भाषा
བོད་ཡིག中文English
  • मुख पृष्ठ
  • समाचार
    • वर्तमान तिब्बत
    • तिब्बत समर्थक
    • लेख व विचार
    • कला-संस्कृति
    • विविधा
  • हमारे बारे में
  • तिब्बत एक तथ्य
    • तिब्बत:संक्षिप्त इतिहास
    • तिब्बतःएक अवलोकन
    • तिब्बती राष्ट्रीय ध्वज
    • तिब्बती राष्ट्र गान (हिन्दी)
    • तिब्बत स्वायत्तशासी क्षेत्र
    • तिब्बत पर चीनी कब्जा : अवलोकन
    • निर्वासन में तिब्बती समुदाय
  • केंद्रीय तिब्बती प्रशासन
    • संविधान
    • नेतृत्व
    • न्यायपालिका
    • विधायिका
    • कार्यपालिका
    • चुनाव आयोग
    • लोक सेवा आयोग
    • महालेखा परीक्षक
    • १७ केंद्रीय तिब्बती प्रशासन आधिकारिक छुट्टियां
    • CTA वर्चुअल टूर
  • विभाग
    • धर्म एवं सांस्कृति विभाग
    • गृह विभाग
    • वित्त विभाग
    • शिक्षा विभाग
    • सुरक्षा विभाग
    • सूचना एवं अंतर्राष्ट्रीय संबंध विभाग
    • स्वास्थ विभाग
  • महत्वपूर्ण मुद्दे
    • तिब्बत जो मुद्दे सामना कर रहा
    • चीन-तिब्बत संवाद
    • मध्य मार्ग दृष्टिकोण
  • वक्तव्य
    • परम पावन दलाई लामा द्वारा
    • कशाग द्वारा
    • निर्वासित संसद द्वारा
    • अन्य
  • मीडिया
    • तस्वीरें
    • विडियो
    • प्रकाशन
    • पत्रिका
    • न्यूज़लेटर
  • तिब्बत समर्थक समूह
    • कोर ग्रुप फॉर तिब्बतन कॉज़ – इंडिया
    • भारत तिब्बत मैत्री संघ
    • भारत तिब्बत सहयोग मंच
    • हिमालयन कमेटी फॉर एक्शन ऑन तिबेट
    • युथ लिब्रेशन फ्रंट फ़ॉर तिबेट
    • हिमालय परिवार
    • नेशनल कैंपेन फॉर फ्री तिबेट सपोर्ट
    • समता सैनिक दल
    • इंडिया तिबेट फ्रेंडशिप एसोसिएशन
    • फ्रेंड्स ऑफ़ तिबेट
    • अंतरष्ट्रिया भारत तिब्बत सहयोग समिति
    • अन्य
  • संपर्क
  • सहयोग
    • अपील
    • ब्लू बुक

६ जुलाई, दलाई लामा के जन्म दिवस पर विशेष:प्रवीण गुगनानी

July 5, 2013

नवभारत टाइम्स, 5 जुलाई, 2013

unnamed६ जुलाई, दलाई लामा के जन्म दिवस पर विशेष:

शांति के नोबेल से सम्मानित आज भी अपनी भूमि से वंचित विश्व के हाल ही के इतिहास के महान नेताओं का उल्लेख करना हो तो महात्मा गांधी, मार्टिन लूथर किंग, जार्ज वाशिंगटन, अब्राहम लिंकन, विंस्टन चर्चिल, केनेडी आदि नेताओं के बाद नेलसन मंडेला और दलाई लामा ही ऐसे व्यक्तित्व हैं जिनकों आज समूचा विश्व आदर भरी दृष्टि से देखता है. विश्व शान्ति के साथ साथ मानवता मात्र के लिए किये गए या किये जा रहे इनके प्रयासों के लिए समूचा विश्व समुदाय इन्हें सम्मान पूर्वक पुकारता है. इन नेताओं में यदि हम आज के युग की जीवंत संघर्ष गाथा के रूप में यदि दलाई लामा जी का उल्लेख करें तो कुछ भी अतिशयोक्ति नहीं होगी. अपनी भूमि, अपनें लोग, अपनी संस्कृति और अपनी विरासत के लिए और सामान्य नागरिक अधिकारों के अनथक और अशेष संघर्ष कर रहें इस शरीर से वृद्ध किन्तु मन से नौजवान महान व्यक्ति के विषय में आज सम्पूर्ण विश्व समुदाय चिंतित है. चीन जैसी महाशक्ति के विरुद्ध लड़ते लड़ते कई अवसर आये जब लामाओं की शक्ति क्षीण पड़ती प्रतीत हुई किन्तु बाद में पता चलता था कि यह तो रणनीति का एक अंश मात्र है. विशाल सैन्य, आर्थिक और कूटनीतिक शक्ति बन चुकें चीन के सामनें लगभग पांच दशकों के इस संघर्ष की गाथा सचमुच अप्रतिम और शान्ति के शौर्य की मिसाल बन गई है. आज इस परम पावन और स्वातंत्र्य योद्धा के ७९ वें जन्मदिवस पर समस्त तिब्बतियों के साथ साथ सम्पूर्ण विश्व के मानवाधिकार और स्वातंत्र्य प्रेमी और सामान्य जन भी इस योद्धा की ओर आशा भरी नजरों से देख रहें हैं और इनके लक्ष्य की प्राप्ति के लिए प्रार्थनाएं कर रहें हैं.

चौदहवें दलाई लामा तेनजिन ग्यात्सो जिनका आज जन्मदिवस है वे तिब्बत के राष्ट्राध्यक्ष और आध्यात्मिक गुरू हैं दलाई लामा का जन्म ६ जुलाई, १९३५ को उत्तर-पूर्वी  तिब्बत के ताकस्तेर क्षेत्र में रहने वाले येओमान परिवार में हुआ था. दो वर्ष की अवस्था में बालक ल्हामो धोण्डुप की पहचान १३ वें दलाई लामा थुबटेन ग्यात्सो के अवतार के रूप में की गई. दलाई लामा एक मंगोलियाई पदवी है जिसका मतलब होता है ज्ञान का महासागर और दलाई लामा के वंशज करूणा, अवलोकेतेश्वर के बुद्ध के गुणों के साक्षात रूप माने जाते हैं. बोधिसत्व ऐसे ज्ञानी लोग होते हैं जिन्होंने अपने निर्वाण को टाल दिया हो और मानवता की रक्षा के लिए पुनर्जन्म लेने का निर्णय लिया हो. तिब्बत और विश्व भर में फैले दलाई लामा के अनुयायी उन्हें परम पावन की उपाधि से गरिमापूर्ण ढंग से संबोधित करतें हैं. वर्ष १९४९ में तिब्बत पर चीन के हमले के बाद परमपावन दलाई लामा से कहा गया कि वह पूर्ण राजनीतिक सत्ता अपने हाथ में ले लें, १९५४ में वह माओ जेडांग, डेंग जियोपिंग जैसे कई चीनी नेताओं से बातचीत करने के लिए बीजिंग भी गए, किन्तु षड्यंत्रों के शिकार होकर अंततः उन्हें वर्ष १९५९ में ल्हासा में चीनी सेनाओं द्वारा तिब्बती राष्ट्रीय आंदोलन को बेरहमी से कुचले जाने के बाद वे निर्वासन में जाने को मजबूर हो गए और इसके बाद से ही वे हिमाचल प्रदेश के नगर धर्मशाला में रह रहे हैं. तिब्बत पर चीन के सतत हो रहें हमलों के बाद परमपावन दलाई लामा ने संयुक्त राष्ट्र से तिब्बत मुद्दे को सुलझाने की अपील की है. संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा इस संबंध में १९५९, १९६१ और १९६५ में तीन प्रस्ताव पारित किए जा चुके हैं.

शांति के प्रयासों लिए विश्व के सर्वोच्च सम्मान नोबेल पुरस्कार से सम्मानित दलाई लामा को वर्ष २००७ में अमरीकी प्रशासन की ओर से अमेरिकी राष्ट्रपति जार्ज बुश ने अमेरिका के सर्वोच्च सम्मान कांग्रेसनल स्वर्ण पदक से भी सम्मानित किया. इस अवसर पर अमेरिकी राष्ट्रपति ने चीनी प्रशासन से अपील की थी की भी वह तिब्बत के इस महान नेता के साथ अपना संवाद बनाए रखें. अमेरिका ने चीन से यह स्पष्ट आग्रह किया कि वह तिब्बतियों के नागरिक अधिकारों और तिब्बत के आध्यात्मिक वातावरण से छेड़छाड़ न करें किन्तु यह सब निर्बाध चलता रहा और समूचा विश्व लगभग मौन होकर चीन के सामनें बेबस दर्शक बना रहा है. यद्दपि अमेरिकी प्रशासन का वैसा सशक्त और जोरदार समर्थन दलाई लामा को नहीं मिला जैसा यथोचित और अपेक्षित था तथापि अमेरिका दिखानें को ही सही तिब्बती संघर्ष में कुछ न कुछ नैतिक समर्थन तो दे ही रहा है.

१९८७ में परमपावन ने तिब्बत की खराब होती स्थिति का शांतिपूर्ण हल तलाशने की दिशा में पहला कदम उठाते हुए पांच सूत्रीय शांति योजना प्रस्तुत की. उन्होंने यह विचार रखा कि तिब्बत को एशिया के हृदय स्थल में स्थित एक शांति क्षेत्र, साधना स्थल और अभ्यारण्य में बदला जा सकता है जहां सभी सचेतन प्राणी शांति से रह सकें और जहां पर्यावरण की रक्षा की जाए किन्तु चीन परमपावन दलाई लामा द्वारा रखे गए विभिन्न शांति प्रस्तावों पर कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया देने में नाकाम रहा और अपनें कुतर्कों और दुराग्रहों के सहारे दलाई लामा के अभियान को कुंद और मंद करनें में अपनी विशाल आर्थिक, सैन्य और कूटनीतिक क्षमता का भरपूर उपयोग करता रहा. इस प्रकार के वातावरण में दलाई लामा ने १९८७ में अमेरिकी कांग्रेस के सदस्यों को सम्बोधित करते हुए पांच बड़ी ही सामान्य किन्तु मार्मिक मांगों को रखा

१. समूचे तिब्बत को शांति क्षेत्र में परिवर्तित किया जाए.

२.चीन उस जनसंख्या स्थानान्तरण नीति का परित्याग करे जिसके द्वारा तिब्बती लोगों के अस्तित्व पर खतरा पैदा हो रहा है.

३. तिब्बती लोगों के बुनियादी मानवाधिकार और लोकतांत्रिक स्वतंत्रता का सम्मान किया जाए.

४. तिब्बत के प्राकृतिक पर्यावरण का संरक्षण व पुनरूद्धार किया जाए और तिब्बत को नाभिकीय हथियारों के निर्माण व नाभिकीय कचरे के निस्तारण स्थल के रूप में उपयोग करने की चीन की नीति पर रोक लगे.

५. तिब्बत की भविष्य की स्थिति और तिब्बत व चीनी लोगों के सम्बंधो के बारे में गंभीर बातचीत शुरू की जाए. किन्तु विस्तारवादी और क्रूर चीनी ड्रेगन के सामनें ये मार्मिक मांगे जैसे कोई अर्थ ही नहीं रखती थी और न ही समूचे विश्व समुदाय का मत चीन के सामनें कोई अर्थ रखता है यह सिद्ध हुआ. चीन ने दलाई लामा के चित्र न लगानें तक के घोर दमनकारी आदेश पारित किये और समूचा विश्व समुदाय अश्रु भरी आँखों से देखते रहनें के सिवा कुछ न कर पाया यह आज के इस मानवाधिकार का और नागरिक अधिकारों का ढोल पीटने वालें विश्व की एक सच्ची कथा-व्यथा है.

दलाई लामा के साथ आध्यात्मिक और पूज्य का भाव रखनें वालें तिब्बती समुदाय के लिए तिब्बतियों के लिए परमपावन समूचे तिब्बत के प्रतीक हैं. तिब्बत की भूमि के सौंदर्य, उसकी नदियों व झीलों की पवित्रता, उसके आकाश की पवित्रता और  उसके पर्वतों की दृढ़ता और और इस क्षेत्र में तमाम संघर्ष के बाद भी आध्यात्मिक वातावरण बनाएं रखनें के लिए और तिब्बत की मुक्ति के लिए अहिंसक संघर्ष जारी रखने हेतु परमपावन दलाई लामा को वर्ष १९८९ का नोबेल शांति पुरस्कार प्रदान किया गया. उन्होंने लगातार अहिंसा की नीति का समर्थन करना जारी रखा है, यहां तक कि अत्यधिक दमन की परिस्थिति में भी. शांति, अहिंसा और हर सचेतन प्राणी की खुशी के लिए काम करना परमपावन दलाई लामा के जीवन का मूल लक्ष्य तो है ही वे समय समय पर  वैश्विक पर्यावरणीय समस्याओं और मानवाधिकार समस्याओं पर भी विश्व भर में प्रवचन और प्रवास करतें रहतें हैं. परमपावन दलाई लामा ने ५२ से अधिक देशों का दौरा किया है और कई प्रमुख देशों के राष्ट्रपतियों, प्रधानमंत्रियों शासकों, वैज्ञानिकों, समाज प्रमुखों और धर्म प्रमुखों से मिल कर उन्हें अपनें उद्देश्यों से परिचित कराया है. इस साधारण से दिखनें वालें वृद्ध बोद्ध भिक्षु किन्तु पचास से अधिक ग्रंथों और पुस्तकों के रचयिता को इनकें विचारों की मान्यता के रूप में अब तक ६० अन्तराष्ट्रीय स्तर पर मानद डॉक्टरेट, पुरस्कार, सम्मान आदि प्राप्त हो चुकें हैं. बेहद नम्र और क्षमा, करुणा, सहनशीलता के गुणों से सज्जित इस देवतुल्य व्यक्तित्व को कृतज्ञ विश्व का नमन, अभिनन्दन और प्रणाम.


विशेष पोस्ट

स्वर्गीय हंगकर रिनपोछे की माता का लंबी बीमारी और दुःख के बाद निधन हो गया।

13 May at 10:44 am

सिक्योंग पेनपा त्सेरिंग ने जर्मन चांसलर फ्रेडरिक मर्ज़ को हार्दिक बधाई दी।

9 May at 11:40 am

परम पावन 14वें दलाई लामा ने परम पावन पोप लियो XIV को हार्दिक शुभकामनाएं दीं

9 May at 10:26 am

भारत-तिब्बत सहयोग मंच की 26वीं वर्षगांठ के समारोह में दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता के साथ शामिल हुईं कलोन डोल्मा ग्यारी

7 May at 10:35 am

केंद्रीय तिब्बती प्रशासन ने भारत का ७६वां गणतंत्र दिवस मनाया

26 Jan at 10:14 am

संबंधित पोस्ट

स्वर्गीय हंगकर रिनपोछे की माता का लंबी बीमारी और दुःख के बाद निधन हो गया।

6 days ago

सिक्योंग पेनपा त्सेरिंग ने जर्मन चांसलर फ्रेडरिक मर्ज़ को हार्दिक बधाई दी।

1 week ago

परम पावन 14वें दलाई लामा ने परम पावन पोप लियो XIV को हार्दिक शुभकामनाएं दीं

1 week ago

भारत-तिब्बत सहयोग मंच की 26वीं वर्षगांठ के समारोह में दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता के साथ शामिल हुईं कलोन डोल्मा ग्यारी

2 weeks ago

चीन ने हालिया श्वेत पत्र में तिब्बत का नाम ही मिटा दिया

4 weeks ago

हमारे बारे में

महत्वपूर्ण मुद्दे
तिब्बत जो मुद्दे सामना कर रहा
मध्य मार्ग दृष्टिकोण
चीन-तिब्बत संवाद

सहयोग
अपील
ब्लू बुक

CTA वर्चुअल टूर

तिब्बत:एक तथ्य
तिब्बत:संक्षिप्त इतिहास
तिब्बतःएक अवलोकन
तिब्बती:राष्ट्रीय ध्वज
तिब्बत राष्ट्र गान(हिन्दी)
तिब्बत:स्वायत्तशासी क्षेत्र
तिब्बत पर चीनी कब्जा:अवलोकन
निर्वासन में तिब्बती समुदाय

केंद्रीय तिब्बती प्रशासन
संविधान
नेतृत्व
न्यायपालिका
विधायिका
कार्यपालिका
चुनाव आयोग
लोक सेवा आयोग
महालेखा परीक्षक
१७ केंद्रीय तिब्बती प्रशासन आधिकारिक छुट्टियां

केंद्रीय तिब्बती विभाग
धार्मीक एवं संस्कृति विभाग
गृह विभाग
वित्त विभाग
शिक्षा विभाग
सुरक्षा विभाग
सूचना एवं अंतर्राष्ट्रीय संबंध विभाग
स्वास्थ विभाग

संपर्क
भारत तिब्बत समन्वय केंद्र
एच-10, दूसरी मंजिल
लाजपत नगर – 3
नई दिल्ली – 110024, भारत
दूरभाष: 011 – 29830578, 29840968
ई-मेल: indiatibet7@gmail.com

2021 India Tibet Coordination Office • Privacy Policy • Terms of Service