tibet.net / नई दिल्ली। भारत-तिब्बत समन्वय संघ (बीटीएसएस) के केंद्रीय संयोजक श्री हेमेंद्र सिंह तोमर के नेतृत्व में एक विशेष प्रतिनिधिमंडल ने भारत के माननीय राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद से मुलाकात की। इस बैठक के दौरान प्रतिनिधिमंडल ने भारत-तिब्बत समन्वय संघ के कार्यों और लक्ष्यों के बारे में महामहिम को जानकारी दी और उसके कार्यों पर प्रकाश डाला। इस अवसर पर प्रतिनिधिमंडल द्वारा महामहिम को सात सूत्री ज्ञापन सौंपा गया। बीटीएसएस के केंद्रीय संयोजक श्री हेमेंद्र सिंह तोमर ने बारी-बारी से सभी प्रस्तावों को महामहिम को पढ़कर सुनाया और अपने उद्येश्यों को स्पष्ट किया। इस बैठक के दौरान महामहिम ने सभी प्रस्तावों को ध्यान से सुना, साथ ही यह आश्वासन भी दिया कि जो प्रस्ताव जिस विभाग से संबंधित होंगे, उसे संबंधित विभाग को भेजे जाने चाहिए। उन्होंने कहा कि इनमें से कुछ प्रस्ताव गृह मंत्रालय से संबंधित हैं और कुछ प्रस्ताव रक्षा मंत्रालय से संबंधित हैं, इसलिए वह अपनी सिफारिशें संबंधित मंत्रालयों को भेजेंगे।महामहिम भारत-तिब्बत समन्वय संघ के काम के बारे में पहले से वाकिफ हैं और उन्होंने २५ मिनट की बैठक के दौरान तिब्बत और कैलाश के मुद्दे पर चर्चा करते हुए जन जागरूकता पैदा करने के लिए एक जन आंदोलन खड़ा करने और युवा शक्ति को आगे लाने का सुझाव दिया। उन्होंने कहा कि संघ का यह कार्य बहुत बड़े उद्देश्यों के साथ चल रहा है, जिसमें यह और भी अच्छा है कि इसका नेतृत्व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक वरिष्ठ प्रचारक और भाजपा के पूर्व संगठन सचिव और पूर्व राज्यपाल प्रो. कप्तान सिंह सोलंकी कर रहे हैं।
ज्ञापन में कहा गया है कि भारत की संसद के दोनों सदनों ने १४ नवंबर १९६२ को एक प्रस्ताव पारित किया था कि चीन द्वारा धोखे से कब्जा की गई भूमि का हर हिस्सा वापस ले लिया जाएगा। महामहिम को सौंपे गए सात सूत्री ज्ञापन में यह मांग की गई है कि अब ६० साल बाद केंद्र की इस मजबूत सरकार को उपरोक्त संकल्प को पूरा करने की दिशा में ठोस कदम उठाना चाहिए।
यह मांग भी की गई है कि भारत सरकार अब चीन से बात करके कैलाश-मानसरोवर तीर्थयात्रियों का कोटा बढ़ाने का प्रयास करे ओर चीनी सरकार द्वारा वसूले जाने वाले शुल्क की प्रतिपूर्ति इन तीर्थयात्रियों को कर दे।
अगली मांग में कहा गया कि भारत की तत्कालीन सरकार और चीन की कम्युनिस्ट सरकार के बीच १९९३ और १९९६ में हुए समझौते को रद्द कर दिया जाए, क्योंकि दोनों समझौतों में भारतीय सेना को चीनी सेना के सामने निहत्था रहने के लिए बाध्य किया गया है। तिब्बत सीमा पर चीनी सैनिकों को तैनात किया जाना वास्तव में भारतीय सेना के साथ विश्वासघात है।
ज्ञापन में तिब्बती चिकित्सा के संबंध में कहा गया कि भारत को देश के लोगों को स्वास्थ्य लाभ को मान्यता देने वाली प्रभावी तिब्बती चिकित्सा प्रणाली को भी आश्रय देना चाहिए और इसे आयुष में शामिल करके तिब्बती परिवारों से सरकार को होने वाली आय का सृजन करना चाहिए।
एक अन्य मांग में कहा गया कि तिब्बत सीमा की मान्यता और पहचान को अक्षुण्ण रखने के लिए केवल भारत-तिब्बत सीमा लिखी और बोली जानी चाहिए, न कि भारत-चीन सीमा। क्योंकि इतिहास में चीन कभी भारत का पड़ोसी देश नहीं रहा और न ही उससे हमारी कोई सीमा मिलती रही है। इसके अलावा संगठन के शुभचिंतक रहे दिवंगत रज्जू भैया और परम पावन दलाई लामा को भारत रत्न दिए जाने और तिब्बतियों को भारतीय नागरिकता देने की भी मांग की गई।
भारत-तिब्बत समन्वय संघ की ओर से महामहिम को एक स्मृति चिन्ह, बीटीएसएस की पत्रिका शिवबोधि, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह पर लिखी गई एक पुस्तक, तिब्बत के समकालीन महत्व को उकेरने वाली एक पुस्तक, खटक, शिवजी के शरीर का चिताभस्म, फूल और रुद्राक्ष की माला भी उन्हें प्रदान की गई। इस विशेष प्रतिनिधिमंडल में बीटीएसएस के केंद्रीय संयोजक श्री हेमेंद्र तोमर, राष्ट्रीय महासचिव श्री अरविंद केसरी और श्री विजय मान, राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष श्री अजीत अग्रवाल, राष्ट्रीय अध्यक्ष युवा श्री नीरज सिंह और राष्ट्रीय सचिव श्री नरेंद्र सिंह चौहान शामिल थे।