
थेक्चेन चोलिंग, धर्मशाला, हिमाचल प्रदेश, भारत। आज ०८ सितंबर को धर्मशाला स्थित मुख्य तिब्बती मंदिर- सुगलाग्खांग को परम पावन दलाई लामा की दीर्घायु प्रार्थना समारोह के अवसर पर चमकीले ढंग से सजाया गया था। स्तंभों को भारतीय राष्ट्र ध्वज के रंग वाले कपड़े से लपेटा गया था और उन पर गेंदे के फूलों की मालाएँ लटकाई गई थीं। प्रांगण से होकर जाने वाला रास्ता लाल कालीन से ढका हुआ था, जिस पर रंगीन शुभ चिह्न लगे हुए थे। परम पावन के आने से ठीक पहले यह कालीन गेंदे के फूलों की पंखुड़ियों से सजी हुई थीं।
जब परम पावन गोल्फ़ कार्ट से गेट पर पहुंचे, तो अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने उनका स्वागत करने के लिए आगे कदम बढ़ाया और उन्हें एक सुनहरा रेशमी दुपट्टा भेंट किया। उन्होंने और अरुणाचल प्रदेश के तवांग जिले के अन्य मोनपा लोगों ने परम पावन को मंदिर तक पहुंचाया। मोनपा समुदाय कल के शिक्षण और आज के दीर्घायु प्रार्थना समारोह के आयोजक हैं। जैसे ही गोल्फ़ कार्ट मंदिर के पूर्वी हिस्से में लिफ्ट के पास पहुंची, एक मोनपा महिला और पुरुष ने स्वागत के तौर पर पारंपरिक चेमा चांग्पू पेश किया।
परम पावन जब मंदिर के दरवाज़े की ओर बढ़े तो मुस्कुराते हुए शुभचिंतकों की ओर हाथ हिलाया और एक छोटे लड़के से दुपट्टा भेंट लेने के लिए रुके। मंदिर के अंदर वे मंच के सामने आए और मंडली का अभिवादन किया। फिर उन्होंने सिंहासन पर अपना स्थान ग्रहण किया। उनकी दाईं ओर मोनपा समुदाय के प्रतिनिधि बैठे थे और उनकी बाईं ओर केंद्रीय तिब्बती प्रशासन के वर्तमान और पूर्व अधिकारी बैठे थे।
मुख्यमंत्री पेमा खांडू के साथ उनकी पत्नी और बच्चे, अरुणाचल के सांसद तापिर गाओ, शिक्षा मंत्री श्री पासंग दोरजे सोना, लुंगला, तवांग, कलातांग और दिरांग के विधायक, कार्मिक और आध्यात्मिक मामलों के विभाग- डोका के अध्यक्ष भी थे। पिछले तीन दिनों में परम पावन ने जिन १४०० मोनपाओं से मुलाकात की है, वे सभी उनके साथ मंदिर में और उसके आसपास ३५०० स्थानीय तिब्बती और अन्य जिज्ञासु शामिल हुए।
समारोह की अध्यक्षता करने वाले लिंग रिनपोछे परम पावन के ठीक सामने बैठे थे। उनकी दाहिनी ओर नामग्याल लोबपोन लोबसंग धारग्ये और बाईं ओर गुरु तुल्कु रिनपोछे, तवांग मठ के पूर्व महंत और खांड्रो शेरिंग चे-नगा थे। उनके साथ कई मोनपा महंत भी थे।

आज जो समारोह आयोजित किया गया वह महान पांचवें दलाई लामा द्वारा रचित ‘अमरता का शुद्ध सार प्रदान करना’ नामक अनुष्ठान पर आधारित था। जब परम पावन की स्तुति गाई गई, जिसे उन्होंने दिलगो खेंत्से रिनपोछे के कहने पर स्वयं लिखा था, लिंग रिनपोछे ने मंडल अर्पण किया और आत्मज्ञान के शरीर, वाणी और मन के चित्रण प्रस्तुत किए।
इसके बाद पारंपरिक वेशभूषा में विभिन्न प्रकार के प्रसाद लेकर मोनपा लोगों का जुलूस मंदिर से गुजरने लगा। लिंग रिनपोछे ने परम पावन को अमृत और दीर्घायु की गोलियां और दीर्घायु-बाण भेंट किए। फिर उन्होंने उन्हें आठ शुभ प्रतीकों, सात शाही प्रतीकों और आठ शुभ पदार्थों से युक्त ट्रे भेंट की।
परम पावन की दीर्घायु के लिए उनके दो शिक्षकों द्वारा प्रार्थना के पाठ के दौरान, मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने उन्हें जे सोंगखापा की एक मूर्ति भेंट की। परम पावन को ‘सोंग’ भेंट किया गया। मोनपा समुदाय के प्रतिनिधि सिंहासन के समक्ष अपना सम्मान प्रकट करने आए। उनमें एक बालक भी था जिसका नाम था ल्हाग्याला रिनपोछ।

परम पावन ने उपस्थित मंडली को संबोधित किया। उन्होंने कहा, ‘चूंकि हम सभी यहां इस दीर्घायु प्रार्थना समारोह के लिए एकत्रित हुए हैं, इसलिए मैं ‘पोटाला की सीढ़ी’ नामक गुरु योग साधना का जाप करने जा रहा हूं। इसकी शुरुआत ‘ब्रह्मांड के स्वामी लोकेश्वर को श्रद्धांजलि’ से होती है और आगे यह है, ‘मेरे मुकुट पर, कमल और चंद्रमा के आसन पर, मेरे मूल शिक्षक विराजमान हैं, जो विश्व के स्वामी परम महान अवलोकितेश्वर से अविभाज्य हैं, जिनके एक मुख और चार हाथ हैं- पहले दो हाथ प्रार्थना में जुड़े हुए हैं जबकि शेष दो हाथों में मनकों की माला और पूर्ण रूप से खिले हुए सफेद कमल का तना है’। वे सभी शरणार्थियों के अवतार हैं।
परम पावन ने घोषणा की, ‘हम सभी यहां अवलोकितेश्वर के साधक हैं, आइए हम सब मिलकर छह-अक्षरों वाला मंत्र पढ़ें।’ इसके बाद कई मिनट तक मंदिर ‘ओम् मणि पद्मे हुं’ के जाप से गूंजता रहा।
इसके बाद परम पावन ने जाप पूरा किया और अंत में कोलोफोन (पुष्पिका) पढ़ा। इस पुष्पिका में बताया गया कि तिब्बत में रहते हुए उन्होंने इसे कैसे लिखा। ‘एक मंडल की पेशकश के साथ, एक नया गुरु योग पाठ लिखने का अनुरोध किया गया था, जो गांवों में रहने वाले किसानों और अनपढ़ लोगों के लिए अभ्यास करने में आसान हो। इसे उन लोगों से दिल से सीखने की जरूरत है जो उनके लिए इसे सुनाकर मदद करते हैं, यह ‘अवलोकितेश्वर का अत्यंत लघु गुरु योग’ है, जो नोरबुलिंगका (तिब्बत) में गुड फॉर्च्यून (कलसांग फोडरंग) के पैलेस में बुद्ध की शिक्षाओं के समर्थक बौद्ध भिक्षु न्गवांग लोबसांग तेनजिन ग्यात्सो द्वारा लिखा गया था।’
परम पावन ने कहा, ‘जब से हमने तिब्बत छोड़ा और निर्वासन में आए हैं, मैं भारत से दुनिया भर में लोगों की बड़े पैमाने पर सेवा करता आ रहा हूं। इस दीर्घायु- प्रार्थना समारोह का आयोजन मोनपा द्वारा किया गया। मोन्युल वह जगह है जहां मैंने भारत में प्रवेश किया और जैसा कि मैंने कहा, मैं लोगों की भक्ति से बहुत प्रभावित हुआ।’
उन्होंने आगे कहा, ‘आज आपने यह समारोह आयोजित किया है जिसके लिए मैं आपको धन्यवाद देता हूं। मैं प्रार्थना करता हूं कि अवलोकितेश्वर आपको आशीर्वाद दें और आपके सभी अल्पकालिक और दीर्घकालिक लक्ष्य पूरे करें। बस इतना ही।’
मंत्र-गुरु ने शुभता के विभिन्न भावों और सत्य के शब्दों की प्रार्थना का पाठ किया। निम्नलिखित श्लोक ने इससे संबंधित उपयुक्त समर्पण की घोषणा की गई है:-
“ मैं अपने संपूर्ण जीवन में अपने पूर्ण गुरु से कभी अलग न होऊं
मैं वज्रधारा की स्थिति तक पहुंचूं
उत्कृष्ट बहुमूल्य बोधिचित्त वहां बढ़े, जहां वह नहीं बढ़ा है
और जहां वह बढ़ा है, वहां वह कम न हो बल्कि बढ़े।”
इसके बाद परम पावन ने मंदिर छोड़ दिया और जैसे ही वे लिफ्ट की ओर बढ़े, भीड़ का अभिवादन करने के लिए यहां-वहां रुकते चले। नीचे प्रांगण में उन्होंने गोल्फ़ कार्ट में चढ़ने से पहले शुभचिंतकों को फिर से हाथ हिलाकर अभिवादन किया। इसके बाद गोल्फ कार्ट से वह अपने निवास तक गए।
