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या तो हम चीन को बदल देंगे या चीन हमें बदल देगा : जिनेवा मानवाधिकार मंच 2018 में सीटीए अध्यक्ष

November 9, 2018

तिब्बत.नेट, 8 नवंबर, 2018

जेनेवा। सेंट्रल तिब्बतन एडमिनिस्ट्रेशन के राष्ट्रपति डॉ लोबसांग सांगेय जेनेवा फोरम– 2018 में चीनी शासन के तहत क्षेत्र में मानवाधिकार स्थिति पर फोरम का बीज भाषण दिया। फोरम का आयोजन सेंट्रल तिब्बतन एडमिनिस्ट्रेशन (सीटीए) के सूचना और अंतर्राष्ट्रीय संबंध विभाग (डीआईआईआर) और जिनेवा स्थित तिब्बत द्वारा संयुक्त रूप से किया गया था। यह आयोजन चीन की वैश्विक आवधिक समीक्षा (यूपीआर) के तीसरे चक्र से चार दिन पहले हुआ।

पैनल के सत्रों में दुनिया भर के विशेषज्ञों, कार्यकर्ताओं और शिक्षाविदों ने चीन की आर्थिक शक्ति को देखते हुए उसके द्वारा किए जा रहे मानवाधिकारों के व्यापक उल्लंकघन के लिए उसे जिम्मेदार ठहराने में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार संस्थानों के समक्ष उपस्थित चुनौतियों और इसके समाधान की दिशा में चर्चा की।

राष्ट्रपति सांगेय ने पिछले 20 वर्षों की निरर्थक प्रयासों को इंगित करते हुए अपने भाषण की शुरुआत की कि, जिस दौरान दुनिया चीन के साथ व्यापारिक संबंधों को बढ़ाने में ही व्यस्त  रही है। उन्होंने कहा, ‘उन्हें उम्मीद थी कि आर्थिक विकास के साथ, चीन में मध्यम वर्ग बढ़ेगा और अधिक स्वतंत्रता और लोकतांत्रिक अधिकारों का दावा करेगा जो अंततः चीन को एक लोकतांत्रिक प्रणाली में बदल देगा। पर ऐसा नहीं हुआ।’

उन्होंने आगे कहा, ‘कुछ लोगों ने कहा कि चीन के साथ सहयोग करने से चीनी नेता अंतर्राष्ट्रीय मानदंडों के अनुसार व्यवहार करेंगे। बहुत चर्चा के बाद चीन को मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा दिया गया था। इस उम्मीद के साथ कि यह अधिक उदार हो जाएगा, जो नहीं हुआ। इसी तरह, चीन को ओलंपिक की मेजबानी का सम्मान इस शर्त के साथ दिया गया था कि चीन में मानव अधिकारों में सुधार हो जाएगा। लेकिन यह भी नहीं हुआ।’

राष्ट्रपति सांगेय ने कहा कि मानवाधिकार के मोर्चे पर कुछ विशेषज्ञों ने सिफारिश की है कि चीन और चीनी नेताओं की प्रशंसा करने या उन्हें  लज्जित करने का तरीका प्रभावी नहीं होगा। इसलिए चीनी नेताओं को अपना चेहरा बचाने के लिए एक व्या पक कूटनीतिक प्रयास किया जाना चाहिए और साथ ही चीन के मानवाधिकार की स्थिति में वास्तव में सुधार करना चाहिए।

उन्होंने कहा, ‘बहुत सारे देश चीन की द्विपक्षीय मानवाधिकार वार्ता के जाल में फंस चुके हैं।’ उन्होंने पिछले बीस वर्षों से इन संवादों में लगे कुछ राजनयिकों के साथ बातचीत को याद किया।

“राजनयिकों ने महसूस किया कि ये संवाद शुद्ध रूप से निष्फाल हैं और साल  में एक बार एकतरफा आलाप करने का भी कुछ परिणाम नहीं निकलनेवाला हैं। वास्तव में मानवाधिकार की स्थिति बद से बदतर हो गई है और कुछ देशों को अब अपनी नीतियों में  कमी महसूस होने लगी है। उन्हें अब चीनी सरकार के भयावह कार्यकलाप का एहसास हुआ है।’

राष्ट्रपति सांगेय ने नार्वे, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और स्विट्जरलैंड जैसे देशों में चीनी सरकार के बढ़ते प्रभावों के बारे में बताया। “इन देशों को अपने किए की कमी महसूस हो रही है। उदाहरण के लिए, ऑस्ट्रेलिया यह महसूस कर रहा है कि चीन से संबंध बढ़ाने के बाद उसका प्रभाव केवल आर्थिक मामलों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि राजनीति को भी प्रभावित कर रही है। साथ ही अकादमिक स्वतंत्रता को भी। इसलिए उसने अपने संसद में एक विधेयक का प्रस्ताव रखा है, जिसमें ऑस्ट्रेलिया में विदेशी हस्तक्षेप को प्रतिबंधित किया गया है। इसी तरह की बहस न्यूजीलैंड में भी चल रही है।’

उन्होंने चीन के साथ अपने संबंधों को फिर से जांचने और देखने का आग्रह इन सभी देशों से किया।

राष्ट्रपति सांगेय ने आगाह किया कि चीन चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्वद में पिरामिडनुमा एक नई विश्व व्यवस्था लाने के लिए दृढ़प्रतिज्ञ है, जिसके शीर्ष पर खुद कम्यु‍निस्ट पार्टी होगी।

अंतर्राष्ट्रीय मंच पर चीन नए युग में चीनी चरित्र से युक्ति विशेषताओं के साथ समाजवाद को बढ़ावा दे रहा है। यह राष्ट्रपति शी जिनपिंग का मंत्र है। उन्होंने आगे स्पष्ट करते हुए कहा, ‘चीनी चरित्र के साथ समाजवाद का मतलब लोकतंत्रविहीनता, एक पार्टी की तानाशाही और कोई मानव अधिकार का अभाव है।’

राष्ट्रपति सांगेय ने अपने भाषण का समापन यह पूछते हुए किया, “अगर संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद चीन को मानवाधिकारों के उल्लंघन के लिए जिम्मेदार नहीं बना सकता है तो यह काम कौन करेगा? यूपीआर के निष्कर्षों के बावजूद हमें इस फोरम के माध्यम से चीन को सार्वजनिक रूप से जवाबदेह बनाना होगा। हमारे पास मंगोलिया, झिंझियांग, तिब्बत, हांगकांग से सम्मानजनक शिक्षाविदों और चीन के मानवाधिकार विशेषज्ञों का दल वक्ता के रूप  में  मौजूद है। मैं चीन सरकार को जवाबदेह बनाने की सिफारिश करने के लिए अब इसे विशेषज्ञों पर छोड़ता हूं। उन्होंने अंत में कहा, ‘अगर हम चीन को नहीं बदलते हैं तो चीन हमें बदल देगा।’


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