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धर्मशाला। दुनिया भर के लगभग २०० सांसदों, राजनयिकों और विशेषज्ञों के एक निकाय ‘चीन पर अंतर-संसदीय गठबंधन (आईपीएसी)’ का सम्मेलन शुक्रवार, २९ अक्तूबर को रोम में आयोजित किया गया। इस प्रतिरोधी बैठक का उद्देश्य जी-२० लीडर्स समिट से पहले इसके नेताओं से चीनी सरकार के खिलाफ कठोर रुख अपनाने की मांग करना था।
केंद्रीय तिब्बती प्रशासन (सीटीए) के सिक्योंग पेनपा त्सेरिंग उन नेताओं में शामिल थे, जिन्होंने चीन के पाखंड को उजागर किया और तिब्बतियों, उग्यूरों, ताइवानियों और हांगकांग वासियों के खिलाफ चीन के गैरकानूनी कार्यों का विस्तार से वर्णन किया। उन्होंने आईपीएसी जैसे मंच के प्रति अपना आभार व्यक्त किया कि चीनी सरकार के अधिनायकवादी और अन्यायपूर्ण शासन के विरोध में खुलकर प्रतिनिधित्व करने के अलावा उसने चीन के खिलाफ लड़ाई को आगे बढ़ाया। तिब्बतियों और अन्य लोगों के निर्विवाद अधिकार का बचाव करते हुए सिक्योंग ने जोर देकर कहा कि ‘अधिनायकवाद के लिए कोई जगह नहीं है’।
जी-२० के लोकतांत्रिक देशों के सदस्यों को संबोधित करते हुए सिक्योंग ने जोर देकर कहा, ‘अपने ही देशों में स्वतंत्रता होना पर्याप्त नहीं है क्योंकि पूरी दुनिया मनुष्यों का एक अन्योन्याश्रित समुदाय है। यह सर्वोपरि है कि आप यह सुनिश्चित करें कि आप अपने देशों में जिन मूल्यों का पालन करते हैं, वे चीनी सरकार जैसे अधिनायकवादी देशों के नागरिकों के लिए भी उपलब्ध हों’।
चूंकि जी-२० जलवायु परिवर्तन जैसे प्रमुख मुद्दों पर भी ध्यान केंद्रित करता है, सीटीए के सिक्योंग ने सदस्यों से तिब्बती पठार के सामने आने वाले जलवायु मुद्दे को उठाने और उस पर चर्चा करने की अपील की, जिसे व्यापक रूप से तीसरे ध्रुव के रूप में जाना जाता है। उन्होंने एशिया की प्रमुख नदियों में तिब्बत के योगदान पर जोर दिया। तिब्बती पठार पर्माफ्रॉस्ट का सबसे बड़ा भंडार है, इसे देखते हुए कि चीन पर जलवायु परिवर्तन के खिलाफ उसके रवैये के लिए सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। सिक्योंग ने कहा कि इसे भी देखा जाना चाहिए कि चीन पर्यावरणीय मुद्दों और जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए किस तरह का प्रयास करता है। हालांकि उसके प्रयास में बहुत कम पारदर्शिता है।
सिक्योंग ने वर्गीकृत करते हुए कहा कि चीन हमेशा एक सामंजस्यपूर्ण समाज के बारे में बात करता है, लेकिन वास्तव में वह वैश्विक असामंजस्य में प्रमुख पक्षकार है। भारतीय सीमा के अतिक्रमण करने के आक्रामक प्रयास भारत के खिलाफ चीन के जुझारूपन को उजागर करता है, उसी तरह ताइवान के खिलाफ दक्षिण चीन सागर को नियंत्रित करने का उसका प्रयास है। उन्होंने उल्लेख किया कि इन मामलों में चीन जिस तरह का बर्ताव कर रहा है वह निस्संदेह रूप से आपत्तिजनक है।
सिक्योंग पेनपा त्सेरिंग ने कहा, ‘राजनीतिक, सैन्य और आर्थिक रूप से सशक्त होने के बावजूद चीन में नैतिक शक्ति का अभाव है।’ सिक्योंग ने अपने संबोधन का समापन चीन से अंतरराष्ट्रीय समुदाय में विश्वास बनाने के साथ तरीके बदलने का आग्रह करते हुए किया।
उसी सम्मेलन में, अमेरिका, यूरोप, कनाडा, जापान और भारत आदि जैसे लोकतांत्रिक देशों के सांसदों ने सर्वसम्मति से चीन को मानवाधिकारों के हनन के लिए जवाबदेह ठहराया और दुनिया भर के देशों को धमकियां देने से बाज आने की चेतावनी भी दी।