taipeitimes.com / डोल्मा छेरिंग
तिब्बत में हाल में दो और आत्मदाह के दुखद मामले सामने आए हैं। दोनों ने तिब्बती समुदाय के भीतर और चीनी मीडिया के खिलाफ गुस्सा भड़का दिया है। पहले मामले में २५फरवरी को छेवांग नोरबू नामके विख्यात तिब्बती गायक ने आत्मदाह कर लिया। नोरबू के मामले ने कई सवालों को जन्म दिया, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इसने चीनी सरकार के विरोध में आत्मदाह कर लेने के जनसांख्यिकीय महत्व के बारे में चिंता बढ़ा दी।
छेवांग नोरबू केवल २५ वर्ष के थे और राष्ट्रीय और क्षेत्रीय गायन रियलिटी शो की एक शृंखला में प्रदर्शन करने के बाद उनके पास एक आशाजनक भविष्य था। उनके सिना वीबो अकाउंट पर लगभग ६,००,००० फॉलोवर थे। वह २० के दशक में चीनी सरकार और उसकी नीतियों के विरोध में आत्मदाह करने वाले १०५वें तिब्बती बने।
विभिन्न स्रोतों से उपलब्ध आंकड़ों के आधार पर कहा जा सकता है कि १९९८ से इस वर्ष तक आत्मदाह के १५९ मामलों में से आत्मदाह करनेवाले १०५ तिब्बती १५ से २० वर्ष की आयु के थे।
आंकड़े बताते हैं कि आत्मदाह करने वालों में बड़ी संख्या युवाओं का है और उसने १९५९ के तिब्बत पर चीन के क्रूर सैन्य कब्जे, १९५८ के ग्रेट लीप फॉरवर्ड, १९६० के दशक की सांस्कृतिक क्रांति और १९८० के दशक के मार्शल लॉ का अनुभव नहीं किया था।
हालांकि, उन्होंने २००८ का विरोध के साथ ही बाद के वर्षों में सुरक्षा निगरानी और धार्मिक दमन की पराकाष्ठा देखी होगी। वे उस समय पैदा हुए थे जिसे चीनी सरकार ने ‘आगे विकास के स्वर्ण युग की महान छलांग’ कहा था।
उनमें से कई चीनी सरकार के खिलाफ निर्वासित तिब्बती सरकार के प्रचार से भी अवगत नहीं थे। इसलिए एक प्रासंगिक प्रश्न जो पूछा जाना चाहिए कि आत्मदाह करनेवालों की इतनी बड़ी संख्या के निहितार्थ क्या हैं?
इस विशेष प्रश्न का उत्तर जानने के लिए इन युवा प्रदर्शनकारियों की जनसांख्यिकीय विशेषताओं, उनके व्यवसाय, उनकी चिंताएं और उनके आत्मदाह के लिए चुने गए कारण और स्थान को देखने की जरूरत है। प्राप्त आंकड़े आश्चर्यजनक विशेषताओं को प्रकट करते हैं।
सबसे पहले, आधे से अधिक या १०५ में से ५७ मामलों में आत्मदाह करनेवाला एक आम आदमी था, जबकि अन्य ४८ भिक्षु या भिक्षुणी थीं। १९८० के दशक में हुए विरोध- प्रदर्शनों के विपरीत आए ये आंकड़े आत्मदाह करनेवालों की जनसांख्यिकीय विविधता की पुष्टि करते हैं।
दूसरा, उन ५७ आम आदमी में से कई या तो किसान थे या खानाबदोश। उनमें से एक ने तिब्बती क्षेत्रों में सरकार की खनन गतिविधियों का विरोध करने के लिए एक खनन क्षेत्र में आत्मदाह कर लिया। तिब्बत की अर्थव्यवस्था और विकास पर केंद्रित शोध करनेवाले एंड्रयू मार्टिन फिशर नामके एकेडमिशियन ने कहा कि भले ही आत्मदाह और तिब्बती क्षेत्रों में चीन की ग्रामीण पुनर्वास परियोजना के बीच प्रत्यक्ष संबंध का कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं है, लेकिन इस परियोजना का सिचुआन और किंघई क्षेत्रों में खानाबदोश और स्थानीय समुदायों पर गहरा विघटनकारी प्रभाव पड़ा है।
इसने पहले से मौजूद दबाव को बढ़ा दिया। विशेष रूप से युवाओं के बीच खेती से दूर नए छोटे शहर में जाने की मजबूरी, जहां रोजगार के अवसर गंभीर रूप से सीमित हैं और सामाजिक समस्याएं लगातार बिगड़ती जा रही हैं। एड्रियन ज़ेंज़ के एक अन्य अध्ययन से पता चलता है कि चीन ने हजारों तिब्बती किसानों और खानाबदोशों को जबरन श्रम शिविरों में धकेल दिया है।
तीसरा, आत्मदाह के कई मामलों में छात्र और भिक्षु शामिल हैं, जो तिब्बती भाषा और पहचान के संरक्षण और संवर्द्धन के कट्टर समर्थक हैं। इस समूह में १९-१९ वर्ष की छेरिंग क्यी और गोंपो छेरिंग तथा १८ वर्ष के कलसांग जिनपा शामिल हैं।
छेरिंग वोसेर की किताब ‘तिब्बत ऑन फायर’ से पता चलता है कि छेरिंग क्यी के आत्मदाह के बाद हजारों तिब्बती कॉलेज के छात्र और शिक्षक भाषाई और राष्ट्रीय समानता का आह्वान करते हुए सड़कों पर उतर आए। ऐसा ही विरोध कलसांग जिनपा कांड के बाद भी हुआ था।
इसलिए, यह स्पष्ट है कि तिब्बती भाषा और पहचान के संरक्षण और संवर्द्धन पर चिंता युवा पीढ़ी में ज्यादा है। २००८ के विरोध के बाद से चीनी सरकार तिब्बती भाषा को राष्ट्रीय सुरक्षा और दीर्घकालिक स्थिरता के लिए एक खतरे के रूप में देखने लगी है। यहां तक कि छेवांग नोरबू के कुछ गीत, जैसे कि त्सम्पा और माई ब्यूटीफुल होमलैंड- तिब्बती पहचान और परंपरा के प्रतिनिधि गीत बन गए हैं।
चौथा, कुछ विरोध आत्मदाह के लिए जान-बूझकर पुलिस स्टेशनों, सार्वजनिक सुरक्षा ब्यूरो कार्यालयों, सरकारी भवनों और मठों के पास के स्थान चुने गए। २०१२ में १८वीं राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस के दौरान और तिब्बती राष्ट्रीय विद्रोह दिवस (१०मार्च) की पूर्व संध्या पर कई आत्मदाह हुए।
इस तरह हम देख सकते हैं कि उनकी मंशा सरकार के खिलाफ है।
उपरोक्त आंकड़ों से पता चलता है कि चीन द्वारा धार्मिक दमन की पराकाष्ठा, तिब्बती संस्कृति और भाषा को व्यवस्थित रूप से आत्मसात करना और खानाबदोशों का जबरन पुनर्वास से सरकार के खिलाफ आक्रोश बढ़ रहा है और तिब्बती पहचान और राष्ट्रवाद को खासकर युवा पीढ़ी के बीच मजबूत करने में मदद कर रहा है।
सरकार को इस तरह के घटनाक्रमों की स्पष्ट समझ है और इसके जवाब में तिब्बती भाषा के शिक्षकों, बुद्धिजीवियों और धार्मिक और सांस्कृतिक नेताओं के व्यवस्थित उत्पीड़न के साथ तिब्बत नीति का चीनीकरण शुरू किया गया है।
तिब्बत एक्शन इंस्टीट्यूट ने एक रिपोर्ट जारी की जिसमें दिखाया गया है कि ८,००,००० से अधिक तिब्बतियों को बोर्डिंग स्कूलों में शामिल होने के लिए मजबूर किया गया है। वहां बच्चों को उनके परिवारों और समुदायों से अलग कर दिया जाता है, ताकि उन्हें राजनीतिक पुन: शिक्षा दी जा सके और चीनी के रूप में उनकी पहचान को मजबूत किया जा सके।
आत्मदाह करनेवाले प्रमुख लोगों में युवा पीढ़ी का जनसांख्यिकीय महत्व और चीनी सरकार द्वारा उनके चीनीकरण की नीति के साथ जोड़ने की प्रतिक्रिया से संकेत मिलता है कि चीन बड़े पैमाने पर युवा तिब्बतियों को चीनी कम्युनिस्ट पार्टी शासन की स्थिरता और सुरक्षा के लिए नए खतरे के रूप में निशाना बना रही है।
डोल्मा छेरिंग नेशनल चेंग कुंग यूनिवर्सिटी के रिसर्च सेंटर फॉर ह्यूमैनिटीज एंड सोशल साइंसेज में पोस्ट डॉक्टरल फेलो हैं।