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सिक्योंग पेन्पा शेरिंग ने तिब्बती कला कैटलॉग में चीनी शब्दावली के इस्तेमाल के लिए पेरिस के दो संग्रहालयों पर चिंता व्यक्त की

September 20, 2024

धर्मशाला। केंद्रीय तिब्बती प्रशासन के सिक्योंग ने १४ सितंबर २०२४ को पेरिस के दो संग्रहालयों को गहरी चिंता और निराशा व्यक्त करते हुए पत्र लिखे। इन पत्रों में तिब्बती कलाकृतियों की सूची में तिब्बत की जगह ‘जिजांग’ को शामिल करके चीनी सरकार के दुष्प्रचार अभियान का समर्थन करने पर चिंता प्रकट की गई है।

बेल्जियम में ‘ब्यूरो डु तिब्बत’ के प्रतिनिधि के माध्यम से भेजे गए इस पत्र को कई प्रभावशाली हस्तियों को संबोधित किया गया है। इनमें फ्रांसीसी संस्कृति मंत्री, विदेश मंत्री और पेरिस के महापौर, साथ ही दोनों संग्रहालयों के निदेशक और फ्रांसीसी सीनेट में तिब्बती समर्थक समूह के सदस्य शामिल है।

पत्र में लिखा है, ‘मैं अपनी गहरी चिंता और निराशा व्यक्त करने के लिए लिख रहा हूं कि पेरिस के दो प्रतिष्ठित संग्रहालयों- मुसी डू क्वाई ब्रानली और मुसी गुइमेट- ने फ्रांस-चीन सांस्कृतिक आदान-प्रदान कार्यक्रम के हिस्से के रूप में तिब्बती कलाकृतियों के अपने संग्रह में तिब्बत के स्थान पर क्रमशः जिजांग या हिमालयन वर्ल्ड का उपयोग किया है, जिसका व्यापक रूप से फ्रेंच में उपयोग किया जाता है। पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (पीआरसी) सरकार की इच्छाओं को पूरा करने की ऐसी कार्रवाई बेहद खेदजनक है और इसमें सुधार की जरूरत है।’ सिक्योंग ने आगे कहा कि शब्दावली में यह फेरबदल २०२३ में यूनाइटेड फ्रंट वर्क डिपार्टमेंट द्वारा शुरू किया गया था और इसका उद्देश्य एक स्वतंत्र सांस्कृतिक इकाई के रूप में तिब्बत की अवधारणा को मिटाना था।

सिक्योंग ने तिब्बत शब्द के ऐतिहासिक संदर्भ पर जोर देते हुए लिखा कि चीन द्वारा यह दावा करना कि तिब्बत का उल्लेख तिब्बतियों के निवास वाले सभी क्षेत्रों के लिए नहीं होना चाहिए, निराधार बयानबाजी है।’ सिक्योंग ने इस बात पर जोर दिया कि जिजांग शब्द न केवल एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में तिब्बत के इतिहास को विकृत करता है, बल्कि तिब्बती पहचान को दबाने के चीनी सरकार के चल रहे प्रयासों में भी सहायता करता है।

स्वतंत्रता के प्रति फ्रांस की प्रतिबद्धता और उपर्युक्त दो संग्रहालयों की कार्रवाइयों के बीच स्पष्ट विरोधाभास को उजागर करने के लिए सिक्योंग ने कहा, ‘यह विशेष रूप से निराशाजनक है कि स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व को संजोने वाले राष्ट्र फ्रांस के उक्त दोनों सांस्कृतिक संस्थान तिब्बत की पहचान को मिटाने की पीआरसी सरकार की योजना के साथ मिलीभगत कर रहे हैं। तिब्बत के लोगों के भाषाई मानदंडों और आकांक्षाओं के प्रति यह घोर उपेक्षा दुनिया भर के लोकतांत्रिक देशों के लिए खतरनाक मिसाल कायम करती है।’

पत्र के समापन से पहले सिक्योंग ने आग्रह किया है, ‘इन परिस्थितियों के मद्देनजर मैं दोनों संग्रहालयों से अपनी स्थिति पर पुनर्विचार करने और ऐतिहासिक तथ्यों, अंतरराष्ट्रीय कानूनों और तिब्बती लोगों की आकांक्षाओं के अनुरूप तिब्बत का सटीक प्रतिनिधित्व करने का पुरजोर आग्रह करता हूं।’

एक संक्षिप्त ऐतिहासिक अवलोकन प्रदान करने वाला एक अनुलग्नक भी पत्र के साथ शामिल किया गया है, जो कि निम्न प्रकार है।

*तिब्बती लोग अपनी भूमि को ‘बोड’ कहते हैं और खुद को ‘बोडपा’ या ‘बोडमी’ कहते हैं। यह शब्द विभिन्न भाषाओं और संस्कृतियों में विकसित हुआ है। तिब्बत नाम की उत्पत्ति प्राचीन भारत में संस्कृत के ‘भोट’ और पाली के ‘भोट्टा’ शब्दों से हुई है और बाद में तांग राजवंश के दौरान इसे अरबी में ‘तुब्बत’, फ़ारसी में ‘तिबत’ और चीनी में ‘तभोद’ और चीनी में ‘तुफ़ान’ कहा जाने लगा। १३वीं शताब्दी में मार्को पोलो ने इसे ‘तेबेट’ कहा और १७वीं शताब्दी तक ‘तिब्बत’ का इस्तेमाल अंग्रेज़ी में व्यापक रूप से होने लगा।

मिंग राजवंश (१३६८-१६४४) के दस्तावेजों और मानचित्रों में ‘शीज़ांग’ और ‘वुसिज़ांग’ शब्द आए हैं, जो शुरू में तिब्बती क्षेत्रों और डार्टसेडो (कांगडिंग) के पश्चिम के क्षेत्रों को संदर्भित करते थे। विद्वानों का कहना है कि चूंकि चीन में राजवंशों के नामकरण की प्रथा थी, ‘शीज़ांग’ शब्द का इस्तेमाल सांगपा राजाओं द्वारा शासित क्षेत्र के संदर्भ में किया गया था, जिन्होंने उस समय तिब्बत के अधिकांश हिस्से पर नियंत्रण स्थापित कर लिया था। इस प्रकार, ‘शी’ का अर्थ पश्चिम है, जो मिंग साम्राज्य से दिशा को दर्शाता है, और ‘ज़ैंग’ सांगपा राजाओं को संदर्भित करता है। यहां तक कि मांचू किंग युग (१६४४-१९११) में भी तिब्बत को शुरू में ‘तांगगुटे’ और ‘तुबैते’ कहा जाता था, जो ‘बोड’ से निकला था। हालांकि, सातवें दलाई लामा (१७०८-१७५७) के बाद जब मांचू और कुओमिन्तांग सरकारों ने खाम और अमदो पर कुछ हद तक नियंत्रण कर लिया, तो उन्होंने इन कब्ज़े वाले क्षेत्रों के लिए अलग-अलग शब्द बनाए। उस समय तक शब्द ‘ज़िज़ांग’ केवल गादेन फोडरंग सरकार द्वारा शासित क्षेत्रों को निरूपित करने के लिए आया था, (जो लगातार दलाई लामाओं द्वारा चलाया जाता था)। इसका क्षेत्रीय दायरा समय के साथ बदलता रहा।

१९४९ से शुरू होकर अक्तूबर १९५० में चीनी कम्युनिस्ट ताकतों द्वारा तिब्बत पर अंतिम बलपूर्वक कब्जे के बाद १९६५ में तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र (टीएआर) की स्थापना से पहले तिब्बत में बसे क्षेत्रों को चार चीनी प्रांतों में विभाजित किया गया था। झिंझियांग, आंतरिक मंगोलिया, निंग्ज़िया, गुआंग्शी और अन्य स्वायत्त क्षेत्र, जहां क्षेत्र के शीर्षक में मुख्य नस्लीय समूह का नाम शामिल है। तब भी तिब्बत को ‘ज़िज़ांग-तिब्बती स्वायत्त क्षेत्र’ नहीं कहा गया।

पीआरसी सरकार द्वारा किए गए नामकरण में विसंगतियां बनी हुई हैं, क्योंकि यह तिब्बती लोगों का जिक्र करते समय चीनी में ‘ज़ैंगरेन और ज़ैंगजू और अंग्रेजी में ‘तिब्बती’ का उपयोग करती है। यह विसंगति टीएआर के बाहर तिब्बती क्षेत्रों में दस तिब्बती स्वायत्त प्रान्तों और दो तिब्बती स्वायत्त काउंटियों के नामकरण में स्पष्ट रूप से झलकती है। पीआरसी सरकार अभी भी उनके आधिकारिक अंग्रेजी शीर्षकों में ज़ैंगज़ू के बजाय तिब्बती का उपयोग करती है।

‘चीनी राष्ट्र के लिए समुदाय की एक मजबूत भावना को बढ़ावा देने’ की पीआरसी सरकार की व्यापक रणनीति के तहत दस लाख से अधिक तिब्बती बच्चों को राज्य द्वारा संचालित औपनिवेशिक बोर्डिंग स्कूलों में भेजने, मठ प्रशासन और धार्मिक शिक्षा पर नियंत्रण के माध्यम से तिब्बती बौद्ध धर्म का चीनीकरण करने को प्रेरित किया है। इसके साथ ही प्रकृति आरक्षित क्षेत्र और सार्वजनिक पार्क बनाने की आड़ में तिब्बती खानाबदोशों को जबरन स्थानांतरित किया गया और उनकी जमीन जब्त की गई।

इन कार्रवाइयों को लेकर लगातार अमेरिकी विदेश विभाग, यूरोपीय संघ, संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार निकायों, स्वतंत्र अनुसंधान संस्थानों और कई मानवाधिकार संगठनों की ओर से गंभीर चिंता व्यक्त की है।

१२ जुलाई, २०२४ को अमेरिकी सरकार ने चीन-तिब्बती विवाद अधिनियम लागू किया। इस कानून में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि प्राचीन काल से तिब्बत के चीन का अभिन्न अंग होने का चीन का दावा ऐतिहासिक रूप से गलत है। यह स्पष्ट करता है कि तिब्बत केवल टीएआर को ही संदर्भित नहीं करता है, बल्कि इसमें तीनों पारंपरिक प्रांत (चोलखा सम) शामिल हैं। इसके अलावा, यह स्पष्ट रूप से बताता है कि चीनी सरकार तिब्बतियों की अपने धर्म, संस्कृति, भाषा, इतिहास, जीवन शैली और पर्यावरण को संरक्षित करने की क्षमता का व्यवस्थित दमन कर रही है।


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