शांति की आशा व्यक्त करते हुए बात करते हैं। लेकिन हमें अपने मन में शांति विकसित करनी होगी, यह केवल हथियारों की अनुपस्थिति के बारे में नहीं है। गर्मजोशीपूर्ण सुहृदय विकसित करने की तिब्बती प्रथा मन की शांति प्राप्त करने का सबसे अच्छा साधन है। कृपया इसे जारी रखें।


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