
धर्मशाला। तिब्बत से हाल ही में आई पूर्व राजनीतिक कैदी नामक्यी ने तिब्बत में गंभीर स्थिति के बारे में अपने अनुभवों को सुनाया। इसमें उन्होंने अपने गृहनगर में अपने विरोध की घटनाओं, चीनी जेल में कैद के दौरान सहन की गई कठिनाइयों, रिहा होने के बाद निर्वासन में भागने आदि का वर्णन किया है।
नामक्यी ने अपने संबोधन में बताया, ‘मेरा जन्म तिब्बत के न्गाबा काउंटी के चारो गांव में पेमा ल्हाथांग के एक विशिष्ट खानाबदोश परिवार में हुआ। कई अन्य खानाबदोश बच्चों की तरह मुझे भी स्कूल जाने का अवसर नहीं मिला और मेरा बचपन खानाबदोश के रूप में ही बीता। मैं अपने माता-पिता और बुजुर्गों से तिब्बत के इतिहास के बारे में सुनते हुए बड़ी हुई। इन इतिहास की कहानियों में था कि ‘लाल चीन’ ने उस तिब्बत पर जबरन कब्जा कर लिया और हजारों तिब्बतियों को मार डाला, जिसका नेतृत्व आध्यात्मिक नेता परम पावन दलाई लामा, परम पवित्र कीर्ति रिनपोछे और अन्य महान हस्तियों ने किया। इन हस्तियों को बाद में निर्वासन में शरण लेनी पड़ी। यह सब सुनकर मैं बहुत दुःखी हुई। मैं प्रार्थना करने लगी कि तिब्बत एक दिन स्वतंत्र होगा और मैं आध्यात्मिक नेता को व्यक्तिगत रूप से देख सकूंगी और उनका प्रवचन सुन सकूंगी। उन्होंने आगे कहा कि सभी उम्र और लिंग के तिब्बती शहीद हमारे धर्म, संस्कृति और भाषा के संरक्षण और सुधार के लिए गतिविधियों का संचालन करने का प्रयास करने वाले थे। चीनी सरकार रणनीतिक रूप से उन्हें रोकती है और यहां तक कि उनके आवागमन की स्वतंत्रता पर कठोर प्रतिबंध भी लगाती है। यह सोचकर मेरे मन में काफी विषाद होता है कि क्या संयुक्त राष्ट्र और दुनिया की अन्य सरकारें हमारी दुखद दैनिक स्थितियों और तिब्बत के अंदर तिब्बती लोगों की पीड़ाओं की सच्चाई नहीं जानती हैं।
उन्होंने आगे बताया, ‘सितंबर २०१५ की शुरुआत में मेरी रिश्ते की एक बहन तेनज़िन डोल्मा और मैंने पशु चराने के दौरान कई बार गुप्त रूप से बातचीत की। २१ अक्तूबर २०१५ को बीजिंग के स्थानीय समयानुसार अपराह्न ०३ बजे हम दोनों ने तिब्बती पोशाक पहनी, अपने हाथों में परम पावन दलाई लामा के दो बड़े-बड़े चित्र लिए और न्गाबा की ‘शहीद सड़क’ पर भीड़ के बीच मार्च किया। साथ में हम दोनों- ‘तिब्बत को मुक्त करो, परम पावन दलाई लामा और कीर्ति रिनपोछे दीर्घायु हों और उनकी शीघ्र तिब्बत वापसी हो- के नारे लगा रही थीं। हमारे मार्च को १० मिनट भी नहीं हुए थे कि हमने एक तेज़ आवाज़ सुनी और अचानक चार-पांच पुलिस अधिकारी हमारे पीछे से आ धमके और हमारे हाथों से तस्वीरें छीन लीं। हमने तस्वीरों को नहीं छोड़ा और पुलिस के साथ लगभग आधे घंटे तक खींचतान चलती रही। आख़िरकार पुलिसवालों ने हमें सड़क पर गिरा कर घसीटना शुरू कर दिया और हमें चुप रहने और चिल्लाने से रोकने लगे। लेकिन हम लगातार नारे लगाती रहीं। उन्होंने हमारे हाथों को हमारी पीठ के पीछे बांध दिया, हमें पुलिस वैन में डाल दिया और हमें न्गाबा काउंटी के हिरासत केंद्र में ले गए। फिर वे हमें बरकम शहर के एक अन्य हिरासत केंद्र में ले गए। हमसे एक छोटे से पूछताछ कक्ष में पूछताछ की गई जहां छह दिनों और रातों तक हीटर चालू रखकर अत्यधिक गर्मी पैदा की गई। अलग-अलग पूछताछकर्ताओं ने कई सवाल पूछे। जैसे हमें विरोध-प्रदर्शन करने के लिए किसने उकसाया? पहले किसने प्रदर्शन की बात शुरू की? हमें दलाई लामा की तस्वीरें कहां से मिलीं और क्या बाहर से कोई परिचित था जो हमें उकसा रहा था? पूछताछकर्ताओं ने हमें बार-बार थप्पड़ और लात मारी। वे कह रहे थे कि हम बागी हैं और हमें पता होना चाहिए कि यह कितना भयानक अपराध है। कई बार, हमने सोचा कि जल्द ही मर जाना बेहतर होगा, क्योंकि हमें भोजन और नींद से वंचित कर दिया गया था। अन्य दिनों में पूछताछकर्ताओं ने सहजता से काम किया और हमें बताया कि अगर हमने सच बताया, तो सज़ा कम कर दी जाएगी और जल्द ही रिहा कर दिया जाएगा। मानसिक और शारीरिक यातना के बावजूद हमने केवल इतना ही जवाब दिया कि हम दोनों ने स्वतंत्र रूप से विरोध करने का फैसला किया और किसी ने हमें नहीं उकसाया। हमारे परिवार के सदस्यों को भी इसके बारे में कुछ नहीं पता था। हमने ताशी ग्याल्कलिंग काउंटी के हिरासत केंद्र में सात महीने तक कारावास भुगती।
हमारी हिरासत अवधि एक साल एक महीने पूरा होने के बाद २०१६ के नवंबर में ट्रोचू काउंटी की अदालत ने मेरी बहन और मुझे अदालत कक्ष में बुलाया और हम पर मुकदमा चलाया गया। उस दिन हम दोनों ने अपनी गिरफ़्तारी के बाद पहली बार एक-दूसरे को देखा। अदालत कक्ष में परिवार का कोई भी सदस्य नज़र नहीं आया, लेकिन सरकार द्वारा नियुक्त दो वकील वहां मौजूद थीं- एक चीनी महिला और एक तिब्बती महिला। हमें ‘राष्ट्र के खिलाफ अलगाववादी कार्य’ करने और ‘दलाई गिरोह’ का समर्थन करने के मनगढ़ंत आरोपों में तीन-तीन साल की सजा सुनाई गई। सजा सुनाने के बाद हमें सिचुआन की एक नस्लीय अल्पसंख्यक जेल में ले जाया गया और फिर लगभग तीन घंटे के बाद चेंगदू शहर की सबसे बड़ी महिला जेल में ले जाया गया। हमने सुना है कि अतीत में दो अन्य तिब्बती महिलाओं को इस जेल में रखा गया था, लेकिन जब हम वहां थे तो ६००० कैदियों में से केवल दो तिब्बती थे। पहले तीन महीनों के लिए सैन्य प्रशिक्षण, देशभक्ति शिक्षा प्राप्त करना और चीनी संविधान सीखना आवश्यक था। चीनी भाषा में अनेक दस्तावेजों का अध्ययन करने और एक कैदी के रूप में दैनिक गतिविधियों के प्रशिक्षण के बाद हमें मौखिक परीक्षा से गुजरना पड़ा। तीन महीने के बाद मैंने एक श्रमिक शिविर में काम किया जहां तांबे के तारों का निर्माण किया जाता था। मेरी बहन ने पहले सिगरेट के डिब्बे बनाए और फिर हम एक कलाई घड़ी निर्माण शिविर में स्थानांतरित कर दिए गए।
बाद में हमें पता चला कि हमारे परिवार ने हमें जेल में खाना और कपड़े भेजे थे, लेकिन हमें कुछ भी नहीं मिला। हमें कुपोषण, सर्दियों के दौरान पतले कंबलों में ठंड और नस्लीय भेदभाव जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ा। हमें शुरू में भाषा संबंधी समस्याओं का भी सामना करना पड़ा क्योंकि हम मंदारिन चीनी नहीं बोलते थे। २१ अक्तूबर २०१८ को जेल की सजा पूरी होने के बाद हमें जेल से रिहा कर दिया गया और एक सप्ताह के लिए न्गाबा काउंटी के पेमा लहथांग पुलिस स्टेशन में रखा गया क्योंकि संबंधित अधिकारियों ने हमारे परिवार को हमारी रिहाई के लिए एक वादा-पत्र लिखने के लिए बुलाया था। मेरे परिवार को काली सूची में डाल दिया गया क्योंकि मेरा बड़ा भाई भी जेल में था। हमारी रिहाई के बावजूद हमारी अभिव्यक्ति और गतिविधि पर गंभीर रूप से प्रतिबंध लगा दिया गया था, जिससे हमारे संपर्क में आने वाले किसी भी व्यक्ति को ख़तरा हो गया था। चीनी सरकार ने मेरे परिवार के सदस्यों और रिश्तेदारों के लिए मुसीबतें खड़ी कर दीं। मेरी चाची छेरिंग क्यी को कई बार पूछताछ के लिए बुलाया गया। १३ मई २०२३ को मैंने बिना किसी को बताए अपनी चाची छेरिंग की के साथ वहीं से भाग निकलीं। हम २७ मई २०२३ को नेपाल के रिसेप्शन सेंटर पहुंचे और फिर २८ जून को धर्मशाला के रिसेप्शन सेंटर पहुंच गए।
