प्रो0 श्यामनाथ मिश्र, पत्रकार एवं अध्यक्ष, राजनीति विज्ञान विभाग
राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, खेतड़ी (राजस्थान)
तिब्बती बौद्ध धर्मगुरु परमश्रद्धेय दसवें पेंछेन लामा के अवतार गेंदुन छोकी नीमा की शीघ्र रिहाई हेतु विष्वस्तरीय अपील से चीन सरकार की तानाषाही एवं हठधर्मिता फिर उजागर हो गई है। गेंदुन छोकी नीमा सिर्फ छः वर्ष के थे जब 17 मई, 1995 को चीन सरकार ने उनका सपरिवार अपहरण कर लिया था। उसी समय उनके गुरु थत्रेल रिंपोछे का भी चीन सरकार ने अपहरण कर लिया था। चीन सरकार के इस दुर्भाग्यपूर्ण तथा निंदनीय कार्य से पूरा विष्व स्तब्ध था। यह घटना 28 वर्ष पूर्व की है। तब से अब तक गेंदुन छोकी नीमा, उनके गुरु थत्रेल रिंपोछे तथा परिजनों के बारे में चीन सरकार तथ्यों को छिपाती रही है। वह सच्चाई नहीं बताती। यह गंभीर चिंता का विषय है।
बौद्ध परंपरानुसार पेंछेन लामा के अवतार का निष्चय किया जाता है। उसकी एक सुव्यवस्थित प्रक्रिया है जिसका पालन बौद्ध धर्मगुरुओं तथा विद्वानों द्वारा किया जाता है। यह परंपरा सदियों से जारी है। इसी पारंपरिक प्रक्रिया केे अनुरूप 14 मई, 2023 को परमपावन दलाई लामा ने गेंदुन छोकी नीमा को दसवें पेंछेन लामा का अवतार घोषित किया था।
विस्तारवादी चीन सरकार को दलाई लामा द्वारा घोषित पेंछेन लामा के अवतार गेंदुन छोकी नीमा की सामाजिक स्वीकृति बर्दाष्त नहीं हुई। उसने 14 मई की घोषणा पर 17 मई को ही पानी फेर दिया तथा गेंदुन छोकी नीमा का सपरिवार अपहरण कर लिया। साम्यवादी चीन सरकार धर्म को अफीम बताती है। इसके बावजूद तिब्बत के धार्मिक मामले में उसकी साजिषपूर्ण गहरी रुचि हमेषा रहती है।
चीन सरकार की षड्यंत्रपूर्ण रुचि का ही प्रमाण है कि उसने तिब्बती धर्मगुरु कर्मापा के पद पर अपनी पसंद के एक व्यक्ति को नियुक्त कर दिया था। तब परंपरागत तरीके से चुने गये कर्मापा जी को छिपते-छिपाते भारत आना पड़ा। चीन सरकार अभी से दलाई लामा के नये अवतार को चुनने की भी साजिष रच रही है। दलाई लामा के अवतार को चुनने की भी सुव्यवस्थित पारंपरिक प्रक्रिया है। समस्त बौद्ध समुदाय ने स्पष्ट कर दिया है कि चीन को इस मामले में हस्तक्षेप का कोई अधिकार नहीं है। इसी पक्ष में सभी तिब्बत समर्थक तथा बौद्ध समर्थक भी हैं। किसी भी तिब्बती बौद्ध धर्मगुरु को चुनने का अधिकार साम्यवादी चीन सरकार को नहीं है। तिब्बत के धार्मिक मामले में उसके अवांछित हस्तक्षेप का भरपूर विरोध किया जायेगा।
इस समय निर्वासित तिब्बत सरकार, जो कि तिब्बती समुदाय द्वारा लोकतांत्रिक तरीके से मतदान के जरिये निर्वाचित की गई है, की मांग है कि चीन सरकार यथाशीघ्र पेंछेन लामा को रिहा करे। इसके अन्तरराष्ट्रीय संबंध विभाग ने विष्व के सभी देषों की सरकारों से इस हेतु चीन सरकार पर दबाव डालने की अपील की है। सभी तिब्बत समर्थकों ने भी पेंछेन लामा के अपहरण की 28वीं वर्षगाँठ पर आयोजित कार्यक्रमों में चीन सरकार से यही अपील की है। उन्होंने सभी देषों के जनप्रतिनिधियों तथा लोकतांत्रिक संगठनों से इस विषय में भरपूर सहयोग एवं समर्थन का आह्वान किया है।
तिब्बत के अंदर तिब्बतियों की स्थिति और भी चिंताजनक है। गत 5 मई, 2023 को अपने रजत जयंती समारोह में भारत-तिब्बत सहयोग मंच द्वारा इसे प्रामाणिकता के साथ उठाया गया। हिमाचल प्रदेष के कांगड़ा जिलांतर्गत धर्मषाला में सहयोग मंच की स्थापना हुई थी। रजत जयंती समारोह भी इसी धर्मषाला स्थित मुख्य तिब्बती बुद्ध विहार सुगलाखांग के परिसर में हुआ। परमपावन दलाई लामा समारोह के मुख्य अतिथि थे। सहयोग मंच के संस्थापक माननीय इन्द्रेष कुमार समेत कई गणमान्य विचारक इसमें शामिल थे। दलाई लामा ने अपने संबोधन में तिब्बतियों को भरपूर सहयोग एवं समर्थन देते रहने के लिये भारत सरकार, भारतीय जनता तथा अन्य सभी समर्थक संगठनों के प्रति हार्दिक कृतज्ञता प्रकट की। उन्होंने भारत-तिब्बत सहयोग मंच के कार्यों की प्रसन्नतापूर्ण प्रषंसा करते हुए विष्वास व्यक्त किया कि भारत और तिब्बत के बीच गुरु-षिष्य संबंध और मजबूत होता रहेगा।
चीन सरकार तिब्बत में एक ‘‘आत्मसात नीति’’ चला रही है। इससे तिब्बती बच्चे अपनी तिब्बती संस्कृति, भाषा, इतिहास एवं गौरव को आत्मसात नहीं करके चीनीकरण का षिकार हो रहे हैं। तिब्बत के लिए ऐसी विनाषकारी नीति। तिब्बती पहचान को मिटाने का यह चीनी षड्यंत्र है। चीन सरकार द्वारा तिब्बत में संचालित ‘‘कोलोनियल बोर्डिंग स्कूल’’ भी इसी प्रकार के चीनी हथकंडे हैं। तिब्बती बच्चे अपने माँ-बाप एवं अन्य परिजनों से दूर इन स्कूलों में बौद्ध दर्षन की जगह साम्यवादी दर्षन से भरपूर वातावरण में रखे जाते हैं। वहाँ उन्हें सुनियोजित तरीके से तिब्बती संस्कारों से अलग कर दिया जाता है। वे चीन सरकार की योजना के अनुरूप चीनीकरण के षिकार हो रहे हैं। इस प्रकार तिब्बत का चीनीकरण करने में तिब्बती बच्चों का इस्तेमाल किया जा रहा है। भारत तिब्बत सहयोग मंच की तरह ही अन्य तिब्बत समर्थक संगठन एवं विचारक भी तिब्बत की बिगड़ती ऐसी आंतरिक दषा से चिंतित हैं।
संपूर्ण विष्व, विषेषकर एषिया और उसमें भी हिमालय क्षेत्र तथा भारत के हित में तिब्बत समस्या का समाधान जरूरी है। भारत-तिब्बत वार्ता पुनः प्रारम्भ होने हेतु उपयुक्त वातावरण बने। इसके लिये चीन सरकार पर दबाव बढ़ाने का यह उचित समय है। विष्व जनमत तिब्बतियों के पक्ष में है। विस्तारवादी चीन सरकार पर नियंत्रण संपूर्ण संसार के हित में है।