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भारत-चीन तनाव को हल करने की कुंजी तिब्बत मुद्दे के समाधान में है : डिप्टी स्पीकर डोल्मा त्सेरिंग तेखांग

April 17, 2022

लखनऊ में भारत-तिब्बत सहयोग मंच के सेमिनार में 17वीं निर्वासित तिब्बती संसद की डिप्टी स्पीकर डोल्मा छेरिंग तेखांग

 

tibet.net / लखनऊ।१७वीं निर्वासित तिब्बती संसद की उपाध्यक्ष श्रीमती डोल्मा त्सेरिंग तेखांग ने १६ अप्रैल २०२२ को उत्तर प्रदेश के लखनऊ में ‘तिब्बत-कैलाश मुक्ति जन सम्मेलन’ मुद्दे पर भारत तिब्बत सहयोग सम्मेलन में विशेष अतिथि के रूप में भाग लिया।

भारत-तिब्बत सहयोग मंच (बीटीएसएम) भारत में कई तिब्बत समर्थक समूहों में से एक है, जिसकी स्थापना श्री इंद्रेश कुमार जी और डॉ. कुलदीप चंद अग्निहोत्री के संरक्षण में परम पावन १४वें दलाई लामा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के पूर्व सरसंघचालक स्वर्गीय श्री सुदर्शन जी के आशीर्वाद से ०५ मई १९९९ को की गई थी। सम्मेलन में भारत के २९ राज्यों से के २००० से अधिक सदस्यों ने भाग लिया।

कार्यक्रम का उद्घाटन समारोह सुबह १०:३० बजे बीटीएसएम के राष्ट्रीय महासचिव श्री पंकज गोयल के स्वागत भाषण के साथ शुरू हुआ। इसके बाद बीटीएसएम के संस्थापक मुख्य अतिथि श्री इंद्रेश कुमार,विशेष अतिथि डिप्टी स्पीकर श्रीमती डोल्मा त्सेरिंग तेखांग द्वारा दीप प्रज्ज्वलन किया गया। मंच पर अन्य अतिथियों के साथ कोर ग्रुप फॉर तिब्बतन कॉज- इंडिया के राष्ट्रीय संयोजक श्री आर.के. खिरमे और बीटीएसएम महिला विंग की राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती रेखा गुप्ता मौजूद थीं।

स्वागत भाषण में श्री पंकज ने उल्लेख किया कि बीटीएसएम का मुख्य उद्देश्य तिब्बत के मुद्दे और भारतीय सीमा में चीनी सेना द्वारा घुसपैठ के बारे में बड़े पैमाने पर भारतीय जनता में जागरूकता पैदा करने के साथ ही तिब्बत और कैलाश-मानसरोवर को मुक्त कराना है।

डिप्टी स्पीकर ने १९५४ में राज्यसभा में भारतीय संविधान के पिता डॉ. भीमराव आंबेडकर के शब्दों को याद करते हुए अपने संबोधन की शुरुआत की। ‘१९४९ में चीन को मान्यता देने के बजाय अगर भारत ने तिब्बत को यह मान्यता दी होती तो कोई चीन-भारतीय सीमा संघर्ष नहीं होता। यह इतिहास का एक सत्य है और दूसरा सत्य यह है कि तिब्बत कभी चीन का हिस्सा नहीं था। भारत और चीन के बीच तब तक कोई सीमा नहीं थी, जब तक कि पीआरसी ने तिब्बत पर अवैध रूप से आक्रमण कर कब्जा नहीं किया। उन्होंने कहा, ‘जब तक तिब्बत का मुद्दा सुलझ नहीं जाता, भारत और चीन के बीच सीमा विवाद अनसुलझा रहेगा।’ कैलाश-मानसरोवर की मुक्ति तिब्बत मुद्दे के हल होने के बाद ही संभव है। इसके लिए परम पावन दलाई लामा के दूतों और चीनी सरकार के बीच बातचीत की शीघ्र बहाली अति महत्वपूर्ण है। उन्होंने तिब्बत के भीतर महत्वपूर्ण मानवाधिकारों की स्थिति, राजनीतिक दमन, धार्मिक और सांस्कृतिक आत्मसात, जनसंख्या स्थानांतरण और नस्लीय भेदभाव पर विस्तार से बात की। उन्होंने चीनी नेतृत्व को यह जवाब देने के लिए भी चुनौती दी कि अगर तिब्बती भाई-बहन समाजवाद की धूप का आनंद ले रहे हैं तो वे खुद को क्यों जला रहे हैं।

उन्होंने बीटीएसएम द्वारा संचालित कार्यक्रमों और अभियानों की सराहना की और साथ ही बीटीएसएम से तिब्बती लोगों के साथ मिलकर काम करने का आग्रह किया ताकि तिब्बत और जमीनी स्तर पर भारतीयों के बीच इसकी भयावह स्थिति के बारे में अधिक जागरूकता बढ़ाई जा सके। अंत में उन्होंने इस कार्यक्रम के आयोजन के लिए बीटीएसएम का आभार व्यक्त किया। तिब्बत पर सम्मेलन- कैलाश मानसरोवर मुक्ति जन सम्मेलन- का समापन मुख्य अतिथि के भाषण के साथ हुआ।  इसके बाद सभी मेहमानों को पारंपरिक भारतीय गमछा और गुलदस्ता देकर सम्मानित किया गया।

तिब्बत-कैलाश मुक्ति जन सम्मेलन के बाद इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान सभागार में मुख्य अतिथि श्री इंद्रेश कुमार और विशेष अतिथि डिप्टी स्पीकर श्रीमती डोल्मा त्सेरिंग तेखांग प्रतिभागियों के साथ उस स्थान पर एकत्र हुए, जहां भारतीय राष्ट्रीय ध्वज और बीटीएसएम ध्वज के साथ तिब्बती राष्ट्रीय ध्वज फहराया गया था। इसके बाद भारतीय राष्ट्रगान गाया गया।


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