
२२ अक्टूबर २०२४ को ऑस्ट्रेलिया के राजदूत और संयुक्त राष्ट्र में स्थायी प्रतिनिधि जेम्स मैटिन लार्सन ने १५ देशों के गठबंधन की ओर से एक संयुक्त वक्तव्य दिया, जिसमें पूर्वी तुर्किस्तान और तिब्बत में गंभीर मानवाधिकार उल्लंघन पर गंभीर चिंता व्यक्त की गई और चीन से तत्काल कार्रवाई करने का आह्वान किया गया। यह वक्तव्य संयुक्त राष्ट्र महासभा की तीसरी समिति के ७९वें सत्र में मानवाधिकारों पर सामान्य चर्चा के दौरान प्रस्तुत किया गया।
कनाडा, डेनमार्क, फिनलैंड, फ्रांस, जर्मनी, आइसलैंड, जापान, लिथुआनिया, नीदरलैंड, न्यूजीलैंड, नॉर्वे, स्वीडन, इंग्लैंड, अमेरिका सहित १४ अन्य देशों का प्रतिनिधित्व करते हुए ऑस्ट्रेलिया के राजदूत लार्सन ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय (ओएचसीएचआर) और संयुक्त राष्ट्र के अन्य निकायों द्वारा एकत्र किए गए साक्ष्य के आधार पर गंभीर चिंताओं को उजागर किया। ये निष्कर्ष पूर्वी तुर्किस्तान में उग्यूरों और मुख्य रूप से मुस्लिमों समेत अन्य अल्पसंख्यकों को बड़े पैमाने पर मनमाने ढंग से हिरासत में लिए जाने, परिवारों को अलग करने, जबरन गायब करने, जबरन मजदूरी कराने और व्यवस्थित दमन की ओर इशारा करते हैं। दो साल पहले जारी किए गए इस आकलन में इन उल्लंघनों को संभावित रूप से मानवता के खिलाफ अपराध के रूप में वर्णित किया गया था।
बयान में तिब्बत में मानवाधिकारों के हनन पर बढ़ती चिंताओं को भी रेखांकित किया गया है। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार तंत्र ने राजनीतिक विचारों की शांतिपूर्ण अभिव्यक्ति के लिए मनमाने ढंग से हिरासत में लिए जाने, यात्रा पर प्रतिबंध, जबरन मजदूरी कराने, बोर्डिंग स्कूलों में बच्चों को परिवारों से जबरन अलग करने और तिब्बत में सांस्कृतिक, शैक्षिक और धार्मिक अधिकारों और स्वतंत्रता के क्षरण का विस्तृत विवरण दिया गया है।
राजदूत लार्सन ने कहा कि पारदर्शिता के लिए बार-बार अंतरराष्ट्रीय आह्वान के बावजूद चीन ने इन चिंताओं को खारिज कर दिया है और जुलाई २०२४ में अपने सार्वभौमिक आवधिक समीक्षा के दौरान ओएचसीएचआर के आकलन को ‘अवैध और निरर्थक’ करार दिया है। अगस्त २०२४ के ओएचसीएचआर के बयान के अनुसार, चीन ने अभी तक झिंझियांग में अपनी नीतियों की व्यापक मानवाधिकार समीक्षा नहीं की है, क्योंकि राष्ट्रीय सुरक्षा और आतंकवाद निरोध पर इसके समस्याग्रस्त कानूनी ढांचे में कोई बदलाव नहीं हुआ है।
१५ देशों ने चीन से अपने अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दायित्वों को बनाए रखने और ओएचसीएचआर और संयुक्त राष्ट्र के अन्य निकायों की सिफारिशों को पूरी तरह से लागू करने का आह्वान किया। इनमें पूर्वी तुर्किस्तान और तिब्बत दोनों में मनमाने ढंग से हिरासत में लिए गए लोगों की तत्काल रिहाई और लापता व्यक्तियों के भविष्य के बारे में पूरी पारदर्शिता दिखाना शामिल है। इसके अतिरिक्त, देशों ने चीन से इन क्षेत्रों में मानवाधिकारों की स्थिति का आकलन करने के लिए संयुक्त राष्ट्र सहित स्वतंत्र पर्यवेक्षकों को बेरोकटोक पहुंच की अनुमति देने का आग्रह किया।
हालांकि संयुक्त बयान का समापन करते हुए राजदूत लार्सन ने इस बात पर जोर दिया कि किसी भी देश का मानवाधिकार रिकॉर्ड सही नहीं है, लेकिन सभी देशों को अंतरराष्ट्रीय मानकों के प्रति जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए। गठबंधन ने दुनिया भर में मानवाधिकारों की रक्षा और संवर्धन में सामूहिक वैश्विक जिम्मेदारी का आग्रह किया।
संयुक्त वक्तव्य चीन द्वारा उसके अपने क्षेत्रों में मानवाधिकारों के उल्लंघन के आरोपों को उजागर करने के लिए चल रहे अंतरराष्ट्रीय दबाव को भी दर्शाता है, जो संयुक्त राष्ट्र में वैश्विक कूटनीति में एक महत्वपूर्ण घटना को इंगित करता है।
