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सराहनीय है भारतीय राष्ट्रीय समारोहों में तिब्बतियों की भागीदारी

January 31, 2023

प्रो0 श्यामनाथ मिश्र

पत्रकार एवं अध्यक्ष, राजनीति विज्ञान विभाग

निर्वासित तिब्बत सरकार एवं विश्वभर में फैले तिब्बती समुदाय द्वारा भारतीय राष्ट्रीय समारोहों में उत्साहपूर्ण भागीदारी से भारत-तिब्बत संबंध लगातार मजबूत हो रहे हैं। भारतीय गणतंत्र दिवस का निर्वासित तिब्बत सरकार द्वारा आयोजन इसी का सराहनीय उदाहरण है। अभी 26 जनवरी, 2023 को तिब्बत के सिक्योंग (राज्याध्यक्ष) पेंपा छेरिंग ने भारतीय राष्ट्रीय ध्वज को फहराया और हम सभी भारतीयों को गणतंत्र दिवस की बधाई दी। ऐसे आयोजन से संपूर्ण तिब्बती समाज में नई ऊर्जा प्राप्त होती है और वे पुनः आष्वस्त होते हैं कि तिब्बती संघर्ष भी उन्हें गणतंत्र दिवस का अवसर शीघ्र प्रदान करेगा। इस विश्वास का मूल आधार है तिब्बती समाज का लोकतंत्रीकरण। चीन के अवैध नियंत्रण के बावजूद तिब्बती जनता लोकतांत्रिक तरीके से मताधिकार का प्रयोग कर अपनी सरकार का निर्वाचन कर रही है। परम पावन दलाई लामा, जो कि पहले तिब्बत के राजप्रमुख थे, अपने सभी राजनीतिक अधिकार इसी लोकतांत्रिक तरीके से निर्वाचित तिब्बत सरकार को सौंप चुके हैं। वे स्वयम् को सिर्फ आध्यात्मिक कार्यों तक सीमित किये हुए हैं। भविष्य में भी तिब्बत का राजप्रमुख जनता द्वारा ही निर्वाचित होगा, जो कि तिब्बत के गणतंत्र अर्थात् रिपब्लिक होने की महत्वपूर्ण शर्त है।

बौद्ध धर्मगुरु दलाई लामा का प्रामाणिक मत है कि प्राचीनकाल से भारत लोकतंत्र और गणतंत्र का केन्द्र है। समस्त विश्व, विशेषकर तिब्बत को इसकी शिक्षा यहीं से लेनी है। भगवान् बुद्ध के विचार भारत से तिब्बत पहुँचे थे इसीलिये वे भारत को ’‘गुरु’’ तथा तिब्बत को ‘‘चेला’’ कहते हैं। आशा है कि बोधगया में स्थापित हो रहा ‘‘दलाईलामा सेंटर फॉर तिब्बतन एंड इंडियन ऐंसियेंट विज्डम’’ भारत-तिब्बत संबंधों को और भी मजबूत करेगा। जनवरी 2023 में अपने बिहार प्रवास के दौरान बोधगया में इस सेंटर का शिलान्यास दलाईलामा द्वारा किया गया। इस कार्यक्रम में भारत के कानून एवं न्याय मंत्री किरेन रिजुजु, बिहार से सांसद सुशील कुमार मोदी तथा इंडियन काउंसिल ऑफ कल्चरल रिलेसंस के अध्यक्ष डॉ0 विनय सहस्रबुद्धे की भागीदारी से स्पष्ट है कि यह सेंटर प्राचीन भारतीय तथा तिब्बती ज्ञान को भविष्य में अधिकाधिक प्रासंगिक बनाने में अति उपयोगी सिद्ध होगा।

दलाई लामा का सर्वाधिक जोर मानवीय मूल्यों की मजबूती पर है। भारतीय ज्ञान की नालंदा परंपरा में शांति, अहिंसा, करुणा, सद्भाव एवं सहयोग जैसे मानवीय मूल्यों को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त था। इसी कारण भारत ‘‘विश्वगुरु’’ था। ये मानवीय मूल्य पूर्णतः आध्यात्मिक और लोकतांत्रिक हैं। धर्मविरोधी नास्तिक लोगों के लिये भी ये उतना ही जरूरी हैं जितना धर्मनिष्ठ आस्तिक लोगों के लिये। दलाई लामा इनके प्रचार-प्रसार हेतु पूर्णतः समर्पित हैं। उनके कार्य को नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। उनके दीर्घजीवन हेतु गत 01 जनवरी, 2023 को इंटरनेशनल गेलुक फाउंडेषन द्वारा विशेष पूजा-प्रार्थना की गई।

दलाई लामा को पूरा विश्वास है कि विभिन्न बाधाओं के बावजूद मानवीय मूल्य मजबूत रहेंगे। ये प्रतिकूल परिस्थिति को अनुकूल परिस्थिति में बदलने की क्षमता रखते हैं। नई दिल्ली स्थित भारतीय लोक प्रशासन संस्थान द्वारा आयोजित टी.एन. चतुर्वेदी स्मृति व्याख्यान में भी उन्होंने मानवीय मूल्यों को ही जीवनमूल्य तथा विभिन्न समस्याओं का समाधान बताया। पूर्व राज्यपाल तथा भारत सरकार में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक रहे टी.एन. चतुर्वेदी का व्यक्तित्व-कृतित्व भी भारतीय मानवीय मूल्यों से प्रेरित-प्रभावित था। उनके आचार-विचार-व्यवहार में ये कूट-कूटकर भरे हैं। ऐसे महामानव की स्मृति में आयोजित व्याख्यान में अपने संबोधन से दलाईलामा ने स्पष्ट कर दिया है कि हमारी अमानवीय सोच ही अनेक समस्याओं की जड़ है। मानवता विरोधी कार्य-व्यवहार से समस्यायें सिर्फ बढ़ेंगी।

प्राचीन भारतीय नालंदा परंपरा में निहित मानवीय मूल्यों के प्रचार-प्रसार में संपूर्ण तिब्बती समुदाय की रचनात्मक भागीदारी स्वागत योग्य है। विश्वभर में अभी 13 तिब्बत कार्यालय हैं। वे लगातार ‘‘तिब्बतन एडवोकेसी कैंपेन’’ चलाकर विश्व समुदाय को बता रहे हैं कि चीन सरकार तिब्बत में क्रूरतापूर्ण अमानवीय व्यवहार कर रही है। वहाँ मानवाधिकारों का हनन, प्राकृतिक संसाधनों की लूट एवं बर्बादी, पर्यावरण विनाष, बौद्ध केन्द्रों का विध्वंस, बौद्धों का उत्पीड़न तथा ऐतिहासिक-सांस्कृतिक स्थलों का चीनीकरण षड्यंत्रपूर्वक जारी है। साजिशपूर्वक संपूर्ण तिब्बत का चीनीकरण होने से अपने ही देश में तिब्बती उपेक्षित हो गये हैं। इसी के परिणामस्वरूप गत कुछ वर्षों में ही 150 से ज्यादा तिब्बती अपने ही हाथो अपने शरीर में आग लगाकर आत्मदाह कर चुके हैं। आत्मदाह की घटनायें विचलित करने वाली हैं फिर भी चीन सरकार की क्रूरता बढ़ती जा रही है। वह आत्मदाह के शिकार तिब्बतियों के परिजनों को प्रताड़ित कर रही है। चीन सरकार 1959 से ही तिब्बत में तिब्बती पहचान मिटाने में लगी है। कुल मिलाकर तिब्बत में मानवीय मूल्य संकटग्रस्त हैं।

तिब्बतन एडवोकेसी कैंपेन चलाकर तिब्बत में मानवीय मूल्यों को फिर से स्थापित एवं सुदृढ़ करने की मांग की जा रही है। इसके लिये विश्व समुदाय दलाई लामा एवं तिब्बत सरकार के प्रतिनिधि मंडल के साथ पुनः वार्ता प्रारंभ करने हेतु चीन सरकार को बाध्य करे। अन्तरराष्ट्रीय कानूनों, लोकतांत्रिक आदर्षों तथा मानवीय मूल्यों की धज्जियाँ उड़ा रही चीन सरकार हठधर्मिता छोड़कर तिब्बत को ‘‘वास्तविक स्वायत्तता’’ प्रदान करे जो कि चीनी संविधान और राष्ट्रीयता कानून के अनुरूप है। इससे चीन के अंदर रहते हुए भी तिब्बती लोगों को स्वषासन का अधिकार मिल जायेगा। बीच का रास्ता (मध्यममार्ग) यही है, जो कि व्यावहारिक है और तिब्बत तथा चीन के लिये समानरूप से कल्याणकारी है।


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