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इंटरव्यू / पाकिस्तान जंग में भारत को नहीं हरा सकता, बेहतर होगा कि वह अच्छे रिश्ते बनाए रखे: दलाई लामा

August 28, 2019

दैनिक भास्कर, 28 अगस्त 2019

मनाली. भारत सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर राज्य को दो केंद्र शासित राज्यों में बदलने के सवाल पर दलाई लामा भारत-पाकिस्तान विभाजन को ही गलत ठहरा रहे हैं। विभाजन को कठघरे में खड़े करते हुए वो कहते हैं कि भारत सरकार द्वारा लद्दाख और जम्मू-कश्मीर के रूप में दो केंद्र शासित राज्य बनाना सही है या नहीं, यह जटिल सवाल है। लेकिन, पहले तो मैं समझता हूं कि भारत-पाकिस्तान का विभाजन ही गलत हुआ। गांधीजी भी इसके खिलाफ थे। भास्कर के जर्नलिस्ट अनिरुद्ध शर्मा को दिए इंटरव्यू में उन्होंने इमरान खान को मौजूदा हालात को लेकर नसीहत भी दी। पेश है दलाई लामा से हुई बातचीत के संपादित अंश…

भास्कर: लद्दाख लंबे समय से स्वतंत्र राज्य बनाए जाने की मांग कर रहा था। अब लद्दाख और जम्मू-कश्मीर दो अलग-अलग केंद्र शासित राज्य हैं। क्या कहेंगे?
लामा: 
यह जटिल सवाल है। मैं समझता हूं कि भारत-पाकिस्तान का विभाजन ही गलत हुआ। गांधी जी खुद इसके खिलाफ थे। विभाजन का कोई उचित कारण बनता ही नहीं था। आज की तरह 1947 में भी पाक से ज्यादा मुसलमान भारत में थे। पाक तरफ का कश्मीर आज भारत के कश्मीर से बहुत कम विकसित है। पाक की हालत खस्ता है। इमरान खान भाषण में भावुक हो रहे हैं। लेकिन, सच यह है कि युद्ध हुआ तो पाकिस्तान भारत को हरा नहीं सकता। बेहतर होगा कि पाकिस्तान भारत से सौहार्दपूर्ण संबंध ही रखे। मैं खुद भी भारतीय मुसलमानों का प्रशंसक हूं।
भास्कर: पिछले दिनों मोदी से आपकी कब मुलाकात हुई?
लामा: 
चीनी राष्ट्रपति जिनपिंग के भारत दौरे के समय मुलाकात हो सकती थी, लेकिन नहीं हुई। दरअसल सितंबर 2014 में चीनी संपर्कों से पता चला कि जिनपिंग मुझसे भी मिलेंगे। मैंने यह भारत सरकार को बताया। उन्होंने चीन के भारतीय दूतावास से पूछा। पता चला कि ऐसे संकेत नहीं है। मोदी सरकार ने भी कोई फैसला नहीं लिया। इसके चलते जिनपिंग से मेरी मुलाकात नहीं हुई। हालांकि, पीएम का तिब्बत के प्रति समर्थन बरकरार है। मेरे जन्मदिन पर उन्होंने फोन कर शुभकामनाएं भी दी थीं।
भास्कर: आप नेहरू से मोदी तक भारत के सभी 16 प्रधानमंत्रियों से मिले हैं, सबसे बेहतर कौन लगा?
लामा: नेहरू से पहली बार 1954 में चीनी पीएम द्वारा आयोजित लंच में मिला था। पीएम लंच में आए लोगों से नेहरू का परिचय करा रहे थे। मेरी बारी आई तो बोले, ये दलाई लामा हैं। यह सुन नेहरू हैरानी से खड़े हो गए, न कुछ बोला, न हाथ मिलाया और आगे बढ़ गए। उनके साथ यह मेरा पहला अनुभव था। मैं उनके चलते ही भारत का मेहमान हूं। लाल बहादुर शास्त्री से तब मिला जब वो सख्ती से चीन का मुकाबला करने पर विचार कर रहे थे। इंदिराजी ने एक बार दूत भेज कहा कि तिब्बत में विद्रोह की सालगिरह पर संदेश न दूं।

मैंने कहा 1960 से संदेश दे रहा हूं, इसलिए रोक नहीं सकता। फिर वो मान गई थीं। राजीव गांधी बुद्धिमान थे। उनके समय में भारतीय सेना के पास चीन से बेहतर हथियार हो गए थे। वो बोले कि कोई गड़बड़ होगी तो चीन से मुकाबला करेंगे। अटलजी के साथ का एक मजेदार वाकया है। हम तिब्बत पर चर्चा कर रहे थे। थकान से अटलजी को झपकी आ गई। जैसे ही मैंने पाक का नाम लिया तो दोनों आंख खोल चौकन्ने हो गए। मोदीजी भी दुनिया का दौरा कर भारत का नाम नई ऊंचाइयों पर ले जा रहे हैं।
भास्कर: भारत के वैश्विक नेतृत्व करने पर क्या कहेंगे?
लामा: मैं यही कहूंगा कि 21वीं सदी में भारत को शिक्षा के जरिए वैश्विक नेतृत्व की ओर बढ़ना चाहिए। न कि राजनीतिक या ताकत से।

भास्कर: 60 साल से आप भारत में हैं। हमारे सबसे लंबे समय के मेहमान हैं। कभी किसी ने वापस जाने को कहा?
लामा: नहीं। अक्सर मैं अधिकारियों से मजाक में कहता हूं कि अगर भारत मुझसे कहे कि आप हमारे मेहमान नहीं रहे, तो मेरे सामने संकट आ सकता है। शायद स्विट्जरलैंड भागने के बारे में सोचना पड़े। उससे पहले तक तो मुझे कहीं नहीं जाना। तब वे मुझे आश्वस्त करते हैं कि दलाई लामा सदा भारत सरकार के मेहमान रहेंगे।
भास्कर: आप ऐसा क्यों कह रहे हैं कि अब चीन बदल रहा है?
लामा: हां, चीन और उनके थिंकटैंक की सोच बदल रही है। वो जान गए हैं कि 70 साल से चली आ रही उनकी बल नीति अब सफल नहीं होगी। चीन जिस तिब्बती परंपरा को अब तक अपना बता रहा था उसे भारत के नालंदा का मानने लगा है। ऐसे में चीन और भारत के बीच दोस्ताना संबंध जरूरी है। मेरे पास धर्मशाला में हर हफ्ते चीनी आ रहे हैं। वो मेरे सामने भावुुक हो रोने लगते हैं।
भास्कर: आप खुद को अब भारतीय मानते हैं या तिब्बती?
लामा: तिब्बत में मुझे कई औपचारिकताएं माननी पड़ती थीं। परेशान रहता था। 1959 में तिब्बत छूट गया। मैं भले ही शारीरिक रूप से भारतीय नहीं हूं, लेकिन दिमागी तौर पर आधुनिक भारतीयों से ज्यादा भारतीय हूं। मैं सन ऑफ इंडिया हूं।
भास्कर: क्या चीनी-तिब्बती आपको वापस आने को कहते हैं?
लामा: हां, चीनी अधिकारी मुझसे वापस आने का आग्रह करते हैं। उनसे कहता हूं कि मैं भी आने का इच्छुक हूं। तीर्थस्थल घूमने हैं, पर मुझे जल्दी नहीं है। कई चीनी यह भी कहते हैं कि भारत में ही रहूं, वह विश्व का महानतम लोकतंत्र हैै। चीन में आप पर पाबंदियां लग जाएंगी। एक मौके पर मैंने कहा कि भारत में पुलिस बाहरी खतरों से सुरक्षा के लिए हमेशा मेरे साथ होती है। जबकि चीन की पुलिस सुरक्षा से ज्यादा मेरी निगरानी करती थी कि मेरी क्या गतिविधि है। भारत सच में स्वतंत्र और लोकतांत्रिक देश है, इसलिए मैं चीन की तुलना में भारत को प्राथमिकता देता हूं।
भास्कर: 14वें दलाई लामा का मौजूदा संकल्प क्या है?
लामा: आधुनिक शिक्षा को मन को शांति देने वाले प्राचीन भारतीय ज्ञान से जोड़ना। केजी से विश्वविद्यालय स्तर तक छात्रों को शारीरिक स्वच्छता के साथ ही भावनात्मक स्वच्छता के बारे में भी सिखाया जाना चाहिए। मस्तिष्क को प्रशिक्षित करना बताना चाहिए। ताकि धर्म मानने या न मानने वाले दोनों तरह के लोग हर परिस्थिति में भावनाओं पर काबू रखना सीख सकें। हम कर्नाटक में तिब्बती बौद्ध मठ संस्था पुनर्स्थापित कर रहे हैं।
भास्कर: तिब्बत का एक शख्स भारत आकर अचानक यहां का मेहमान कैसे बन गया?
लामा: मैं 1956 में भारत सरकार के निमंत्रण पर बौद्ध जयंती महोत्सव में पहली बार आया था। मेरे दो भाई भी साथ थे। वो बोले कि यहीं रुक जाना चाहिए। इस दौरान हम कई बार नेहरू से  मिले। अंत में उनकी सलाह पर हम ल्हासा लौट गए। 1959 में फिर हम ल्हासा छोड़ निकल आए। तब मैंने भूटान और भारत के पास हमें स्वीकार करने के लिए दूत भेजे। दिल्ली में कैबिनेट बैठक हुई। तत्कालीन रक्षा मंत्री कृष्णा मैनन बोले कि दलाई लामा को शरण देने से चीन से भारत के रिश्ते खराब होंगे। पर नेहरू ने सब दरकिनार कर संदेश भिजवाया कि वे हमारे स्वागत के लिए तैयार हैं। तब से ही भारत का मेहमान हूं।
भास्कर: आप रोज क्वांटम फिजिक्स के तरीके से ध्यान लगाते हैं। यह ध्यान का कौन सा नया तरीका है?
लामा: हां, मैं रोज ध्यान में क्वांटम फिजिक्स की व्याख्या का इस्तेमाल करता हूं। व्याख्या कहती है कि जो नजर आ रहा है जरूरी नहीं उसका अस्तित्व हो। मैं दुनिया के मनोवैज्ञानिकों से मिलता हूं तो लगता है कि उनका ज्ञान केजी लेवल का है जबकि भारतीय मनोविज्ञान उच्चस्तरीय है।
भास्कर: अगले दलाई लामा तो तिब्बत में रहेंगे। चीन के चलते वो दुनिया की बेहतरी के बारे में कैसे सोच पाएंगे?
लामा: पता नहीं। दलाई लामा संस्था आगे जारी रहे भी या नहीं, ये तिब्बतियों पर निर्भर है। 1969 में मैंनेे औपचारिक रूप से यह कह दिया था। डर है कि अगला दलाई लामा छठे वाले की तरह नॉटी बॉय आ गया तो बौद्ध धर्म का बहुत नुकसान होगा। एक मित्र को मैंने अपना सपना सुनाया तो उसने कहा कि आपको छठे दलाई लामा की याद आती है? यह सुन मैं शर्मा गया। छठे दलाई लामा की तुलना में तो मैं बेहतर हूं। इसलिए संस्था नहीं व्यवहार और अध्ययन महत्वपूर्ण है। कुछ बकवास लामा भी होते हैं। हिमालयन रेंज में कई नामधारी लामा हैं, बिल्कुल मूर्ख किस्म के हैं।

Source: https://www.bhaskar.com/national/news/dainik-bhaskar-s-interview-with-dalai-lama-01627677.html


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