
धर्मशाला। आज ०४ जून की सुबह धर्मशाला स्थित मुख्य तिब्बती मंदिर- सुगलागखांग में परम पावन दलाई लामा की दीर्घायु के लिए प्रार्थना समारोह आयोजित किया गया। इस अवसर पर सुगलागखांग को गेंदे के फूलों की मालाओं से सजाया गया और मंदिर के प्रांगण में एक कतार से तिब्बती और बौद्ध झंडे लगाए गए। इस समारोह का आयोजन दार्जिलिंग के तिब्बती केंद्रीय विद्यालय (सीएसटी), न्यूयॉर्क और न्यू जर्सी के तिब्बती समुदाय (टीसीएनवाईएनजे) और मिनेसोटा के तिब्बती अमेरिकी फाउंडेशन (टीएएफएम) के पूर्व छात्रों ने किया था।
भोंपुओं की आवाजों, ढोल की थापों और गायकों की मधुर कंठ लहरियों के बीच परम पावन गोल्फ़कार्ट में बैठकर प्रांगण के गलियारे से होते प्रसन्न मन आगे बढ़े। बीच में वे दोनों ओर कतारबद्ध खड़े शुभचिंतकों का अभिवादन कर रहे थे। मंदिर की बालकनी में वे लगभग ५५०० लोगों की भीड़ की ओर नजरें उठाईं और उनका अभिवादन करने के लिए थोड़ी देर के लिए वहां रुके।
मंदिर पहुंचकर परम पावन सिंहासन पर विराजमान हुए और उधर प्रार्थना शुरू हुई। प्रार्थना समारोह का नेतृत्व आदरणीय समदोंग रिनपोछे ने किया। उनके दाहिनी ओर केउत्सांग रिनपोछे और बाईं ओर चोखोर रिनपोछे बैठे थे। पहले बुद्ध की स्तुति का पाठ हुआ। इसके बाद दीर्घायु अनुष्ठान ‘अमरता का सार’ का पाठ हुआ, जिसे महान पांचवें दलाई लामा ने अमितायुस के रूप में गुरु पद्मसंभव के दर्शन के बाद रचा था।
प्रार्थना के दौरान जिन श्लोकों का पाठ किया गया वे बाधाओं को दूर करने और लामा को दीर्घायु प्रदान करने के लिए डाकिनियों का आह्वान करने वाले थे। इनमें सभी भव्य प्राणियों के लिए सभी लाभ और खुशी के स्रोत लामा से लंबे समय तक जीने का अनुरोध किया गया। इस बीच संरक्षकों के समूहों में से एक जुलूस प्रांगण से मंदिर के ऊपर, सिंहासन के पास से होते हुए वापस नीचे आया। सम्यक्त्व प्राप्त लोगों की मूर्तियां, शास्त्र ग्रंथ और अंत में एक बड़ा कालीन वहां लाया गया।

नागार्जुन की स्तुति में एक श्लोक के पाठ के बाद चाय परोसी गई, उसके बाद खीर का वितरण किया गया। इसके बाद जे. सोंगखापा की परंपरा को गौरवान्वित करने के लिए लामा से दीर्घायु होने का अनुरोध करते हुए एक श्लोक का पाठ हुआ। वास्तविक दीर्घायु प्रार्थना की शुरुआत में लामा को बुद्ध अमितायस के रूप में शून्यता से उठते हुए कल्पना की गई, जो सफेद रंग के थे, एक चेहरे और दो हाथों के साथ, जो अमरता का कलश पकड़े हुए थे। गुरु पद्मसंभव और डाकिनी येशे सोग्याल के आठ पहलुओं को संबोधित श्लोकों की शृंखला इन पंक्तियों के साथ समाप्त हुई :
…वह समय आ गया है,
कृपया जीवन की अमरता हेतु आध्यात्मिक सिद्धि प्रदान करें।
समदोंग रिनपोछे ने परम पावन को दीर्घायु बाण प्रदान किया, जिसे परम पावन ने लेकर कुछ देर तक हवा में लहराया। इसके बाद परम पावन को सोंग भेंट किया गया, जिसमें से उन्होंने प्रतीक रूप में एक छोटा सा हिस्सा लिया।
उपदेशों और तिब्बत के प्राणियों के रक्षक
आप ही शून्यता और करुणा से परिपूर्ण मार्ग का बहुत अच्छी तरह से प्रवचन करते हैं
उपदेशों के सागर तेनजिन ग्यात्सो, पद्मपाणि,
कमल हस्त
आपसे प्रार्थना है कि कि आपकी सभी इच्छाएं स्वत: पूरी हों।
इस श्लोक का तीन बार पाठ किए जाने के बाद, परम पावन को संपूर्ण ब्रह्मांड का प्रतिनिधित्व करने वाला एक मंडल भेंट किया गया। यह उनके लंबे नाम जम्पेल न्गाग्वांग लोबज़ैंग येशे तेंदज़िन ग्यात्सो से प्रदान किया गया, जिसमें उन्हें युगों-युगों तक जीवित रहने का अनुरोध किया गया। इसके बाद उन्हें बुद्ध के शरीर, वाणी और मन, दीर्घायु कलश, दीर्घायु अमृत और दीर्घायु गोलियाँ भेंट की गईं। सभी बीमारियों, नकारात्मक शक्तियों और बाधाओं को दूर करने के लिए शांति, वृद्धि, नियंत्रण और बल से संबंधित चार गतिविधियों को दर्शाने वाले अनुष्ठान केक चढ़ाए गए। शाही प्रतीकों, शुभ वस्तुओं और शुभ पदार्थों की भेंट चढ़ाई गई।
परम पावन की दीर्घायु के लिए उनके दो शिक्षकों द्वारा रचित प्रार्थना का पाठ करने के बाद जमयांग खेंत्से चोकी लोद्रो द्वारा लिखित प्रार्थना की गई।
ध्यान तीन तिब्बती महिलाओं की ओर गया, जिनमें से प्रमुख महिला ने परम पावन के लिए ‘अमरता के अमृत की मधुर धुन’ शीर्षक से एक प्रार्थना की।
आप विजेताओं के महान प्रेम और ज्ञान को मूर्त रूप देनेवाले हैं
आपका स्वरूप बिल्कुल बर्फ से ढके पहाड़ की तरह सफेद,
निर्माणकाय, सर्वोच्च आर्य लोकेश्वर,
तीनों लोकों के प्राणियों के गुरु जैसा है,
आप विजयी हों।
तीनों लोकों में आपके अद्भूत चमत्कार हैं
उदुंबर के फूल की तरह महान
हे सर्वज्ञ, इस दुनिया की शिक्षाओं और प्राणियों के मुकुट मणि,
महान विजेता पद्मपाणि, आपका जीवन दीर्घायु और सुरक्षित हो।
आप सनातन काल से ही बुद्ध थे
आपने अपने मन को जागृत किया और वज्र की तरह दृढ़ प्रतिज्ञा की
संघर्ष के इस युग में प्राणियों तक पहुंचने और उनके पालन पोषण के लिए।
हे दस भूमियों के महान भगवान, आपका जीवन दीर्घायु और सुरक्षित हो।
आप आत्मज्ञान के मार्ग में विभिन्न श्रेणियों की अनुभूतियों को प्रकट करें।
आपमें अभिन्न रूप से विलीन हैं तीनों रहस्य
आपमें ज्ञान और प्रेम के अकल्पनीय गुण हैं,
उत्तरी तिब्बत की भूमि पर शासन करने वाले ऋषियों के दूसरे भगवान
आपका जीवन दीर्घायु और सुरक्षित हो।
आपकी व्याख्या, बहस या रचना की क्षमता में कोई चीज बाधा नहीं डाल सकती।
अपने आत्मविश्वास के अष्टांगिक मार्ग के भण्डार के साथ
आप पूरी तरह से मुक्त हैं।
आप धर्म उपदेश ऐसे ज्ञान से देते हैं जो अचूक है और
व्यक्तिगत अहं को नष्ट करनेवाला है।
आप महान, सबके ऊपर हैं,
आपका जीवन दीर्घायु और सुरक्षित हो
हे शून्यता और करुणा के अवतार
परम पावन, आप तिब्बत के संरक्षक देवता हैं
जिन पर हमारी प्रार्थना के फूल गिरे हैं।
‘आपके ९०वें जन्मदिन के अवसर पर हमने ड्रबटॉप थांगटोंग ग्यालपो द्वारा रचित यह गीत आपको समर्पित किया हैं।’

समूह के नेता ने निम्नलिखित पद्य की प्रत्येक पंक्ति गाई, जिसे उसके साथियों ने कोरस में दोहराया। अंत में समारोह मंडली के उत्साहपूर्ण तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा।
तिब्बत के स्वर्गीय क्षेत्र में, बर्फ के पहाड़ों से घिरा हुआ,
सभी प्राणियों के लिए सभी खुशियों और सहायता का स्रोत
तेनज़िन ग्यात्सो है – व्यक्तिगत रूप से चेनरेज़िग –
उनका जीवन युगों-युगों तक सुरक्षित रहे!
इसके बाद धन्यवाद मंडल पेश किया गया और परम पावन ने समारोह को संबोधित करते हुए कहा :
‘आज, दार्जिलिंग में तिब्बती केंद्रीय विद्यालय के पूर्व छात्रों, न्यूयॉर्क और न्यू जर्सी के तिब्बती समुदाय और मिनेसोटा के तिब्बती अमेरिकी फाउंडेशन ने मेरी लंबी उम्र के लिए ये प्रार्थनाएं की हैं।
‘मेरा जन्म सीलिंग के पास हुआ था। वहां से मैं ल्हासा चला गया और जोवो प्रतिमा के सामने अपने मठ के महंथ योंगज़िन लिंग रिनपोछे से उपसंपदा की दीक्षा ली।
‘मैंने आपसे पहले भी एक घटना का जिक्र किया होगा जब मुझे बुद्ध का सपना आया था। वह मेरे सामने मौजूद थे और मैं उनके आस-पास के लोगों के बीच था। उन्होंने मुझे अपने पास बुलाया तो मैं आदरपूर्वक उनके पास गया। उन्होंने अपने शिष्यों को आशीर्वाद देने के करुणा भाव से मेरे सिर को थपथपाया। मैंने प्रार्थना की, ‘धर्म की जय हो’ और दृढ़ निश्चय किया कि मैं धर्म की सेवा करूंगा।
‘तिब्बत में हमने जिस परंपरा को संरक्षित किया हैं, वह बुद्ध के कुल उपदेशों का सार है। उन्होंने मेरे सिर पर थपथपाया और जो मैंने किया है, उसके लिए अपनी स्वीकृति व्यक्त की।
‘मेरे पास देने के लिए कुछ नहीं था सिवाय एक चॉकलेट के, जो मैंने उन्हें अर्पित किया और वह इतने भर से खुश हो गए। मैं इस बात से हैरान था कि उन्होंने किस तरह से करुणा पूर्वक मेरा ख्याल रखा।

‘जैसा कि आप जानते हैं, मैं तिब्बत से भागकर भारत आया हूं। यहां पर मैंने अपना अधिकांश जीवन व्यतीत किया है। मैं बोधगया और कई अन्य स्थानों पर गया हूं, जहां मैं प्रवचन दे सका हूं, जो बहुत अच्छा रहा है।
‘लामा दोरजे चांग और लिंग रिनपोछे से प्राप्त प्रवचनों को व्यवहार में लाकर मैंनें अपने मन को बदला है। चीन में माओत्से तुंग मेरे प्रशंसक थे। उन्होंने आधुनिक विज्ञान में मेरी रुचि की प्रशंसा की, लेकिन यह भी कहा कि धर्म जहर है। इससे मैं कह सकता हूं कि उनका व्यवहार धर्म के प्रति शत्रुतापूर्ण था।
‘मैं नेकई अन्य देशों की यात्रा की है और वहां प्रवचन देकर धर्म के उत्कर्ष में योगदान देने का भी काम किया है। नैतिकता, एकाग्रता और ज्ञान के तीन प्रशिक्षणों में मेरी भागीदारी के भीतर, मेरी मुख्य साधना बोधिचित्त के जागृत मन और शून्यता के दृष्टिकोण को विकसित करना रहा है।
“हालांकि हम बुद्ध शाक्यमुनि के ऐसे समय के अनुयायी हैं जब प्रवचन कम होते जा रहे हैं, हम उन्हें अपने भीतर पुनर्जीवित कर सकते हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि जो लोग बुद्ध के उपदेशों के विरोधी रहे हैं, वे भी अंततः उनमें रुचि लेंगे।
‘हम वह मनुष्य हैं, जिन्होंने बुद्ध के उपदेशों को अर्जित किया है। मैं अपनी ओर से बौद्धधर्म की सेवा करने का भरसक प्रयास करता हूं। हर सुबह, जैसे ही मैं जागता हूं, मैं बोधिचित्त और शून्यता का दृष्टिकोण उत्पन्न करता हूं और प्रार्थना करता हूं कि मैं दूसरों की सेवा कर सकूँ। चूँकि हम कह सकते हैं कि आप मेरे छात्र हैं, इसलिए मैं आपको बताता हूं कि मैं कैसे साधना करता हूं, मैं कैसे बोधिचित्त और शून्यता पर ध्यान करता हूं। आपको भी यही विकसित करने का प्रयास करना चाहिए। मुझे बस इतना ही कहना है – ताशी देलेक।’
समारोह का समापन बुद्ध के उपदेशों, ‘सत्य के वचनों’ और बोधिचित्त के उत्कर्ष के लिए श्लोंको की प्रार्थनाओं के साथ हुआ। परम पावन मुस्कुराते हुए मंदिर से लिफ्ट तक चलकर गए और रास्ते में भीड़ की ओर हाथ हिलाया। प्रांगण में वे अपने निवास पर वापस जाने के लिए एक बार फिर गोल्फ़कार्ट पर सवार हुए। वे प्रसन्न दिख रहे थे।