प्रो0 श्यामनाथ मिश्र / पत्रकार एवं अध्यक्ष, राजनीति विज्ञान विभाग
राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, खेतड़ी (राजस्थान)
तिब्बत के सिक्योंग (राज्याध्यक्ष) पेंपा छेरिंग की न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया की आधिकारिक यात्रा से विस्तारवादी चीन बेचैन हो गया है। जून, 2023 में सम्पन्न इस सफल यात्रा के दौरान पेंपा छेरिंग का दोनों देशो की सीनेट तथा हाउस ऑफ रिप्रजेन्टेटिव्स में गर्मजोषी से स्वागत किया गया। कई सांसदों ने साम्यवादी चीन की विस्तारवादी नीति का विरोध करते हुए तिब्बती संघर्ष को भरपूर सहायता एवं समर्थन जारी रखने की घोषणा की। न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया ने स्पष्ट कर दिया कि वे चीनी दबाव में आये बिना तिब्बती संघर्ष के साथ रहेंगे। ज्ञातव्य है कि चीन सरकार तिब्बती आंदोलन के समर्थक देशो को गंभीर परिणाम भुगतने की चेतावनी देती रहती है।
भारत एवं चीन के बीच स्वतंत्र तिब्बत एक बफर स्टेट (मघ्यस्थ राज्य) था। तब भारत की सीमा स्वतंत्र तिब्बत से जुड़ी थी, न कि चीन से। उस समय चीन की सीमा भी तिब्बत से सटी थी, न कि भारत से। स्वतंत्र तिब्बत पर साम्राज्यवादी चीन ने 1959 में अवैध नियंत्रण कर लिया। परिणामतः चीन की सीमा भारत से जुड़ गई। तभी भारत-तिब्बत सीमा की जगह भारत-चीन सीमा अस्तित्व में आ गई। इससे चीन-तिब्बत सीमा का अस्तित्व भी मिट गया। आज भी हमारी भारत-तिब्बत सीमा पुलिस 1959 की भारत-तिब्बत सीमा की याद दिलाती रहती है। इसी प्रकार चीन की दीवार बताती है कि चीन की सीमा चीन की दीवार है। बाकी चीनी क्षेत्र चीन का अवैध कब्जा है।
चीन सरकार ऐतिहासिक प्रमाणों को विकृत एवं परिवर्तित करके तिब्बत को चीन का अभिन्न अंग बताती है। उसके अनुसार तिब्बत का सवाल चीन का घरेलू सवाल है तथा इसमें किसी भी अन्य देश को हस्तक्षेप का अधिकार नहीं है। निर्वासित तिब्बत सरकार की कशाग (संसद) द्वारा संचालित तिब्बत समर्थन (एडवोकेसी) अभियान ने मौलिक प्रमाणों एवं तथ्यों को प्रकाषित-प्रचारित-प्रसारित करके चीन को बेनकाब कर दिया है। इस अभियान के लिये गठित स्वैच्छिक तिब्बत समर्थन समूह में युवापीढ़ी की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। सिक्योंग पेंपा छेरिंग की प्रेरणा, प्रोत्साहन और अपील से प्रभावित तिब्बती युवावर्ग की तिब्बत समर्थन अभियान में उत्तरोत्तर बढ़ती भागीदारी अभिनंदनीय है। चीन की बेचैनी का कारण यही है। तिब्बत के विषय में उसके भ्रामक दुष्प्रचार पर कोई विष्वास नहीं कर रहा। विष्वभर में तिब्बत समर्थन अभियान के माध्यम से स्पष्ट है कि लोकतांत्रिक मूल्यों, मानवीय आदर्षों तथा अंतरराष्ट्रीय कानून की अवहेलना कर चीन ने तिब्बत पर अवैध कब्जा कर रखा है।
न्यूजीलैंड एवं ऑस्ट्रेलिया में रह रहे तिब्बतियों द्वारा कई जगह पेंपा छेरिंग के हार्दिक स्वागत से भी प्रमाणित है कि विभिन्न देशों में निवास कर रहे तिब्बती छोटे-छोटे शहरों में भी चीन को सफलतापूर्वक बेनकाब कर रहे हैं। सिक्योंग पेंपा छेरिंग ने अपनी यात्रा के दौरान दोनों देशो में जनप्रतिनिधियों, विचारकों, पत्रकारों, नीति निर्माताओं, अधिकारियों तथा तिब्बतियों एवं तिब्बत समर्थकों से तिब्बत समस्या के समाधान हेतु चीन पर दबाव बढ़ाने की अपील की। उन्होंने सभी कार्यक्रमों में चीन द्वारा जारी मानवाधिकार हनन, प्राकृतिक संसाधनों के विनाष, पर्यावरण प्रदूषण तथा तिब्बती पहचान को मिटाने के चीनी षड्यंत्र पर विस्तार से प्रकाष डाला। उन्होंने आग्रह किया कि चीन के साथ द्विपक्षीय वार्ता के समय सभी देश तिब्बत के सवाल को गंभीरता से उठायें।
तिब्बती सिक्योंग पेंपा छेरिंग ने बताया कि कशाग द्वारा तिब्बती समुदाय के लिये कई कल्याणकारी कार्यक्रम भारत सहित विष्व के अनेक देशो में जारी हैं। उन्होंने बलपूर्वक कहा कि सर्वाधिक जरूरी है मध्यममार्ग नीति के अनुरूप तिब्बत को चीन के अंदर ही वास्तविक स्वायत्तता मिले। चीन के संविधान और राष्ट्रीयता कानून के अनुसार चीन सरकार अंतरराष्ट्रीय संबंध और प्रतिरक्षा विभाग अपने पास रखे। वह शिक्षा, कृषि आदि अन्य सभी विभाग तिब्बत सरकार को सौंप दे। इससे चीन की भौगोलिक एकता-अंखडता सुरक्षित रहेगी और तिब्बती समुदाय को स्वषासन का अधिकार मिल जायेगा।
चीन के लिये उचित है कि वह तिब्बत को वास्तविक स्वायत्तता प्रदान कर दे। तथाकथित स्वायत्तता उसने पहले से दे रखी है। इसके अंतर्गत उसने तिब्बत के भौगोलिक क्षेत्रों में काट-छाँट कर उन्हें चीन का भूभाग बना दिया है। शेष क्षेत्रों में भी चीनी प्रशासन और पहचान प्रभावी है। तिब्बती अपनी पहचान तथा पकड़ छोड़ने के लिये बाध्य हैं। यही कारण है कि तिब्बत में चीन के प्रति विरोध हमेशा बढ़ता जा रहा है। चीन के विरूद्ध ऐसा ही विरोध ताइवान, मंगोलिया, इस्ट तुर्किस्तान एवं हांगकांग में भी उफान पर है। इससे बचाव का एकमात्र उपाय यही है कि चीन अपने पड़ोसी देशो में उपनिवेशवादी नीति समाप्त करे। भारत भी यही चाहता है।
तिब्बत के समर्थन में विश्व जनमत के अनुरूप भारत को अपनी महत्वपूर्ण भूमिका खुलकर निभानी होगी। भारत की कूटनीतिक आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए सावधानीपूर्वक कदम बढ़ाने होंगे। तथाकथित हिन्दी चीनी भाई-भाई, पंचशील और सफेद कबूतर उड़ाने के मायाजाल से निकलकर हम भारत को लगातार शक्तिशाली बनायें। चीन ने 1962 में भारत के बड़े भूभाग को हथिया लिया था। उसके बाद भी उसने कई भारतीय भूभागों को हथियाने की कोशिश की है। हमारा सर्वसम्मत संसदीय संकल्प और राष्ट्रीय कर्तव्य है कि हम भारतीय भूभाग को चीनी चंगुल से मुक्त करायें। इसके लिये और तिब्बत समस्या के हल के लिये भारत की शक्ति को हर तरह से बढ़ाना जरूरी है। चीन को जवाब उसी की भाषा में देना होगा। विश्वशांति के लिये भी ऐसा करना जरूरी है।