
टोक्यो। अमेरिका स्थित अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता (आईआरएफ) संगठन ने कुछ अंतरराष्ट्रीय और क्षेत्रीय सह-आयोजकों के साथ मिलकर २२ जुलाई २०२४ को टोक्यो के न्यू ओटानी होटल के कॉन्फ्रेंस हॉल में एशिया में धार्मिक स्वतंत्रता पर चर्चा और बहस करने के लिए आईआरएफ शिखर सम्मेलन एशिया- २०२४ का आयोजन किया।
एक दिवसीय कार्यक्रम की अध्यक्षता आईआरएफ में पूर्व राजदूत सैम ब्राउनबैक और आईआरएफ पर अमेरिकी आयोग की पूर्व अध्यक्ष कैटरीना लैंटोस स्वेट ने की। अपने उद्घाटन भाषण में राजदूत सैम ब्राउनबैक ने विभिन्न देशों के वक्ताओं और प्रतिभागियों का स्वागत किया और कहा कि यह एक महत्वपूर्ण मानवाधिकार आंदोलन है जो विभिन्न देशों में अधिनायकवादी शासन के तहत धार्मिक स्वतंत्रता के उल्लंघन पर चर्चा करता है और उसका निवारण करता है।
उन्होंने कहा, ‘चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) अभी तीन नरसंहार कर रही है। पहला, तिब्बती बौद्धों को तिब्बत में दशकों से हाशिए पर रखा जा रहा है और सताया जा रहा है, दूसरा उग्यूर बहुल मुस्लिम आबादी से क्रूरता की जा रही और तीसरे फालुन गोंग साधकों के साथ क्रूरता की जा रही है। हालांकि, उन सभी को अपने विश्वास और आस्था का पालन करने का अधिकार है। अगर हम उनके लिए खड़े होकर नहीं बोलेंगे तो अगली बार हमारी बारी होगी।’
शिखर सम्मेलन में चार पैनल थे और मुख्य भाषण पूर्व अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ का हुआ। उन्होंने एशिया में धार्मिक स्वतंत्रता के भू-राजनीतिक महत्व पर बात की। ताइवान के राष्ट्रपति विलियम लाई ने शिखर सम्मेलन को ऑनलाइन संबोधित किया। चार प्रमुख पैनलों के समक्ष विचारणीय मुख्य मुद्दे के तौर पर थे- एशियाई देशों में नरसंहार के प्रभाव, धार्मिक बहुलवाद, धार्मिक स्वतंत्रता और अधिनयायकवादी सरकारों के शासन के तहत विश्वास की स्वतंत्रता की स्थिति।
परम पावन दलाई लामा के संपर्क कार्यालय के प्रतिनिधि डॉ. आर्य शांवांग ग्याल्पो ने क्षेत्र में नरसंहार के प्रभाव पर बात करने के लिए एक पैनलिस्ट के तौर पर भाग लिया। डॉ. आर्य ने तिब्बत की स्थिति और सीसीपी शासन के तहत ७० से अधिक वर्षों तक तिब्बती पहचान, संस्कृति और धर्म को नष्ट करते रहने को लेकर विस्तृत जानकारी दी। उन्होंने लारुंग गर और याचेन गर मठ परिसरों के दिनदहाड़े हुए विध्वंश के बारे में जानकारी दी और पूर्वी तिब्बत के खाम क्षेत्र में ९९ फुट की बुद्ध प्रतिमा, ३३ फुट की मैत्रेय प्रतिमा और ४५ फुट की गुरु पद्मसंभव की प्रतिमा को ध्वस्त करने के बारे में भी बात की। उन्होंने तिब्बती धार्मिक मामलों, खासकर परम पावन दलाई लामा के पुनर्जन्म के चयन में में चीनी हस्तक्षेप के बारे में बात की।
इस अवसर पर डॉ. आर्य ने हाल ही में ‘तिब्बत समाधान अधिनियम’ के लिए अमेरिकी कांग्रेस और सरकार को धन्यवाद दिया और अन्य लोकतांत्रिक देशों से भी इसी तरह के समर्थन का आग्रह किया।
एशिया के विभिन्न धार्मिक समुदायों के प्रतिनिधियों ने अपने-अपने देशों में धार्मिक स्वतंत्रता के दमन और इसकी आजादी के अधिकारों के उल्लंघन का सामना करने और इस मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उठाने की आवश्यकता पर जोर दिया। आयोजकों ने धार्मिक स्वतंत्रता के महत्व और धर्मों से महान सभ्यताओं के उद्भव और विकास पर बात की।
शिखर सम्मेलन की ख्याति का आलम यह था कि सम्मेलन के सारे टिकट पहले ही बिक गए। इसके आयोजकों और इसमें भाग लेने वाले प्रतिभागियों ने बहुत संतुष्टि और सीखने को लेकर अपने अच्छे अनुभवों को व्यक्त किया। उन्होंने क्षेत्रों में धार्मिक और मानवाधिकारों के उल्लंघन को रोकने के लिए अधिनायकवादी शासन को भी चुनौती दी।
शिखर सम्मेलन के लिए YouTube पर ऑनलाइन एक्सेस लिंक यहां दिया गया है: IRF एशिया 2024



