अमेरिकी विदेश विभाग द्वारा २०२४ की मानवाधिकार गतिविधियों पर पेश की गई रिपोर्ट में तिब्बत में मानवाधिकारों की स्थिति की गंभीर तस्वीर पेश की गई है। इसमें जबरन गायब किए जाने, मनमाने ढंग से हिरासत में लिए जाने, धार्मिक स्वतंत्रता पर प्रतिबंध और विदेशों में तिब्बतियों के अंतरराष्ट्रीय दमन सहित व्यापक उल्लंघनों का हवाला दिया गया है। १३ अगस्त २०२५ को प्रकाशित इस रिपोर्ट के अनुसार, पिछले वर्षों की तुलना में समग्र स्थिति में ‘कोई महत्वपूर्ण बदलाव’ नहीं आया है। विश्वसनीय रिपोर्टों में यातना, अपमानजनक व्यवहार, सेंसरशिप और अभिव्यक्ति, धर्म और सभा की स्वतंत्रता पर गंभीर प्रतिबंधों का दस्तावेजीकरण किया गया है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (पीआरसी) की सरकार ने दुर्व्यवहारों के लिए अधिकारियों को जवाबदेह ठहराने के लिए सार्थक कदम नहीं उठाए।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दमन
रिपोर्ट अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर, विशेष रूप से तिब्बती सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान की अभिव्यक्ति पर, कड़े नियंत्रणों पर प्रकाश डालती है। जिन तिब्बतियों ने सरकार की नस्ली एकीकरण नीतियों की आलोचना की और खासकर परम पावन दलाई लामा, पंचेन लामा और तिब्बती भाषा शिक्षा के संबंध में चीनी नीति का विरोध किया, उन्हें उत्पीड़न, निगरानी और हिरासत का सामना करना पड़ा। उदाहरण के लिए, एक २६ वर्षीय तिब्बती भिक्षु, जिसका नाम सुरक्षा कारणों से गुप्त रखा गया है, को बिना वारंट के हिरासत में ले लिया गया, क्योंकि उसने कथित तौर पर वीचैट पर काउंटी कानून की आलोचना में एक टिप्पणी पोस्ट की थी। इसके बाद उसके मठ में लगभग १०० भिक्षुओं के लिए १० दिनों का राजनीतिक ‘पुनर्शिक्षा अभियान’ चलाया गया था।
चीनी अधिकारियों ने विदेशी और घरेलू मीडिया की पहुंच पर भी कड़ा प्रतिबंध लगा दिया। पत्रकारों को विशेष परमिट की आवश्यकता होती है, जो शायद ही कभी दिए जाते हैं। और जिन्हें अंदर जाने दिया जाता भी है, तो उन्हें निगरानी में रखा जाता है और कई तरह की चेतावनियां दी जाती हैं। तिब्बती लेखकों और ब्लॉगर्स के काम को राजनीतिक रूप से संवेदनशील माना जाता है, तो उन पर गिरफ्तारी, उनकी जॉब जाने या सरकारी सेवाओं से वंचित होने का खतरा हमेशा रहता है।
तिब्बती कार्यकर्ताओं और धार्मिक अनुयायियों पर निशाना
पर्यावरण कार्यकर्ता सोगोन शेरिंग को एक चीनी निर्माण कंपनी पर अवैध खनन गतिविधियों का सार्वजनिक रूप से आरोप लगाने के बाद आठ महीने जेल की सजा सुनाई गई थी। रिपोर्ट में भिक्षु लोसेल की हिरासत में हुई मौत का भी जिक्र है, जहां उन्हें कथित तौर पर अमानवीय यातनाएं दी गईं और चिकित्सा सेवा से वंचित रखा गया। चीनी अधिकारियों ने परम पावन दलाई लामा की तस्वीरें रखने पर प्रतिबंध और कड़ा कर दिया और ऑनलाइन धार्मिक अभिव्यक्तियों पर प्रतिबंध लगा दिए, जिनमें प्रार्थना सभाएं और धार्मिक समारोह आयोजित करना भी शामिल है। यात्रियों पर भी निगरानी बढ़ा दी गई है। उनसे धार्मिक हस्तियों की तस्वीरें ले जाने या उनके बारे में संदेश भेजने के लिए पूछताछ की जाती है।
सेंसरशिप और सूचना नियंत्रण
रिपोर्ट में बताया गया है कि चीनी अधिकारी तिब्बत में तिब्बतियों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर व्यापक प्रतिबंध लगाते रहे हैं। वे मीडिया, शिक्षा और सांस्कृतिक अभिव्यक्ति पर कड़ा नियंत्रण रखते हैं। रिपोर्ट में कहा गया है, ‘सरकार ने स्कूलों के पाठ्यक्रम, पाठ्य-पुस्तकों और अन्य पाठ्य-सामग्री के साथ-साथ ऐतिहासिक या राजनीतिक रूप से संवेदनशील शैक्षणिक पुस्तकों के प्रकाशन को भी पूरी तरह से नियंत्रित कर लिया है।’
जुलाई में रेडियो फ्री एशिया ने निगरानी बढ़ा दिए जाने की सूचना देते हुए बताया कि अधिकारियों ने परम पावन दलाई लामा की तस्वीरों की जांच के लिए ल्हासा और शिगात्से के बीच यात्रियों को रोका और उनके जन्मदिन पर तिब्बत के बाहर के लोगों के साथ संचार पर प्रतिबंध लगा दिया। रिपोर्ट में कहा गया है कि ‘टीएआर’ इंटरनेट और सूचना कार्यालय ने सोशल मीडिया पर कड़ी निगरानी रखी, जबकि अधिकारियों ने तिब्बती क्षेत्रों में आरएफए तिब्बती और मंदारिन भाषा की सेवाओं के साथ-साथ नॉर्वे स्थित एक स्वतंत्र रेडियो स्टेशन- वॉयस ऑफ तिब्बत- की सेवाओं को भी बाधित कर दिया।
इसके अलावा, २०२३ में चीनी अधिकारियों ने एक नियम लागू करके तिब्बती धार्मिक अभिव्यक्ति पर प्रतिबंधों को कड़ा कर दिया। इससे भिक्षुओं और लेखकों को धार्मिक सामग्री ऑनलाइन साझा करने पर प्रतिबंध लग गया है। साथ ही बिना लाइसेंस वाली ऑनलाइन धार्मिक गतिविधियों और प्रसारणों पर भी रोक लगा दी गई है। मठवासी वेशभूषा में तिब्बतियों को भी चौकियों, हवाई अड्डों और अन्य यात्रा केंद्रों पर कड़ी पुलिस जांच का सामना करना पड़ रहा है।
जबरन लापता, अपहरण और मनमाना हिरासत
रिपोर्ट में चीन द्वारा तिब्बतियों को जबरन गायब कर दिए जाने और उन्हें मनमाने ढंग से हिरासत में लेने के निरंतर प्रयोग का दस्तावेजीकरण किया गया है। ये कार्रवाइयां मानवाधिकार के बुनियादी संरक्षणों का उल्लंघन है। तिब्बती मानवाधिकार एवं लोकतंत्र केंद्र (टीसीएचआरडी) ने पिछले चार वर्षों में जबरन गायब होने के ६३ मामलों की सूचना दी है। साथ ही चेतावनी दी है कि प्रतिशोध के डर से कम रिपोर्टिंग की आशंका है। वास्तविक संख्या संभवतः अधिक हो सकती है। एक उल्लेखनीय मामला तिब्बत के अमदो प्रांत के कीर्ति मठ के एक भिक्षु पेमा का था, जिन्हें अप्रैल २०२४ में परम पावन दलाई लामा के चित्र के साथ एकल विरोध प्रदर्शन करने के बाद गिरफ्तार कर लिया गया था। अधिकारियों ने न तो उनकी हिरासत की पुष्टि की और न ही उनके ठिकाने का खुलासा किया। सितंबर २०२४ में, कीर्ति मठ के दो भिक्षुओं सहित चार तिब्बतियों को बिना किसी सूचना के हिरासत में लिया गया और उनकी स्थिति के बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई। चीन १९९५ में अपहरण के बाद से ३० वर्षों तक ११वें पंचेन लामा गेधुन चोएक्यी न्यिमा के बारे में सही जानकारी छिपाता रहा है। मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के लिए संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत और संयुक्त राष्ट्र के अन्य विशेषज्ञों ने भी २०१३ और २०१८ के बीच गिरफ्तार किए गए नौ तिब्बती पर्यावरण कार्यकर्ताओं को लेकर चिंता व्यक्त की, जिनमें ए-न्या सेंगद्रा और दोरजी डाकटल शामिल हैं। इनके द्वारा उन पर चले मुकदमों, सजा या कानूनी और चिकित्सा सहायता तक पहुंच में पारदर्शिता की कमी पाई गई।
तिब्बतियों पर अत्याचार और अमानवीय व्यवहार
चीनी अधिकारी तिब्बती बंदियों और कैदियों को यातना देते हैं, उनके साथ अपमानजनक व्यवहार करते हैं और जबरन श्रम कराते हैं। हालांकि, कानून में इस तरह की कार्रवाई पर प्रतिबंध लगा हुआ है। रिपोर्टों में लंबे समय तक एकांतवास, भोजन, नींद और धूप से वंचित रखने और जबरन पुनर्शिक्षा जैसे मनोवैज्ञानिक दुर्व्यवहारों पर प्रकाश डाला गया है। नवंबर में तिब्बत टाइम्स ने बताया कि सेरा थेक्चेन लिंग मठ के एक भिक्षु लोसेल की जेल में बुरी तरह पिटाई किए जाने और चिकित्सा देखभाल से वंचित रखने के कारण मृत्यु हो गई। रिहा किए गए अन्य कैदियों ने कठोर हिरासत स्थितियों के कारण स्थायी विकलांगता और स्वास्थ्य संबंधी दीर्घकालिक क्षति का वर्णन किया है। इस मुकदमों के आरोपी बड़ी संख्या में निर्दोष पाए गए, लेकिन गैरकानूनी हत्याओं या पिछले दुर्व्यवहारों के लिए कोई जवाबदेही तय नहीं की जा रही है।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दमन
रिपोर्ट के अनुसार, चीनी अधिकारियों ने विदेशों में रहने वाले तिब्बतियों, जिनमें भारत और नेपाल में लगभग १,५०,००० तिब्बती शामिल हैं, को निशाना बनाकर व्यापक अंतरराष्ट्रीय दमन शुरू किया है। रिपोर्ट में तिब्बती प्रवासियों के खिलाफ उत्पीड़न, निगरानी और जबरदस्ती करने के तरीकों पर प्रकाश डाला गया है। इसमें तिब्बती संस्थानों पर साइबर हमले, चीनी वाणिज्य दूतावासों में पारिवारिक जानकारी का जबरन खुलासा और विदेशों में सक्रियता को दबाने के लिए तिब्बत में रिश्तेदारों को धमकाना शामिल है। टीसीएचआरडी ने २०२२ के मध्य और २०२३ के अंत के बीच इन युक्तियों में वृद्धि दर्ज की है, जिसमें पारिवारिक संबंधों को तोड़ने, प्रवासी नेटवर्क में घुसपैठ करने और गलत सूचना फैलाने के प्रयास शामिल हैं। अधिकारियों ने पासपोर्ट में देरी या इनकार करके, वैध पासपोर्ट जब्त करके और विदेश में यात्रियों द्वारा चीनी नीति के खिलाफ बोलने पर तिब्बत में उनके परिवारों को धमकी देकर तिब्बतियों के आवागमन को भी प्रतिबंधित कर दिया गया है।
जबरन श्रम और आर्थिक शोषण
रिपोर्ट में चीन के श्रम कार्यक्रमों पर भी चिंता जताई गई है, जो गरीबी उन्मूलन की आड़ में ग्रामीण तिब्बतियों को कार्य योजनाओं में स्थानांतरित करते हैं। ह्यूमन राइट्स फाउंडेशन द्वारा जुलाई में किए गए एक अध्ययन में खनन क्षेत्र में जबरन श्रम के जोखिमों का हवाला दिया गया है, जो व्यापक अंतरराष्ट्रीय चिंताओं को प्रतिध्वनित करता है।
निष्कर्ष
तिब्बत में मानवाधिकारों की स्थिति हर साल बिगड़ती जा रही है, जहां धर्म, संस्कृति और भाषा के माध्यम से अपनी पहचान व्यक्त करने के कारण अन्यायपूर्ण ढंग से गिरफ्तार और जेल में बंद तिब्बतियों की संख्या बढ़ती जा रही है। अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानून और यहां तक कि चीन के अपने संविधान के तहत भी इन स्वतंत्रताओं के लिए गारंटी दी गई है, फिर भी तिब्बती पहचान को दबाने और आत्मसात करने के व्यापक अभियान के तहत इन्हें व्यवस्थित रूप से नकारा जा रहा है। नई नीतियां और निर्देश लागू किए गए हैं, जो तिब्बती पहचान की अभिव्यक्ति को प्रभावी रूप से आपराधिक बनाते हैं और तिब्बतियों को उसके लिए दंडित करने का कानूनी मौका देते हैं।
२०२४ की रिपोर्ट में न्यायेतर हत्याओं का दस्तावेजीकरण किया गया है और व्यापक आरोप मुक्ति और जवाबदेही की कमी के बने रहने पर प्रकाश डाला गया है। अमेरिकी विदेश विभाग ने अंततः निष्कर्ष निकाला कि तिब्बत में मानवाधिकारों की स्थिति कठोर रूप से दमनकारी बनी हुई है और इसमें सार्थक प्रगति के बहुत कम संकेत हैं।