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तिब्बती राष्ट्रीय जनक्रांति दिवस की 66वीं वर्षगांठ पर कशाग का वक्तव्य

March 10, 2025

tibet.net

 आज से 66 साल पहले आज के ही दिन तिब्बत की राजधानी ल्हासा में तीनों तिब्बती प्रांतों की जनता एकजुट होकर तिब्बत पर अवैध चीनी कब्जे और तिब्बत में चीन की क्रूर अमानवीय नीतियों और कृत्यों के खिलाफ उठ खड़ी हुई थी। चीनी सेना के हिंसक दमन के कारण दस लाख से अधिक तिब्बतियों को अपने अनमोल जीवन से हाथ धोना पड़ा था और परम पावन महान 14वें दलाई लामा के नेतृत्व वाली वैध तिब्बती सरकार को भंग कर दिया। इसके बाद लगभग 80,000 तिब्बतियों को निर्वासित होना पड़ा। यह तिब्बत के इतिहास का सबसे काला अध्याय और सबसे महत्वपूर्ण दौर है। इस दिन की याद में हम तिब्बती राष्ट्रीय जनक्रांति दिवस मनाते हैं। इस दिन हम अपने बहादुर शहीदों का सम्मान करते हैं और तिब्बत के अंदर अपने उन भाइयों और बहनों के साथ एकजुटता व्यक्त करते हैं, जो दमनकारी चीनी सरकार के अधीन अभी भी पीड़ित हैं।

इन पिछले 66 वर्षों से लेकर आज तक वर्तमान चीनी नेतृत्व ‘चीनी राष्ट्रीय एकता की चेतना को मजबूत करने’ के नाम पर तिब्बत की हर चीज का व्यापक चीनीकरण करने की नीतियों को लागू कर रही है, जिसके परिणामस्वरूप तिब्बती पहचान का क्रमिक विनाश हो रहा है और तिब्बती लोगों के मौलिक मानवाधिकारों का हनन हो रहा है।

इसके अलावा, चीनीकरण अभियान के तहत धर्म की स्वतंत्रता को पूरी तरह से बाधित हुए मठों में बड़े पैमाने पर प्रतिबंध लगाए गए हैं और  तिब्बत भर में दस लाख से अधिक तिब्बती बच्चों को जबरन औपनिवेशिक शैली के बोर्डिंग स्कूलों में भर्ती कराया गया है। इसी तरह ‘राष्ट्रीय जनभाषा को बढ़ावा देने’ की आड़ में तिब्बती भाषा के उपयोग और शिक्षण को गंभीर रूप से प्रतिबंधित किया गया है।

चीनी सरकार की अनियंत्रित खनन और निर्माण परियोजनाओं ने तिब्बत के प्राकृतिक पर्यावरण को अपूरणीय और व्यापक नुकसान पहुंचाया है, जिसके गंभीर परिणाम इसकी सीमाओं से बहुत दूर तक फैले हैं। चीन के ये सभी कृत्य और व्यवहार न केवल अंतरराष्ट्रीय और घरेलू कानूनों, बल्कि बुनियादी मानवीय मूल्यों का भी उल्लंघन करते हैं।

परम पावन दलाई लामा की दूरदर्शी दृष्टि और अटूट करुणा से लबरेज तिब्बतियों के मन में उनकी मातृभूमि पर कब्जा करने वाले चीनी कम्युनिस्ट सरकार के प्रति कोई घृणा या दुश्मनी का भाव नहीं है। हालांकि चीन सरकार के दमन से 12 लाख से अधिक तिब्बतियों की असामयिक मौत हो चुकी है और छह हजार से अधिक मठों को नष्ट कर दिया गया है। परम पावन की परिकल्पना के अनुसार, तिब्बती लोग मध्यम मार्ग दृष्टिकोण के माध्यम से चीन-तिब्बत संघर्ष को हल करने के लिए एक स्थायी और पारस्परिक रूप से लाभकारी समाधान खोजने के लिए अहिंसा और संवाद के मार्ग पर प्रतिबद्ध हैं। यह हमारे विश्वास की भी पुष्टि करता है कि तिब्बती लोग ही– तिब्बती पठार के अस्तित्व में आने के बाद से इसके सही संरक्षक हैं और अद्वितीय धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं को अपनाते हैं जिन्हें मिटाया नहीं जा सकता। यह एक ऐसी अदम्य भावना है, जिसे तोड़ा नहीं जा सकता और परम पावन दलाई लामा का एक अद्वितीय नेतृत्व है जिसे किसी अन्य नेतृत्व से प्रतिस्थापित नहीं किया जा सकता। पिछले साल परम पावन के जन्मदिन, तिब्बती लोकतंत्र दिवस और परम पावन दलाई लामा को नोबेल शांति पुरस्कार प्रदान किए जाने के अवसर पर कशाग के आधिकारिक वक्तव्यों में चार में से तीन मुख्य प्रतिबद्धताओं पर संक्षेप में प्रकाश डाला गया था। इस अवसर पर कशाग परम पावन की चौथी प्रतिबद्धता पर प्रकाश डालना चाहेगा जो प्राचीन भारतीय ज्ञान को पुनर्जीवित करने पर केंद्रित है।

परम पावन दलाई लामा द्वारा अपना राजनीतिक अधिकार निर्वाचित नेताओं को सौंपे जाने के बाद परम पावन ने अपना ध्यान अपनी चार प्रतिबद्धताओं पर केंद्रित करना शुरू किया, जिसमें प्राचीन भारतीय ज्ञान का पुनरुद्धार भी शामिल है। प्राचीन भारतीय ज्ञान का पुनरुद्धार केवल किसी धर्म विशेष या धार्मिक परंपरा को पुनर्जीवित करना नहीं है। बल्कि, इसके माध्यम से परम पावन प्राचीन ज्ञान पर आधारित आंतरिक आध्यात्मिक विकास के साथ बाहरी भौतिक प्रगति को संतुलित करने के महत्व पर विचार करते हैं।

परम पावन का मानना है कि पीढ़ियों से इस ज्ञान को सुरक्षित रखने और इसका अभ्यास करने में सिद्धहस्त तिब्बती लोग भारत के प्रति कृतज्ञता ज्ञापन के तौर पर इस पुनरुद्धार में योगदान दे सकते हैं। तिब्बती भाषा ने व्यापक रूप से फैले प्राचीन भारतीय ज्ञान को संरक्षित किया है, जो मात्रा और गुणवत्ता दोनों में किसी भी अन्य भाषा में बेजोड़ है। कालांतर में लगभग 5000 भारतीय शास्त्रीय ग्रंथों का तिब्बती भाषा में अनुवाद किया गया है, जो कई शताब्दियों से भारतीय और तिब्बती विद्वानों और अनुवादकों के समर्पित प्रयासों का परिणाम है। इनमें व्याकरण, तिब्बती चिकित्सा, कला, बौद्ध तर्कशास्त्र और बौद्ध दर्शन जैसे पांच प्रमुख विज्ञान शामिल हैं। इसके साथ ही पांच लघु विज्ञान– यानि कविता, प्रदर्शन कला, शब्दकोश, रचना और गणित और ज्योतिष भी हैं, जिसमें ज्ञान के दस क्षेत्र शामिल हैं। इन विषयों पर न केवल बड़ी संख्या में अनुदित ग्रंथ हैं, बल्कि तिब्बती विद्वानों ने इन कार्यों पर व्यापक टिप्पणियां भी लिखी हैं।

यह सर्वविदित है कि परम पावन दलाई लामा बौद्ध धर्म का प्रचार करना नहीं चाहते हैं। बौद्ध धर्म का सार तीन श्रेणियों में में निहित है, जिनका अध्ययन किया जाता है। ये तीन श्रेणियां– बौद्ध धर्म, बौद्ध दर्शन और बौद्ध विज्ञान है। 1980 के दशक से परम पावन ने बाद की दो श्रेणियों पर आधुनिक वैज्ञानिकों के साथ 38 बार संवाद किए हैं। इन संवादों ने मनोविज्ञान, मानव मूल्यों, तंत्रिका विज्ञान और अन्य क्षेत्रों पर वैज्ञानिक चर्चाओं को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित किया है। इन संवादों ने दुनिया भर में वैज्ञानिक चर्चाओं को बहुत प्रभावित किया है और प्राचीन भारतीय ज्ञान के पुनरुद्धार अभियान को बढ़ावा दिया है।

प्राचीन ज्ञान के पुनरुद्धार की दिशा में परम पावन दलाई लामा के प्रयासों ने तर्क पर आधारित विश्लेषणात्मक सोच को प्रभावित किया है, और ‘एसईई (सामाजिक, भावनात्मक और नैतिकता) लर्निंग’ की शुरुआत की गई है। एसईई लर्निंग को 170 से अधिक देशों में लागू किया गया है, जिसमें भारत के 1,00,000 स्कूल शामिल हैं। वाराणसी में केंद्रीय उच्च तिब्बती अध्ययन संस्थान ने लगभग 355 पुस्तकें प्रकाशित की हैं, जिनमें तिब्बती से संस्कृत में अनुदित 80 कार्य, 16 खंडों वाला तिब्बती-संस्कृत शब्दकोश, 4 खंडों वाला चिकित्सा शब्दकोश शामिल है। इस कार्यक्रम के तहत हिमालयी क्षेत्रों के एक हजार से अधिक छात्रों को प्रशिक्षित किया गया है।

बेंगलुरु स्थित ‘दलाई लामा उच्च शिक्षा संस्थान’ मुख्य रूप से तिब्बती और हिमालयी छात्रों को तिब्बती अध्ययन और विभिन्न आधुनिक विषयों की शिक्षा प्रदान करता है। ‘सारा कॉलेज फॉर हायर तिब्बती स्टडीज’ न केवल तिब्बती और भारतीय छात्रों को बल्कि विदेशी छात्रों के लिए भी बौद्ध तर्क, धर्मनिरपेक्ष नैतिकता, बौद्ध विज्ञान और दर्शन में एक वर्षीय पाठ्यक्रम का आयोजन करता है। इसी तरह धर्मशाला स्थित तिब्बती कार्य और अभिलेखागार का पुस्तकालय तिब्बती भाषा की कक्षाएं, छह वर्षीय बौद्ध अध्ययन कार्यक्रम और विज्ञान कार्यशालाएं आयोजित करता है।

दिल्ली स्थित तिब्बत हाउस में अंतरराष्ट्रीय नालंदा विश्वविद्यालय कार्यक्रम में इसके डिग्री कार्यक्रमों और अल्पकालिक प्रशिक्षण पाठ्यक्रमों के माध्यम से 91 देशों के 6000 से अधिक छात्रों ने भाग लिया है। दुनिया भर में बौद्ध धर्म की सेवा करने वाले कई तिब्बती बौद्ध केंद्र हैं और तिब्बत कार्यालय (सीटीए) इनके बीच समन्वय करता है और ये सब परम पावन दलाई लामा की प्रतिबद्धताओं को पूरा करने की दिशा में मिलकर काम करता है।

परम पावन दलाई लामा 1980 के दशक से ही निर्वासन में अवस्थित तिब्बती मठों को आधुनिक विज्ञान का अध्ययन करने की बार-बार सलाह देते रहे हैं और तिब्बती स्कूलों को अपने पाठ्यक्रम में तर्कशास्त्र को शामिल करने का निर्देश देते रहे हैं। धर्म और संस्कृति विभाग और तिब्बती कार्य और अभिलेखागार पुस्तकालय मठों में विज्ञान शिक्षकों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करते रहे हैं। मठों और भारतीय विश्वविद्यालयों के बीच समन्वय में कई सहयोगी परियोजनाएं शुरू की गई हैं। तिब्बती स्कूल तिब्बती भाषा के माध्यम से पारंपरिक और आधुनिक दोनों विषयों में शिक्षा प्रदान करने की नीति अपनाए हुए हैं। निर्वासन में स्थित तिब्बती मठों और चल रहे स्कूलों में हिमालयी क्षेत्रों के हजारों भिक्षुओं, भिक्षुणियों और छात्रों को प्रशिक्षित करने के परिणाम अब भारत के सीमावर्ती क्षेत्रों से लेकर प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय मंचों तक दिखाई दे रहे हैं।

परम पावन दलाई लामा ने अपने करीबी सहयोगियों और मठवासी विद्वानों को विशेष जिम्मेदारियाँ सौंपी है। इसके परिणामस्वरूप बारह खंडों में ‘बौद्ध विज्ञान के संकलन’ और नौ खंडों में ‘बौद्ध दर्शन के संकलन’ और प्रकाशन का कार्य सफलतापूर्वक संपन्न हुआ है। इन संकलनों का अंग्रेजी और अन्य भाषाओं में अनुवाद किया जा रहा है। प्राचीन भारत-तिब्बती दार्शनिक और बौद्ध परंपराओं को पुनर्जीवित करने के लिए बोधगया के पवित्र स्थल पर दलाई लामा भारतीय और प्राचीन ज्ञान संस्थान की स्थापना की जा रही है, जो दुनिया भर के इच्छुक लोगों के लिए खुला है। ये प्राचीन भारतीय संस्कृति को पुनर्जीवित करने के प्रयासों के कुछ उदाहरण मात्र हैं।

मानवीय मूल्यों को बढ़ावा देने, वैश्विक धार्मिक सद्भाव, तिब्बती धर्म और संस्कृति के संरक्षण और प्राचीन भारतीय ज्ञान के पुनरुद्धार के परम पावन दलाई लामा के मिशन अपने मूल में एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। ये प्रतिबद्धताएं विशिष्ट राष्ट्रीय और जातीय हितों की सीमाओं से ऊपर चलती हैं, जो संपूर्ण मानवता के लिए करुणामयी समाज और शांतिपूर्ण दुनिया बनाने का प्रयास करती हैं।

कामरेड मार्क्स का कहना था कि उत्पीड़ित राष्ट्रीयताओं को आत्मनिर्णय का अधिकार है। अपनी इसी विचारधारा के तहत उन्होंने राष्ट्रवाद की आलोचना करते हुए राष्ट्रीय उत्पीड़न, राष्ट्रीय शोषण का विरोध किया। हालांकि, चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने अपने संस्थापक की विचारधारा से मुंह मोड़ लिया है और तिब्बती लोगों सहित सभी नस्लीय समूहों पर चीनी राष्ट्रवाद की एक मनगढ़ंत अवधारणा को जबरन थोप दिया है। तिब्बतियों को राजनीतिक रूप से निम्न-वर्ग के नागरिक के रूप में माना जाता है, दिन-रात उनकी सभी गतिविधियों की निरंतर निगरानी की जाती है। तिब्बती बच्चों को चीनी भाषा और कम्युनिज्म की विचारधारा सीखने के लिए मजबूर किया जा रहा है और तिब्बती बौद्ध धर्म का चीनीकरण किया जा रहा है। ये नीतियां मूल कम्युनिस्ट विचारधारा से परस्पर विरोधाभासी हैं। चीनी शासन द्वारा मार्क्सवादी सिद्धांतों का उल्लंघन करते हुए अंतरराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन किया जा रहा है। इसके साथ ही कम्युनिस्ट शासन तिब्बती और चीनी लोगों के बीच ऐतिहासिक मित्रता को अपूरणीय क्षति पहुंचा रहा है।

पश्चिमी कैलेंडर के अनुसार परम पावन दलाई लामा इस वर्ष 90 वर्ष के हो जाएंगे। जैसा कि केंद्रीय तिब्बती प्रशासन द्वारा पहले ही घोषित किया जा चुका है, इस वर्ष को करुणा के वर्ष के रूप में मनाया जाएगा। इस उत्सव का सार परम पावन दलाई लामा की चार प्रतिबद्धताओं को सीखना, उनकी साधना करना और उनका प्रचार करना है।

हम तिब्बतियों के लिए तिब्बत की तात्कालिक और दीर्घकालिक चुनौतियों का समाधान करने का सबसे अच्छा तरीका परम पावन दलाई लामा द्वारा दिखाए गए मार्ग को समझना और उसका अनुसरण करना है। तिब्बत के अंदर तिब्बतियों की अदम्य भावना तिब्बती लोगों की आकांक्षाओं की नींव है जो निर्वासित तिब्बतियों के दृढ़ संकल्प और प्रतिबद्धता को प्रेरित और मजबूत करती है। हमें परम पावन दलाई लामा के उदार नेतृत्व में साहस और एकता के साथ हमारे सामने आने वाली सभी चुनौतियों का सामना करना चाहिए।

कशाग इस अवसर पर भारत सरकार सहित सभी सरकारों, संगठनों और व्यक्तियों के प्रति हार्दिक आभार व्यक्त करना चाहता है, जिन्होंने तिब्बती मुद्दे और तिब्बती समुदाय के कल्याण का समर्थन किया है।

अंत में, हम परम पावन दलाई लामा की दीर्घायु के लिए ईमानदारी से प्रार्थना करते हैं। तिब्बत जिंदाबाद!

कशाग
10 मार्च, 2025 

 

नोट: यह तिब्बती वक्तव्य का हिन्दी अनुवाद है। यदि अनुवाद में कोई विसंगति उत्पन्न होती है तो कृपया तिब्बती संस्करण को
अंतिम और आधिकारिक मानें। 


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