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परम पावन १४वें दलाई लामा को नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किए जाने की ३३वीं वर्षगांठ पर कशाग का वक्तव्य

December 10, 2022

परम पावन दलाई लामा को नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किए जाने की ३३वीं वर्षगांठ के इस विशेष अवसर पर कशाग परम पावन दलाई लामा के प्रति अपनी गहरी श्रद्धा और आभार प्रकट करता है। कशाग भारतीय संसद के माननीय सदस्यों, भारत के केंद्रशासित प्रदेश लद्दाख के विशिष्ट अतिथियों, दुनिया भर के तिब्बत समर्थक समूहों और तिब्बती लोगों को हार्दिक बधाई देता है।

परम पावन दलाई लामा को यह प्रतिष्ठित नोबेल शांति पुरस्कार चीन-तिब्बत संघर्ष को अहिंसात्मक तरीके से हल करने की उनके निरंतर प्रयासों के लिए  दिया गया है। यह पुरस्कार परम पावन द्वारा अंतरराष्ट्रीय संघर्षों, मानवाधिकारों के उल्लंघन और वैश्विक पर्यावरणीय चुनौतियों के समाधान की दिशा में रचनात्मक प्रयास करने की उनकी प्रतिबद्धता को नोबेल समिति द्वारा मान्यता दिए जाने के प्रतीक स्वरूप है।

पिछली सदी के युद्धों और संघर्षों की विनाशलीला से सबक लेकर २१वीं सदी को ‘संवाद और शांति की सदी’ बनाने का प्रयास अभी तक साकार नहीं हुआ है। इसलिए, यह स्पष्ट है कि परम पावन दलाई लामा की व्यापक दृष्टि संपूर्ण मानवता के लिए प्रासंगिक और अपरिहार्य बनी हुई है।

शांति तब प्राप्त की जा सकती है जब कोई युद्ध न हो और जब शत्रुता के बिना सद्भाव हो। शांतिपूर्ण दुनिया के लिए मानवता की आकांक्षा को साकार करने के लिए, परम पावन दलाई लामा ने जाति, धर्म और राष्ट्र की सीमाओं से ऊपर उठकर सभी मनुष्यों की एकता को लगातार प्रोत्साहित किया है और उनमें प्रेम, करुणा और परोपकार के सार्वभौमिक मूल्यों को विकसित करने के लिए प्रोत्साहित किया है। अपने प्रवचनों में परम पावन दलाई लामा अक्सर करुणा को स्वस्थ शरीर में शांतिपूर्ण मन के स्रोत के रूप में व्याख्यायित करते हैं। साथ ही इस जन्म और भविष्य के जन्मों में खुशी का स्रोत बताते हैं। परम पावन अपनी बचपन से ही विधि और प्रज्ञा के रूप में बोधिचित्त और शून्यता की साधना करते रहे हैं। ऐसा आध्यात्मिक गुरु इस संसार में मिलना दुर्लभ है।

यदि प्रत्येक व्यक्ति मानवता की भलाई के लिए परम पावन दलाई लामा के संदेश को अमल में लाने की पहल करे तो वह संसार से युद्ध, शोषण, आक्रामकता और दमन को समाप्त करने में बहुत बड़ा योगदान दे सकता है। ये दुर्गुण व्यापक रूप से परिवार, समाज और दुनिया में शांति स्थापित करने की राह में बड़े रोड़े हैं। हम तिब्बतियों के लिए इस अवसर को मनाने का सबसे अच्छा तरीका परम पावन दलाई लामा की शिक्षाओं और संदेशों के आधार पर चीन-तिब्बत संघर्ष के समाधान की तलाश करना है, जो हमारी प्रेरणा का सच्चा स्रोत है।

आज हम संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा की ७४वीं वर्षगांठ और अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस भी मना रहे हैं। हालांकि, दुनिया भर में मौलिक मानवाधिकारों का उल्लंघन बेरोक-टोक जारी है। हम उन लोगों के साथ एकजुटता से खड़े हैं जो दमनकारी शासन और अधिकारियों से पीड़ित हैं। हम उन व्यक्तियों और समूहों के प्रति भी अपनी गहरी प्रशंसा व्यक्त करते हैं जो मानवाधिकारों और मौलिक अधिकारों के लिए प्रयास कर रहे हैं।

मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा का पहला अनुच्छेद सभी मनुष्यों की स्वतंत्रता और समानता पर जोर देता है। ठीक इसी तरह की बात भगवान बुद्ध ने जोर देकर कही थी कि, ‘स्वतंत्रता सुख है, दूसरे के नियंत्रण में आना दुख है। आपका अपना मन ही आपका स्वामी है; यह दूसरा कौन हो सकता है? यदि आप अपने मन का स्वामी बन जाते हैं तो आप सफलता, सम्मान, सुख और दुखों से मुक्ति प्राप्त कर लेते हैं। महान भारतीय आचार्य शांतिदेव ने संघर्ष और हिंसा को खत्म करने के लिए प्रार्थना की, जिससे पूर्ण स्वतंत्रता की प्राप्ति होती है। इसके विपरीत यदि किसी के विचार और कर्म दूसरों के प्रभाव में आ जाएं तो स्वतंत्रता छिन जाएगी।

बौद्ध धर्म में केवल मनुष्य ही नहीं, बल्कि सभी प्राणियों में बुद्धत्व प्राप्त करने की समान क्षमता है। शरण में जाने वाली बौद्ध प्रार्थना में सभी संवेदनशील प्राणियों को समान माना जाता है और वे सभी संवेदनशील प्राणियों के लिए प्रेम-कृपा, करुणा, सहानुभूति-आनंद और समानता जैसे चार अतुलनीय गुणों के माध्यम से प्रार्थना करते हैं। भगवान बुद्ध ने जोर देकर कहा कि उनकी शिक्षाएं जाति और पंथ के बीच भेदभाव नहीं करती हैं। समता के इस दूरगामी विचार के आधार पर ही उन्होंने कसाई, मछुआरे और मोची जैसी निम्न जाति के लोगों को भी अपने धर्म संघ में शामिल किया।

आज भले ही कई देशों ने मानवाधिकारों के अंतरराष्ट्रीय घोषणा-पत्र पर हस्ताक्षर किए हैं, फिर भी दुनिया भर में अल्पसंख्यक राष्ट्रीयताओं और समुदायों के दमन और हाशिए पर धकेलने की घटनाएं हो रही हैं।

पूरे तिब्बत में मानवाधिकारों का घोर उल्लंघन हो रहा है। हाल के वर्षों में चीनी सरकार ने अपने व्यापक नीतिगत उद्देश्य के तहत तिब्बत में एकसमान चीनी राष्ट्रीयता, तिब्बती बौद्ध धर्म के चीनीकरण और भेदभावपूर्ण भाषा नीतियों को लागू किया है। इसके परिणामस्वरूप औपनिवेशिक शैली के बोर्डिंग स्कूलों में तिब्बती बच्चों का जबरन नामांकन हुआ है। ये कठोर नीतियां विशिष्ट तिब्बती पहचान के अस्तित्व के लिए अभूतपूर्व खतरा पैदा कर रही हैं। ऐसी स्थिति में जब, चीनी सरकार माओ त्से तुंग की तिब्बतियों द्वारा विरोध करने और फिर उन्हें दबाने के लिए उपयुक्त क्षण की तलाश करने की नीति पर चल रही है, ऐसे तरीकों की तलाश करना चाहिए जो अंतरराष्ट्रीय कानूनों और मानदंडों के अनुरूप हों। यह देश की सद्भाव और राष्ट्रीय स्थिरता के दीर्घकालिक हित में है।

पहले से ही स्थापित और पूरे तिब्बत में व्यापक रूप से फैली और उसे अपने नियंत्रण में ले चुकी चीनी कम्युनिस्ट पार्टी और उसकी सरकार कम्‍युनिस्‍ट पार्टी की सदस्यता बढ़ाकर पार्टी प्रणाली को मजबूत कर रही है। इसी तरह, गांव स्‍तर के नेताओं को सीसीपी में भर्ती किया जा रहा है और उन्हें ‘अलगाववाद पर नकेल कसने और स्थिरता बनाए रखने’ की ज़िम्मेदारी सौंपी जा रही है। बड़े गांवों में स्थायी कार्य दल ‘ग्रामीण व्यवस्था में सुधार, पुरानी व्यवस्थाओं को मिटाने और आदतों, रीति-रिवाजों और परंपराओं को बदलने’  के उपायों को व्यवस्थित रूप से लागू कर रहे हैं। ग्रिडलॉक प्रबंधन प्रणाली के माध्यम से पीआरसी के अधिकारी स्थानीय तिब्बतियों को भर्ती कर रहे हैं। उदाहरण के लिए, २०११ से २०१८ तक किंघई प्रांत में भेजे गए ग्रिड प्रबंधन प्रणाली के ४८,००० कर्मियों में से ३४,००० को तिब्बती क्षेत्रों में तैनात किया गया था। वर्तमान में १०,४०० लोगों की आबादी वाले ड्रिरू काउंटी के अंतर्गत प्रशासित पेकर के २३ शहरों को इस वर्ष ५० ग्रिड में विभाजित किया गया है और इनकी ५७ ग्रिड नेताओं, २८० ग्रिड परीक्षकों और १४० स्वयंसेवकों द्वारा कड़ाई से नियंत्रित और बारीकी से निगरानी की जा रही है।

इसके अलावा, तथाकथित तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र (टीएआर) में ग्रिड प्रणाली को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए ‘डबल-लिंक्ड घरेलू प्रबंधन प्रणाली’ स्थापित किया गया है। इस प्रणाली के तहत ५ से १५ घरों का छोटा-छोटा समूह बनाया गया है। प्रत्येक समूह में आम लोग, भिक्षु- भि‍क्षुणी और सरकारी अधिकारी रहते हैं। हर समूह को अपने पास पड़ोस के समूहों की निगरानी करने और ‘सामाजिक स्थिरता और सुरक्षा नियंत्रण’ बनाए रखने का काम सौंपा गया है। हर साल, गांव, टाउनशिप, काउंटी, प्रीफेक्चर और क्षेत्र स्तर पर एक मॉडल ‘डबल-लिंक्ड हाउसहोल्ड्स’ का चयन किया जाता है और उन्हें पुरस्कार से सम्मानित किया जाता है। उनके बच्चों को विश्वविद्यालय में प्रवेश के समय और नौकरी के लिए भर्ती परीक्षा में बोनस अंक भी दिए जाते हैं।

पिछले महीने चीनी सरकार ने घोषणा की कि उसने एशिया के ३० करोड़ लोगों के डेटा की निगरानी के लिए ल्हासा में एक बड़ा क्लाउड कंप्यूटिंग डेटा सेंटर शुरू कर दिया है। इस केंद्र का उपयोग सीसीटीवी कैमरा, चेहरे की पहचान, ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (जीपीएस) और डीएनए के बड़े पैमाने पर संग्रह जैसी निगरानी प्रणालियों के माध्यम से डेटा संकलन के लिए किया जाएगा। यह निगरानी और नियंत्रण की अभूतपूर्व शक्ति के साथ डिजिटल तानाशाही को भी लागू करेगा।

हालाँकि चीन में गांव और बस्ती स्तर से नीचे के क्षेत्रों में सरकारी अधिकारियों की नियुक्ति की कोई व्यवस्था नहीं है, फिर भी २०,००० से अधिक सरकार और पार्टी के स्थायी अधिकारियों को ‘टीएआर’ में भेजा गया था। इसके अलावा, ‘टीएआर’ में प्रत्येक ग्रामीण प्रशासनिक जिले के लिए प्रशासन के लिए छह कार्यालय भवन और स्टाफ क्वार्टर बनाए गए हैं।

चीनी सरकार दावा कर रही है कि ये उपाय स्थिरता बनाए रखने के उद्देश्य से हैं। वह तिब्बतियों पर ‘अलगाववाद और सामाजिक सुरक्षा में खलल डालने’ का झूठा आरोप लगाती है। स्थिरता बनाए रखने के लिए कम्युनिस्ट विचारधारा और एक राष्ट्र, एक संस्कृति, एक धर्म और एक भाषा की नीति को लागू करके तिब्बतियों के हर आंदोलन पर चौबीसों घंटे नजर रखी जाती है। इसके अलावा, तिब्बतियों को सीसीपी और उसके नेताओं के प्रति आभार व्यक्त करने के लिए मजबूर किया जाता है। साथ ही उन्‍हें चीनी सरकार और तथाकथित उन्नत चीनी संस्कृति और जीवन पद्धति का पालन करने के लिए मजबूर किया जाता है। समाज के व्यापक नियंत्रण की यह प्रणाली दुनिया में अनसुनी है। इस दुनिया में चीनी सरकार के अलावा कोई भी ऐसी नीतियों के बारे में सोच भी नहीं सकता है जो लोगों के निहित मानवाधिकारों और गरिमा का उल्लंघन करती हैं।

पीआरसी के चालीस वर्षीय संविधान की प्रस्तावना हान उग्रवाद का विरोध करती है। हालाँकि, चीनी सरकार अन्य राष्ट्रीयताओं के साथ भेदभाव, दमन और उनके विनाश की नीतियों का निर्ममता से पालन कर रही है।

केंद्रीय तिब्बती प्रशासन अहिंसा और बातचीत पर आधारित मध्यम मार्ग दृष्टिकोण के माध्यम से चीन-तिब्बत संघर्ष के पारस्परिक रूप से लाभकारी और स्थायी समाधान की तलाश के लिए लगातार प्रयास कर रहा है। ऐसा इसलिए है क्योंकि हम तिब्बती अपनी सांस्कृतिक, धार्मिक, भाषाई पहचान और प्राकृतिक पर्यावरण को अपने अस्तित्व के लिए महत्वपूर्ण मानते हैं। सभी बाधाओं के बावजूद हम चीन-तिब्बत संघर्ष को हल करने के लिए चीनी नेतृत्व तक पहुंचने और उसके साथ जुड़ने के अपने प्रयासों और प्रतिबद्धताओं पर अडिग हैं।

परम पावन दलाई लामा के दूरदर्शी नेतृत्व के परिणामस्वरूप निर्वासित तिब्बती बस्तियों, स्कूलों, मठों और सांस्कृतिक संस्थानों की स्थापना हुई है। इनसे तिब्बतियों को उनकी अपनी विशिष्ट राष्ट्रीय पहचान को बनाए रखने और स्वतंत्रता आंदोलन को मजबूत करने का अधिकार मिला है। आज, निर्वासन में घटती तिब्बती जन्म दर और तिब्बत से नए आगमन में गिरावट के साथ-साथ भारत और अन्य देशों के शहरों में पुनर्वास के माध्यम से कॉम्पैक्ट समुदायों का फैलाव एक महत्वपूर्ण चुनौती बन गया है। इसलिए, पिछले संसदीय सत्र ने नियमों और विनियमों में संशोधन किया है ताकि पिछले चार दशकों में तिब्बत से आए उन लोगों के बीच राहत बस्तियों के भूमि और घर का पुनर्वितरण किया जा सके, जिनके पास कहने के लिए अपना घर या और कुछ नहीं है । इस काम के लिए बस्ती के लोगों से केंद्रीय तिब्बती राहत समिति को भूमि और घरों का योगदान करने के लिए सक्षम बनाया गया है।

कॉम्पैक्ट समुदायों के पुनर्निर्माण की दिशा में यह पहला कदम है। कशाग अगले वित्तीय वर्ष में तिब्बती समुदाय की अधिकांश जरूरतों को पूरा करेगा। अगले कुछ महीनों में हम उन लोगों के लिए पर्याप्त भूमि का अधिग्रहण करने जा रहे हैं जिनके पास कोई घर नहीं है। इसलिए, हम उदार तिब्बतियों से इस नेक परियोजना में योगदान देने का आग्रह करते हैं।

तिब्बती स्कूलों में छात्रों की संख्या में भारी कमी को देखते हुए छात्रों के हित में हम मौजूदा संसाधनों का सर्वोत्तम उपयोग करने के लिए स्कूलों को समेकित करने का दीर्घकालिक प्रयास करेंगे।

हम बड़ी संख्या में तिब्बतियों की स्वैच्छिक तिब्बत एडवोकेसी ग्रुप में भागीदारी की सराहना करना चाहते हैं। इनमें से कुछ ने पहले ही अपने-अपने निवास वाले देशों में अपने एडवोकेसी अभियान शुरू कर दिए हैं। गतिशील वैश्विक राजनीतिक स्थिति में हमारे आंदोलन को मजबूत करने के लिए उनकी क्षमता और कौशल का उपयोग करना सर्वोपरि है। इसलिए हम सभी से इस अभियान से जुड़ने का आग्रह करते हैं।

परम पावन दलाई लामा ने बार-बार हमें अपनी लंबी आयु का आश्वासन दिया है। तिब्बतियों और उनके अनुयायियों के लिए समान रूप से उनके प्रति अपनी आध्यात्मिक प्रतिबद्धता बनाए रखना और परम पावन दलाई लामा के दृष्टिकोण के अनुसार कार्य करना अत्यंत महत्वपूर्ण है।

अंत में हम परम पावन दलाई लामा लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य और तिब्बती लोगों की स्वतंत्रता के लिए प्रार्थना करते हैं। दुनिया भर में स्वतंत्रता और मानवाधिकारों की जय हो!

कशाग

१० दिसंबर २०२२


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