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मैं परमपावन दलाई लामा से बिना पासपोर्ट के कैसे मिली । वूएजर

February 13, 2011

(हाईपीक्सप्योरअर्थ , 13 जनवरी , 2011)
सात साल पहले अपने निबंध संग्रह नोट्स ऑन टिबेट में मैने एक ग्रुप फोटो के बारे में लिखा था, जिसमें एक पिता अपने पुत्र के साथ ल्हासा से धर्मशाला की ओर चुप -चाप जाते हुए दिख रहे थे  वे जो दोनों तरफ नम्रता और शीलीनता का वातावरण बनाते है, लेकिन केंद्र का आलिंगन करते है, वह सभी धर्मपरायण तिब्बती लोगों में से सबसे ज्यादा विख्यात है, सबसे ज्यादा स्नेहमय और उत्सुक व्यक्ति – दलाई लामा । इस वाक्य और सच को छूने वाले कुछ लेख लिखने के कारण, स्थानीय अधिकारियों ने मेरे काम को गंभीर राजनीतिक गलतियों वाला बताया जिसमें 14 वें दलाई लामा और 17 वें करमापा लामा की तारीफ की गई थी और गंभीर राजनीतिक एंव धार्मिक विचारों को बढावा देने जैसी गलत बात थी । यह कहा गया कि कुछ निबंध कुछ हद तक राजनीतिक दृष्टि से गलतियों वाले है।
मुझे मेरे पद से हटा दिया गया, इसके बाद मैने ल्हासा छोड दिया । इसके पहले भी करीब 16 साल पहले मैने एक कविता लिखा था जिसका निहितार्थ यह था । सडक पर , मैने एक फूल तोडा जो इस दुनिया का नहीं था, उसके मुरझाने से पहले, सभी दिशाओं में इसकी खोजने के बाद , ताकि गहरे लाल कपडों वाले बुजुर्ग आदमी को इसे पेश कर सकूं। वह आदमी मनोकामना को पूरा करने वाला एक हीरा है, मुस्कराहट की एक रेखा . जो पीढियों को मजबूती से बांधे हुए है। बाद में मैंने इस कविता को गीत में बदल दिया और इसमें खुलकर कहा कि गहरे लाल कपडों में बुजुर्ग आदमी हमारे येशो नोर्बू है, हमारे कुनदुन, हमारे गोनसाचॉग , हमारे ग्यालवा रिनपोछे .. ये सब दलाई लामा के लिए कहे जाने वाले सम्मानसूचक शब्द है।
जैसे कि बहुत सारे तिब्बतियों की आकांक्षा होती है कि परमपावन को देख पाएं , सम्मानपूर्वक उनके उपदेश सुनें, उनके दर्शन पाएं । काफी कम उम्र से मेरे भी अंतर्मन की यही इच्छा रही है, मैं हमेशा से लालायित रही हूं कि यह सपना सच हो। लेकिन मुझे पासपोर्ट नहीं मिला, जैसा कि बहुत से अन्य तिब्बतियों को नहीं मिलता , यह लगभग अकल्पनीय है कि यह सरकार जो हम पर नियंत्रण रखती है कभी हमें पासपोर्ट देगी, जो कि वास्तव में हर नागरिक का अधिकार होना चाहिए। पिछले साल ल्हासा प्रशासन ने 60 साल से उपर के सभी लोगों को पासपोर्ट दिया, लेकिन यह व्यवस्था भी सिर्फ एक हफ्ते रही । इसकी वजह से पासपोर्ट इंचार्ज के कार्यालय में भूरे बालों वाले लोगों की भीड लग गई , बुजुर्गें की तरह धीरे -धीरे की पवित्र भूमि को श्रद्धा सुमन अर्पित करने और एक ऐसा सपना पूरा करने के लिए हिमालय की चोटियों की ओर जा रहे है जिसके बारे में कोई बोल नहीं सकता , लेकिन हर कोई जानता है। मैं दुखी मन से यह सोच रही थी कि क्या मुझे 60 वर्ष की उम्र होने तक एक पासपोर्ट हासिल करने का इंतजार करना पडेगा।
हालांकि इंटरनेट ने मेरे पासपोर्ट विहीन जीवन को यात्रा की एक स्वीकृत दे दी , नए साल में इसने मेरे सपने को साकार करने में मदद की । इंटरनेट के माध्यम से मैं परमपावन दलाई लामा से मिली , वह जैसे सपने में आए हों, लेकिन थे काफी जीवंत और वास्तविक , यह दर्शन साइबर दुनिया में वीडियों संवाद के साथ शुरु हुआ । गत 4 जनवरी , 2011 को परमपावन धर्मशाला में थे और चीन के दो मानवाधिकार वकीलों तेंग बियाओ और जियांग तियानयोंग और लेखक वांग लिजियोंग के साथ वीडियो सवाद के हर शब्द को ध्यान से सुन रही थी । जब दलाई लामा स्क्रीन पर आए तो मुझे विशवास ही नहीं हो पा रहा था, मेरी आंखों से आंसू छलक पडे । यह चमत्कार तकनीकी क्रांति की वजह से हो पाया था, इसने भौगोलिक दूरियों और मानव निर्मित बाधाओं से पार पाना संभव कर दिया था और ऐसा सेतु बनाया था जिससे दलाई लामा चीनी बुद्धिजीवियों से बात कर पा रहे थे। निस्संदेह यह एक बेहद महत्वपूर्ण क्रांति है। मैंने सुना परमपावन तीन चीनी बुद्धिजीवियों से कह रहे थे. यह ऐसा ही लग रहा है जैसे हम सब साथ हों, हम बस केवल एक -दूसरे की सांसों को नहीं सूंघ सकते । करीब 70 मिनट तक चली बातचीत के अंत में दिलचस्पी भरी आवाज में परम पावन ने पूछा , क्या आप मुझे साफ तौर पर देख पा रहे है । जब तीनों लोगों ने कहा , कि हां वे उन्हें साफ -साफ देख रहे है, तो उन्होंने हास -परिहास के अंदाज में अपने भौहों की तरफ इशारा किया और हंसते हुए पूछा . तो क्या आप मेरे भूरे भौंहों को भी देख पा रहे है।
मैं रोती रही और रोती रही। जब मैंने , जैसा कि तिब्बती करते है, तीन बार साष्टांग प्रणाम किया, मन ही मन कुछ मंत्र पाठ किया, अपने हाथों में खाता लिए और अश्रुपूरित नेत्रों के साथ कंम्पूटर के सामने घुटनों के बल बैठे हुए , तो मैने देखा कि परमपावन ने अपने दोनों हाथ बढाए जैसे कि वे खाता ग्रहण करने जा रहें हों, जैसे कि वे मुझे आशीर्वाद देने जा रहे हों। मेरे पास यह बयां करने के लिए शब्द नहीं है कि मैं कैसा महसूस कर रही थी । वास्तव में मैं तिब्बत में कितनी भाग्यशाली व्यक्ति थी, जबकि बहुत से लोग सिर्फ दलाई लामा को फोटो रखने की वजह से कितनी मुशिकलों का सामना कर रहे है।
सच तो यह है कि आज समूचे चीन से बहुत से लोग परमपावन से मिल रहे है और उनकी कोई आजादी नहीं छीनी गई है, हम सब इस देश के नागरिक है, इसलिए तिब्बतियों को भी परमपावन के दर्शन के लिए सजा नहीं मिलनी चाहिए।
स्क्रीन पर मेरी तस्वीर की ओर मुखातिब होते हुए दलाई लामा ने मुझे गंभीर और अथक तरीके से निर्देश दिया . हिम्मत मत हारो, प्रयास जारी रखो, यह बहुत महत्वपूर्ण है कि हान चीनी बुद्धिजीवी और हम तिब्बती हमेशा एक -दूसरे को उस असल हालात के बारे में बताएं जिस पर हम बात कर सकते है और एक- दूसरे को समझ सकते है, आपको इसका आंतरिक तौर पर प्रयास करना चाहिए।
पिछले 60 साल से तिब्बत के भीतर रहने वाले तिब्बतियों का साहस और भरोसा चट्टान की तरह मजबूत है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय तिब्बत के हालात पर गहराई से नजर रखे हुए है, पूरी दुनिया के लोग यह देख रहे है कि तिब्बत में सचाई है, चीनी बुद्धिजीवी भी लगातार इस बारे में जागरुक हो रहे है, इसे व्यापक नजरिए से देख रहे है, बडा और ताकतवर चीन बदलाव की प्रक्रिया से गुजार रहा है। इसलिए आपको आत्मविशवास बनाए रखना चाहिए और कडी मेहनत करनी चाहिए , आप समझ रहे है न। तब तक मै शांत हो चुकी थी और मैने परमपावन द्वारा कहे गए शब्दों को अपने दिल में संजो कर रख लिया।
बीजिंग ,5 जनवरी ,2011


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