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सिक्योंग पेन्पा शेरिंग ने दिल्ली में ‘तिब्बत के भविष्य की रूपरेखा’ विषयक सेमिनार को संबोधित किया

October 22, 2024

बाएं से दाएं: श्री अशोक कुमार मेहता, जिन्होंने सत्र को संचालित किया, केंद्रीय तिब्बती प्रशासन के सिक्योंग पेनपा त्सेरिंग, श्री ओम प्रकाश टंडन और श्री सुजीत कुमार इंडिया इंटरनेशनल सेंटर एनेक्सी में एकत्रित हुए।

नई दिल्ली। २१ अक्तूबर २०२४ की शाम को केंद्रीय तिब्बती प्रशासन के सिक्योंग पेन्पा शेरिंग ने ‘तिब्बत के भविष्य की रूपरेखा: तिब्बत समाधान अधिनियम, निर्वासन में रणनीतियां, परम पावन दलाई लामा की विरासत और भारत की भूमिका’ विषयक एक वार्ता सत्र के दौरान मुख्य भाषण दिया।

इस कार्यक्रम का आयोजन इंडिया इंटरनेशनल सेंटर एनेक्सी के लेक्चर रूम १ में फाउंडेशन फॉर नॉन-वायलेंट अल्टरनेटिव्स (एफएनवीए) द्वारा किया गया था। प्रतिष्ठित वक्ताओं में सिक्योंग पेन्पा शेरिंग और एफएनवीए के संस्थापक ट्रस्टी ओम प्रकाश टंडन शामिल थे। सिक्योंग ने यहां तिब्बती मामलों की वर्तमान स्थिति के बारे में जानकारी दी। मेजर जनरल अशोक कुमार मेहता ने विचारों के रचनात्मक आदान-प्रदान को सुनिश्चित करते हुए सत्र का संचालन किय। लोकसभा के पूर्व सदस्य और ऑल पार्टी इंडियन पार्लियामेंट्री फोरम फॉर तिब्बत (एपीआईपीएफटी) के पूर्व संयोजक श्री सुजीत कुमार ने भी चर्चा में भाग लिया। चर्चा में रिज़ॉल्व तिब्बत ऐक्ट के महत्व और तिब्बत और तिब्बती निर्वासित समुदाय के भविष्य पर इसके संभावित प्रभाव पर ध्यान केंद्रित किया गया। सिक्योंग ने निर्वासन में तिब्बती स्वतंत्रता आंदोलन को बनाए रखने और मजबूत करने के लिए केंद्रीय तिब्बती प्रशासन (सीटीए) द्वारा विकसित की जा रही रणनीतियों पर विस्तार से बताया।

सिक्योंग ने ‘तिब्बत पॉलिसी एंड सपोर्ट ऐक्ट (तिब्बत नीति और समर्थन अधिनियम)’ के महत्व को उजागर किया तथा तिब्बती लोगों के अधिकारों और स्वायत्तता की वकालत करने में इसकी भूमिका पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि कैसे यह अधिनियम तिब्बत के प्रति अमेरिकी नीति के लिए एक संरचित दृष्टिकोण प्रदान करता है, तिब्बती मुद्दे के लिए अंतरराष्ट्रीय समर्थन को मजबूत करता है और तिब्बत में मानवाधिकारों के हनन के लिए चीनी सरकार को जवाबदेह ठहराता है। उन्होंने कहा, ‘यह अधिनियम केंद्रीय तिब्बती नेतृत्व का समर्थन करता है, तिब्बती मुद्दे को आगे बढ़ाने के लिए वैश्विक भागीदारों के साथ संवाद और सहयोग को प्रोत्साहित करता है।’ उन्होंने आगे अपना दृष्टिकोण स्पष्ट करते हुए कहा, ‘हम एक स्वतंत्र और लोकतांत्रिक तिब्बत की आकांक्षा रखते हैं, और हम शांतिपूर्ण प्रतिरोध और न्याय की खोज के लिए प्रतिबद्ध हैं।’

इसके अलावा, सिक्योंग ने तिब्बत के नेतृत्व के इतिहास का संक्षिप्त विवरण दिया, जिसमें १५वीं शताब्दी से लगातार दलाई लामाओं का नेतृत्व स्थापित रहा है। उन्होंने १९१३ के बाद तिब्बत की संप्रभुता के बारे में गलत धारणाओं को स्पष्ट करते हुए कहा कि १९१२ में किंग राजवंश के पतन के बाद चीनी सेनाओं को खदेड़ने के बाद तिब्बत ने स्वशासन बनाए रखा। उन्होंने जोर देकर कहा, ‘किसी भी विदेशी देश ने कभी भी तिब्बत पर सीधे शासन नहीं किया है। हालांकि बाहरी प्रभाव के उदाहरण रहे हैं, लेकिन तिब्बत कभी भी सीधे विदेशी नियंत्रण में नहीं रहा है।’

सिक्योंग ने भारत और तिब्बत के बीच गहरे ऐतिहासिक संबंधों का वर्णन किया और तिब्बती लिपियों और धर्म पर भारत के प्रभाव पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि कुछ ऐतिहासिक विवरणों के अनुसार, तिब्बत के पहले राजा भारतीय वंश के थे। इसके अलावा, उन्होंने परम पावन दलाई लामा के नेतृत्व में निर्वासन में जाने के बाद तिब्बती शरणार्थियों को उनके समर्थन के लिए भारत सरकार और लोगों के प्रति आभार व्यक्त किया। सिक्योंग ने तिब्बती पठार के भू-राजनीतिक और सामरिक महत्व पर भी प्रकाश डाला। इस दौरान उन्होंने ब्रह्मपुत्र या यारलुंग त्सांगपो और मेकांग सहित प्रमुख नदियों के स्रोत के रूप में तिब्बत की भूमिका पर प्रकाश डाला और तिब्बत की जलधाराओं को चीन द्वारा मोड़ने पर चिंता व्यक्त की। चीन का यह कृत्य भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया जैसे निचले देशों को प्रभावित करता है।

वार्ता का मुख्य आकर्षण तिब्बती स्वतंत्रता और तिब्बती संस्कृति और पहचान के संरक्षण के लिए वैश्विक आंदोलन को आकार देने में परम पावन १४वें दलाई लामा की स्थायी विरासत को लेकर चर्चा रहा। १९५९ में अपने निर्वासन के बाद से परम पावन तिब्बती लोगों के अधिकारों की वकालत करने वाले और करुणा और अहिंसा के संदेश को बढ़ावा देने वाले महत्वपूर्ण शख्सियत रहे हैं। सिक्योंग पेन्पा शेरिंग ने कहा, ‘परम पावन की शिक्षाओं ने न केवल तिब्बत के भीतर समर्थन को बढ़ावा दिया है, बल्कि दुनिया भर के व्यक्तियों और आंदोलनों को न्याय और मानवाधिकारों के लिए खड़े होने के लिए प्रेरित किया है।’ उन्होंने कहा, ‘बातचीत और चीजों को समझने के प्रति उनकी प्रतिबद्धता तिब्बती मुद्दे के साथ प्रतिध्वनित होती रहती है।’

सिक्योंग ने तिब्बती पठार के महत्व को रेखांकित किया, जिसे अक्सर ‘दुनिया की छत’, ‘तीसरा ध्रुव’ या ‘एशिया का जल मीनार’ कहा जाता है। उन्होंने कहा, ‘तिब्बत से निकलने वाली नदियाँ, जैसे यारलुंग त्सांगपो, माचू और द्ज़ाचू, एशिया के करोड़ों लोगों की जीवन रेखा बन गई हैं।’ उन्होंने बताया कि ‘दुनिया की दो सबसे पुरानी सभ्यताएं- सिंधु घाटी सभ्यता और चीनी सभ्यता- भी तिब्बत की नदियों पर निर्भर हैं।’

हालांकि, सिक्योंग ने चीनी कम्युनिस्ट सरकार द्वारा तिब्बती नदियों के चल रहे कुप्रबंधन पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा, ‘यह स्थिति पर्यावरण और निचले इलाके के देशों में लाखों लोगों की आजीविका के लिए गंभीर खतरा है।’ उन्होंने भविष्य के लिए गंभीर नतीजों की चेतावनी दी और इन महत्वपूर्ण जल संसाधनों की रक्षा के लिए स्थायी प्रथाओं की तत्काल आवश्यकता पर बल दिया।

सत्र का समापन प्रश्नोत्तर सत्र के साथ हुआ, जिसमें प्रतिभागियों को सीधे जुड़ने और सवाल पूछने का मौका मिला। इस कार्यक्रम ने वर्तमान राजनीतिक स्थिति, तिब्बती समुदाय के सामने आने वाली चुनौतियों और तिब्बत के भविष्य की सुरक्षा के लिए सीटीए की योजनाओं के बारे में प्रश्नों के उत्तर देने के माध्यम से जानकारी दी गई।

सिक्योंग पेनपा त्सेरिंग ने श्रोताओं को संबोधित किया।
सिक्योंग पेनपा त्सेरिंग ने श्रोताओं को संबोधित किया।
तिब्बत पर वार्ता सत्र की झलक।
वक्ता के भाषण के समापन के बाद एक सहभागी अपना प्रश्न पूछ रहा है।
वरिष्ठ शोधकर्ता तेनज़िन दमधुल, वी-टैग सदस्यों और एफएनवीए टीम के साथ सिक्योंग पेनपा त्सेरिंग

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