धर्मशाला। निर्वासित तिब्बत सरकार के केंद्रीय प्रशासन (सीटीए) का सूचना और अंतरराष्ट्रीय संबंध विभाग तिब्बत में तिब्बतियों के जबरन गायब होने के लगातार बढ़ते मामलों पर गंभीर चिंता व्यक्त करता है और हिरासत में लिए गए तिब्बतियों के साथ चीनी सरकार द्वारा किए जा रहे अत्याचार और दुर्व्यवहार की कड़ी निंदा करता है। हर साल, चीनी अधिकारी मनमाने ढंग से कई तिब्बतियों को गिरफ्तार करते हैं और जबरन गायब कर देते हैं। इसका मुख्य कारण इनके द्वारा तिब्बती राष्ट्रीय पहचान की अभिव्यक्ति और दमनकारी नीतियों का विरोध है। गायब होने वालों में धार्मिक और सामुदायिक नेता, लेखक और संगीतकार, मानवाधिकार और पर्यावरण कार्यकर्ता शामिल हैं। ज़्यादातर मामलों में उन्हें जबरन गायब कर दिया जाता है। इसके बाद उन्हें अक्सर झूठे आरोपों में जेल की सज़ा होती है, जबकि अनेक मामले अभी भी अज्ञात हैं।
किसी भी समय, किसी भी परिस्थिति में, जबरन गायब करने की सुनियोजित प्रथा मानवता के खिलाफ़ अपराध है। व्यक्तियों को जबरन गायब किए जाने से बचाने के लिए जारी संयुक्त राष्ट्र (यूएन) घोषणा-पत्र के पहले अनुच्छेद में कहा गया है कि जबरन गायब किए जाने का कोई भी कृत्य अंतरराष्ट्रीय कानून के प्रावधानों का उल्लंघन है, जो अन्य बातों के साथ-साथ कानून के समक्ष व्यक्ति के रूप में मान्यता के अधिकार, व्यक्ति की स्वतंत्रता और सुरक्षा के अधिकार और यातना और अन्य क्रूर, अमानवीय या अपमानजनक व्यवहार या दंड के अधीन न होने के अधिकार की गारंटी देता है। हालांकि, संयुक्त राष्ट्र का सदस्य चीन लगातार अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानूनों के प्रति पूर्ण अनादर प्रदर्शित करता है, व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा करता है, अपने उत्पीड़न के तहत तिब्बतियों और अन्य राष्ट्रीयताओं के लोगों के साथ व्यवहार में वैश्विक मानकों की व्यवस्थित रूप से अवहेलना करता है।
जबरन गायब किए जाने के मामलों में सबसे प्रमुख मामला तिब्बत के ११वें पंचेन लामा गेधुन चोएक्यी न्यिमा का अपहरण है, जो तिब्बती बौद्ध धर्म के सर्वोच्च नेताओं में से एक हैं। महज छह साल की उम्र में चीनी अधिकारियों ने ११वें पंचेन लामा को उनके परिवार और चाद्रेल रिनपोछे के साथ १९९५ में अगवा कर लिया था। बार-बार चिंता जताने और विभिन्न संयुक्त राष्ट्र निकायों द्वारा आज तक हस्तक्षेप करने के बावजूद चीन ने पिछले २९ वर्षों से उनके ठिकाने या उनकी कुशलता के बारे में विश्वसनीय जानकारी रोक रखी है, जिससे वह दुनिया में सबसे लंबे समय तक जेल में रहने वाले राजनीतिक कैदियों में से एक बन गए हैं।
सिर्फ इसी साल कई तिब्बती ‘गायब’ हो गए हैं, जब चीनी अधिकारियों ने शांतिपूर्ण विरोध-प्रदर्शन करने से लेकर किताबें प्रकाशित करने तक के विभिन्न कारणों से उन्हें मनमाने ढंग से हिरासत में लिया। इन मामलों में फुंटसोक, पेमा, समतेन, जोमकी, तमदिन और लोबसांग थाब्खे का जबरन गायब किया जाना शामिल है। हाल के वर्षों में एक प्रमुख मामला २०२० में गेंडुन ल्हुंडुप की मनमानी गिरफ्तारी है। उनकी मनमानी गिरफ्तारी के तीन साल से अधिक समय बाद भी, उनका ठिकाना और उनकी कुशलता के बारे में उनके परिवार को कुछ पता नहीं है।
जबरन गायब कर दिए जाने का पीड़ित पर गहरा प्रभाव पड़ता है, लेकिन परिवार के सदस्यों पर इसका पंगु कर देने वाला प्रभाव पड़ता है, जो लंबे समय तक अपने प्रियजनों के भाग्य से अनजान रह जाते हैं, जो भयानक है। हाल ही में, तिब्बत से समाचार में लेखक तेनज़िन खेनराब की ५३ वर्षीय तिब्बती मां फुडे की दुखद मौत की सूचना मिली। उनके २९ वर्षीय बेटे को २०२३ में अपने फोन पर कई ई-पुस्तकों के साथ परम पावन दलाई लामा की एक तस्वीर रखने के लिए गिरफ्तार किया गया था। उनके बार-बार प्रयासों के बावजूद, चीनी पुलिस ने उनके बेटे के ठिकाने के बारे में कोई भी जानकारी देने से इनकार कर दिया। एक साल से अधिक समय तक अपने बेटे की भलाई के बारे में चिंता करने के अवसाद से पीड़ित होने के बाद मां फुडे का इस साल की शुरुआत में १७ फरवरी को निधन हो गया।
जेल में दस साल की सजा पाए गो शेरब ग्यात्सो और रिनचेन सुल्ट्रिम (कथित तौर पर इस साल की शुरुआत में रिहा) के मामले चीनी अधिकारियों की तिब्बती व्यक्तियों की गिरफ्तारी, हिरासत और सजा के बारे में विवरण छिपाने और केवल महत्वपूर्ण होने पर ही ऐसी जानकारी जारी करने की आदतों को दर्शाते हैं। जब अंतरराष्ट्रीय दबाव डाला गया तब एक साल से अधिक समय बाद चीनी अधिकारियों ने बिना अधिक विवरण दिए संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार विशेषज्ञों के एक पत्र के जवाब में जुलाई- २०२१ में केवल उनकी गिरफ्तारी की पुष्टि की।
आज जब हम जबरन गायब किए जाने के पीड़ितों का ४१वां अंतरराष्ट्रीय दिवस मना रहे हैं, तो हम चीनी सरकार से तिब्बतियों के जबरन गायब होने को रोकने और उन लोगों की विश्वसनीय जानकारी प्रदान करने का आह्वान करते हैं, जिनके भाग्य और ठिकाने अज्ञात हैं। पीआरसी सरकार के ‘निर्दिष्ट स्थान पर आवासीय निगरानी’ कानून की निंदा करते हुए हम चीन से सुरक्षा के लिए अंतरराष्ट्रीय कन्वेंशन पर हस्ताक्षर करने और इसकी पुष्टि करने का आह्वान करते हैं। यह कानून चीनी पुलिस को लोगों को बिना सूचित किए छह महीने तक हिरासत में रखने और यातना देने और हिरासत में लिए गए लोगों के साथ दुर्व्यवहार करने का अधिकार देता है। हम चीन से मांग करते हैं कि वह सभी जबरन गायब किए गए लोगों की सुरक्षा की बाबत इंटरनेशनल कन्वेंशन द्वारा घोषित नियमों की पुष्टि करे जो जबरन गायब किए जाने की समाप्ति को सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
हम संयुक्त राष्ट्र, मानवाधिकार संगठनों, अधिकार कार्यकर्ताओं और दुनिया भर के समर्थकों सहित अंतरराष्ट्रीय सरकारों और संगठनों से भी आग्रह करते हैं कि वे ११वें पंचेन लामा के मामले सहित मनमाने ढंग से गिरफ्तार और गायब किए गए तिब्बतियों के बारे में जानकारी का खुलासा करने के लिए चीन पर दबाव डालना जारी रखें। जबरन गायब होना अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार मानकों का गंभीर उल्लंघन है। और चीन यह सुनिश्चित करने के लिए बाध्य है कि जबरन गायब होने की पूरी तरह से जांच की जाए और यह उन लोगों के लिए अभिन्न क्षतिपूर्ति प्रदान करे जो अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार इस अमानवीय और अवैध कृत्य के भुक्तभोगी हैं।
– डीआईआईआर के संयुक्त राष्ट्र, यूरोपीय संघ और मानवाधिकार डेस्क, तिब्बत वकालत अनुभाग की रिपोर्ट