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केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख ने परम पावन दलाई लामा को ‘लद्दाख डीपल रंगम डसडन अवार्ड- २०२२’ से सम्‍मानित किया

August 5, 2022

ठिकसे रिनपोछे परम पावन दलाई लामा को लद्दाख के सर्वश्रेष्ठ पल नाम डसडन पुरस्कार से सम्मानित करते हुए।

dalailama.com

शिवाछेल, लेह, लद्दाख, केंद्र शासित प्रदेश, भारत। २०१९में लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश (यूटी) का दर्जा दिए जाने की चौथी वर्षगांठ पर ०५अगस्‍त २०२२ की सुबहपरम पावन को ‘लद्दाख डीपल रंगम डसडन अवार्ड- २०२२’पुरस्कार प्रदान किया गया, जो कि लद्दाख के लिए ऐतिहासिक महत्व का है। यह समारोह केंद्र शासित प्रदेश प्रशासन द्वारा पवित्र सिंधु नदी के सिंधु घाट पर आयोजित किया गया। लेह के पास सिंधु नदी को तिब्बती में सेंगे त्सांगपो के नाम से जाना जाता है। समारोह का संचालन लद्दाख स्वायत्त पहाड़ी विकास परिषद (एलएएचडीसी) के अध्यक्ष और मुख्य कार्यकारी आयुक्त श्री ताशी ग्यालसन, लद्दाख केंद्रशासित प्रदेश के सलाहकार श्री उमंग नरूला और अन्य अधिकारियों ने किया।

यह पुरस्कार परम पावन की सर्वव्यापी करुणा, शांति और सद्भाव को बढ़ावा देने और तिब्बत की समृद्ध बौद्ध सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने के उनके प्रयासों के सम्मान में दिया गया। यह लद्दाख के सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण में परम पावन की अद्वितीय भूमिका के लिए लद्दाख के लोगों की उनके प्रति गहरी कृतज्ञता का भी इजहार करता है। साथ ही साथ १९६६ में परम पावन की पहली लददाख यात्रा के बाद से उनके साथ यहां के लोगों के गर्वपूर्ण संबंधों की भावना का भी प्रतिनिधित्व करता है।

संयोग से ०५अगस्‍त का दिन राजा सेंगे नामग्याल के तत्कालीन राज्य लद्दाख के सिंहासन पर बैठने की ४००वीं वर्षगांठ भी है।

वक्ताओं में केंद्रशासित प्रदेश लद्दाख के सलाहकार आईएएस श्री उमंग नरूला, लद्दाख के सांसद श्री जमयांग छेरिंग नामग्याल और एलएएचडीसी के अध्यक्ष श्री  ताशी ग्यालसन थे। वक्‍ताओं ने लद्दाख से होकर बहने वाली यहां की महत्वपूर्ण जीवन रेखा सिंधु नदी की बड़ी प्रशंसा की। उन्होंने लद्दाख के लोगों के गुणों की भी प्रशंसा की, जिनमें से कई ने राष्ट्र की रक्षा सहित अपने-अपने क्षेत्रों में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया है। वक्ताओं ने विश्व में शांति और प्रेम को बढ़ावा देने में दलाई लामा के समर्पण, उनकी बुद्धि और करुणा और उनके द्वारा दिखाए गए स्नेह के लिए परम पावन के प्रति गहरा आभार व्यक्त किया। परम पावन लद्दाख के युवा और बूढ़ लोगों के लिए प्रेरणा के एक बड़े स्रोत हैं।

इस अवसर पर परम पावन ने समझाया कि वह बुद्ध के मार्ग पर चलनेवाले व्यक्ति हैं, जो दशकों से बुद्ध वचनों का अनुशासित तरीके से अध्ययन करते रहे हैं। अध्‍ययन का यह क्रम निर्वासन में आने के बाद भी जारी है। उन्‍होंने कहा कि त्रिपिटकों के साथ ही भारतीय और तिब्बती आचार्यों द्वारा त्रिपिटकों की व्‍याख्‍या में रचित ग्रंथों में निहित शिक्षाओं का अध्ययन जारी है।

परम पावन ने समझाया कि बुद्ध की शिक्षाओं का अध्ययन करने का प्रमुख कारण मन को अनुशासित करना है। उन्होंने कहा कि यह उनकी अपनी साधना है और परोपकारी जागृत मन की साधना करने से आंतरिक शक्ति और सभी जीवों की भलाई के लिए काम करने का दृढ़ संकल्प आता हैजो अपने आप में मन की शांति लाता है। उन्होंने स्पष्ट किया कि उनकी अन्य प्रमुख साधना मध्यम मार्ग परिणामवादी (प्रासंगिका माध्यमिका) दृष्टिकोण के संदर्भ में प्राणियों और घटनाओं के अस्तित्व की जांच करना है। इस प्रकार उन्होंने समझाया कि कैसे वह बोधिचित्त के जाग्रत मन को प्राणियों और चीजों की स्थिति में एक अंतर्दृष्टि के साथ जोड़कर अपने मन और भावनाओं को अनुशासित करते हैं।

उन्होंने घोषणा की कि उन्हें उन लोगों द्वारा दिए गए पुरस्कार को स्वीकार करने में प्रसन्नता हो रही है, जिनकी आस्‍था और जिनका विश्वास उन पर अडिग है।

परम पावन ने स्‍वीकार किया कि‍ तिब्बत और लद्दाख के लोगों के बीच घनिष्ठ और मधुर संबंध रहे हैं। उन्‍होंने कहा कि‍ हम एक ही बौद्ध संस्कृति और अपने बीच से बहने वाली महान सिंधु नदी या सेंगे ख्बाब घाटी के लोग हैं।

परम पावन ने कहा,‘मैं वास्तव में लद्दाख में विभिन्न धर्म समुदायों के बीच मौजूद उत्कृष्ट सद्भाव और मित्रता की सराहना करता हूं। ये सभी धार्मिक परंपराएं दूसरों की मदद करने के महत्व पर जोर देती हैं और चूंकि हम सभी खुश रहना चाहते हैं, इसलिए हमें मानवता की एकता के प्रति जागरूक होकर अपने बीच सद्भाव बनाए रखने के लिए काम करना चाहिए।‘

‘इसके अलावा, मैं आपसे पेड़ लगाने और उनकी देखभाल करने का आग्रह करता हूं। यह एक सकारात्मक कदम है और जिसे हम पूरी मानवता को खतरे में डालने वाले ग्लोबल वार्मिंग के खतरे से निपटने के लिए उठा सकते हैं। आने वाली पीढ़ियों के प्रति हमारी जिम्मेदारी है कि हम आज जितना हो सके, पर्यावरण की देखभाल करें।‘

चूंकि लद्दाख मानसून के दौरान धर्मशाला की तरह पानी-पानी नहीं होता है, इसलिए  मुझे उम्मीद है कि भविष्य में नियमित रूप से लद्दाख का दौरा जारी रख सकूंगा-, मैं आपसे फिर से मिलने को बहुत उत्सुक हूं।

पार्षद वी. कोंचोक स्टीफन ने परम पावन, विभिन्न वक्ताओं, गणमान्य व्यक्तियों, सांस्कृतिक कलाकारों और उन सभी लोगों को धन्यवाद देते हुए इस समारोह के समापन की घोषणा की, जिन्होंने इस आयोजन को सफल बनाने में महत योगदान दिया।


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